अनहेल्दी सीक्रेट्स

क्यों जरूरी है पीएम केयर्स फंड की जांच

पीएम केयर्स फंड को यह सुनिश्चित करना था कि स्वास्थ्य क्षेत्र में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी न हो लेकिन कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में यह उद्देश्य विफल रहा. पीटीआई
पीएम केयर्स फंड को यह सुनिश्चित करना था कि स्वास्थ्य क्षेत्र में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी न हो लेकिन कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में यह उद्देश्य विफल रहा. पीटीआई

1.

आजादी के बाद देश के सभी बड़े शहरों में पाकिस्तान से आने वाले हिंदू और सिख शरणार्थियों की संख्या हर बीतते दिन बढ़ रही थी. जवाहरलाल नेहरू उस समय देश की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री थे और उनके आधिकारिक आवास तीन मूर्ति भवन में भी लोगों की भीड़ लगी रहती. नेहरू के निजी सचिव रहे एम. ओ. मथाई अपनी किताब रेमनिसंस ऑफ दि नेहरू ऐज में नेहरू की एक आदत का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि “नेहरू उस दौर में अपनी जेब में 200 रुपए कैश लेकर चलते थे. लेकिन यह पैसा जल्द ही गायब हो जाता. वह पीड़ितों में सारा पैसा बांट देते थे. इसके बाद नेहरू मुझसे और पैसे की मांग करते. यह रोजमर्रा की बात हो गई थी. मैंने इस पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि उनका कैश लेकर चलना मुनासिब नहीं है. नेहरू ने मुझसे कहा, ‘मैं उधार मांगकर काम चला लूंगा.’ और इसके बाद उन्होंने अपने सुरक्षा स्टाफ से पैसे उधार लेकर शरणार्थियों की मदद करनी शुरू कर दी.” मथाई बताते हैं कि उन्होंने सुरक्षा स्टाफ को चेतावनी दी कि कोई भी प्रधानमंत्री को एक बार में दस रुपए से ज्यादा उधार न दे क्योंकि वह मानते थे कि इस तरह से मदद कर पाना किसी भी आदमी के बूते के बाहर था.

बंटवारे के दौरान 35 लाख हिंदू और सिख शरणार्थी पश्चिमी पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए. अमृतसर, जयपुर, अजमेर, अलवर, लुधियाना, जम्मू, लखनऊ और दिल्ली जैसे सभी बड़े शहरों में शरणार्थियों की भीड़ लगी थी. 1911 के दिल्ली के दरबार के दौरान दिल्ली के बाहरी इलाके में जो जगह देसी रजवाड़ों के शाही तंबुओं के लिए मुकर्रर थी, उसी किंग्सवे कैम्प में अब शरणार्थियों के तंबू तने हुए थे.

विभाजन के बाद जवाहरलाल नेहरू फरीदाबाद में एक शरणार्थी शिविर का दौरा करते हुए. आपातकालीन स्थितियों के दौरान राहत कार्यों के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की शुरुआत की गई थी. विकिमीडिया कॉमन्स

24 जनवरी 1948 को प्रधानमंत्री कार्यालय से एक प्रेस नोट जारी हुआ जिसका शीर्षक था “प्राइम मिनिस्टर नेशनल रिलीफ फंड, पंडित नेहरू की अपील.” इस प्रेस नोट में लिखा था,

हमारे दुखी देशवासियों को इस समय मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है. यह सिर्फ इंसानियत की दरकार नहीं है, ये मुल्क के मुस्तकबिल पर असर डालने वाला. लाखों की तादाद में बेघर हो चुके लोग, जिनका सबकुछ छिन गया है, हमारे देश की असल दौलत हैं. इन लोगों को फिर से बसने के मौकों और मुल्क को संवारने के काम में भागीदरी देने से उनको वंचित रखकर देश को बर्बाद होने के लिए छोड़ा नहीं जा सकता.

हम जवान हो रही नस्लों को घर, तालीम, तर्बियत और एक काबिल और प्रोडक्टिव शहरी होने के मौके से मरहूम नहीं रख सकते हैं. हमने बड़े पैमाने पर हादसे और तकलीफें झेली हैं. इससे बाहर निकलने की कोशिश भी इतने ही बड़े पैमान पर की जानी चाहिए.

भारत की सरकर अपनी ताकत और संसाधन दोनों इस तरफ ही लगाए हुए है. लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है. लोगों का सहयोग, खास तौर पर उन लोगों को जिन्होंने इस दुःख को भोगा है, उनका सहयोग बेहद जरुरी है. कुछ मदद आ भी रही है. लेकिन अभी और मदद की दरकार है.

पहले ही कई सारे रिलीफ फंड मौजूद हैं. कई लोगों ने इसमें खुले दिल से दान भी किया है ताकि परेशानहाल लोगों की तकलीफें दूर की जा सके. कई लोगों ने खुद आगे बढ़कर मेरे पास मदद भेजी है. मुझे लगता है कि एक केंद्रीय रिलीफ फंड की बनाने की जरूरत है जिससे किसी भी किस्म की आपदा या आपातकाल में लोगों की मदद के लिए काम लिया जा सके. लेकिन अभी के सूरत-ए-हाल में उस फंड को पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को राहत पहुंचाने और उनको फिर से बसाने के लिए ही उपयोग किया जाए.

इसलिए मैं “द प्राइम मिनिस्टर्स नेशनल रिलीफ फंड” नाम से एक फंड की शुरुआत कर रहा हूं. इस कोष का प्रबंधन एक समिति करेगी जिसके सदस्य होंगे : प्रधानमंत्री, इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष, उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, टाटा ट्रस्ट का एक नुमाइंदा और फिक्की का एक नुमाइंदा.

1985 में इस कोष का प्रबंधन करने के लिए बनी समिति ने इस कोष का इस्तेमाल करने के सभी अधिकार प्रधानमंत्री को दे दिए थे. फिलहाल इस फंड को इस्तेमाल करने का अधिकार प्रधानमंत्री के पास है. प्रधानमंत्री कार्यालय का संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी इस फंड को प्रबंधन करने में प्रधानमंत्री की मदद करता है. पीएमएनआरएफ की वेबसाइट पर मौजूद बहीखाते के मुताबिक 2018-19 वित्तीय वर्ष में इस फंड में 3800 करोड़ रुपए जमा थे.

28 मार्च 2020 को देश में कोरोना महामारी लॉकडाउन लगे चार दिन हो चुके थे. शाम को 4.36 बजे प्रेस सूचना ब्योरो की तरफ से एक और प्रेस नोट जारी हुआ. इस नोट का शीर्षक था, 'आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ में उदारतापूर्वक दान करने की अपील." इस नोट का मजमून कुछ इस तरह से था :

कोविड-19 की महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और इसके साथ ही विश्व भर में करोड़ों लोगों की स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हो गईं हैं. भारत में भी कोरोना वायरस खतरनाक ढंग से फैलता जा रहा है और हमारे देश के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य एवं आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न  कर रहा है. इस आपातकाल के मद्देनजर सरकार को आवश्यक सहयोग देने के उद्देश्य से उदारतापूर्वक दान करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को स्वेसच्छा से अनगिनत अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं.

प्राकृतिक या किसी और तरह के संकट की स्थिति में प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम करने और बुनियादी ढांचागत सुविधाओं एवं क्षमताओं को हुए भारी नुकसान में कमी करने, इत्यादि के लिए त्वरित और सामूहिक कदम उठाना जरूरी हो जाता है. अत: अवसंरचना और संस्थागत क्षमता के पुनर्निर्माण और विस्तार के साथ-साथ त्वरित आपातकालीन कदम उठाना और समुदाय की प्रभावकारी सुदृढ़ता के लिए क्षमता निर्माण करना आवश्यतक है. नई प्रौद्योगिकी और अग्रिम अनुसंधान निष्कर्षों का उपयोग भी इस तरह के ठोस कदमों का एक अविभाज्य हिस्सा बन जाता है.

कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चिंताजनक हालात जैसी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति या संकट से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य से एक विशेष राष्ट्रीय कोष बनाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए और इससे प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ के नाम से एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया गया है. प्रधानमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और इसके सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री शामिल हैं.

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यह हमेशा माना है और इसके साथ ही अपने विभिन्न मिशनों में यह बात रेखांकित की है कि किसी भी मुसीबत को कम करने के लिए सार्वजनिक भागीदारी सबसे प्रभावकारी तरीका है और यह इसका एक और अनूठा उदाहरण है. इस कोष में छोटी-छोटी धनराशियां दान के रूप में दी जा सकेंगी. इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग इसमें छोटी-छोटी धनराशियों का योगदान करने में सक्षम होंगे.

19 मई 2020 को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि मई 2020 तक पीएम केयर्स फंड में 10600 करोड़ रुपए आए हैं. यह आधिकारिक आंकड़ा नहीं था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने पब्लिक डोमेन में मौजूद दान के आंकड़ों को एकसाथ इकट्ठा किया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक निजी क्षेत्र की  कंपनियों ने पीएम केयर्स में कुल 5565 करोड़ रुपए दिए थे. वहीं पीएसयू के कारपोरेट सोशल रेसपोंसिबिलिटी (कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) यानी सीएसआर के मद से पीएम केयर्स में कुल 3249 करोड़ रुपए आए थे. केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तनख्वाह से 1191.40 करोड़ रुपए पीएम केयर्स में जमा करवाए गए. एमपी फंड से 413 करोड़ रुपए दान में प्राप्त हुए.

पीएम केयर्स फंड का बड़ा हिस्सा (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों) पीएसयू के सीएसआर से आया था. अगस्त 2020 में इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार ओएनजीसी ने सबसे ज्यादा पैसा पीएम केयर्स में जमा करवाया है. अखबार ने 55 पीएसयू से सूचना के अधिकार के तहत पीएम केयर्स में दिए गए दान का आंकड़ा मांगा था. इसमें अगस्त 2020 तक 38 पीएसयू ने आंकड़े साझा किए थे. इनमें से 10 पीएसयू ऐसे थे जिन्होंने 100 करोड़ या उससे अधिक का चंदा दिया था. ओएनजीसी ने 300 करोड़, एनटीपीसी ने 250 करोड़, इंडियन ऑयल ने 225 करोड़, पावर फाइंनेस्स कॉप ने 200 करोड़, पावर ग्रिड ने 200, एनएमडीसी ने 155 करोड़, आरईसी ने 150 करोड़, बीपीसीएल ने 125 करोड़, एचपीसीएल ने 120 और कोल इंडिया ने 100 करोड़ रुपए का चंदा दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक कई पीएसयू ने अपने सीएसआर बजट से ज्यादा पैसा पीएम केयर्स में दान दिया. पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन का 2020-21 का अनुमानित सीएसआर बजट 150 करोड़ था लेकिन इसने पीएम केयर्स में पूरा 150 करोड़ दान कर दिए. 2019-20 में पीएफसी के सीएसआर बजट से कुल 29 कार्यक्रम चलते थे. इसमें आदिवासी स्वास्थ्य, आंगनवाडी, सरकारी स्कूल का उन्नतरीकरण, ऑपरेशन थियटर का निर्माण, आदिवासी स्कूलों में डिजिटल क्लासरूम जैसे कार्यक्रम शामिल हैं. लेकिन 2020-21 के सीएसआर बजट का लगभग पूरा हिस्सा पीएम केयर्स फंड में चला गया.

दूसरे कई पीएसयू ने पीएम केयर्स फंड में अपने योगदान को दो हिस्सों में बांट दिया ताकि सीएसआर बजट में उसे फिट किया जा सके. पॉवर ग्रिड कॉर्प ने 200 करोड़ रुपए का योगदान दिया था. इसे बाद में 130 और 70 करोड़ की किस्त में बांट दिया गया. ऑयल इंडिया ने अपने 38 करोड़ के योगदान को 25 और 13 करोड़ की किस्त में बांट दिया. रूयल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्प ने अपने 150 करोड़ के योगदान को 100 और 50 करोड़ की दो किस्तों में तोड़ दिया.

