बेदखली के कगार पर शिलांग के दलित सिख

विनोद सिंह के ऊपर पंजाबी लाइन कॉलोनी से बेदखल हो जाने का खतरा मंडरा रहा है. प्रकाश भूयण
25 July, 2019

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11 जून को मेघालय की राजधानी शिलांग के गणेश दास मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सरकारी अस्पताल की एक महिला कर्मचारी और दो अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को वरिष्ठ अधिकारी की ओर से एक नोटिस मिला. वह 30 सालों से अधिक समय से गणेश दास अस्पताल में स्वीपर एवं सफाई कर्मचारी के पद पर कार्यरत हैं. ये तीनों दलित सिख समुदाय के सदस्य हैं और शिलांग के पंजाबी लाइन कॉलोनी में रहते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर उस महिला कर्मी ने बताया, “बहुत साल पहले हमने आवास के लिए आवेदन किया था लेकिन हमसे कहा गया कि उस वक्त कोई क्वाटर खाली नहीं है. हाल में कुछ कर्मचारी रिटायर हुए हैं तो हमें क्वाटर दे दिए गए. अबकी बार हमने आवेदन भी नहीं किया था.”

उस कर्मी और पंजाबी लाइन के अन्य लोगों का दावा है कि ये नोटिस यहां के लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ बेदखल करने का प्रयास है. पंजाबी लाइन को हरिजन कॉलोनी या स्वीपर कॉलोनी भी कहते हैं. इस कॉलोनी में 300 परिवार रहते हैं. यहां के लोग तीन पीढ़ियों से सफाई का काम कर रहे हैं.

इस इलाके की दावेदारी का मामला लंबे समय से विवादित है. सालों से राज्य सरकार यहां रहने वालों से इलाका खाली करवाने के प्रयास में है. सरकार के इस प्रयास को खासी छात्र यूनियन और खासी गारो जयंतिया जन परिसंघ जैसे समूहों का समर्थन है. सरकार का दावा है कि कॉलोनी में अवैध निर्माण हुआ है और इसमें रहने वालों में अवैध घुसपैठिए हैं. इस प्रयास के पीछे एक कारण इस बस्ती का शहर के मुख्य व्यवसायिक केंद्र के पास अवस्थित होना भी है. राज्य के उप मुख्यमंत्री प्रेस्टोन त्यानसोंग कहते हैं, “शहर के बीच में बसी यह गंदी कॉलोनी आंख की किरकिरी है.” शिलांग प्रशासन के सदस्य ने नाम न छापने की बात पर बताया कि सरकार इस इलाके को व्यावसायिक उपयोग (संभवत: “शॉपिंग एरिया” बना कर) में लाना चाहती है. इसी बीच खासी समूहों का दावा है कि इस इलाके में आपराधिक क्रियाकलाप होता है. इसके अलावा स्थानीय जनजाति के लोग सिख दलितों को बाहरी लोगों की तरह देखते हैं जबकि ये यहां एक सदी से भी अधिक से रह रहे हैं.

वहीं, पंजाबी लाइन के निवासी कॉलोनी को पना पैत्रिक घर मानते हैं. उनका कहना है कि इन निवासियों को किसी भी किस्म का भरोसा करने योग्य विकल्प नहीं दिया गया है. 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश भारत में समुदाय को सफाई और मैला ढोने के काम के लिए इन लोगों को पंजाब से शिलांग लाया गया था. निवासियों का दावा है कि मायलीम गांव के सयीम (मुखिया) ने 150 साल पहले समुदाय को रहने के लिए पंजाबी लाइन की भूमि दी थी. आजाद भारत के अस्तित्व में आने से पहले खासी जनजाति हिल की पारंपरिक अदालतों में नागरिक विवाद के निबटान का अधिकार सयीम के पास रहता था. फिलहाल में खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद के अंतर्गत नागरिक और प्रशासनिक मामलों का अधिकार सयीम के पास होता है. भारतीय संविधान की छठी अनुसूची, मेघालय की स्वायत्त परिषदों को- जमीन, कृषि, स्थानीय समितियों, गांव और नगर प्रशासन, सामाजिक रीति-रिवाज और सम्पत्ति से संबंधित कानून बनाने और लागू करने का अधिकार प्रदान करती है.

