जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की बहाली का भ्रम

मुख्तार खान/एपी
मुख्तार खान/एपी

अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जे को हटाकर क्षेत्र में एक प्रकार का कम्युनिकेशन ब्लॉकेड लगा दिया. यह किसी भी लोकतंत्र में अब तक का सबसे लंबा इंटरनेट बंद है. सात महीने बाद 4 मार्च को जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए कुछ तरह की रोकों के साथ इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के निर्देश दिए. तथापि, इस राहत की प्रकृति काफी सीमित है. ऐसा लगता है कि सरकार इंटरनेट को हथियार बनाना चाहती है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अनदेखी कर रही है.

आदेश के बाद कुछ प्रतिबंधों के साथ इंटरनेट की सेवाएं बहाल हुईं. एस आदेश में इंटरनेट की तीव्रता को 2जी तक सीमित रखते हुए कहा गया है कि प्रीपेड सिम कार्ड तब तक इंटरनेट का उपयोग नहीं कर सकते जब तक कि वे पोस्ट-पेड कनेक्शन के लिए लागू मानदंडों के अनुसार सत्यापित नहीं होंगे. साथ ही, इंटरनेट सेवाएं सिर्फ मैक-बाइडिंग के साथ ही उपलब्ध होगी. ये प्रतिबंध कई कारणों से समस्याग्रस्त हैं. वास्तव में शांति और स्वतंत्रता को बहाल करने वाले उपायों के बजाय यह आदेश नाम मात्र के लिए ही शांति स्थापित करने वाला है. इसलिए यह इन आदर्शों के प्रति भ्रम पैदा करता है. यह आदेश सीमित करता है कि कब और कैसे नागरिक स्वयं के विचारों को इंटरनेट पर व्यक्त कर सकते हैं व कितनी जानकारी प्राप्त कर सकते है.   

इंटरनेट की तीव्रता 2जी रखने का प्रतिबंध प्रासंगिक रूप से उन उपयोगकर्ताओं के लिए मुश्किल हो जाता है जो सोशल मीडिया वेबसाइटों और ऑनलाइन समाचार चैनलों, जिनके लिए मुख्य रूप से 3जी और 4जी की तीव्रता आवश्यक है, पर काम करते हैं. इसके अलावा बुनियादी संचार तो संभव हो सकता है पर 2जी तस्वीरें और वीडियों भेजने और उन्हें डाउनलोड करने में परेशानी पैदा करता है. यह जम्मू और कश्मीर के निवासियों की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों के प्रयोग की क्षमता को भी कम करता है. संभवत: यह प्रतिबंध जम्मू-कश्मीर में जमीनी वास्तविकताओं में हेरफेर करने और मुख्यधारा की मीडिया को संचारात्मक झूठ से काबू में रखने के सरकार के प्रयासों का एक विस्तार है.  

दूसरी बड़ी समस्या है, असत्यापित प्रीपेड सिम कार्डों को इंटरनेट सेवा से दूर रखना. यह एक तरह से जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में लोगों को इंटरनेट सेवा से वंचित रखने जैसा ही है. कम्प्यूटर की तुलना में अधिक लोग अपने मोबाइल फोन से इंटरनेट का प्रयोग करते है. इकॉनमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2018 तक भारत में 566 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता थे जिसमें से 97 प्रतिशत लोग मोबाइल फोन से इंटरनेट का प्रयोग करते हैं. इसके अलावा, कुल दूरसंचार उपभोक्ताओं में सबसे ज्यादा वे लोग हैं जो प्रीपेड सिम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं. भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण - वैधानिक प्राधिकरण जो दूरसंचार उद्योग की देखरेख करता है,  द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2019 के अंत में कुल मोबाइल उपयोगकर्ताओं में प्रीपेड ग्राहकों की हिस्सेदारी लगभग 95 प्रतिशत थी. हालांकि यह आंकड़ा देशव्यापी हिस्सेदारी का है लेकिन यह जम्मू और कश्मीर सहित अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मोबाइल उपयोग के प्रतिमान को दर्शाते है.

भले ही सरकार का आदेश कागजों में मोबाइल फोन के लिए इंटरनेट सेवाओं को बहाल करता है, लेकिन इसकी लोगों तक पहुंच का दायरा वास्तव में एक चिंता का विषय है. जम्मू और कश्मीर की आबादी के एक बड़े हिस्से को संभवतः सोशल मीडिया वेबसाइटों जैसे प्लेटफॉर्म पर इंटरनेट का उपयोग करने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, जो लोकतंत्र में अधिक भागीदारी को सक्षम बनाता है.

नम्रता माहेश्वरी न्यू यॉर्क के कोलंबिया लॉ स्कूल से एलएलएम कर रहीं हैं.

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