टाइम्स ऑफ इंडिया में 19 मई 2020 को छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने अपनी तनख्वाह से कुल 1091.40 करोड़ रुपए पीएम केयर्स फंड में दान किए थे. इसमें सबसे ज्यादा पैसा 29.06 करोड़ ओएनजीसी के कर्मचारियों ने जमा करवाया था. इसके अलावा भारतीय सेना के जावानों ने अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा पीएम केयर्स फंड में जमा करवाया. यह रकम 203.67 करोड़ है. भारतीय वायुसेना ने 29.18 करोड़ रुपए जमा करवाए. नौसेना की तरफ से यह योगदान 12.41 करोड़ रुपए का था. भारतीय थल सेना के एडीजी पीआई ने 15 मई 2020 को एक ट्वीट के जरिए बताया कि भारतीय थल सेना अपनी सैलरी से 157. 71 करोड़ की रकम पीएम केयर्स फंड में जमा करवा रही है. भारतीय रेल के कर्मचारियों की सैलरी से 146.72 करोड़ रुपए का योगदान दिया गया.

यह सब आंकड़े पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारियों से जुटाए गए हैं. लेकिन असल आंकड़ा अभी जानकारी से बहार है. ऐसा क्यों हैं?

2.

18 जून 2020 को सूचना अधिका कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आरटीआई दायर की. इसमें पीएम केयर्स फंड से जुड़े सभी उपलब्ध दस्तावेजों की कॉपी मांगी गई थी. 26 जून 2020 को आरटीआई के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने लिखा, "पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट 2005 के सेक्शन 2(एच) के तहत पब्लिक अथोरिटी नहीं हैं. फिर भी पीएम केयर्स फंड से जुड़ी प्रासंगिक जानकारियां www.pmcares.gov.in पर देखी जा सकती हैं.'' प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले इस जवाब ने पीएम केयर्स को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए.

19 जनवरी 2020 को 100 सेवानिवृत नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री के नाम एक खुला खत लिखकर पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता की कमी पर अपनी चिंता जाहिर की. खत में लिखा था, “तुरंत यह खत लिखने का कारण 24 दिसंबर 2020 को भारत सरकार द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत विवरण को इस आधार पर प्रकट करने से इनकार करना है कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम, 2005 के 2(एच) धारा के दायरे में एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है. अगर यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, तो सरकार के सदस्यों के रूप में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री ने अपने पदनाम और आधिकारिक पदों को कैसे दिया है? वे क्यों अपनी आधिकारिक क्षमता में इसके ट्रस्टी हैं, बतौर नागरिक नहीं?”

2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि ट्रस्ट, सोसाइटी और गैर-सरकारी संगठन चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी अगर उन्हें पर्याप्त सरकारी फंडिग होती है तो उन्हें पब्लिक अथोरिटी के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. जब पीएसयू और केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सैलरी से पैसा पीएम केयर्स फंड में डाला गया, तो इसे पब्लिक अथोरिटी के तौर पर क्यों नहीं देखा जाना चाहिए.

पीएम केयर्स फंड के बनने के अगली ही रोज 28 मार्च 2020 को कारपोरट कार्य मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी किया. मंत्रालय ने साफ तौर पर बताया कि पीएम केयर्स फंड में दिया गया चंदा कंपनी अधिनियम 2013 के सेक्शन 135 के सेड्यूल VII के तहत आने वाले कारपोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी या सीएसआर के तौर पर देखा जाएगा. सर्कुलर में लिखा गया है, "आइटम नंबर. (viii) कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII, जो उन गतिविधियों का विश्लेषण करती है जिन्हें कंपनियां अपने सीएसआर दायित्वों के तहत कर सकती हैं, परस्पर इस बात को भी निर्धारित करती है कि सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्थापित कोई भी कोष सीएसआर की श्रेणी में रखा जाता है. किसी भी प्रकार की आपात स्थिति या संकट की स्थिति में प्रभावित लोगों को राहत देने के लिए पीएम केयर्स फंड की स्थापना की गई है. तदनुसार, यह स्पष्ट किया जाता है कि केयर्स फंड में किया गया कोई भी दान कंपनी अधिनियम 2013 के तहत सीएसआर व्यय के योग्य होगा. इसे सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन से जारी किया जाता है.

कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII, आइटम नंबर. (viii) में किस किस्म के दान को सीएसआर व्यय में गिना जाएगा उसका ब्यौरा कुछ इस तरह से है, “अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत और कल्याण के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किसी अन्य कोष में योगदान.”

इसमें साफ लिखा था कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अलावा सामाजिक और आर्थिक विकास और एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक/महिलाओं के विकास के लिए स्थापित केंद्र सरकार के किसी भी फंड में योगदान सीएसआर के मद में गिना जाएगा. 28 मार्च 2020 को जिस समय कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने सर्कुलर जारी करके पीएम केयर्स फंड को सीएसआर के दायरे में लाया, तब यह अनुसूची VII, आइटम नंबर. (viii) की किसी भी शर्त को पूरा नहीं करता था. पीएम केयर्स फंड एक सार्वजनिक ट्रस्ट के तौर पर स्थापित हुआ था. ऐसे में इसमें दिए गए दान को सीएसआर व्यय के तौर पर देखना कितना तार्किक है?

इस विसंगति से बचने के लिए 26 मई 2020 को कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन के जरिए कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII में बदलाव करके पीएम केयर्स फंड को भी  आइटम नंबर. (viii) में जोड़ दिया. यह साफ था कि कारपोरेट कार्य मंत्रालय कानून में मन मुताबिक बदलाव कर रहा था ताकि पीएम केयर्स फंड में सीएसआर के योगदान में कोई कानूनी अड़चन ना आए.

1 मई 2020 को नौजवान वकील सम्यक गंगवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय में पीएम केयर्स फंड की जानकारी मंगाते हुए एक आरटीआई डाली. 2 जून 2020 को उन्हें भी अंजलि भारद्वाज की तरह जवाब मिला कि पीएम केयर्स फंड पब्लिक अथोरिटी नहीं है. इसे चुनौती देते हुए गंगवाल ने दिल्ली उच्च न्यायलय में एक जनहित याचिका दाखिल की. इस केस में उनके वकील देबोप्रियो मौलिक कहते हैं, “प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि पीएम केयर्स फंड पब्लिक अथोरिटी नहीं है. लेकिन आप देख लीजिए कि पीएम केयर्स फंड में कार्यालय का पता भी प्रधानमंत्री कार्यालय का दिया हुआ है. पीएम केयर्स फंड की वेबसाईट को .gov डोमेन हासिल है जोकि सरकारी वेबसाईट के लिए ही होता है. पीएम केयर्स फंड अपनी वेबसाईट पर राष्ट्रिय प्रतीक अशोक स्तम्भ का इस्तेमाल करता है. तो क्या आप कह पाएंगे कि सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है? पीएम केयर्स फंड अच्छी मंशा से बना फंड हो सकता है. लेकिन हर नागरिक को जानने का अधिकार है कि इसमें कहां से पैसा आ रहा है और कहां जा रहा है. अगर मंशा अच्छी ही है तो इसे सूचना के अधिकार के दायरे में लाने में क्या हर्ज है?”

हालांकि सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं दिखती. 10 जून 20220 को इस मामले में सुनवाई के दौरान पीएमओ का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने इस पीआईएल की मेंटेनीबिलिटी पर ही सवाल खड़े कर दिए. कोर्ट को दिए जवाब में मेहता ने कहा कि वह जल्द ही इस मामले में अपना जवाब दाखिल करते हुए साफ करेंगे कि क्यों इस किस्म की पीआईएल को तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए.

सार्क एंड एसोसिएट के प्रमुख सुनील कुमार गुप्ता के मोदी सरकार से घनिष्ठ संबंध हैं.

पारदर्शिता पर उठते हुए तमाम सवालों के बीच 11 जून 2020 को पीएम केयर्स फंड की आधिकारिक वेबसाईट पर एक अपडेट आया कि सार्क एंड एसोसिएट को पीएम केयर्स फंड का 'स्वतंत्र ऑडिटर' नियुक्त किया गया है. लेकिन इसने चीजों को और अधिक संदेहास्पद बना दिया.

सार्क एंड एसोसिएट के हेड सुनील कुमार गुप्ता हैं. गुप्ता का मोदी सरकार से करीबी नाता रहा है.  सार्क एंड एसोसिएट की वेबसाईट के मुताबिक गुप्ता ओएनजीसी, इंडियन ओवरसीज बैंक, एसबीआई जनरल इंशोरेंस और आरबीआई के मौजदूा ऑडिटर भी हैं. इसके साथ-साथ वह कई और सरकारी अथोरिटी जैसे उत्तरी रेल (एनआर), दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), डीजीएच (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, भारत सरकार), नवीन ओखला औघोगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा), ग्रेटर नोएडा औघोगिक विकास प्राधिकरण (ग्नीडा), यमुना एक्प्रेसवे औघोगिक विकास प्राधिकरण वगैरह के आयकर और जीएसटी मामलों के सलाहकार भी हैं.

सुनील गुप्ता कुल 9 किताबों के लेखक हैं. इसमें एक किताब का शीर्षक है, 'मेक इन इंडिया'. सुनील गुप्ता की वेबसाईट sunilkumargupta.com पर उनकी अलग-अलग किताबों को रिलीज करते हुए कई बीजेपी नेताओं, मसलन केंद्रीय पंचायती राज राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, जबलपुर के सांसद राकेश सिंह, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल, अनुराग ठाकुर की तस्वीरें मौजूद हैं. इसके अलावा उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी दो तस्वीरें भी लगा रखी हैं जिसमें वह मोदी को अपनी किताब ‘बिग बिजनिस इंडिया गुरु – नो हाउ टु मेक इन इंडिया’ भेंट करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

सुनील कुमार गुप्ता राष्ट्रिय अंत्योदय संघ के आजीवन सदस्य हैं. इस एनजीओ का घोषित लक्ष्य “गरीबी, बेरोजगारी, गंदगी से मुक्त समतामूलक भारत बनाने का” है. इसने 2018 में उत्तराखंड सरकार और बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर समिति के साथ मिलकर केदारनाथ मंदिर में एक लेजर शो करवाया था.

सुनील कुमार गुप्ता की अपनी वेबसाइट sunilkumargupta.com पर साझा की तस्वीरें इस बात की तस्दीक करती हैं कि वह 7 सितंबर 2018 को शिकागो में हुए विश्व हिंदू कांग्रेस में भाग लेने गए थे. मजेदार बात यह है कि इस कार्यक्रम में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुख्य वक्ता के तौर पर शिरकत की थी. किसी व्यक्ति का किसी धर्म या राजनीतिक विचार का अनुयायी होना सामान्य हो सकता है. लेकिन अगर आप कई पीएसयू और पीएम केयर्स फंड के स्वतंत्र ऑडिटर हैं तो यह थोड़ी असुविधाजनक स्थिति हो जाती है.

सुनील कुमार गुप्ता के बीजेपी नेताओं के साथ संबंधों का हवाला देते हुए सूचना अ​धिकार कार्यकर्ता साकेत गोखले ने द वायर में लिखे एक लेख में भारतीय चारर्टेड अकाउंटेंट संस्थान (आईसीएआई) के मार्गदर्शी बिंदु 1.4 का हवाला देते सार्क एंड एसोसिएट की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं. आईसीएआई की धारा 1.4 कहती है कि ऑडिटर न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि हर संबंधित व्यक्ति को वह निष्पक्ष लगना चाहिए. इस धारा का हवाला देते हुए साकेत गोखले लिखते हैं,”मेरी राय में, सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के साथ गुप्ता की तस्वीरें और केयर्स फंड के पदेन अध्यक्ष मोदी की नीतियों की सार्वजनिक मीडिया वकालत, आईसीएआई के दिशा-निर्देशों के तहत सार्क एंड एसोसिएट्स की स्वतंत्रत रूप से ऑडिट करने की क्षमता पर खड़े कर सकता है.”