पंजाबी लाइन में रहने वाले लोग, 2008 में तत्कालीन सयीम हिमा मायलीम के एक पत्र को भूमि पर उनके दावे का सबूत मानते हैं. यह पत्र सयीम ने मेघालय विद्युत बोर्ड को भेजा था. पत्र में हिमा ने लिखा है कि दलित सिख समुदाय 1863 से पहले से शिलांग में रह रहा है. उस पत्र में सयीम और शिलांग नगरपालिका बोर्ड (एसएमबी) के बीच 4 जनवरी 1954 को हुई सहमति का भी उल्लेख है, जिसके तहत बोर्ड को पंजाबी लाइन के “खाली प्लाटों का इस्तेमाल दुकान, गोदाम और कार्यालय भवन” बनाने के लिए करने की अनुमति दी गई थी और बाकी जमीन को “सफाईकर्मियों के आवास के लिए इस्तामल किए जाते रहने की” बात भी थी. उस पत्र में यह भी लिखा था कि एसएमबी, पुलिस विभाग और अन्य सरकारी संस्थाएं पंजाबी लाइन के निवासियों की सेवा ले रहे हैं.

इस विवाद से जुड़ा पहला मुख्य झगड़ा पिछले साल हुआ. 31 मई 2018 को पंजाबी लाइन के निवासियों और स्थानीय खासियों के बीच झगड़े के बाद विरोध प्रदर्शन होने लगे. इस झगड़े के बारे में लोग दो अलग-अलग कारण बता रहे हैं. खासी और जयंतिया समूहों का दावा है कि पंजाबी लाइन के लोगों ने पार्किंग के विवाद के बाद स्थानीय खासियों से मारपीट की थी. दूसरी ओर पंजाबी लाइन के रहने वालों का आरोप है कि खासी लड़कों ने कॉलोनी की एक युवा महिला के साथ अभद्रता की थी. इसके बाद एक झूठी अफवाह फैल गई कि उस झगड़े में एक नाबालिग खासी की मौत हो गई है. इससे सैकड़ों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए. खासी समुदाय ने मांग की कि पंजाबी लाइन के लोगों को शहर के बाहर बसाया जाए.

इस मांग के जवाब में 4 जून को मेघालय सरकार ने त्यानसोंग की अध्यक्षता में पंजाबी लाइन के निवासियों के पुनर्वास के “व्यवहारिक समाधान” के लिए उच्च स्तरीय परामर्श समिति का गठन कर दिया. इस समिति ने पंजाबी लाइन के घरों, उनमें रहने वालों और उनके रोजगार का सर्वे किया. हरिजन पंचायत समिति के सचिव गुरजीत सिंह के अनुसार, परामर्श समिति ने सरकारी विभागों को कॉलोनी में रहने वाले अपने कर्मचारियों का पुनर्वास करने को कहा है. साथ ही इस समिति ने शिलांग नगरपालिका बोर्ड को सार्वजनिक नोटिस के तहत पंजाबी लाइन में रहने वालों और उनकी रहने की अवधि का “अन्वेषण” करने को भी कहा है.

8 जुलाई को हरिजन पंचायत समिति ने मेघालय उच्च अदालत में उच्च स्तरीय समिति के निवासियों के पुनर्वास करने के अधिकार को चुनौती दी. 15 फरवरी 2019 को उच्च अदालत ने यह कहते हुए मामला खारिज कर दिया कि “सभी उपयुक्त साक्ष्यों को रिकार्ड में रखते हुए, इस मामले में नागरिक अदालत को सुनवाई करनी चाहिए”. अदालत ने “सरकार और अन्य एजेंसियों को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को किसी भी प्रकार से सताया न जाए और यदि उन्हें खाली करना या हटाना है तो सिविल कोर्ट में आवेदन दें. अदालत दोनों पक्षों को सुनवाई का समान अवसर देकर इस मामले में कानून सम्मत फैसला करेगी.” अदालत ने आगे कहा है, “कानूनी सिद्धांतों की मान्यता है कि किसी को भी आवश्यक कानूनी प्रक्रिया के बिना बेदखल नहीं किया जा सकता, इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि वहां रहने वाला कानूनी या अवैध रूप से रह रहा है.” 23 मार्च को सरकार ने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की है.

