शराब की दुकानें खोलने वाली सरकार ने अब तक नहीं खोले नेत्र बैंक, हजारों नेत्रहीनों की देख पाने की आशा पर फिरा पानी

3 सितंबर 2011 को बेंगलुरु में 26वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के अवसर पर बनाए गए एक भित्तिचित्र के सामने एक भारतीय स्कूली लड़की दौड़ती हुई. लॉकडाउन के दौरान भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय और इसके तहत प्रमुख संगठनों द्वारा अप्रासंगिक और परस्पर विरोधी दिशा-निर्देश भारत के नेत्रदान कार्यक्रम को पूरी तरह से ठप्प कर दिया है. जगदीश एनवी/ ईपीए

47 साल के नासिर मोहम्मद ने बताया कि उनकी पत्नी प्रिया नासिर का सपना था कि मरने के बाद वह अपने नेत्रदान करे ताकि उनके ना रहने पर कोई इस दुनिया को देख सके. वह मानती थीं कि ऐसा करने से और लोग भी नेत्रदान के लिए आगे आएंगे. नासिर ने बताया, “प्रिया ने 2001 में नेत्रदान करने का वचन लिया था और मुझसे भी वादा लिया था कि जब वह गुजरे जाए तो मैं उनकी इस इच्छा को पूरी करूं.”

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच 17 अप्रैल को प्रिया की मौत हो गई. उस दिन नासिर और नेत्रहीन लोगों के बीच काम करने वालीं पूनम त्यागी ने दिल्ली के एम्स अस्पताल सहित 4 नेत्र बैंकों से संपर्क किया लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की. अस्पतालों ने बताया कि लॉकडाउन के दूसरे चरण में इलेक्टिव सर्जरी की स्वीकृति नहीं है.

स्वास्थ्य मंत्रालय और उसके विभागों के विरोधाभासी दिशानिर्देशों के चलते लॉकडाउन में नेत्रदान कार्यक्रम पूरी तरह से रुक गया है. मुझे डॉक्टरों ने बताया की हजारों ऐसे लोग जो नेत्रदान कर भारत में अंधेपन की समस्या को दूर करने में मदद करना चाहते थे, सरकार के फैसलों के कारण ऐसा नहीं कर पाए. दिल्ली के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सकों ने मुझे बताया कि वे मरीजों की नेत्रदान करने की अंतिम इच्छा का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं और चिकित्सकों का कहना है कि स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव और नेत्रदान के लिए केंद्र द्वारा आर्थिक सहायता में कमी, नेत्र दाता और नेत्रहीनों के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है.

अप्रैल 2019 को प्रिया को फेफड़ों के कैंसर की ज्यादा गंभीर स्थिति का पता चला था. तभी से वह नियमित रूप से रोहिणी स्थिति राजीव गांधी कैंसर अस्पताल उपचार के लिए जाती थीं. नासिर ने बताया, “उन पर इलाज का अच्छा असर हो रहा था. लेकिन 22 मार्च के बाद स्थिति बदल गई. सभी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं कोविड-19 और लॉकडाउन के चलते बंद कर दी गईं. 9 अप्रैल को प्रिया को गंभीर दर्द और सांस लेने में तकलीफ के चलते द्वारका के आकाश अस्पताल में भर्ती कराया गया. और 17 अप्रैल को अस्पताल में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद उनकी नेत्रदान की इच्छा को पूरा करने की कोशिशें चालू हो गईं. नेत्र दाता की आंखों का दान मौत के छह घंटों के भीतर हो जाना चाहिए.

अस्पताल में भर्ती होने से लेकर मौत के बीच के दो हफ्तों में प्रिया ने बार-बार नेत्रदान की अपनी इच्छा प्रकट की थी. अपने अंतिम दिनों में वह त्यागी के संपर्क में लगातार बनी रहीं. 11 मई को त्यागी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा कि लॉकडाउन के दौरान नेत्रदान की मंजूरी दी जाए. 13 मई को उन्हें स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशालय का एक पत्र आया जिसमें कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान नेत्र बैंकों के प्रति आपकी चिंता बहुत प्रशंसनीय है लेकिन कोरोना महामारी के समय इस बात का डर है कि जिन लोगों का अपने घरों में देहांत हुआ है उनका कॉर्निया संक्रमित हो सकता है जिससे नेत्र प्राप्त करने वालों को संक्रमण हो सकता है. यह निदेशालय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीनस्थ है.