3.

26 अप्रैल 2020 को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत अपने संसदीय क्षेत्र जोधपुर में अस्पतालों का दौरा कर रहे थे. दोपहर करीब 1.30 बजे वह शहर के मथुरादास माथुर अस्पताल पहुंचे. यहां पर उनका सामना 20-22 साल के एक नौजवान से हुआ. नौजवान ने शेखावत के सामने गुहार लगाई कि उसकी मां स्ट्रेचर पर पड़ी है. कोई डॉक्टर उन्हें देखने तक नहीं आया. शेखावत ने तुरंत मेडिकल सुपरिटेंडेंट को तलब किया. अस्पताल प्रशासन हरकत में आ गया. डॉ. वीरम परमार भागते हुए उस महिला के स्ट्रेचर तक पहुंचे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. वह अस्पताल की दहलीज पर पहुंचकर भी इलाज से वंचित रह गईं.

गजेन्द्र सिंह शेखावत आगे बढ़ गए. अब उनका सामना दो महिलाओं से हुआ. दोनों बेतरह रोए जा रही थीं. शेखावत उन्हें लगातार चुप करवाने की कोशिश कर रहे थे. आखिर में उन्होंने महिला से कहा, "बालाजी को नारियल चढ़ा देना. बालाजी महाराज अपने सब काम ठीक करेंगे."

गजेन्द्र सिंह शेखावत का संसदीय क्षेत्र होने के अलावा जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह जिला भी है. अशोक गहलोत शहर की सरदारपुर सीट से विधायक हैं. 27 अप्रैल 2021 को जोधपुर कोरोना के सामने हो गया था. एक दिन में 22 मौत हो चुकी थीं और स्थिति भयावह थी.

13 मई 2020 की शाम 8 बजकर 23 मिनट पर पत्र सूचना कार्यालय की वेबसाइट पर एक प्रेस रिलीज प्रकाशित हुई. इसके मुताबिक पीएम केयर्स फंड से कुल 3100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. इसमें से 2000 करोड़ रुपए में 50,000 नए वेंटिलेटर खरीदे जाएंगे. 1000 करोड़ रुपए प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए खर्च किया जाएगा और 100 करोड़ रुपए वैक्सीन बनाने के लिए खर्च किए जाएंगे.

इसके पांच दिन बाद 18 मई को प्रधानमंत्री के सलाहकार भास्कर खुल्बे ने स्वास्थ्य मंत्री को पत्र के जरिए बताया कि पीएम केयर्स फंड से कुल 2000 करोड़ रुपए नए वेंटिलेटर की खरीद के लिए आवंटित हुए हैं ताकि 50000 नए वेंटिलेटर खरीदे जा सकें. उन्होंने मंत्रालय से इसका विस्तृत प्रस्ताव भेजने के लिए कहा. साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि वेंटिलेटर निर्माताओं को बताया जाए कि इन 50000 वेंटिलेटर पर अलग से लिखा हुआ हो कि यह वेंटिलेटर पीएम केयर्स फंड की सहायता से बने हैं.

अगस्त में अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने छह अलग-अलग कंपनियों को कुल 58150 वेंटिलेटर बनाने का ठेका दिया. प्रियंका पाराशर / मिंट

अजंली भारद्वाज की एक आरटीआई के जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ किया कि सरकार ने कुल 58850 वेंटिलेटर बनाने का ठेका 6 अलग-अलग कंपनियों को दिया है. इसमें सबसे बड़ा ठेका भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को दिया गया. इस पब्लिक सेक्टर कंपनी को कुल 30000 वेंटिलेटर बनाने थे. बाकी के पांच ठेके हिंदुस्तान लाइफकेयर लिमिटेड नाम की ​सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के माध्यम से दिए गए. एलाइड मेडिकल को 350, एएमटीजेड बेसिक को 9500, एएमटीजेड हाई एंड को 4000, एग्वा को 10000 और ज्योति सीएनवी को 5000 वेंटिलेटर बनाने थे.

इन ठेकों की कुल लागत 2332.22 करोड़ बताई गई. निजी क्षेत्र के निर्माताओं से वेंटिलेटर खरीदने के लिए एचएलएल लाइफ केयर लिमि​टेड ने पहला टेंडर 5 मार्च 2020 को जारी किया था. अब तक पीएम केयर्स फंड बना भी नहीं था. 18 मई 2020 को इस खरीद को पीएम केयर्स फंड का आर्थिक सहयोग मिला. लेकिन वेंटिलेटर के टेंडर की प्रक्रिया शुरुआत से ही संदिग्ध रही. 5 मार्च से 18 अप्रैल के बीच एचएलएल ने वेंटिलेटर के स्पेशिफिकेसन को लेकर 9 बार बदलाव किए. आखिरकार दो किस्म के वेंटिलेटरों का आर्डर दिया गया. पहले लो एंड वेंटिलेटर थे और दूसरे थे हाई एंड वेंटिलेटर. दोनों किस्म के वेंटिलेटरों की कीमत में भी कई गुने का अंतर है.

मसलन गुरुग्राम की एलाइड मेडिकल लिमिटेड को मेडिटेक 350 मॉडल के 350 वेंटिलेटर का ठेका 30.18 करोड़ में दिया गया. जीएसटी के साथ एक वेंटिलेटर की कीमत 862400 पड़ी. वहीं विप्रो की तरफ से बनाए गए 100 हाई एंड वेंटिलेटर के लिए ठेका 13.94 करोड़ में दिया गया. इस लिहाज से एक वेंटिलेटर की कीमत 13.94 लाख पड़ी.नई दिल्ली की बीपीएल मेडिकल टेक्नोलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड को कुल 13 वेंटिलेटर बनाने का ठेका मिला. इसमें एलिसा 600 मॉडल के पांच और एलिसा 300 मॉडल के 8 वेंटिलेटर शामिल थे.

एलिसा 600 के हर यूनिट की कीमत 15,34,400 तय हुई. वहीं एलिसा 300 के हर यूनिट की कीमत 1428000 तय हुई. राजकोट की कंपनी ज्योति आटोमोशन लिमिटेड को 5000 वेंटिलेटर बनाने का ठेका 120.96 करोड़ में मिला. इसके हर यूनिट की कीमत 2.42 लाख तय हुई. नोएडा की कंपनी एग्वा हेल्थकेयर को 10000 वेंटिलेटर बनाने का ठेका 166376 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से दिया गया.

हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हुआ कि वेंटिलेटरों की कीमतों में इतना अंतर क्यों हैं?

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. 7 सितंबर 2020 को एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड ने सूचना अधिकार कार्यकर्ता वेंकटेश नायर की आरटीआई के जवाब में बताया कि सशक्त समूह-3 के निर्देश पर विभिन्न मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के स्वास्थ्य कर्मियों की एक टेक्नीकल कमिटी बनाई गई. इसकी सदारत डीआरडीओ के डीजीएएस कर रहे थे. इसे डीआरडीओ कमिटी कहा गया. इस कमिटी के दो इनवाईटी और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के नेतृत्व में पहले से बनी कमिटी को मिलाकर वेंटिलेटर के परिक्षण के लिए एक नई कमिटी बनाई गई. इसे नाम दिया गया 'जॉइंट टेक्नीकल कमिटी'.  इस कमिटी ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, एग्वा हेल्थ केयर, एएमटीजेड, और एलाइड के बनाए वेंटिलेटर को डेमो के लिए मंगवाया. इस सब कंपनियों ने जॉइंट टेक्नीकल कमिटी के सामने अपने वेंटिलेटरों का प्रदर्शन भी किया.

इस प्रदर्शन के बारे में जॉइंट टेक्नीकल कमिटी का क्या मूल्यांकन रहा,  इसके बारे में एचएलएल ने जानकारी देने से मना कर दिया. अपने जवाब में एचएलएल ने लिखा कि इस मामले पर रिपोर्ट जॉइंट टेक्नीकल कमिटी ने तैयार की थी. लिहाजा एचएलएल इस बारे में कोई जानकारी साझा नहीं कर सकता.

मई 2020 में पीएम केयर्स फंड के जरिए बन रहे वेंटिलेटरों पर पहली बार सवाल खड़े होने शुरू हुए. नोएडा की कंपनी एग्वा के वेंटिलेटर को ट्रायल के लिए दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल लाया गया. यहां हुए ट्रायल में वेंटिलेटरों में कई सारी दिक्कतें पाई गईं. इस जांच के लिए बनी कमिटी ने 16 मई 2020 को दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा कि हम पॉजिटिव एंड एक्सपाइरेट्री प्रेशर या पीप को स्थिर नहीं रख पा रहे हैं. पीप हमें यह बताता है कि मरीज के फेंफडे में कितनी ऑक्सीजन किस दर से जा रही है. कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “इसके लिए और तकनीकी सत्यापन की जरूरत है. इस ​वेंटिलेटर को अलग-अलग बीमारियों के कई रोगियों के उपयोग में लाया जाना होगा, ताकि इस वेंटिलेटर की बहुमुखी उपयोगिता, मजबूती और रोगी सुरक्षा को साबित किया जा सके. तब जाकर जहां एमजीपीएस उपलब्ध नहीं है, वहां यह आपातकालीन वेंटिलेटर और व्यवस्था के रूप में उपयुक्त होगा.”

इसके दस दिन बाद एग्वा के वेंटीलेटर को जांचने के लिए एक और कमिटी बनी. इस कमिटी ने 1 जून को अपनी रिपोर्ट सौंपी. एग्वा के वेंटिलेटर को हरी झंडी दे दी गई. लेकिन इस कमिटी के ऑब्जरवेशन उसके इस फैसले के साथ विरोधाभाष पैदा कर रहे थे. कमिटी ने अपनी टिप्पणी में लिखा, “कोविड की स्थिति को देखते हुए पूरे देश में पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर उपलब्ध होना जरूरी है.” रिपोर्ट आगे कहती है, “इसे तृतीयक देखभाल आईसीयू में हाई एंड वेंटिलेटर के प्रतिस्थापन के रूप में नहीं माना जाना चाहिए.”

एग्वा हेल्थकेयर का एक कर्मचारी पोर्टेबल वेंटिलेटर पर काम करता हुआ. एक ट्रायल के दौरान कंपनी के वेंटिलेटर में कई दिक्कतें पाई गईं. सुनील घोष / हिंदुस्तान टाइम्स

इस कमिटी ने साफ हिदायत दी कि एग्वा वेंटिलेटर को एकमुश्त की बजाए कई चरणों में खरीदा जाना चाहिए. अगले चरण की खरीद से पहले इसका इस्तेमाल कर रहे उपयोगकर्ताओं से फीडबैक लिया जाना चाहिए. साथ ही इस वेंटिलेटर को इस्तेमाल करते हुए बैकअप के लिए दूसरे वेंटिलेटर रखे जाने चाहिए.

कमिटी की सिफारिश के बाद एग्वा हेल्थ केयर के 10000 में से 5000 वेंटिलेटर खरीद लिए गए. बीबीसी हिंदी से बातचीत के दौरान एग्वा हेल्थ केयर के सह संस्थापक दिवाकर वैश्य ने बताया कि उन्होंने 5000 वेंटिलेटर की पहली खेप 2020 की जुलाई के पहले सप्ताह में ही डिलीवर कर दी थी. फिलहाल उन्हें बचे हुए पांच हजार वेंटीलेटर डिलीवर करने के लिए कहा गया है. लेकिन वैश्य ने अपने दावे के पक्ष में कोई भी दस्तावेज दिखाने से मना कर दिया.