पंजाबी लाइन के निवासियों का आरोप है कि सिविल अदालत में गए बिना ही मेघालय सरकार ने उनके पुनर्वास का काम शुरू कर दिया है. 26 नवंबर 2018 को एसएमबी ने जमीन के मालिकाने का सबूत मांगते हुए पंजाबी लाइन में रहने वालों को नोटिस भजा है. इस नोटिस में लोगों को “जमीन या भवन के मालिकाने की जानकारी देने और रहने की अवधि बताने” को कहा गया है. इस साल 31 मई को एसएमबी ने नवंबर मेें भेजे नोटिस की निरंतरता के रूप में आवासियों के दरवाजों में नोटिस चिपाकाकर 3 जुलाई तक उपरोक्त जानकारी जमा करने को कहा है. उक्त नोटिस में लिखा है, “आम लोगों का हित इसमें हैं कि वे सहयोग करें”. 4 जुलाई को त्यानसोंग ने मीडिया को बताया कि निवासियों को जानकरी देने के लिए अतिरिक्त 30 दिन दिए गए हैं और यह कार्रवाई पंजाबी लाइन में वैध और अवैध रूप से रहने वालों की पहचान करने के लिए की जा रही है.

हरिजन पंचायत समिति के सचिव बताते हैं, “पिछले साल उच्च स्तरीय समिति पुलिस के साथ आई थी और हम पर जानकारी देने का दबाव डाला गया.” वह आगे कहते हैं, “इन लोगों ने हमें नवंबर में और उसके बाद मई में यह जानकारी जमा करने को कहा. यह परेशान करना नहीं तो और क्या है?” 12 जून 2019 को समिति ने मेघालय उच्च अदालत में अदालत की अवमानना का मुकदमा डाला जिसमें दावा किया कि एसएमबी का ताजा नोटिस अदालत के 15 फरवरी के आदेश का उल्लंघन है. जवाब में एसएमबी ने अदालत को बताया कि “सूचना का एकत्र करने का उद्देश्य, लंबी अवधि से लंबित मामले को हल करने के लिए दीर्घकालीन और अल्पकालीन नीति बनाना है.” उसने यह भी बताया कि “राज्य सरकार इस मामले को कानून के अनुरूप समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है और किसी को भी प्रक्रिया से इतर बेदखल नहीं किया जाएगा.”

इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अवमानना का मुद्दा वापस ले लिया. जून 2019 में उच्च अदालत ने यह मामला खारिज कर दिया और हरिजन पंचायत को अनुमति दी कि यदि एसएमबी भविष्य में दुबारा निवासियों को बेदखल करने का प्रयास करती है तो याचिकाकर्ता अदालत में शिकायत दर्ज करा सकते हैं. लेकिन एसएमबी की पुनर्विचार याचिका के संदर्भ में 28 जून को अदलात ने पंजाबी लाइन के निवासियों को एसएमबी के साथ सहयोग करते हुए मांगी गई जानकारी देने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को की जाएगी.

फिलहाल समुदाय के पास एक स्कूल और एक गुरुद्वारा का मालिकाना दस्तावेज है. यहां के लोगों के पास अपने घरों का दस्तावेज नहीं है. सिंह ने मुझे बताया कि 2016 में 218 आवासियों ने भूमि के पट्टे के लिए आवेदन किया था लेकिन किसी को नहीं मिला. समुदाय के पास जमीन पर अपने मालिकाने का सबसे बड़ा सुरक्षा कवच मुखिया का पत्र और पुनर्वास के खिलाफ उच्च अदालत का आदेश है.

सिंह बताते हैं कि समुदाय को सबसे पहला बेदखली का आदेश जिला आयुक्त से 1988 में मिला था और इसके बाद 1992 और 2001 में एसएमबी ने ऐसा आदेश दिया. एसएमबी के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे कहा कि “अवैध निर्माण” के लिए 2001 में एसएमबी ने खाली करने का नोटिस भेजा था. सिंह कहते हैं, “हम यहां होकर भी यहां के नहीं हो पाए”.

जब से एसएमबी ने नोटिस दरवाजों पर चिपकाए हैं तभी से सरकारी विभागों में काम करने वाले पंजाबी लाइन के चार निवासियों को कॉलोनी के बाहर बने सरकारी क्वाटर आवंटन का नोटिस मिला है. यहां के लोगों का मानना है कि यह उनको यहां से अनयत्र भेजने की धीमी प्रक्रिया का हिस्सा है.

