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छत्तीसगढ़ में जीत के बाद कांग्रेस पार्टी ने कई प्रशासनिक बदलाव किए हैं. इनमें सबसे चौंकाने वाला फैसला मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए बदनाम आईपीएस अधिकारी एस. आर. पी. कल्लूरी को छत्तीसगढ़ राज्य की आर्थिक अपराध शाखा और भ्रष्टाचार रोधी विभाग का प्रमुख बना दिया जाना है. फरवरी 2017 में छत्तीसगढ़ सरकार ने आईजी कल्लूरी को छुट्टी पर भेज दिया था. मानवाधिकार कार्यकर्ता, कल्लूरी पर अधिकारों के हनन और गैर कानूनी हत्याओं को संरक्षण देने का आरोप लगाते रहे हैं.
2009 में जब कल्लूरी एसएसपी थे तब गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हिंमाशु कुमार के आश्रम पर पुलिस ने बुलडोजर चला दिया था और उन्हें मजबूर हो कर छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा. कारवां से बातचीत में हिमांशु कुमार ने बताया कि कांग्रेस जब विपक्ष में थी तब वह कल्लूरी को जेल भेजने की बात करती थी और सत्ता में आते ही उन्हें सम्मानित कर रही है.
कारवां ने कांग्रेस की जीत के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति और माओवादियों के साथ वार्ता की संभावना पर हिमांशु कुमार से बात की.
कारवां- मानवाधिकारों के मामले में बदनाम आईपीएस अधिकारी एस. आर. पी. कल्लूरी को छत्तीसगढ़ राज्य की आर्थिक अपराध शाखा और भ्रष्टाचार रोधी शाखा का प्रमुख बना दिया गया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब विपक्ष में थे तो कल्लूरी को जेल भिजवाने की बात करते थे. इस बदलाव को आप कैसे देख रहे हैं?
हिमांशु कुमार- नई सरकार से हम सबको बहुत उम्मीदे हैं और सारी उम्मीद अभी टूटी भी नहीं हैं. हालांकि यह फैसला हैरान और चिंतित करने वाला है. मानवाधिकारों के लिए बदनाम अधिकारी कल्लूरी को बहुत बड़ी जिम्मेदारी वाले पद पर नियुक्त किया गया है. कल्लूरी के बारे में कांग्रेस खुद कहती रही है कि उन्हें जेल में होना चाहिए. यहां तक कि बीजेपी ने उन्हें पद से हटा दिया था. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग उनको तलब कर चुका है लेकिन उन्होंने हाजिर होना जरूरी नहीं समझा. यह उनके बारे में बहुत कुछ बताता है. ऐसे आदमी को एंटी करपशन ब्यूरो का चीफ बना देना मानवाधिकारवादियों और आंदोलनकारियों के लिए बहुत चिंता की बात है.
कारवां- आप ने सरकार से उम्मीद की बात की? आप राज्य की सबसे बड़ी चुनौती किसे मानते हैं?
हिमांशु कुमार- पिछले सालों में छत्तीसगढ़ का बड़े पैमाने पर सैन्यकरण हुआ है. अर्ध सैनिक बलों की तैनाती की वजह से स्थानीय प्रशासन दोयम दर्जे का हो गया और पूरा दबदबा सैन्य अधिकारियों का हो गया है. वहां की सबसे बड़ी समस्या यही है. आदिवासी स्वतंत्रतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान नहीं जा सकते. उनको पकड़ लिया जाता है. महिलाओं से सैनिक बलात्कार कर रहे हैं. लोगों के पैसे छीन रहे हैं. निर्दोष लोगों की हत्याएं कर रहे हैं और जेलों में डाल रहे हैं. इसे खत्म किए बिना क्षेत्र में शांति असंभव है. यह कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.
कारवां- क्या इस चुनौती के समाधान का कोई संकेत नए मुख्यमंत्री ने दिया है?
हिमांशु कुमार- मुख्यमंत्री बघेल ने कहा है कि वह पीड़ितों से बात करेंगे. लेकिन सवाल है कि वह बात कैसे करेंगे? कोई जनसुनवाई रखेंगे या पीड़ितों से जा कर मिलेंगे? या अपने लोगों से पता लगाएंगे.
कारवां- आप इसे सकारात्मक पहल मानते हैं?