18 जून 2020 को अंजलि भारद्वाज की एक आरटीआई के जवाब में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि शुरूआत में पांच अलग-अलग निर्माताओं को कुल 58850 वेंटिलेटर के लिए टेंडर दिए गए थे. लेकिन स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के नेतृत्व में बनी जॉइंट टेक्नीकल कमिटी ने क्लिनिकल जांच के बाद अब चार निर्माताओं की मशीन को ठीक पाया. इनके बनाए वेंटिलेटर अलग-अलग राज्यों में इनस्टॉल कर दिए गए हैं. इनमें से तीन भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, एग्वा हेल्थ केयर और एलाइड हैं. इस सूची से एएमटीजेड और ज्योति सीएनसी का नाम गायब था. साफ था कि इन दोनों कंपनियों के वेंटिलेटर जेटीसी ने खारिज कर दिए थे. एएमटीजेड को कुल 13500 वेंटिलेटर बनाने का टेंडर मिला था. वहीं ज्योति सीएनसी को 5000 वेंटिलेटर का. इस तरह वेंटिलेटर की संख्या 58850 से घटकर 40350 पर आ गई.

लेकिन एक महीने बाद ही एक और आरटीआई के हवाले से एचएलएल ने जो जानकारी साझा की, उसने कई सवाल खड़े कर दिए. आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने एचएलएल से जानकारी मांगी थी कि वेंटिलेटर की खरीद के सिलसिले में अब तक किन-किन कंपनियों को खरीद आदेश जारी किए गए हैं. इसके जवाब में एचएलएल ने जो सूची दी उसमें एएमटीजेड और ज्योति सीएनसी का नाम मौजूद था. जबकि एक महीने पहले ही स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने साफ कर दिया था कि एएमटीजेड और ज्योति सीएनसी को मंत्रालय की बनाई जॉइंट टेक्नीकल कमिटी ने खारिज कर दिया है.

आंध्र प्रदेश मेडटेक जोन लिमिटेड या एएमटीजेड आंध्र प्रदेश सरकार की मेडिकल कंपनी है. इसे 9500 लो एंड वेंटिलेटर बनाने के लिए एचएलएल की तरफ से पर्चेज ऑर्डर 2 अप्रैल 2020 को मिला. इसके 14 दिन बाद 16 अप्रैल 2020 को इसे 4500 हाई एंड वेंटिलेटर बनाने का पर्चेज ऑर्डर एचएलएल की तरफ से मिला. यहां पर वेंटिलेटर निर्माण के खेल में चेन्नई की कंपनी त्रिवित्रोण हेल्थ केयर के रूप में एक नए खिलाड़ी का प्रवेश होता है. मेडिकल उपकरण बनाने में 23 साल का अनुभव रखने वाली इस कंपनी को एचएलएल की बजाए एएमटीजेड से अप्रैल 2020 में वेंटिलेटर बनाने का ऑर्डर मिला. हालांकि इस कंपनी को वेंटिलेटर बनाने का कोई अनुभव नहीं था. इस कंपनी को कितने वेंटिलेटर बनाने का ऑर्डर मिला इस पर कंपनी ने अलग-अलग समय पर तीन अलग-अलग आंकड़े दिए हैं. 23 सितंबर 2020 को हफ्फ पोस्प पर छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि त्रिवित्रोण हेल्थकेयर को एएमटीजेड की तरफ से 10,000 वेंटिलेटर बनाने का ठेका 373 करोड़ में मिला है. जिसमें कंपनी को 7000 लो एंड और 3000 हाई एंड वेंटिलेटर डिलीवर करने होंगे. रिपोर्ट में यह भी दवा किया गया है कि जो समय कॉन्ट्रेक्ट में दिया गया था, तब तक त्रिवित्रोण हेल्थकेयर ने किसी भी वेंटिलेटर का प्रोटोटाइप भी तैयार नहीं किया था. कंपनी ने उस समय हफ्फ पोस्ट को बताया था कि उन्होंने 10000 वेंटिलेटर तैयार कर लिए थे. लेकिन एचएलएल की तरफ से वेंटिलेटर भेजने के आदेश न मिलने की वजह से वह एक भी वेंटिलेटर डिलीवर नहीं कर पाए थे.

इसके 7 महीने बाद 26 अप्रैल 2021 को बीबीसी हिंदी से बात करते हुए त्रिवित्रोण हेल्थकेयर के प्रबंध निदेशक डॉ. जीएसके वेलू ने कहा कि उन्हें 10000 नहीं 6000 वेंटिलेटर का ऑर्डर मिला था. इसमें से 4000 लो एंड और 2000 हाई एंड वेंटिलेटर थे. बीबीसी को दिए बयान में वेलु ने कहा, "हमारे पास काफी स्टॉक पड़ा हुआ था लेकिन एचएलएल की ओर से कोई खरीद आदेश नहीं मिला. एचएलएल की ओर से कहा गया कि सरकार टीकाकरण पर जोर दे रही है और इतने वेंटिलेटर की जरूरत नहीं है लेकिन दूसरी लहर आने के दो सप्ताह पहले हमें ऑर्डर मिला है और हमने 1000 वेंटिलेटर गुजरात सहित कुछ राज्य सरकारों को भेजे हैं."

लेकिन 4 मई 2021 को कारवां को दिए गए आधिकारिक बयान में कंपनी ने साफ किया कि उसे महज 2000 एलएफओ वेंटिलेटर बनाने का ऑर्डर एएमटीजेड की तरफ से मिला. इस करार में एक यूनिट की कीमत 148550 रुपए तय हुई. कंपनी का दावा है कि 22 दिसंबर 2020 को उसके बनाए वेंटिलेटर को कई अस्पतालों में ट्रायल के बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से मंजूरी मिल गई थी. 4 मई तक उसने 650 वेंटीलेटर डिलीवर भी कर दिए. और जल्द ही बचे हुए 1350 वेंटीलेटर डिलीवर कर दिए जाएंगे. त्रिवित्रोण हेल्थकेयर ने साफ किया कि उसे इन 2000 वेंटिलेटर के लिए एडवांस दिया गया था. फिलहाल कंपनी को 5000 और वेंटिलेटर का खरीद आदेश मिला है लेकिन इसके लिए एडवांस नहीं दिया गया है. कंपनी का कहना है कि जैसे ही उसे एडवांस मिलता है वह वेंटिलेटर बनाना शुरू कर देगी.

हमने इस संबंध में एएमटीजेड के सीपीआईओ नितिन भारद्वाज से मेल पर मांगे गए स्पष्टीकरण पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

सितंबर 2020 में वेंकटेश नायर की एक आरटीआई के जवाब में एचएलएल ने बताया कि 58850 के कुल खरीद आदेश जारी किए गए थे जिसमें से महज 29882 वेंटिलेटर ही डिलीवर हो पाए. इसमें बीईएल के 24332, एग्वा के 5000 और अलाइड के 350 वेंटिलेटर अलग-अलग राज्यों को भेजे गए. यानी कुल 58850 वेंटिलेटर के लिए निकाले गए टेंडर में 29882 वेंटिलेटर ही डिलीवर हो पाए. एचएलएल और स्वास्थ्य मंत्रालय के इस लचर रवैय्ये का नुकसान आम आदमी को कोरोना की दूसरी लहर में भुगतना पड़ा.

आरके विरानी परिवार सूरत में एक आभू​षण कंपनी चलाता है. उन्होंने मोदी को 10 लाख रुपए का एक मोनोग्राम वाला सूट गिफ्ट किया जो 2015 में सुर्खियों में रहा. विरानी परिवार ज्योति सीएनसी में एक बड़ा हितधारक रहा है, जिसे वेंटिलेटर बनाने के लिए पीएम केयर्स फंड के तहत अनुबंध मिला है.

जोधपुर के जिस मथुरादास माथुर हॉस्पिटल में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री और जोधपुर के सांसद एक महिला को बालाजी भगवान को नारियल चढाने की सलाह दे रहे थे वहां पीएम केयर्स फंड के जरिए कुल 120 वेंटिलेटर आए थे. 100 वेंटिलेटर बीईएल के और 20 वेंटिलेटर एग्वा के. बीईएल ने अपने इंजीनियर भेजकर पिछले नवंबर तक सारे वेंटिलेटर इनस्टॉल करवा दिए थे. अस्पताल के एनस्थीसिया डिपार्टमेंट में काम करने वाले एक डॉक्टर ने हमें बताया, "हमें शुरुआत में ही समझ में आ गया था कि एग्वा के वेंटिलेटर बहुत अच्छी क्वालिटी के नहीं हैं. हमने कुछ वेंटिलेटर लगाए भी लेकिन वह प्रेशर को बनाए नहीं रख पा रहे थे. हमें बीईएल से उम्मीद थी. लेकिन बीईएल के वेंटिलेटर कई बार चलते-चलते बंद हो जाते हैं. उनके चालू होने में भी दिक्कत है. 5 में से 2 स्टार्ट करने पर स्टार्ट ही नहीं होते. अगर स्टार्ट हो भी गए तो कब बंद हो जाएं कोई कह नहीं सकता. दूसरी बड़ी दिक्कत इन वेंटिलेटर के एक्सेसरीज की है. हमारे पास एक भी एडेप्टर या सप्लाई पाइप अलग से अतिरिक्त नहीं है. ऐसे में जब कोई एक्सेसरीज खराब हो जाती है तो वेंटिलेटर बंद करना पड़ता है.

बीईएल के वेंटिलेटर में सॉफ्टवियर की भी कुछ समस्या थी. दो बार अपडेट भी किए. लेकिन अब भी वह ठीक से काम नहीं कर रहा है. जब वेंटिलेटर नए-नए आए थे तब बीईएल के इंजीनियरों की टीम 15-15 दिन में जांचने के लिए आ रही थी. हम समस्या बताते वह अगली दफा ठीक करने का वायदा करके चले जाते. अब वह पिछली बार मार्च में होली के आस-पास आए थे. डेढ़ महीने से हम कॉल कर रहे हैं लेकिन कोई देखने तक नहीं आया है."

बीईएल शुरुआत में अच्छी सेवा दे रहा था. तुरंत इंजीनियर भेज रहा था. हमें उम्मीद थी कि देर-सबेर यह वेंटिलेटर काम करने लगेंगे. इस चक्कर में हमने विभाग में वेंटिलेटर की कोई डिमांड नहीं भेजी. अब हमारे पास इसके लिए टाइम ही नहीं बचा. अगर यह 120 वेंटिलेटर हमें चालू हालत में मिल जाते तो हम कोविड की दूसरी लहर को बड़े आराम से झेल सकते थे."

राजस्थान को पीएम केयर्स फंड के तहत कुल 1,138 वेंटिलेटर मिले थे. यह सूबे में मौजूद कुल 1900 वेंटिलेटर का 60 फीसदी हिस्सा है. 5 अप्रैल 2021 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों और मेडिकल विभाग के अधिकारियों के साथ कोविड की वर्चुअल समीक्षा बैठक कर रहे थे. उदयपुर के रवीन्द्र नाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. लखन पोसवाल ने इस वीडियो कॉन्फ्रेंस में सबसे पहले खराब वेंटिलेटर का मुद्दा उठाया. पोसवाल ने मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए कहा कहा, "पीएम केयर्स से हमें 85 वेंटिलेटर मिले थे. मेरे अलावा दूसरे मेडिकल कॉलेज का भी यही फीडबैक है कि वह वेंटिलेटर कारगर नहीं हैं. हमारे एनेस्थेटीस्ट और आईसीयू के डॉक्टरों को पीएम केयर्स वाले वेंटिलेटर पर बिलकुल भरोसा नहीं है.वह एक-दो घंटे सही चलते हैं और बाद में चलना बंद हो जाते हैं. बाकी के मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपलों से भी मैंने बात की थी. भारत सरकार के सीवी-200 और एग्वा के वेंटिलेटर प्रभावी नहीं हैं."

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की थी. अगले दिन 6 अप्रैल 2021 को वैभव गालरिया ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को खत लिखकर खराब वेंटीलेटर के मामले को सुलझाने की बात कही.