अस्पताल की कर्मचारी कहती हैं, ”उस वक्त हमारे बच्चे छोटे थे और हमें लगता था कि अपने क्वाटर में रहना अच्छा होगा.” अब सास-ससुर भी बूढ़े हो रहे हैं और परिवार बढ़ रहा है ऐसे में छोटे क्वाटर से काम नहीं चल सकता. इन लोगों ने अपने पैसों से पंजाबी लाइन के घरों को सुधार लिया है. इन 30 सालों में परिवार ने आरामदायक मकान पंजाबी लाइन में बना लिया है. इस घर में आकर्षक वॉलपेपर लगे हैं, गुरु नानक के पोस्टर हैं और दिवार पर परिजनों की तस्वीरें हैं. घर में काठ और टीन की शीट लगाकर पंजाब से आए परिवार वालों के लिए जगह बना दी गई है.

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के विशेष शाखा कार्यालय में कार्यरत पंजाबी लाइन के रहने वाले विनोद सिंह को भी क्वाटर आवंटन का नोटिस मिला है. 10 को जारी इस आदेश में उन्हें “तत्काल प्रभाव से सरकारी आवास लेने” का निर्देश है और कब्जे की रिपोर्ट विशेष पुलिस महानिरीक्षक के पास जमा करने को कहा गया है.

जब वह आवंटित क्वाटर में गए तो उन्हें पता चला कि वहां उनके साथ काम करने वाले एक सज्जन पहले से ही रह रहे हैं और अभी उन्हें मकान खाली करने का आदेश नहीं मिला है. विनोद कहते हैं, “मेरे इंचार्ज ने मुझसे कहा कि यदि मकान खाली नहीं है तो वहां रहने वालों को भगा दो.” मुझे धमकी दी गई कि यदि मैं मकान का कब्जा नहीं लूंगा तो मेरा वेतन काट लिया जाएगा और मेरी नौकरी छूट जाएगी.”

विनोद की परवरिश पंजाबी लाइन के दो कमरों के मकान में 6 भाई और 4 बहनों के साथ हुई है. कुछ साल पहले विनोद ने अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र हासिल करने का प्रयास किया था लेकिन मेघालय में दलित सिखाें को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं किया गया है. मरते वक्त उनकी मां की ख्वाइश थी कि वह अपने तीन छोटे भाइयों का ख्याल रखे क्योंकि परिवार में वहीं एकमात्र सरकारी नौकरी कर रहे थे. “घरेलू झगड़ों के बावजूद मैं इन लोगों को छोड़कर नहीं जा सकता. जिन लोगों को सरकारी आवास मिला है यदि वे लोग छोड़ कर चले गए तो सरकार के हमें बाहर करने के प्रयास के खिलाफ समाज की एकता कमजोर पड़ जाएगी.”

पंजाबी लाइन में रह रहे एसएमबी के किसी भी कर्मचारी को बेदखली का आदेश नहीं मिला है. एसएमबी में दो सालों से अधिक से सफाईकर्मी के पद पर कार्यरत शांति गोदना ने बताया कि उनके अधिकारी ने मौखिक रूप से उनसे सरकारी आवास में चले जाने को कहा है. गोदना अनुबंध कर्मचारी है और उसे पेंशन या स्थाई नौकरी का अधिकार नहीं है. वह कहती हैं, “मुझे 3000 रुपए मासिक वेतन मिलता है, ऐसे में मैं किराए के किसी मकान में रह कर अपना गुजारा कैसे करूंगी? मुझे चेतावनी दी गई है कि यदि मैं यहां से नहीं जाऊंगी तो मुझे वेतन एक या दो महीने की देरी से मिलेगा.”

यदि गोदना एसएमबी आवास में जाने को राजी हो भी जातीं तो उन्हें जगह नहीं मिलती. मैंने जब एसएमबी के आधिकारिक आवासों का दौरा किया तो पाया कि एक भी आवास खाली नहीं था. अधिकांश मकानों में नगरपालिका के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और पाइनवुड हॉटल के कर्मचारी रह रहे थे. वहां रहने वाले एक व्यक्ति ने नाम का उल्लेख न करने की शर्त पर बताया कि पाइनवुड होटल के स्टाफ 20 सालों से 16 क्वाटरों में रह रहे हैं क्योंकि शहरी मामलों के विभाग ने उन्हें ये आवास रहने के लिए आवंटित किया है. उन्होंने कहा कि स्टाफ को मकान खाली करने का नोटिस नहीं मिला है. इस परिसर में 88 मकान हैं और 32 इकाइयों में नगरपालिका का कब्जा है. उस व्यक्ति का कहना है कि एसएमबी में रहने वाला नगरपालिका का कोई भी कर्मचारी सफाई विभाग में काम नहीं करता.

