11 जून को मेघालय की राजधानी शिलांग के गणेश दास मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सरकारी अस्पताल की एक महिला कर्मचारी और दो अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को वरिष्ठ अधिकारी की ओर से एक नोटिस मिला. वह 30 सालों से अधिक समय से गणेश दास अस्पताल में स्वीपर एवं सफाई कर्मचारी के पद पर कार्यरत हैं. ये तीनों दलित सिख समुदाय के सदस्य हैं और शिलांग के पंजाबी लाइन कॉलोनी में रहते हैं.
नाम न छापने की शर्त पर उस महिला कर्मी ने बताया, “बहुत साल पहले हमने आवास के लिए आवेदन किया था लेकिन हमसे कहा गया कि उस वक्त कोई क्वाटर खाली नहीं है. हाल में कुछ कर्मचारी रिटायर हुए हैं तो हमें क्वाटर दे दिए गए. अबकी बार हमने आवेदन भी नहीं किया था.”
उस कर्मी और पंजाबी लाइन के अन्य लोगों का दावा है कि ये नोटिस यहां के लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ बेदखल करने का प्रयास है. पंजाबी लाइन को हरिजन कॉलोनी या स्वीपर कॉलोनी भी कहते हैं. इस कॉलोनी में 300 परिवार रहते हैं. यहां के लोग तीन पीढ़ियों से सफाई का काम कर रहे हैं.
इस इलाके की दावेदारी का मामला लंबे समय से विवादित है. सालों से राज्य सरकार यहां रहने वालों से इलाका खाली करवाने के प्रयास में है. सरकार के इस प्रयास को खासी छात्र यूनियन और खासी गारो जयंतिया जन परिसंघ जैसे समूहों का समर्थन है. सरकार का दावा है कि कॉलोनी में अवैध निर्माण हुआ है और इसमें रहने वालों में अवैध घुसपैठिए हैं. इस प्रयास के पीछे एक कारण इस बस्ती का शहर के मुख्य व्यवसायिक केंद्र के पास अवस्थित होना भी है. राज्य के उप मुख्यमंत्री प्रेस्टोन त्यानसोंग कहते हैं, “शहर के बीच में बसी यह गंदी कॉलोनी आंख की किरकिरी है.” शिलांग प्रशासन के सदस्य ने नाम न छापने की बात पर बताया कि सरकार इस इलाके को व्यावसायिक उपयोग (संभवत: “शॉपिंग एरिया” बना कर) में लाना चाहती है. इसी बीच खासी समूहों का दावा है कि इस इलाके में आपराधिक क्रियाकलाप होता है. इसके अलावा स्थानीय जनजाति के लोग सिख दलितों को बाहरी लोगों की तरह देखते हैं जबकि ये यहां एक सदी से भी अधिक से रह रहे हैं.
वहीं, पंजाबी लाइन के निवासी कॉलोनी को पना पैत्रिक घर मानते हैं. उनका कहना है कि इन निवासियों को किसी भी किस्म का भरोसा करने योग्य विकल्प नहीं दिया गया है. 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश भारत में समुदाय को सफाई और मैला ढोने के काम के लिए इन लोगों को पंजाब से शिलांग लाया गया था. निवासियों का दावा है कि मायलीम गांव के सयीम (मुखिया) ने 150 साल पहले समुदाय को रहने के लिए पंजाबी लाइन की भूमि दी थी. आजाद भारत के अस्तित्व में आने से पहले खासी जनजाति हिल की पारंपरिक अदालतों में नागरिक विवाद के निबटान का अधिकार सयीम के पास रहता था. फिलहाल में खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद के अंतर्गत नागरिक और प्रशासनिक मामलों का अधिकार सयीम के पास होता है. भारतीय संविधान की छठी अनुसूची, मेघालय की स्वायत्त परिषदों को- जमीन, कृषि, स्थानीय समितियों, गांव और नगर प्रशासन, सामाजिक रीति-रिवाज और सम्पत्ति से संबंधित कानून बनाने और लागू करने का अधिकार प्रदान करती है.
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