सरकार की सभी रोजगार योजनाएं फेल, गहराया बेरोजगारी संकट

10 जनवरी 2019
मोदी सरकार के दावों के बावजूद देश में बेरोजगारी का संकट गहराता जा रहा है.
दानिश सिद्दकी/रॉयटर्स
मोदी सरकार के दावों के बावजूद देश में बेरोजगारी का संकट गहराता जा रहा है.
दानिश सिद्दकी/रॉयटर्स

2014 में हुए आम चुनावों के प्रचार के वक्त नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने रोजगार को मुद्दा बनाया था. हर साल 2 करोड़ से अधिक रोजगार के अवसरों के निर्माण के वादे के तहत प्रधानमंत्री ने पिछले चार वर्षों में कई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की. पिछले साल अगस्त में मोदी ने दावा किया कि बीते वित्त वर्ष में औपचारिक क्षेत्र में 70 लाख रोजगार के अवसरों का निर्माण हुआ.

लेकिन इस माह जारी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, 2013-14 से बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है और 2018 में इस बढ़ोतरी में तेजी आई है. इस रिपोर्ट के अनुसार 2018 में एक करोड़ 90 लाख लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा. दिसंबर में बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.4 प्रतिशत हो गई जो पिछले 15 महीनों में सबसे अधिक है. मोदी सरकार ने नीतिगत रूप से स्व-रोजगार, कौशल विकास, रोजगार निर्माण को प्रोत्साहित करना और निर्यातोन्मुख उत्पादन को बढ़ावा दिया. सरकार ने इन नीतियों को मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रधानमंत्री रोजगार निर्माण योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना के जरिए लागू किया.

अगस्त में मोदी ने दावा किया कि नए भारत की नई आर्थिक व्यवस्था में रोजगार की गणना पारंपरिक तरीकों से नहीं की जा सकती. तो भी उनकी योजनाएं रोजगार निर्माण के अपने लक्ष्यों से बहुत पीछे चल रही हैं. एक ओर मोदी उपरोक्त दावे कर रहे हैं और दूसरी ओर देश की दस बड़ी ट्रेड यूनियनों ने सरकार पर “कॉरपोरेट समर्थक” और “जनविरोधी” होने का आरोप लगाते हुए 8 और 9 जनवरी को देश व्यापी आम हड़ताल का आयोजन किया है.

मोदी ने 2016 में प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत 15000 रुपए से कम वेतन पर रखे जाने वाले नए कर्मचारियों का 12 प्रतिशत भविष्य निधि अनुदान (ईपीएफ) केन्द्र सरकार वहन करेगी. ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कॉग्रेस के सचिव तपन सेन ने बताया कि देश भर में कम से कम 40 प्रतिशत योग्य कर्मचारी इस योजना के दायरे से बाहर हैं.

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले की एक पावर लूम (कपड़ा फैक्ट्री) पर हुए अध्ययन के अनुसार प्रोत्साहन योजना को ठीक तरह से लागू नहीं किया जा रहा है. सितंबर 2015 को म्याकल समूह की 15 पावर लूम इकाइयों के श्रमिकों ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से ईपीएफ योजना को लागू न किए जाने की शिकायत की. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत वैधानिक निकाय है. म्याकल समूह की 15 इकाइयां को इस परिवार के पांच सदस्य साझेदारी पर चलाते हैं लेकिन सभी इकाइयों को स्वतंत्र उद्यम के रूप में पंजीकृत किया गया है. ऐसा कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम 1952 के प्रावधानों को दरकिनार करने के लिए किया गया है. 1952 के नियमानुसार 20 से अधिक कर्मचारियों वाली सभी इकाइयों को भविष्य निधि खाता रखना अनिवार्य है. म्याकल समूह का दावा है कि उसकी किसी भी इकाई में 7 से अधिक कर्मचारी नहीं हैं और इस कारण वह खाता रखने के लिए बाध्य नहीं है.

निलीना एम एस करवां की स्टाफ राइटर हैं. उनसे nileenams@protonmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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