पंजाबी लाइन को अपना पैत्रिक घर कहते हुए गोदन ने याद किया कि उनके दादा शिलांग आए थे. उसने बताया कि अपने गांव (अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर जिले का बटाला गांव) से छह महीने का सफर कर वे लोग यहां पहुंचे थे. उनके दादा बताते थे, “उस जमाने में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर कोई पुल नहीं था इसलिए नदी पार करने में बड़ी आसानी से छह-सात दिन लग जाया करते थे.” वह बताती हैं, “इन पहाड़ियों में हमारे दादाओं ने अंग्रेज अफसरों की घोड़ा गाड़ी चलाई हैं.” मैला ढोने की प्रथा के बारे में वह याद करती हैं, “हमारे दादा-दादियों और मां-बाप ने ऐसे-ऐसे काम किए थे कि अब हम इनके बारे में बात तक नहीं कर सकते. अब जब यह बंद हो गया है तो वे हम लोगों से छुटकारा पाना चाहते हैं.”

इन सालों में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने सरकार के बेदखली के प्रयासों के खिलाफ दलित सिख समाज का समर्थन किया है. इसके अलावा सफाई कर्मचारियों के राष्ट्रीय आयोग के सदस्य हिरेमणी ने यहां के लोगों को समर्थन देने का वचन दिया है. उन्होंने बताया कि आयोग राज्य सरकार को पंजाबी लाइन के निवासियों को न हटाने की सिफारिश वाली रिपोर्ट जमा करेगा. कांग्रेस पार्टी के विधानसभा सदस्य और शहरी मामलों के पूर्व मंत्री अंपारिन लिंगदोह ने मुझे बताया, “यह बहुत जटिल मामला है कि सरकार ने जनता को आश्वासन दे दिया है कि पंजाबी कॉलोनी के निवासियों का पुनर्वास किया जाएगा.”

हाल में प्रतिबंद्धित उग्रवादी संगठन ‘हनीट्रैप नेशनल लिबरेशन काउंसिल’ (एचएनएलसी) ने धमकी दी है जिससे सिख समुदाय में डर समा गया है. इस संगठन की स्थापना 1992 में मेघालय के खासी और जयंतिया समुदायों के हितों की रक्षा गारो और अन्य समुदायों से करने के उद्देश्य से हुआ था. आम बोलचाल की भाषा में इन्हें “डाकर” कहा जाता है जिसका अर्थ है- तराई के लोग. इस संगठन ने हरिजन पंचायत समिति के खिलाफ प्रेस विज्ञप्ति जारी कर राज्य सरकार के पुनर्वास के प्रयासों को चुनौती न देने की धमकी दी है. उस विज्ञप्ति में लिखा है, “जब हमारे लोगों के हितों की रक्षा का सवाल आता है तो हमारी बंदूक चलेगी और उनके लोग ढेर हो जाएंगे.”

जिन सुरक्षा अधिकारियों से मैंने इस बारे में बात की, उनका कहना था कि एचएनएलसी अब बड़ा खतरा नहीं रह गया है जैसा कि वह 1990 के दशक में था. पूर्वी खासी हिल्स के पुलिस महानिरीक्षक क्लॉडिया लिंग्वा ने मुझे बताया कि 10 सालों में एचएनएलसी कमजोर होकर निष्क्रिय हो गया है. वह कहती हैं, “यह संगठन कभी-कभार वक्तव्य जारी करता रहता है लेकिन हथियारों के मामले में उसकी क्षमता नहीं है.” खासी हिल्स जिलों में एचएनएलसी के खिलाफ उग्रवाद रोधी मुहिमों में लिंग्वा शामिल रही हैं. उनका कहना है कि इस संगठन में अब 10 से कम वरिष्ठ नेता बचे हैं.

गुरजीत का दावा है कि एचएनएलसी ने सरकार के कहने पर धमकी दी है. वह कहते हैं, “वक्तव्य की भाषा से समझ आता है कि इसके पीछे कौन लोग हैं. एचएनएलसी ने जब हमें इतने समय तक परेशान नहीं किया तो अब भला वह ऐसा क्यों कर रहा है?”