मुख्यमंत्री के आदेश के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूबे के सभी जिलों से पीएम केयर्स से आए वेंटिलेटर पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है. कारवां को मिली जानकारी के अनुसार इस रिपोर्ट में राजस्थान को मिले 1900 वेंटिलेटर में से 592 के काम न करने का दावा किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक 215 वेंटिलेटर अब तक इनस्टॉल भी नहीं हो पाए हैं. 11 वेंटिलेटर इसलिए इस्तेमाल नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि उनके कुछ पार्ट उपलब्ध नहीं हैं. तकनीकी दिक्कतों, मसलन पेशर ड्रॉप,कंप्रेशर फेलियर, सेंसर फेलियर वगैरह की वजह से 366 वेंटिलेटर बंद पड़े हैं. राज्य सरकार वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनियों को अब तक 188 बार लिखित शिकायत कर चुकी है.

लेकिन राजस्थान अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहां पीएम केयर्स फंड से दिए गए वेंटीलेटर में शिकायतें आई हों. 11 मई 2021 को पंजाब के फरीदकोट से जोधपुर जैसी ही शिकायत आ रही थी. यहां के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीजीएसएमसीएच) को पीएम केयर्स फंड से 113 वेंटिलेटर मिले थे. इसमें से 90 काम नहीं कर रहे थे. यहां के एनेस्थीसिया विभाग के डॉक्टर्स की शिकायत है कि इन वेंटिलेटर में बार-बार प्रेशर ड्रॉप की समस्या आ रही है. कई वेंटिलेटर चलते-चलते ही बंद हो जा रहे हैं. इसकी वजह से डॉक्टर इन वेंटिलेटरों का इस्तेमाल करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं.

पंजाब को पीएम केयर्स फंड से कुल 320 वेंटिलेटर मिले थे. द हिन्दू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इसमें से 237 वेंटिलेटर खराब निकले. रिपोर्ट के मुताबिक पटियाला के मेडिकल कॉलेज को मिले 98 वेंटिलेटर में से 50 खराब पड़े हैं. अमृतसर मेडिकल कॉलेज को आवंटित 109 वेंटिलेटरों में से महज 12 काम कर रहे हैं.

बाबा फरीद यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसेज के वाइस चांसलर डॉ. राज बहादुर ने द ट्रिब्यून को दिए अपने बयान में कहा, ''हमने इन मुद्दों को सरकार के सामने उठाया है. हमने यह भी बताया है कि केयर्स फंड के तहत दिए जाने वाले वेंटिलेटरों की गुणवत्ता काफी घटिया है. इसके अलावा, काम करने वाली मशीनें भी लगातार खराबी की चपेट में आती हैं, इसलिए हम मरीजों के लिए इनका इस्तेमाल तब तक नहीं कर सकते जब तक कि हमारे पास इसकी मरम्मत का कोई तंत्र नहीं है.''

लेकिन प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान पीजीआई चंडीगढ़ पिछली साल जुलाई को ही इन वेंटिलेटरों की क्षमताओं पर संदेह जाहिर कर चुका था.  पीएम केयर्स के 20 वेंटीलेटर सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पाताल (जीएमसीएच) के लिए आवंटित किया गया था. लेकिन तब जीएमसीएच चालू नहीं था. लिहाजा ट्रायल के लिए इनमें से 10 वेंटिलेटर को पीजीआई भेज दिया गया. 25 जुलाई 2020 को पीजीआई चंडीगढ़ ने पीएम केयर्स फंड के जरिए आए वेंटिलेटरों का इस्तेमाल करने से मना कर दिया.

यहां के डॉक्टरों ने इन्हें मरीजों के लिए मुफीद नहीं पाया. उनके हिसाब से ये वेंटिलेटर जैसे होने चाहिए वैसे नहीं हैं. इनमें से किसी भी वेंटिलेटर में 100 फीसदी ऑक्सीजन सेचुरेशन नहीं है. हर मरीज की ऑक्सीजन की जरूररत अलग-अलग होती है. ऐसे में इन वेंटिलेटरों को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.

3 मई 2021 को मध्य प्रदेश कोरोना की दूसरी लहर के सामने बेसहारा नजर आ रहा था. 24 घंटे के भीतर सूबे में 12,662 नए केस आए थे. भोपाल के पड़ोसी जिले सीहोर से एक 58 साल के मरीज को भोपाल के हमीदिया अस्पताल लाया गया. मरीज की हालत नाजुक थी. लिहाजा उन्हें मेडिकल वार्ड-3 के बेड नंबर-3 पर शिफ्ट कर दिया गया. हालात पर काबू पाने के लिए मरीज को वेंटिलेटर पर रखा गया. करीब 45 मिनट बाद मरीज फिर से बेचैनी की शिकायत करता है. ड्यूटी नर्स देखती हैं तो पता चलता है कि वेंटिलेटर चलते-चलते बंद हो गया. आनन-फानन में दूसरा खाली वेंटिलेटर खोजा गया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. शिफ्टिंग के दौरान ही मरीज का दम टूट गया.

दैनिक भास्कर को सफाई देते हुए हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. लोकेंद्र दवे जानकारी देते हैं कि पीएम केयर्स फंड के तहत मिले 40 में से 9 वेंटिलेटर खराब हो चुके हैं. इन 9 में से 5 वेंटिलेटर तो 1 और 3 मई के दरम्यान खराब हुए हैं.

हमीदिया हॉस्पिटल में जो हालात थे उनकी जानकारी डॉ. दवे को पहले से थी. 30 अप्रैल की रोज हमीदिया हॉस्पिटल से जुड़े गांधी मेडिकल कॉलेज के एनेस्थिसीयोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष का खत सामने आया. इस खत में पीएम केयर्स फंड से आए वेंटिलेटर के बारे में आगाह किया गया था. खत में लिखा था, “तमाम कोविड ब्लॉकों में मौजूद पीएम केयर्स वेंटिलेटर ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. इसके चलते डॉक्टरों को गंभीर कोविड मरीजों को संभालने में अक्सर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ये वेंटिलेटर पर्याप्त  टाइउल वॉल्यूम नहीं दे पा रहे हैं. न ही यह जरूरी प्रेशर बना पा रहे हैं. कई बार ये वेंटिलेटर चलते-चलते बंद हो जा रहे हैं जो मरीजों के लिए बहुत खतरनाक है. कोविड ब्लॉक में तैनात डॉक्टरों का ज्यातर समय मरीजों को संभालने की बजाए इन वेंटिलेटर को संभालने में जाया होता है.” इस खत में इन वेंटिलेटर को बदलने की मांग की गई थी लेकिन इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

हमीदिया अस्पताल से करीब 200 किलोमीटर दूर इंदौर में पंकज क्षीरसागर नाम के एक शख्स के पास उसकी दोस्त की बेटी का फोन आया. पंकज को जानकारी मिली कि उनकी दोस्त सांस की तकलीफ के चलते अस्पताल में भर्ती है. उससे मिलकर लौटते वक्त पंकज हताश महसूस कर रहे थे. पंकज ने रोते हुए फेसबुक पर पोस्ट किया, "लोग बड़ी विकट स्थिति में हैं. हम प्रयासों के बाद भी कुछ मदद नहीं कर पा रहे हैं." पंकज की इस पोस्ट पर इंदौर के ही चिराग शाह ने कमेंट किया,  "तो फिर कुछ करते हैं. क्या हम लोग साथ आकर सरकारी अस्पतालों को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर डोनेट नहीं कर सकते?"

बात यहां से चल निकली. पंकज पेशे से पत्रकार हैं और पढ़ाई से इंजिनियर. चिराग भी इंजीनिरिंग के छात्र रहे हैं. दोनों अगले दिन सुबह दस बजे मिले. यहां से सीधा शहर के सबसे बड़े अस्पताल महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय पहुंच गए. यहां उन्होंने अधीक्षक पीएस ठाकुर से मुलाकात की. डॉ. ठाकुर ने उनको बताया कि उन्हें कोरोना मरीजों के लिए बाई-पेप वेंटिलेटरों की जरूरत है. जैसे ही पंकज और चिराग चलने को हुए डॉ. ठाकुर ने उनसे पूछा कि क्या वह किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जो वेंटिलेटर इनस्टॉल कर सके. इंजीनिरिंग की तरबियत के चलते पंकज ने जवाब दिया कि वह कोशिश कर सकते हैं. डॉ. ठाकुर पंकज और चिराग को अपने साथ महाराजा तुकोजीराव हॉस्पिटल ले गए जहां कोविड संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा था. पंकज ने फोन करके अपने एक इंजिनियर दोस्त शैलेंद्र को भी बुला लिया. इनस्टॉल करना तो दूर, तीनों पहली बार किसी वेंटिलेटर को अनपैक कर रहे थे.

तीनों ने मशीन के साथ आए डायग्राम को दीवार पर चिपका लिया. ये पीएम केयर्स फंड से आई बीईएल के वेंटिलेटर थे. पहला वेंटिलेटर इनस्टॉल करने में तीनों को करीब-करीब 4 घंटे लगे. लेकिन कोशिश कामयाब रही. मशीन ठीक से काम कर रही थी. रात 12 बजे तक उन्होंने पीएम केयर्स से आए कुल 9 वेंटिलेटर इनस्टॉल कर दिए. अगले दिन उनके पास सुपर स्पेसिलिटी हॉस्पि​टल से फोन आ गया. यहां इस टीम ने पीएम केयर्स के 12 वेंटिलेटर इनस्टॉल किए. इसके बाद पास के जिले धार में पीएम केयर्स के 3 और शाजापुर में 2 वेंटिलेटर इस टीम ने इनस्टॉल किए.

जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. प्रदीप कसार से जब कारवां ने पीएम केयर्स वेंटिलेटर के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि उन्हें कुल 130 वेंटिलेटर मिले थे, इसमें से 80 फीसदी काम कर रहे हैं. जब हमने पूछा कि बाकी के वेंटिलेटरों में क्या समस्या आ रही है तो उनका जवाब था, "यह सब चीज हम अपनी इंटरनल मीटिंग में डिस्कस करते हैं. यह मीडिया को बताने के लिए नहीं है." इसके बाद उन्होंने फोन रख दिया.

6 मई 2021. महाराष्ट्र के औरंगाबाद के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में 6 एक्सपर्ट्स की एक कमिटी ने राजकोट की कंपनी ज्योति सीएनसी के धमन-3 वेंटिलेटरों के बारे में अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस मेडिकल कॉलेज को ज्योति सीएनसी के 25 वेंटिलेटर मिले थे. रिपोर्ट के मुताबिक इन वेंटिलेटरों को कोविड मरीजों के इलाज के लिए काम में नहीं लिया जा सकता. औषधि विभाग की विभागाध्यक्ष मीनाक्षी भट्टाचार्य के नेतृत्व में बनी इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट को तीन बिंदुओं में समेटे हुए कहा 1. ये वेंटिलेटर कोविड रोगियों को वेंटिलेट करने वाले पीएफ के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते थे. टाइड वॉल्यूम को ठीक नहीं कर सकते. 2. रोगी वेंटिलेटर पर ही बेहाल हो जाते हैं. 3. इसलिए आईसीवाई वेंटिलेटर के रूप में उपयोग नहीं किया जा सका.

ज्योति सीएनसी वही कंपनी है जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा गठित जॉइंट टेक्नीकल कमिटी के सामने खरी नहीं उतरी थी. इस कंपनी के वेंटिलेटरों पर पर अहमदाबाद के सिलिव हॉस्पिटल के सुप्रिटेंडेंट डॉ. जेवी मोदी ने साल भर पहले ही सवाल खड़ा किया था. 15 मई 2020 को डॉ. मोदी ने गुजरात मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड को ख़त लिखकर ज्योति सीएनसी और एग्वा के वेंटिलेटर को बेकार बताया. डॉ. मोदी ने लिखा था कि एनेस्थिया विभाग के डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि ज्योति सीएनसी के धमन-1 मॉडल के वेंटिलेटर 'अपेक्षित परिणाम' नहीं दे रहे हैं. 

