1 और 2 मार्च को दिल्ली में जी20 के विदेश मंत्रियों की बैठक को "ब्रांड इंडिया" के लिए सफल माना गया. लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम सफलता को कैसे परिभाषित करते हैं. 2008 के वित्तीय संकट के मद्देनजर आयोजित पहले तीन जी20 शिखर सम्मेलनों के ठोस नतीजे देखे गए थे यानी वैश्विक बैंकिंग प्रणाली को स्थिर करने वाली नीति और संस्थागत पहलें हुई थीं.
2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बढ़ने के साथ ऐसा नहीं था. बाली शिखर सम्मेलन में जी20 ने केवल एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया कि शामिल होने वाले नेता यूक्रेन पर असहमत होने पर सहमत हैं. इसे एक उपलब्धि के रूप में देखा गया था. इस साल जब जी20 की अध्यक्षता की बारी भारत की आई तो विदेश मंत्री एक संयुक्त बयान पर भी सहमत नहीं हो सके. भारत ने एक फुटनोट के साथ "अध्यक्ष का सारांश और नतीजा दस्तावेज" जारी किया जिसमें कहा गया था कि रूस और चीन दो पैराग्राफों पर सहमत नहीं हैं.
प्रतिभागियों की कोई साझा तस्वीर नहीं हो सकी. कई विदेश मंत्रियों ने अपने मेजबान एस जयशंकर द्वारा दिए गए रात्रिभोज से बचे और युद्ध के बारे में तीखे बयान जारी किए. हालांकि 3 मार्च को क्वाड देशों यानी ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका, के विदेश मंत्रियों की बैठक में ज्यादा तालमेल था. इसके साथ ही 2 से 4 मार्च के बीच निजी थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के साथ साझेदारी में चलाया जा रहा रायसीना संवाद विदेश मंत्रालय का एक वार्षिक सार्वजनिक कूटनीति कार्यक्रम था. रायसीना कार्यक्रम झकाझक तमाशाबाजी से भरपूर था, जिसमें सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों, विश्लेषकों और पत्रकारों के लिए गले मिलना, फोटो, भाषण, साउंड बाइट और आमतौर पर कहें तो सोशल-मीडिया के लिए काफी सामग्री थी. वस्तुनिष्ठ पर्यवेक्षकों के कानों में जो शोर था वह मोदी सरकार के समर्थकों के लिए संगीत की तरह लग रहा था.
सभी घटनाओं में भारत वर्तमान भू-राजनीति पर हावी होने वाले सबसे बड़े मुद्दे यूक्रेन संकट से बचता रहा है. विदेश मंत्रियों के सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शुरुआती संबोधन में युद्ध का कोई जिक्र नहीं था. इसके बजाए भू-अर्थशास्त्र और वैश्विक दक्षिण की समस्याओं, जैसे कि खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, आपदा लचीलापन, वित्तीय स्थिरता, अंतर्राष्ट्रीय अपराध, भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित किया गया. यह कहते हुए कि यह "गहरे वैश्विक विभाजन" का समय है, जिसमें "बहुपक्षवाद संकट में है," उन्होंने विदेश मंत्रियों से अपील की कि "जो हमें बांटता है, उस पर ध्यान न दें बल्कि जो हमें एकजुट करता है उस पर दें."
इसे कोई मानने वाला नहीं मिला क्योंकि जी20 को तीन अलग-अलग ब्लॉकों में बांटा गया था : विकसित देशों का जी7 समूह, रूस-चीन समूह और अन्य देशों का एक ढीला-ढाला समूह जो इंडोनेशिया, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और भारत सहित दोनों ब्लॉकों के अनुकूल हैं. फरवरी में बंगलौर में जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक से यह साफ हो गया था. मोदी की एक "महत्वाकांक्षी, समावेशी, क्रिया-उन्मुख" बैठक की उम्मीद जो "मतभेदों से ऊपर उठेगी" टूट गई.
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