4 मई को त्यागी के इलाके में एक आदमी की मौत हो गई. उसने भी नेत्रदान का विकल्प चुना था. त्यागी ने मुझसे कहा, “यह देखना बड़े दुख की बात है कि एक देश में जहां इतने सारे नेत्रहीन लोग हैं और जो प्रिया जैसे लोगों पर इलाज के लिए निर्भर हैं, ऐसे देश में शराब की दुकानों को नेत्रदान से अधिक प्राथमिकता में रखा जाता है. बता दें कि दिल्ली सरकार ने आदेश जारी कर 4 मई से दिल्ली में शराब की दुकानें खोल दी हैं लेकिन इलेक्टिव सर्जरी पर अभी भी प्रतिबंध है.

30 मार्च को राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) ने एक दिशानिर्देश जारी किया था जिसमें अंग प्रत्यारोपण के दौरान अपनाई जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया गया था. यह संगठन स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीनस्थ है. दिशानिर्देश के एक अध्याय में, जिसका शीर्षक “मृत दाता”  है, लिखा है, “संभावित दाताओं और उनके परिजनों की कड़ाई के साथ महामारी जांच की जानी चाहिए.” इस दिशानिर्देश में चेतावनी दी गई है कि ऐसे व्यक्ति जो पिछले 14 दिनों में कोरोना पुष्ट या संदिग्ध रोगी के प्रभाव में आया हो, जो किसी ऐसे देश से लौटा हो जहां कोरोना के 10 से अधिक मामले हैं और और जिनकी मौत का कारण अज्ञात सांस की समस्या है, उन्हें मृत डोनर के रूप में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.

प्रिया कोविड-19 के किसी भी रोगी या संदिग्ध रोगी के संपर्क में नहीं आई थीं और उन्होंने किसी अन्य देश की यात्रा भी नहीं की थी. 7 मई और 15 मई को हुई उनकी कोविड-19 जांच का परिणाम नेगेटिव आया था. गाइडलाइन के मुताबिक उन्हें अपनी आंख दान करने दी जानी चाहिए थी. उस दिशानिर्देश में स्पष्ट लिखा है, “इस सुझाव अथवा परामर्श के अंतर्गत सदिच्छा से किए जाने वाले किसी भी कार्य के खिलाफ कानूनी मामला या केस दर्ज नहीं किया जा सकता.” हालांकि दिशानिर्देश के खिलाफ जाते हुए नोटो के निदेशक बसंती रमेश ने मुझे 6 जून को बताया, “30 मार्च से प्रत्यारोपण पर अस्थाई रोक लगी हुई है. यह रोक कोविड-19 के लिए प्रत्यारोपण के संबंध में नोटो द्वारा जारी प्रथम निर्देशों के मुताबिक है”.

एम्स अस्पताल के एक वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक ने मुझे नाम ना छापने की शर्त पर बताया की अस्पताल के नेत्र बैंक के स्टाफ को लॉकडाउन शुरू होते ही काम पर ना आने के लिए कह दिया गया था. उन लोगों से कहा गया था कि 31 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय नेत्रदान की प्रक्रिया को कैसे चालू रखना है इस संबंध में ताजा दिशानिर्देश जारी करेगा. अभी तक इस संबंध में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं मिला है. वर्तमान दिशानिर्देश स्पष्ट नहीं है कि क्या डोनर की कोविड-19 जांच की जरूरत है और यह भी नहीं बताया गया है कि इस जांच का खर्च किस हैड में दिखाया जाएगा.

त्यागी ने बताया, "मैं हैरान रह गई यह जानकर की इतनी बड़ी व्यवस्था और एम्स जैसे अस्पताल में भी नेत्रदान नहीं किया जा सकता. इन लोगों ने तकनीकी पक्ष बताया है लेकिन मैं इससे पूरी तरह सहमत नहीं हूं." मैंने कई डॉक्टरों से बात की जिन्होंने स्वीकार किया कि कोरोनावायरस महामारी में नेत्रदान तकनीकी रूप से ना केवल संभव है बल्कि इसे ना करने से बहुत बड़ा नुकसान होगा. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के नेत्र विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर राजवर्धन आजाद ने मुझे बताया, “नॉन कोविड मरीज, जो किसी अन्य बीमारी से मरा है, उससे दान लेना संभव है. आजाद सार्क की नेत्र विज्ञान आकादमी के सचिव भी हैं. यह दक्षिण भारत के नेत्र सर्जनों की संस्था है.