यहां एक सवाल यह भी है कि ट्रायल में फेल हो चुकी कंपनी के वेंटिलेटर डिलीवर क्यों हुए? 20 जुलाई 2020 को अंजलि भारद्वाज की आरटीआई के जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि वेंटिलेटर के परीक्षण के लिए लिए जॉइंट टेक्नीकल कमिटी ने ज्योति सीएनसी के वेंटिलेटर को हरी झंडी नहीं दी थी. इसके करीब डेढ़ महीने बाद 28 अगस्त 2020 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक ज्योति सीएनसी को धमन-3 मॉडल के 5000 वेंटिलेटर डिलीवर करने का ऑर्डर मिला. राजकोट की इस कंपनी के निदेशक पराक्रम सिंह जड़ेजा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि 8 अगस्त 2020 को हुए ट्रायल में कंपनी के धमन-3 मॉडल को जॉइंट टेक्नीकल कमिटी ने हरी झंडी दे दी थी.

लेकिन यहां एक और सिरा है जो इस पूरी प्रक्रिया पर संदेह खड़ा करता है. राजकोट की इस कंपनी में सूरत का हीरा व्यापारी वीरानी खानदान बड़ा हितधारक है. जड़ेजा ने द वायर को दिए बयान में बताया कि वीरानी खानदान के ज्योति सीएनसी में 46.74 फीसदी शेयर है. हालांकि बाद में पराक्रम जड़ेजा ने द वायर को मेल भेजकर बताया, "आज की तारीख में विरानी परिवार के पास कोई शेयर नहीं है." उन्होंने कहा कि फरवरी 2020 में ज्योति सीएनसी द्वारा की गई नवीनतम शेयरहोल्डिंग पैटर्न फाइलिंग में विरानी की जो हिस्सेदारी दिखाई गई वह वित्त वर्ष 19 से संबंधित थी.''

लेकिन जब जड़ेजा से पूछा गया कि फिर वीरानी खानदान के शेयर किसके पास गए तो इसका उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने इस मामले पर इतना ही कहा कि यह वीरानी खानदान का अंदरूनी मामला है.

सूरत के वीरानी खानदान ने 2015 में पहली दफा राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा 2015 के गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि बतौर शिरकत कर रहे थे. ओबामा से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का जोधपुरी सूट काफी चर्चा में रहा था. इस सूट पर सुनहरे धागे से 'नरेंद्र दामोदरदास मोदी' की बारीक कढ़ाई की गई थी. विपक्ष का आरोप था कि इस सूट की कीमत 10 लाख के करीब है. बाद में एएनआई को दिए अपने बयान में वीरानी खानदान के मुखिया रमेश भीखाभाई वीरानी ने दावा किया कि यह सूट उन्होंने नरेन्द्र मोदी को उपहार में दिया था. रमेश वीरानी ने कहा, “मरे बेटे का नाम स्मित वीरानी है. मैंने अपने बेटे की तरफ से यह उपहार अपने बड़े भाई (मोदी) को दिया. मेरे बेटे को ही इस तरह के डिजाइन वाले सूट का आइडिया आया. उसने कहा कि वह मोदी जी को तोहफा देना चाहता है."

ज्योति सीएनसी का ट्रायल फेल करना. उसके बाद एक और ट्रायल में हरी झंडी मिलना. औरंगाबाद के डॉक्टरों का इस कंपनी के वेंटिलेटर को बेकार करार देना. विरानी खानदान का इस कंपनी के साथ जुड़ाव. वीरानी खानदान की नरेन्द्र मोदी से करीबी. इन सारे तथ्यों को एक साथ रखकर देखने पर वेंटिलेटर खरीद की पूरी प्रक्रिया पर संदेह पैदा होता है.

24 अप्रैल 2021 को लखनऊ, प्रयागराज और वाराणसी में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं पस्त पड़ी थीं. इसी दिन उत्तर पद्रेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विभिन्न मीडिया संस्थानों के संपादकों से वर्चुअल मुखातिब थे. योगी ने दावा किया कि राज्य में दवा, बेड व वेंटीलेटर की कोई कमी नहीं है.

इसके चार दिन बाद 28 अप्रैल को लखनऊ से महज 300 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज योगी आदित्यनाथ के दावों को मुंह चिढ़ा रहा था. यहां के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.अलोक शर्मा ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि उनके पास पीएम केयर्स फंड से आए 67 वेंटिलेटर फालतू पड़े हैं. उन्होंने लिखित में इसकी जानकारी प्रशासन को दे दी है. प्रशासन चाहे तो इन वेंटिलेटर का इस्तेमाल कहीं और कर सकता है.

एक तरफ वेंटिलेटर इतनी अधिकता में थे और दूसरी तरफ लोग वेंटिलेटर की कमी के जान दे रहे थे. 19 अप्रैल 2020 को कानपूर के कल्याणनगर राजकीय उन्नयन बस्ती में रहने वाले विजय कुमार अपने 27 साल के बेटे सौरभा को लेकर शहर के सबसे बड़े अस्पताल हैलेट पहुंचे. यह अस्पताल गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज का हिस्सा है और फिलहाल कोरोना के इलाज का इस इलाके में सबसे बड़ा केंद्र है.

सौरभ की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव होने के बावजूद उन्हें तीन दिन से लगातार बुखार आ रहा था. पहले पास के ही एक अस्पताल में भर्ती करवाया. सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद विजय कुमार को हैलेट ले जाया गया लेकिन यहां पर कोई भी वेंटिलेटर खाली नहीं था. करीब एक घंटे हॉस्पिटल स्टाफ के सामने गिडगिड़ाने के बाद सौरभ को नॉर्मल बेड पर ऑक्सीजन लगा दिया गया. लेकिन अब भी वेंटिलेटर का इंतजाम नहीं हुआ. आखिरकार विजय कुमार से कह दिया गया कि वह सौरभ को किसी दूसरे अस्पताल ले जाएं. विजय कुमार अपने बेटे को लेकर स्वरूप नगर के एक निजी अस्पताल पहुंचे. यहां बड़ी कहा-सुनी के बाद 50,000 रुपए एडवांस लेकर सौरभ को वेंटिलेटर पर लेटा दिया गया. लेकिन तब तक बड़ी देर हो चुकी थी. विजय कुमार के सामने ही उनके बेटे सौरभ ने दम तोड़ दिया.

उत्तर प्रदेश का कानपुर कोरोना की दूसरी लहर की भयानक चपेट में हैं. 6 मई 2020 को सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 56 लोगों ने कोरोना संक्रमण के चलते जान गंवाई. हालांकि अमर उजाला की एक रिपोर्ट के मुताबिक 6 मई को कानपुर के विभिन्न शमशान घाटों में 297 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया. विरोधाभाषी आंकड़ों और पस्त स्वास्थ्य व्यवस्था से जूझ रहे गंगा के किनारे बसे इस शहर के लिए जैसे इतना ही काफी नहीं था. शहर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. आरबी कमल के एक बयान ने स्वास्थ्य सेवाओं की बुरी स्थिति को सतह पर ला दिया. डॉ. कमल ने कारवां से बात करते हुए जानकारी दी कि पिछले साल मेडिकल कॉलेज से जुड़े हैलेट हॉस्पिटल में कुल 120 वेंटिलेटर पीएम केयर्स फंड के मार्फ़त आए थे. इसमें से 34 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं. डॉ. कमल कहते हैं, "हमारे पास बीईएल के 94 और एग्वा के 26 वेंटिलेटर आए थे. इसमें से एग्वा के वेंटिलेटर कभी इनस्टॉल ही नहीं किए गए. बीईएल के वेंटिलेटरों में भी समस्या आ रही है. पहले प्रेशर की समस्या थी. बाद में ह्युमिडीफायर लगाने के बाद यह समस्या कुछ हद्द तक हल हुई. लेकिन लगातार वेंटिलेटर चलने से इनमें भी समस्या आने लगी है. कई वेंटिलेटरों में पॉवर की समस्या है. कई में एयर फ्लो सेंसर कुछ दिन काम करने के बाद उड़ जाता है. 1 मई को हमारे यहां बीईएल की टेक्नीकल टीम आई थी. 8 वेंटिलेटर खराब थे. सिर्फ 6 ख़राब वेंटिलेटरों की मरम्मत की गई. लेकिन कुछ ही घंटों में वह फिर खराब हो गए.

बीईएल के साथ दिक्कत यह है कि इसकी असैम्बलिंग तो कंपनी का स्टाफ कर रहा है लेकिन इसका मेंटिनेंस थर्ड पार्टी के पास है. उनके पास स्टाफ की कमी है. हम जब कोई समस्या बताते हैं तो मेंटिनेंस टीम को आने में 4 से 15 दिन तक का समय लग जाता है. कोविड की दूसरी लहर के चलते हमारे ऊपर मरीजों का बहुत दबाव है. वेंटिलेटर जब लगातार चलेंगे तो उन्हें लगातार मेंटिनेंस की जरूरत होगी. लेकिन कम स्टाफ होने की वजह से बीईएल समय पर मेंटिनेंस नहीं दे पा रहा."

कानपुर के पड़ोसी ईटावा के हालात और भी नाजुक हैं. यहां के डॉ. भीमराव अंबेडकर जिला संयुक्त अस्पताल में 22 और 23 अप्रैल 2021 के दरम्यान वेंटिलेटर न मिलने से पांच लोगों की मौत हो गई. जब जिले के चीफ मेडिकल सुप्रिटेंडेंट 23 अप्रैल को कोविड वार्ड के दौरे पर पहुंचे तो यहां तैनात डॉ. कादिर ने उनके सामने स्टाफ नहीं होने की समस्या रखी. डॉ. कादिर ने बताया कि अस्पताल के पास पीएम केयर्स से आए 20 वेंटिलेटर रखे हुए हैं लेकिन स्टाफ नहीं होने की वजह से उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इस पर सीएमएस डॉ. अशोक कुमार जाटव ने जवाब में अजीबो गरीब नसीहत थमा दी. उन्होंने डॉ. कादिर से कहा कि वह हॉस्पिटल के सफाईकर्मी को सिखाएं कि मरीजों को ऑक्सीजन कैसे दी जाती है.

रायपुर के पंडित जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल से जुड़ा डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल शहर में कोविड के इलाज का सबसे बड़ा हॉस्पिटल है. हॉस्पिटल में कुल 46 वेंटिलेटर पीएम केयर्स फंड के तहत मिले हुए हैं. इन वेंटिलेटर का सूरते-हाल बयान करते हुए कोविड वार्ड के एक सीनियर डॉ. कहते हैं, "हमें मिले 46 वेंटिलेटर में से 38 बीईएल के हैं और 8 एग्वा. एग्वा के 8 में से 5 वेंटिलेटर फिलहाल काम नहीं कर रहे हैं. बीईएल के भी 5 वेंटिलेटरों में दिक्कत आ रही है.

एग्वा के वेंटिलेटर के साथ कई दिक्कतें हैं. वह बार-बार हैंग हो रहे हैं. कई दफा चालू करने की कोशिश करते हैं लेकिन चालू नहीं होते हैं. हमने उन्हें बैकअप में रखा है. जब तक बहुत जरूरी न हो हम उनका इस्तेमाल नहीं करते हैं. बीईएल में भी दिक्कत आ रही हैं. छह वेंटिलेटर खराब थे. अभी 1-2 मई को बीईएल के इंजिनियर ठीक करके गए. लेकिन वह फिर से खराब हो गए."