हिमांशु कुमार- हां, लेकिन इसमें एक खतरा ये है कि ज्यादातर सरकारें नक्सल हिंसा से पीड़ितों को ही पीड़ित मानती हैं. सरकारी हिंसा से पीड़ित लोगों की अनदेखी करती हैं या समझती हैं कि ये लोग दुर्भावना से प्रेरित होकर इल्जाम लगा रहे हैं. फिर चाहे वे बलात्कार की पीड़ित महिलाएं ही क्यों न हों. जबकि एक साल पहले मानव अधिकार आयोग ने स्वयं माना था कि 16 महिलाओं का बलात्कार सुरक्षाबलों ने किया है. इसके बावजूद बीजेपी सरकार ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं की. यदि यह सरकार सिर्फ नक्सल हिंसा के शिकारों को पीड़ित मानेगी तो समस्या जस की तस रह जाएगी.
कारवां- ऐसा क्यों?
हिमांशु कुमार- ऐसा इसलिए कि नक्सल आउट-लॉ हैं. उन्हें सजा देने के लिए अदालत, पुलिस और सरकार है. अगर वे लोग कुछ करते हैं तो पूरा सिस्टम मौजूद है. लेकिन जब सरकार अपराध करती है और सरकारी सैनिक बलात्कार करते हैं तो वह असली समस्या होती है. अगर हम सरकारी अपराध के खिलाफ आवाज नहीं उठाते तो इसका मतलब है कि हम पूरे समाज को अपराधी बना देने की दिशा में बढ़ रहे हैं. इस अपराधीकरण को रोकना सरकार की पहली जिम्मेदारी है, न कि नक्सलियों को.
कारवां- लेकिन कल्लूरी की बहाली इस विचार के खिलाफ लग रही है?
हिमांशु कुमार- वही मैंने कहा है कि हम सब आश्चर्यचकित और चिंतित हैं कि यह सरकार किस रास्ते पर जा रही है. फिर भी मैं अभी से कोई आखिरी फैसला सुना देने को जल्दबाजी ही मानूंगा. मैं अभी उम्मीद खोना नहीं चाहता और बातचीत के दरवाजे बंद करना नहीं चाहता. जरूरी है कि हम सरकार पर जन दबाव बनाएं ताकि सरकार सही दिशा में चल पाए.
कारवां- चुनाव प्रचार में मोदी ने कांग्रेस को नक्सलियों का दोस्त कहा था? नई सरकार इस समस्या को कैसे देखती है?
हिमांशु कुमार- प्रधानमंत्री का कांग्रेस को अर्बन नक्सलियों का दोस्त कहना एक अलग बात है. मोदी या बीजेपी के विचारों में बुद्धिजीवी या सवाल करने वाले नक्सल हैं. उस पार्टी का कार्यकर्ता और नेता सवाल करने वालों को दुश्मन मानता है. लेकिन जनता ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया है. उनकी अर्बन नक्सल थ्योरी की धज्जियां उड़ गईं. यह हमारी चिंता नहीं है. कांग्रेस पार्टी को बीजेपी से बरअक्स राजनीति करने का अच्छा मौका मिला है. जरूरी है कि नई सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से बातचीत करे. बिनायक सेन, नंदनी सुंदर, सुधा भारद्वाज, सोनी सोरी, बेला भाटिया सहित उन सभी लोगों से जो आदिवासियों के लिए काम करते रहे हैं और खनन, भूमिअधिग्रहण, सैन्यकरण पर बोलते रहे हैं उन्हें भरोसे में लिया जाना चाहिए. हमारे सभी कदम लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और शांति बहाली की दिशा में रहे हैं. यदि सरकार को संविधान और शांति की चिंता है तो वह हम लोगों से बातचीत कर सकती है.
कारवां- आप मानते हैं कि माओवादियों से भी बात की जानी चाहिए?
हिमांशु कुमार- बिल्कुल. पहले भी उनसे बातचीत हुई है. केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने वार्ता का प्रयास किया था. लोकतंत्र में लोगों की बात सुनी जानी चाहिए. सभी पक्षों से बातचीत होनी चाहिए. नागालैंड में सरकार बात कर सकती है, जब विद्रोहियों के नेता को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है तो माओवादियों से बात क्यों नहीं होनी चाहिए?
कारवां- लेकिन मोओवादियों का इल्जाम है कि सरकार वार्ता में ईमानदार नहीं होती, उनके नेताओं की हत्या करती है.