आजाद ने कहा, “इन आंखों के प्रत्यारोपण के संबंध में कहा जा सकता है कि इंतजार किया जाना चाहिए क्योंकि कोर्निया परत, जिसे तकनीकी भाषा में स्ट्रोमा भी कहते हैं, से कॉविड-19 वायरस के संक्रमण का खतरा रहता है.” आजाद ने  बताया कि अक्सर दान की गईं आंखों के कोर्निया का इस्तेमाल किया जाता है. कोर्निया में सीमित मात्रा में रक्त होता है और वह रक्त से ऑक्सीजन नहीं प्राप्त करता बल्कि हवा से प्राप्त करता है इसलिए इसमें ब्लड ग्रुप से जुड़ी समस्या नहीं होती. आजाद ने कहा, “यही बात इसे प्रत्यारोपण के लिए आदर्श अंग बनाती है”. नेत्रदान से केवल कोर्निया का अंधापन ठीक होता है. एक व्यक्ति द्वारा किए गए नेत्रदान से दो लोगों का अंधापन ठीक हो सकता है. कॉर्नियल अंधेपन की दर को कम करने के लिए केवल एक आंख का प्रत्यारोपण किया जाता है और इसीलिए एक व्यक्ति के दान से दो लोगों को लाभ मिलता है. उन्होंने समझाया कि एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसी कुछ अपवाद स्थितियों के अलावा किसी भी व्यक्ति के नेत्रदान को अस्वीकार नहीं किया जाता. उन्होंने कहा कि यदि किसी दाता की आंख को किसी के कॉर्नियल अंधेपन के इलाज के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता तो भी वह मेडिकल शिक्षा या शोध के काम आती है.

आजाद ने मुझसे कहा कि उन्हें कई मरीजों के फोन आए हैं. उनमें से एक मरीज को डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी कोमोरबिडिटी थी. वह मुंबई का रहने वाला था. रेटिना के ऊपर रक्त स्राव होने के कारण उसकी दृष्टि खो गई थी और उसका उपचार नहीं किया जा सका. कोमोरबिडिटी में बड़ा खतरा होता है और कोविड-19 का भी खतरा था इसलिए उसकी सर्जरी नहीं की गई. “हां, यह सच है कि देर से सर्जरी करना या विलंब से सर्जरी करने से सर्जरी के सफल होने की दर कम हो जाती है.”

टाइम्स ऑफ इंडिया में जून 2016 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष 50 हजार नेत्रदान किए जाते हैं. इनमें से प्रत्येक नेत्रदान दो लोगों के लिए होता है जिससे तकरीबन एक लाख कॉर्नियल नेत्रहीनता के शिकार लोगों की मदद होती है. आजाद ने मुझे बताया कि 90 फीसदी मामलों में कॉर्निया प्रत्यारोपण सफल रहता है और पूरी तरह से दिखाई देने लगता है. विश्व में 45000000 लोग दृष्टिहीन हैं जिनमें से एक तिहाई तो सिर्फ भारत में है. भारत में अनुमान है कि 4600000 लोग कॉर्नियल अंधेपन के शिकार हैं और इनका उपचार कॉर्निया प्रत्यारोपणो से किया जा सकता है. आजाद ने कहा, “मार्च से आरंभ हुए लॉकडाउन की वजह से हमने संभवतः 15 से 20 हजार कॉर्निया खो दी हैं. यानी यदि लॉकडाउन को बेहतर तरीके से नियोजित किया जाता तो 20 हजार लोग देख सकते थे.” उन्होंने बताया कि हर साल 35 हजार अतिरिक्त लोग कॉर्नियल अंधेपन के शिकार होते हैं.

8 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम के तहत नए दिशानिर्देश जारी किए. इन नए दिशानिर्देशों में इलेक्टिव सर्जरी की स्वीकृति दी गई थी लेकिन कहा गया था कि घर से आईबॉल रिट्रीव (प्राप्त) करने की मंजूरी नहीं होगी. इन दिशानिर्देशों ने अस्पताल कॉर्निया रिट्रीवल प्रोग्राम को पुनः चालू कर दिया लेकिन यह नहीं बताया कि क्या मृत मरीजों के कोविड-19 टेस्ट कराने की जरूरत होगी. मंत्रालय ने डोनर की कोविड-19 जांच का खर्च भी उपलब्ध नहीं कराया. एम्स जैसे शीर्ष संस्थानों में भी आईबॉल डोनेशन को दोबारा शुरू नहीं किया गया है.