उन्होंने आगे कहा, यदि लोगों को नए आवासों में भेजा जाता है तो सरकार जमीन को वैध या अवैध रूप से हथिया लेगी.” उन्होंने यह भी बताया कि सरकारी संस्थाओं में काम न करने वाले पंजाबी लाइन के लोगों को आवास नहीं मिलेगा. मेघालय के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट में प्रकाशित ताजा मतदाता सूची में पंजाबी लाइन के 1029 वोटरों का नाम हैं. वहीं हरिजन पंचायत समिति का दावा है कि एसएमबी में पंजाबी लाइन के 70 प्रतिशत लोग काम करते हैं. लेकिन एसएमबी के एक अधिकारी का मानना है कि यहां कॉलोनी के केवल 128 लोग ही कार्यरत हैं.

पूर्वोत्तर के दलित सिख समुदाय पर शोध कर रहे जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिमाद्री बनर्जी का मानना है कि शिलांग में मूलनिवासी अधिकार की उठती आवाज हर कहीं देखे जा रहे उस क्षेत्रीय राष्ट्रवाद की तरह है जो अधिकांशतः अल्पसंख्यकों के खिलाफ होता है. वह कहते हैं कि पंजाबी लाइन में रहने वालों को अब बड़ी मुश्किल से सफाई का काम मिल पाता है क्योंकि यह तेजी से यांत्रिक हो रहा है और इसे छोटा काम नहीं माना जाता. बनर्जी बताते हैं, “इससे पहले खासी यह काम नहीं करते थे लेकिन अब यह अच्छा काम माना जाता है और उनको लगता है कि यह बाहर वालों को नहीं मिलना चाहिए.”

पंजाबी लाइन में रहने वालों का कहना है कि अब इस काम के लिए उन्हें आदिवासी समुदाय से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है और उनकी जमीन और घर ऐसी चीजे हैं जो उनके पास बची हुई हैं. इसके अलावा समुदाय की नई पीढ़ी निजी क्षेत्रों में काम तलाश रही हैं. इन क्षेत्रों में काम करने वालों को सरकारी आवास नहीं मिलते.

परामर्श समिति के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री त्यानसोंग ने मुझे बताया कि समिति ने पंजाबी लाइन के लोगों को नई जगह बसाने का एजेंडा तैयार किया है क्योंकि यह जगह लोगों के रहने योग्य नहीं है. वह बताते हैं, “जब हम स्थाई समाधान की बात कहते हैं तो इसका मतलब ऐसी जगह तलाशना है, जहां हरिजन कॉलोनी के लोगों को हमेशा के लिए बसाया जा सके.”

जब मैंने उनसे जानना चाहा कि क्या इलाके का पुनः विकास संभव है तो उनका जवाब था कि यह क्षेत्र शिलांग के स्मार्ट सिटी क्षेत्र में नहीं आता. जून 2018 में शिलांग का चयन केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी अभियान के लिए किया गया था जिसका उद्देश्य नागरिक समर्थक और टिकाऊ शहरों का विकास करना है. त्यानसोंग कहते हैं, “यह एक व्यवसायिक क्षेत्र है इसलिए पुनःविकास का सवाल ही नहीं उठता. स्थानांतरण की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद ही सरकार इस बारे में निर्णय करेगी.” उन्होंने कहा कि दो माह पहले समिति ने सरकारी विभागों से अनुरोध किया था कि पंजाबी लाइन में रहने वाले अपने कर्मचारियों को खाली क्वाटर उपलब्ध कराए. उनका दावा है, “जिन कर्मचारियों को आवास आवंटन का नोटिस मिला है वह विभाग के फैसले से हुआ है.”

पंजाबी लाइन की आशा कौर से मेरी मुलाकात एक प्रदर्शन के दौरान हुई थी. वह इस कॉलोनी में बने दो कमरों के मकान में 5 परिवारों के साथ रहती हैं. वह कहती हैं, “यदि सरकार हमारी स्थिति में सुधार नहीं ला सकती तो उसे हमें हमारे हालात पर छोड़ देना चाहिए. हम अपने लोगों के बीच अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं.”

विनोद का कहना है कि जब सरकार ने उन्हें अभी तक आरक्षित कोटा नहीं दिया है तो जमीन के पट्टे की आशा करना बेकार है. वह कहते हैं, “हमारी पीढ़ी के लिए यह हमारी जन्मभूमि है. हम इसे कभी छोड़ना नहीं चाहेंगे.”