हिमांशु कुमार- यह बात बिलकुल सच है कि जब भी वार्ता हुई है तो माओवादियों को ही ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. हम इस बात से चिंतित भी हैं कि सरकार को धोखेबाजी नहीं करनी चाहिए. वह बात भी कर रही होती है और पुलिस को इशारा भी करती है कि कार्रवाई जारी रखे, यह ठीक नहीं है. इससे सरकार की विश्वसनीयता खत्म होती है और लोग बात करने से हिचकिचाएंगे.
कारवां- ऐसी किसी बातचीत में आपकी कोई भूमिका हो सकती है?
हिमांशु कुमार- अभी तो यह कल्पना में ही है. यदि भविष्य में सरकार बातचीत का प्रयास करती है और हमें मदद करने को कहती है तो हमारा जो भी असर है लोगों के बीच उसको इस्तेमाल करके हम मदद कर सकते हैं.
कारवां- नई सरकार के आने के बाद आप छत्तीसगढ़ वापस जाने के बारे सोच रहे हैं?
हिमांशु कुमार- जब तक सरकार मेरे और मेरे जैसों- बिनायक सेन, नंदनी सुंदर, शालिनी घेरा, ईशा खंडेलवाल और सोनी सोरी- के खिलाफ लगाए गए फर्जी केस वापस नहीं लेती और पुलिस को यह संकेत नहीं देती कि हम लोग सरकार की सहमति से जनता के बीच काम कर रहे हैं तब तक यह बड़ा मुश्किल होगा. वहां केन्द्रीय सुरक्षा बल तैनात हैं जो मोदी सरकार से नियंत्रित हैं. वे मेरी हत्या कर सकते हैं. मुझे फर्जी केस में फंसा कर जेल में डाल सकते हैं.
कारवां- सोनी सोरी के मामलों में क्या चल रहा है?
हिमांशु कुमार- सोनी सोरी पर 7 केस लगाए गए थे. छह में वह बाइज्जत बरी हो चुकी हैं. एस्सार वाले मामले में भी सरकारी पक्ष की गवाही पूरी हो चुकी हैं और अब वह भी फाइनल स्टेज में है.
कारवां- यानी हालात सुधरने पर आप छत्तीसगढ़ जाना चाहते हैं?
हिमांशु कुमार- छत्तीसगढ़ मेरा पहला प्यार है. मैं हमेशा चाहूंगा कि वहां के लोगों के बीच रहूं.
कारवां- नई सरकार के लिए आपकी और अन्य मानवाधिकारवादी कार्यकर्ताओं की क्या सलाह है?
हिमांशु कुमार- अभी सबसे बड़ा काम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवाना है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सल्वा जुडूम के समय जिन लोगों को नुकसान हुआ, जिनके घर जलाए गए उनको सरकार मुआवजा दे. जिन अधिकारियों ने यह किया उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और लोगों का पुनर्वास कराया जाए और उनके लिए मकान बनवाए जाएं. पिछली सरकार ने एक भी आदेश का पालन नहीं किया. अब इस सरकार के सामने यह वैधानिक जिम्मेदारी है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करे. अगर इस आदेश के पालन करने में सरकार को हमारी जरूरत है और हमसे कहती है कि आप जा कर उन आदिवासियों को सामने ले कर आएं जिनके घर जलाए गए, जिनको मारा गया, जिन महिलाओं का बलात्कार किया गया तो हम सरकार की मदद करने को तैयार हैं. 2009 में हमने 550 पीड़ितों की लिस्ट कोर्ट को सौंपी थी लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.
कारवां- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बंद हो गए सल्वा जुडूम पर आप की क्या राय है?
हिमांशु कुमार- सल्वा जुडूम बस नाम से बंद है लेकिन अभी भी गांवों में जा कर घर जलाना, बलात्कार करना जारी है.
कारवां- पिछली सरकार पर ईमानदार अधिकारियों को ‘सजा’ देने का भी आरोप लगाया जाता था. इस बारे में आप क्या कहते हैं?
हिमांशु कुमार- जिन सरकारी अधिकारियों ने कानून का पालन किया उनको हटा दिया गया. नई सरकार को ऐसे अधिकारियों को बहाल करना चाहिए. जेलर वर्षा डोंगरे को वापस लाया जाना चाहिए. जज प्रभाकर ग्वाल के मामले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. इससे कानून के पक्ष में काम करने वालों की हिम्मत बढ़ेगी और कानून का इकबाल कायम होगा. वर्ना बीजेपी ने एक ऐसा तंत्र कायम कर दिया है कि कोई भी नियम या कायदे की बात करेगा तो उसको सजा मिलेगी. वहां कानून का राज बिल्कुल खत्म हो चुका है.