छत्तीसगढ़ में पीएम केयर्स के वेंटिलेटर मरीजों को राहत देने की बजाए सियासी दांव-पेंच का बायस बन गए. 11 अप्रैल को रायपुर के बीजेपी सांसद सुनील सोनी ने अपने संसदीय कार्यालय पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया कि पीएम केयर्स फंड के तहत आए 230 वेंटिलेटर 10 महीने से बेकार पड़े हैं. देखते ही देखते इस पर सियासत गर्म हो गई. जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता शैलेश नितिन त्रिवेदी ने आरोप लगाया कि पीएम केयर्स फंड से मिले 69 में से 58 वेंटिलेटर खराब हैं. इस पूरे मामले पर सफाई देते हुए सूबे के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव कहते हैं, "पिछले साल हमारे पास केंद्र से कुल 230 वेंटिलेटर आए थे. 160 बीईएल के और 70 एग्वा के हैं. इन वेंटिलेटरों को मेंटेन करने में बहुत दिक्कत आ रही है. समय पर इंजिनियर नहीं मिलते हैं. कई मशीन एनआईवी (नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर) को सपोर्ट नहीं करती. यह एक और समस्या है. हमने केंद्र सरकार से इन मशीनों के खराब पड़ने और मेंटिनेंस को लेकर आ रही दिक्कतों के बारे लिखा है. सारी मशीने खराब होती ही रहती हैं. अभी काम चल ही रहा है किसी तरह से."

छत्तीसगढ़ को मिले 230 वेंटिलेटर किन हालातों में हैं. स्वास्थ्य महकमें के एक आला अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर 11 मई 2020 को जानकारी दी कि फिलहाल बीईएल के 160 में 38 वेंटिलेटर बंद पड़े हैं. वहीं एग्वा के 70 में से सिर्फ 50 वेंटिलेटर ही काम कर रहे हैं. बीईएल ने इन 160 वेंटिलेटरों की मरम्मत के लिए सिर्फ एक इंजिनियर मुहैय्या करवाया है जोकि खुद कोरोना संक्रमित है. इसके चलते वेंटिलेटर की मरम्मत अटकी पड़ी है.

बीजेपी शासित कर्नाटक का मामला सबसे मजेदार है. कर्नाटक को पीएम केयर्स फंड के तहत 640 वेंटिलेटर की पहली खेप जुलाई में मिली. कर्नाटक में डॉक्टरों के एक धड़े ने इन वेंटिलेटरों पर सवालिया निशान लगाते हुए इन्हें इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था. मीडिया को सफाई देते हुए कर्नाटक के स्वास्थ्य सचिव जावेद अख्तर ने कहा, “डॉक्टरों के एक हिस्से का कहना है कि कें​द्रीय सहायता से मिले वेंटिलेटर इस्तेमाल नहीं किए जा सकते. हमने इनकी जांच की है और इन्हें ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा करने में सफय पाया है. हम आगे इन वेंटिलेटरों का इस्तेमाल करेंगे.”

कर्नाटक को पीएम केयर्स की अगली खेप में 2025 वेंटिलेटर भेज दिए गए. लेकिन कर्नाटक को इसकी जरूरत नहीं थी. सूबे के स्वस्थ्य सेवा निदेशक ओम प्रकाश पाटिल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक बयान में कहा, “हमें केंद्रीय योजना के तहत 2,025 वेंटिलेटर मिले हैं. हमने सरकारी अस्पतालों की क्षमताओं को कम किया है. हम निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन और अन्य क्षमताओं का आकलन कर रहे हैं और उन्हें अतिरिक्त वेंटिलेटर आवंटित कर रहे हैं.''

आखिरकार 23 सितंबरना 2020 को कर्नाटक सरकार को एक स्कीम निकालनी पड़ी ताकि इफरात में पड़े वेंटिलेटरों को इस्तेमाल में लाया जा सके. सरकार ने घोषणा की कि कोई भी निजी अस्पताल इन वेंटिलेटरों को लोन पर ले सकता है. लेकिन निजी क्षेत्र ने पीएम केयर्स के जरिए आए वेंटिलेटरों को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई.

बिहार में कोरोना की दूसरी लहर का असर अप्रैल के दूसरे सप्ताह में साफ-साफ महसूस हो रहा था. 8 अप्रैल 2021 को सूबे में 1911 सक्रिय मामले दर्ज थे. महज एक सप्ताह बाद 15 अप्रैल को यह आंकड़ा 15,853 पर पहुंच गया. सरकार इससे कैसे निपट रही थी, इसकी बानगी न्यू इंडियन एक्प्रेस में छपी खबर से लग जाती है. 1 मई को अखबार में छपी खबर के अनुसार बिहार सरकार पीएम केयर्स फंड के तहत आए 207 वेंटिलेटरों को निजी अस्पतालों को किराए पर देने वाली थी. यह वेंटिलेटर पिछले दस महीने से बेकार पड़े थे. सूबे के 36 में से 34 जिलों में 206 वेंटिलेटर इन्स्टॉल तक नहीं किए जा सके थे. वजह यह बताई गई कि सूबे में वेंटिलेटर चलाने के लिए स्टाफ नहीं था.

20 अप्रैल 2021 को बिहार के बांका में कोविड से 22 लोगों की मौत के बाद प्रशासन की नींद खुली. पीएम केयर्स फंड से आए 4 वेंटिलेटरों को डब्बे से निकालकर इन्स्टॉल करने की कवायद शुरू हुई. लेकिन यह कोशिश कोई सार्थक परिणाम नहीं ला सकी. इन वेंटीलेटरों के यूपीएस खराब थे. 

अमित शाह ने गांधी नगर के आयुर्वेदिक अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन किया. कोलावाड़ा से सिर्फ नौ किलोमीटर दूर, गांधी नगर का जनरल अस्पताल अभी भी अपने पीएसए संयंत्र की प्रतीक्षा कर रहा है, जिसकी घोषणा पिछले साल की गई थी. AMITSHAH.CO.IN

बिहार का मुजफ्फरपुर 2019 में चमकी बुखार की विभीषिका झेल चुका है. मुज्जफरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज को पीएम केयर्स फंड के तहत 80 वेंटिलेटर दिए गए थे. इसमें से महज 14 वेंटिलेटर ही इन्स्टॉल किए जा सके. 66 अभी भी बेकार पड़े हैं. अप्रैल के दूसरे सप्ताह में एक मरीज के इलाज के दौरान डॉक्टरों ने महसूस किया कि वेंटिलेटर ठीक से काम नहीं कर रहा. बाद में जांच हुई तो पाया गया कि 14 में से 6 वेंटिलेटर खराब हैं.

बीबीसी हिंदी में 26 अप्रैल 2021 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक दरभंगा मेडिकल कॉलेज को मिले कुल 40 वेंटीलेटरों में से एक भी चालू नहीं हो पाया है. यही हाल गया का है. यहां के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज को 30 वेंटिलेटर मिले थे. इसमें से एक भी चालू नहीं है.

22 अप्रैल 2021 को बिहार में बीजेपी के अध्यक्ष और बेतिया के सांसद संजय जयसवाल बेतिया के सरकारी मेडिकल कॉलेज के दौरे पर थे. पेशे से डॉक्टर रहे संजय जयसवाल को यह जानकार धक्का लगा कि बेतिया के मेडिकल कॉलेज में पीएम केयर्स फंड के तहत मिले 26 वेंटिलेटर डब्बे से भी बाहर नहीं निकले थे. इसके अलावा अस्पताल को 25 वेंटिलेटर डीआरडीओ की कोविड केयर फेसिलिटी से मिले थे. यह 51 वेंटिलेटर इन्स्टॉल तक नहीं हो पाए. बाद में मीडिया को दिए बयान में मेडिकल कॉलेज के सुप्रिटेंडेंट डॉ. प्रमोद तिवारी सिकी ने इसकी अजीबो गरीब वजह बताई. तिवारी ने बताया, "इन 51 वेंटिलेटरों के कनेक्टर्स और हॉस्पिटल बनाने वली कंपनी एलएंडटी ने जो सॉकेट लगाए हैं वह आपस में मैच नहीं करते. हमें किस्मत से एक स्थानीय विक्रेता के पास पांच एडप्टर मिल पाए. उसकी मदद से हम पांच वेंटिलेटर इनस्टॉल कर पाए जो फिलहाल चालू हालत में हैं." 

देश में पीएम केयर्स फंड के तहत भेजे गए वेंटिलेटरों के इस्तेमाल में दो बड़ी समस्या हैं. पहली वेंटिलेटर की गुणवत्ता का खराब होना. तमाम राज्यों से वेंटिलेटरों के खराब होने की बात सामने आती है. ख़ास तौर पर एग्वा के वेंटिलेटरों के बारे में मिल रही प्रेशर ड्रॉप की शिकायतों के बावजूद इस कंपनी को और 5000 वेंटिलेटर का ऑडर मिलना अचंभे में डालता है. बीईएल के वेंटिलेटरों में एयर फ्लो सेंसर बार-बार खराब हो रहा है. यह सेंसर बाजार में उपलब्ध नहीं है. इसकी मेनुफ़ैक्चरिंग सिर्फ बीईएल ही करता है. ऐसे में एक बार सेंसर खराब होने के बाद वेंटिलेटर मरम्मत की राह देखता रहता है.

बीईएल, एग्वा या दूसरी कंपनी का टेक्नीकल सपोर्ट इतना बेहतर नहीं है कि समय पर इन खराबियों को दूर कर पाए. जोधपुर से लेकर कानपुर तक ज्यादातर जगहों पर यही समस्या देखने को मिल रही है. कई जगहों पर बीईएल या एग्वा का स्टॉफ मशीन को इनस्टॉल तक करने नहीं पहुंच पाया है मेंटिनेंस तो दूर की बात है. दूसरी समस्या वेंटिलेटर को चलाने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ का अकाल है. ऐसे में वेंटिलेटर इनस्टॉल होने के बावजूद उन्हें इस्तेमाल में नहीं लाया जा पा रहा है.

केंद्र सरकार के पास कोरोना की दूसरी लहर से पहले इन दिक्कतों को सुलझाने का भरपूर समय था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वेंटिलेटर को खरीदकर राज्यों के पास भेज दिया गया. उनके इन्स्टॉलेशन और मेंटिनेंस को लेकर आ रही समस्याओं को सुलझाने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया. ऐसे में कोविड की दूसरी लहर के दौरान जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी ज्यादातर वेंटिलेटर स्टोर रूम में धूल फांकते रहे.

4.

अप्रैल 2020 में प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद वसुंधरा सेक्टर-1 में रहने वाली 18 साल की शक्ति पाण्डेय ने अपनी गुल्लक तोड़कर 5100 रुपए पीएम केयर्स फंड में जमा करवाए. करीब साल भल बाद कोरोना की दूसरी लहर के दौरान शक्ति ने खुद को कोरोना की चपेट में पाया. 14 अप्रैल 2020 को हल्के बुखार से शुरू हुई बीमारी तीन दिन में गंभीर हो गई. शक्ति के पिता शैलेश उन्हें बीमार हालात में कोविड जांच करवाने के लिए वसुंधरा सेक्टर 15 के फैमली हेल्थ केयर सेंटर जे गए. यहां पर टेस्ट की व्यवस्था तो थी लेकिन इलाज के लिए कोई बेड खाली नहीं था. वह बेहोशी की हालत में शक्ति को गाजियाबाद के एक निजी अस्पताल लेकर गए. भर्राए गले से पूरे घटनाक्रम को याद करते हुए शैलेश कहते हैं-, प्रधानमंत्री के कहने पर हमने फंड में पैसे भी दान किए, थाली भी बजाई, दिये भी जलाए.लेकिन मैं ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटका रहा. हॉस्पिटल ने पहले तो शक्ति को ऑक्सीजन कोसंट्रेटर पर रखा. जब हालत नहीं सुधरी तो हाथ खड़े कर दिए. कहा कि ऑक्सीजन की व्यवस्था कीजिए नहीं तो पेशेंट को ले जाइए. मैं उनके सामने रोने लगा. फिर दोस्तों से कह कर कैसे भी दो ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की. तब जाकर मेरी बेटी की जान बची है."