एम्स के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ ने बताया कि कुछ एक किस्म की सर्जरी अस्पताल में हो रही हैं. 31 मार्च के बाद भी आपातकालीन नेत्र शल्य चिकित्सा हो रही थी. हालांकि महामारी के दौरान इलेक्टिव सर्जरी करना कठिन हो गया था है और इनके प्रबंधन के लिए एम्स प्रशासन ने नए नियम जारी किए हैं. वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ ने मुझसे कहा, “हमने इलेक्टिव सर्जरियों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया है. ऐसे मामले जिन में भर्ती करना आवश्यक ना हो और ऐसे जिन में संक्रमण का गंभीर खतरा रहता हो. भर्ती हुए मरीज, जिनमें कोविड-19 की आशंका होती है, की हम जांच करते हैं. लेकिन जिन लोगों को भर्ती नहीं किया जाता उन लोगों के बारे में सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि उनका खर्च कौन उठाएगा. साथ ही सरकार ने यह भी कहा है कि बिना जांच के हम नेत्रदान नहीं ले सकते.

नेत्र सर्जन ने बताया कि सरकार के स्पष्ट सहयोग और फंडिंग के बिना नेत्रदान प्रक्रिया शुरू करना ठीक नहीं होगा. यदि सामान्य सर्जरी में 1 प्रतिशत फैटेलिटी का खतरा रहता है तो कोविड-19 में 25 प्रतिशत हो सकता है. एक नेत्र केंद्र में हर साल 1000 से 1500 तक नेत्रदान होते हैं और हमें नेत्रदान और कोविड-19 दोनों का खर्च उठाना पड़ता है. यह खर्च उठा पाना आसान नहीं है. सरकार के लिए यह बहुत मामूली होगा लेकिन लग रहा है कि सरकार की प्राथमिकता में हम लोग नहीं हैं.”

सर्जन ने मुझे बताया कि सरकार की आरंभिक घोषणा के बाद, जिसमें उसने इलेक्टिव सर्जरी को रोक दिया था, कई डॉक्टरों ने स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क कर एचसीआरपी को चालू रखने की अनुमति मांगी थी. एचसीआरपी पूर्ण रूप से अस्पताल आधारित होता है और इसमें ऐसे मरीजों की, जिनके चिकित्सा इतिहास के बारे में जानकारी होती है, उनकी इच्छा से कॉर्निया लिया जाता है. ऐसे मामलों में अस्पताल कोविड-19 संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं.

“लेकिन बातचीत के बाद भी मंत्रालय ने एचसीआरपी के संबंध में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दिए हैं”, उस सर्जन ने मुझे बताया. “उन लोगों को कम से कम ऐसा दिशानिर्देश देना चाहिए था जिसमें सभी डोनरों की कोविड जांच की बात हो ताकि हम लोग उस खर्च को दिखा सकें और कोर्निया के अंधेपन के शिकार रोगियों का इलाज कर सकें. हमारा स्टाफ डरा हुआ है और इसके बावजूद कि असिंप्टोमेटिक मरीज से वायरस का संक्रमण हो सकता है, स्टाफ मरीज के घर जाकर नेत्रदान प्राप्त करने के लिए तैयार है. लेकिन स्पष्ट दिशानिर्देश और अनुमति के अभाव में हम कर भी क्या सकते हैं?”

उन सर्जन मुझे बताया कि 4 महीने तक पूरी तरह से नेत्रदान बंद रहने से भारत में अंधेपन के खिलाफ जारी लड़ाई को बहुत क्षति पहुंची है. कई नेत्रदान विभाग नेत्रदान को फिर से चालू करने के संबंध में आंतरिक दिशानिर्देश तैयार कर रहे हैं. सर्जन ने बताया, “लेकिन हम लोग आंतरिक दिशानिर्देशों को औपचारिकता प्रदान नहीं कर सकते क्योंकि मंत्रालय ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि डोनर के कोविड टेस्ट का खर्च कहां दिखाया जाए.”

ऐसा लगता है कि नेत्रदान की प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया है. विरोधाभासी दिशानिर्देशों और नेत्रदान के लिए आवंटन की कमी के संबंध में मैंने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीती सुदन को ईमेल किया था लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. बहुत से लोग इसे मरने वाले की स्मृतियों का अनादर मानते हैं. प्रिया की बेटी तहरीन ने मुझसे कहा, “मेरी मां हमेशा मानती थीं कि दूसरों की मदद करने से ढेर सारी खुशी मिलती है.” तहरीन ने बताया कि अपनी मां की आंखों का दान ना कर पाना उनके लिए गहरे विश्वासघात जैसी और अवसाद की बात है. त्यागी ने कहा, “मुझे बहुत दुख है कि मैं प्रिया की आंखों का दान नहीं करा सकी. यह मेरे दिल में हमेशा चोट करता रहेगा. उन लोगों ने इसे क्यों नहीं होने दिया.”