कोरोना की पहली लहर में साफ हो गया था कि यह बीमारी सबसे ज्यादा फेंफडों को नुकसान पहुंचा रही है. लिहाजा वेंटीलेटर और ऑक्सीजन इस महामारी से लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण हथियार बनने जा रहे हैं. 25 अप्रैल 2021 को कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश भर में छाए ऑक्सीजन संकट के बीच आई पत्र सूचना कार्यालय में घोषणा की गई कि पीएम केयर्स फंड से देश भर में 551 नए ऑक्सीजन (पीएसए) प्लांट लगेंगे. इससे चार महीने पहले 5 जनवरी 2021 को प्रधानमंत्री कार्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर अपटेड इसी किस्म की एक खबर के मुताबिक पीएम केयर्स फंड के तहत देश के अलग-अलग राज्यों में 162 ऑक्सीजन प्लांट लगेंगे. इसके लिए पीएम केयर्स फंड से 201.58 करोड़ रुपए जारी किए गए थे. इसमें से 137.33 करोड़ रुपए इन संयंत्रों को लगाने में खर्च होने जा रहे थे. जबकि 64.25 करोड़ रुपए इनकी मेंटिनेंस पर खर्च होने थे. इन संयंत्रों के जरिए कुल 154.19 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन पैदा होनी थी. यह सारो संयंत्र 3 साल की वारंटी वाले थे. आगे के सात साल के लिए सीएएमसी (व्यापक वार्षिक रखरखाव अनुबंध) भी इसमें शामिल था. यानी आने वाले एक दशक तक इन संयंत्रों के मेंटिनेंस पर होने वाला सारा खर्च केंद्र सरकार उठाने वाली है.

14 मार्च 2020 को केंद्र सरकार ने कोविड-19 को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया. इसके करीब 7 महीने बाद स्वास्थ्य मंत्रालय की एजेंसी केंद्रीय चिकित्सा सेवा सोसायटी ने 150 ऑक्सीजन संयंत्रों के लिए पहला टेंडर जारी किया. सोसायटी ने 21 अक्टूबर 2020 में ऐसे 150 प्लांट लगाने के लिए टेंडर जारी किया था. जनवरी में पीएम केयर्स फंड से सहायता मिलने के बाद 12 और संयंत्र इसमें जोड़ दिए गए. टेंडर जमा करवाने की आखिरी तारीख 10 नवंबर 2020 रखी गई. छंटनी के बाद चुनी गई कंपनियों को टेंडर आवंटित करते-करते दिसंबर तक का वक्त लग गया. यानी कोविड महामारी की पहली लहर आने के करीब 10 महीने बाद ऑक्सीजन संयंत्र को लगाने की कार्रवाई शुरू हो पाई.

18 अप्रैल 2021 को स्क्रॉल ने पीएम केयर्स फंड से लगने वाले 162 ऑक्सीजन संयंत्रों की पड़ताल की. अपनी पड़ताल में उसने कुल 14 राज्यों में लगने वाले संयंत्रों की हालत का जायजा लिया. 14 राज्यों में तब तक महज 11 ऑक्सीजन प्लांट्स लग पाए थे. इनमें से महज 5 काम कर रहे थे. इस खबर के छपने के ठीक बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ट्वीट करके बताया कि 18 अप्रैल तक कुल 33 प्लांट इन्स्टॉल हो चुके हैं. लेकिन इसमें इस बात का जिक्र नहीं किया किया गया था कि इसमें से कितने काम कर रहे हैं.

18 अप्रैल 2021 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपने ट्वीट में दावा किया था कि हिमाचल को मिले कुल 7 संयंत्रों में से 4 लग चुके हैं. लेकिन 23 अप्रैल 2021 को द ट्रिब्यून में छपी खबर के मुताबिक उनमें से महज एक ही काम कर रहा था. जोनल हॉस्पिटल (धर्मशाला), दीनदयाल उपाध्याय हॉस्पिटल (शिमला), गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (मंडी) और वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज (नाहन) में प्लांट लगने होने का दावा किया गया था. इसमें से जोनल हॉस्पिटल धर्मशाला के अलावा कहीं भी प्लांट चालू नहीं था.

केंद्रीय चिकित्सा सेवा सोसायटी ने जो टेंडर जारी किया था उसकी शर्त के मुताबिक कंपनी को 45 दिन के भीतर संयंत्र से जुड़े सारे सामान तैयार रखने थे. दूसरी तरफ अस्पतालों को संयंत्रों के लिए जरूरी सिविल और इलेक्ट्रिकल काम करवाकर तैयार रखना था. हॉस्पिटल की तरफ से 'सर्टिफिकेट ऑफ़ रेडीनेस' जारी किए जाने के बाद इनस्टॉलेशन का काम शुरू होना था.

स्क्रॉल की पड़ताल में कई स्तरों पर गड़बड़ी सामने आई. औरंगाबाद आधारित एयरॉक्स टेक्नोलॉजी को ऑक्सीजन संयंत्र लगाने का ठेका मिला था. कंपनी के संस्थापक संजय जयसवाल ने स्क्रॉल को दिए बयान में दावा किया, "हमारी तरफ से, हमारे 60 इंजीनियर इस पर लगे हुए हैं, यह लगभग हो चुका है," उन्होंने कहा. “लेकिन राज्य भी हमें तांबे की पाइपलाइन कनेक्शन और बिजली उपलब्ध कराए. यह हमारे हाथ में नहीं है. जब तक हमें यह नहीं मिलता, हम सिस्टम शुरू नहीं कर सकते.''

लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है. दूसरा पहलू समझने के लिए आपको गुजरात के नवसारी चलना होगा. 16 अप्रैल 2021 को द हिंदू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक यहां के एमजीजी जनरल अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते 5 मरीजों की मौत हो गई. यहां पर पीएम केयर्स फंड के तहत एक ऑक्सीजन प्लांट लगना था.चीफ मेडिकल ऑफिसर अवनीश दुबे बताते हैं, “हम उन्हें बुलाते रहे, वह कहते रहे कि दुबारा फोन करेंगे. मुझे नहीं पता कि कहां दिक्कत हैं.”

उत्तर प्रदेश को पीएम केयर्स फंड से सबसे ज्यादा 14 ऑक्सीजन प्लांट मिले थे. 18 अप्रैल 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय ने ट्वीट करके बताया कि यहां महज 1 ऑक्सीजन प्लांट इनस्टॉल हो पाया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिले मेरठ के एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज को भी पीएम केयर्स फंड के तहत एक ऑक्सीजन प्लांट मिला था. स्क्रॉल को दिए बयान में मेडिकल कॉलेज के ज्ञानेश्वर कुमार ने बताया, “हमने इस प्लांट के लिए जगह भी दे दी ​थी लेकिन मशीनें अब​ तक नहीं आई हैं. मैंने कई बार कंपनी को फोन भी किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.”

नवसारी और मेरठ दोनों जगह पर ऑक्सीजन प्लांट लगाने का जिम्मा दिल्ली में पंजीकृत कंपनी एब्ससटेम टेक्नोलॉजी का था. लेकिन दोनों जगह पर प्लांट के नाम पर चार महीने तक एक पत्ता भी नहीं हिला था. 24 अप्रैल 2021 को गृह मंत्री अमित शाह अपने संसदीय क्षेत्र गांधी नगर में थे. यहां वह कोलावाडा के एक आयुर्वेदिक हॉस्पिटल में पीएसए ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने आए थे. उन्होंने घोषणा की कि गुजरात को जल्द ही ऐसे 11 और प्लांट पीएम केयर्स फंड के तहत मिलने वाले हैं.

कोलावाड़ा से महज 9 किलोमीटर दूर गांधी नगर के जनरल हॉस्पिटल में लगने वाला पीएसए प्लांट एक अबूझ पहेली बना हुआ था. गांधी नगर के जीएमईआरएस मेडिकल कॉलेज से जुड़े इस हॉस्पिटल में ऑक्सीजन प्लांट लगाने का ठेका दिल्ली की कंपनी उत्तर एयर प्रोडक्ट्स को मिला था. स्क्रॉल को दिए बयान में जीएमईआरएस मेडिकल कॉलेज की डॉ. नियति लखानी बताती हैं कि उन्होंने 13 जनवरी 2021 को उत्तर एयर प्रोडक्टस को मेल के जरिए सूचना भेज दी थी कि उनके अस्पताल में प्लांट लगाने के लिए जगह तैयार है. इसके बाद कई दफा फोन करने के बावजूद कंपनी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा सोसाय​टी ने 13 अप्रैल 2021 को एक पत्र जारी करके उत्तम एयर प्रोडक्ट्स को ब्लैक लिस्ट कर दिया था. सोसायटी ने अपने पत्र में लिखा है कि कंपनी ठेका मिलने के बाद सुरक्षा राशि और जरूरी कागजात जमा नहीं करवा पाई. ऐसे में जीएमईआरएस मेडिकल कॉलेज गांधी नगर का ऑक्सीजन प्लांट कौन लगाने वाला है यह साफ नहीं है. पीएम केयर्स फंड बनाने का मुख्य उद्देश्य कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में आर्थिक सहयोग मुहैय्या करवाना था. लेकिन अपने बनने के पहले दिन से ही यह विवादों के घेरे में रहा. जब पहले से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष मौजूद है तो ऐसे ही दूसरे फंड की जरूरत क्यों पड़ी. इस फंड को सूचना के अधिकार के दायरे से बहार रखकर सरकार ने इसे और संदिग्ध बना दिया.

यह फंड कोविड के खिलाफ जंग का हथियार बनना था लेकिन दिन के आखिर में यह डॉक्टरों को उलझाने वाली प्रक्रिया में डालता दिखाई दे रहा है. इस फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर अपने पहले ट्रायल से ही संदेह के दायरे में रहे. इसके बावजूद इन वेंटिलेटरों की खरीद हुई. ज्यादातर जगहों पर यह वेंटिलेटर चल नहीं रहे. जहां चल रहे हैं वहां मरीजों से ज्यादा आईसीयू में मौजूद डॉक्टरों की सांस अटकी हुई है. हालांकि 15 मई 2021 को प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि पीएम केयर्स फंड के तहत खरीदे गए वेंटिलेटरों का ऑडिट किया जाएगा. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा? क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने पीएम केयर्स फंड को गोपनीय बनाए रखने के लिए जो प्रतिबद्धता दिखाई है, उसे देखते हुए यह बेहद मुश्किल दिख रहा है. दूसरा, क्या खरीद की प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी की जिम्मेदारी तय होगी. मान लीजिए ऐसा हो भी जाता है तो भी पीएम केयर्स फंड अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में कितना कामयाब रहा? जिस समय इस देश के लोग एक-एक सांस के लिए लड़ रहे थे, उस समय पीएम केयर्स फंड के वेंटिलेटर या तो बंद पड़े थे या चलते-चलते बंद हो जा रहे थे.

कुछ 'ऐतिहासिक' करने की चाहत हर शासक की कमजोरी रही है. स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी इस चाहत को सार्वजानिक कर चुके हैं. लेकिन ऐतिहासिक करने की चाहत में इतिहास से मिला सबक नहीं भूलना चाहिए. इतिहास में सबसे कुख्यात रोमन शहंशाह नीरो ने सन 64 की आग में खाक हो चुके रोम के केंद्र में एक नया महल बनाया था. इसे नाम दिया गया, दौमुस औरिया यानी सोने का महल. लेकिन यह महल कभी पूरा नहीं हो पाया. बाद के दौर में यह नीरो के उत्तराधिकारियों के लिए शर्मिंदगी का बायस बना. एक शासक के लिए विशाल और खूबसूरत ईमारत बनाने से ज्यादा जरूरी है कि वो इतिहास से सबक ले कि उसे बाद में नीरो की तरह याद न किया जाए.

(कारवां अंग्रेजी के सितंबर 2021 अंक में सर्वप्रथम प्रकाशित इस रिपोर्ताज को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)