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इस मई में जब सैन्य हैलीकॉप्टर कोविड-19 अस्पतालों पर फूल बरसा रहे थे तब मैं अपने परिवार के साथ आंध्र प्रदेश के अनंतपुर शहर में था. यह महामारी की वह घटना थी जिसमें सरकार के साथ-साथ नागरिकों ने भी स्वास्थ्य कर्मियों को वीरों और अपने कर्तव्य के प्रति बलिदान होने वाले "योद्धाओं" के रूप में माना. जब तमाम न्यूज चैनल स्वास्थ्य कर्मियों को सम्मानित करने के सरकार के काम की सराहना कर रहे थे तब मेरे डॉक्टर मित्रों, जिनमें से कई देश के विभिन्न हिस्सों में कोविड-19 अस्पतालों में काम कर रहे थे, ने व्हाट्सएप ग्रुपों पर इन कार्यों के खिलाफ तीखी टिप्पणी की. सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों के नाम पर वाह-वाही लूटी जबकि डॉक्टर इन शानदार स्टंटों के पीछे की वास्तविकता को समझ रहे थे. कइयों को आवश्यक सुरक्षात्मक उपकरणों के बिना "युद्ध जैसी स्थिति" में भेजा जा रहा था. जल्द ही मैंने भी इस खोखलेपन को अनुभव किया.
मई के पहले सप्ताह में मैंने एक अखबार की रिपोर्ट में पढ़ा कि राज्य सरकार छह महीने के अनुबंध पर कोविड-19 अस्पतालों में डॉक्टरों की भर्ती करना चाह रही थी. शुरू में, मैंने खुद को आवेदन करने से रोका. एक कोविड वार्ड के उच्च वायरल बोझ वाली जगह में काम करने का मतलब मेरे परिवार के सदस्यों को खतरे में डालना है, खासकर जब उन्हें पहले से ही अन्य बीमारियां हैं. हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की अनुभवहीन स्थिति मेरे आवेदन न करने का एक और कारण थी. शायद इसी तरह से शहर के दूसरे डॉक्टरों ने भी सोचा हो. महामारी को नियंत्रित करने के लिए दंत शल्य चिकित्सा के स्नातक डॉक्टरों के लिए भी आवेदन खुले थे और जुलाई की दूसरी छमाही में मैंने एक स्थानीय समाचार पत्र में देखा कि सर्जरी के लिए 223 उपलब्ध पदों के लिए केवल 151 डॉक्टरों ने आवेदन किया था.
बाद में मुझे पता चला कि कोविड-19 डॉक्टरों को अनंतपुर शहर में तीन अलग-अलग होटलों में रहने की सुविधा दी गई है. इससे मेरी कुछ शंकाएं कम हुईं. मैं 28 अगस्त को इस नौकरी के लिए आवेदन करने घर से निकला. मैं सरकारी भवनों के सूखे गलियारों में घुमा, कई फॉर्म भरे और विभिन्न पत्र लिखे. मैंने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के कोविड वार्ड में एक जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने के लिए राज्य सरकार के साथ एक समझौता किया, जो सरकारी जनरल अस्पताल के अधिकार क्षेत्र में आता है. "सिर्फ आधिकारिक निवास स्थान पर रहने" सहित समझौते में विभिन्न नियमों का उल्लेख किया गया था, जिनका पालन मुझे करना था. अनंतपुर के जिला चिकित्सा और स्वास्थ्य कार्यालय ने मुझे छह महीने के लिए एक होटल में रहने की रसीद दी. मेरे अनुमान से अनंतपुर जिले के तीन कोविड अस्पतालों के लगभग पचास डॉक्टर मेरे साथ उसी होटल में ठहरे थे.
29 अगस्त को मैंने काम शुरू किया और तीन से चार दिनों के भीतर मुझे तेज बुखार हो गया. रैपिड-एंटीजन परीक्षण से पता चला कि मुझे कोरोना हुआ है. मुझे कुछ समय के लिए दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया था और बाद में घर पर अलग रहना पड़ा जब तक कि रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आई. मैं 26 सितंबर तक फिर से काम शुरू करने में सक्षम हो पाया.
कोविड-19 अस्पताल में काम करने और हर दिन एक ही जैसे रुग्ण दृश्यों को देखने के दौरान निराशा की एक अलग भावना पैदा होती है. हालत ऐसी हो जाती है कि अगर एक पल के लिए भी ध्यान हटा तो खून में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक हद तक गड़बड़ा सकता है. अस्पताल में आने वाले कई कोविड रोगी उदास हैं क्योंकि वे पहले से ही कोविड के कारण किसी प्रियजन को खो चुके हैं. उनमें से कुछ ने इलाज कराने से इनकार कर दिया. एक डॉक्टर के लिए सबसे गंभीर समय वह होता है जब मरीज उपचार में सहयोग नहीं करते हैं. उनका विरोध समझ में आता है क्योंकि वे हमारे जैसे ही दृश्य देखते हैं और हमारी तरह निराश भी होते हैं. मुझे जब भी कोविड वार्ड में कोई खाली बिस्तर दिखाई देता है तो मैं चौंकते हुए सोचता हूं कि क्या जिस रोगी को वह बिस्तर दिया गया था, उसे छुट्टी दे दी गई या उसे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया या उसकी मृत्यु हो गई. यह मेरे सपनों में भी मुझे मानसिक रूप से परेशान रखता है.
प्रशासन ने हमारा संकट और बढ़ा दिया. काम शुरू करने के कुछ दिनों बाद, मेरे सहयोगियों में यह बात फैल गई कि एक अधिकारी ने कहा है कि हमें अपने कमरे खाली करने चाहिए क्योंकि सरकार के पास होटल के बिलों का भुगतान करने के लिए पर्याप्त फंड नहीं है. जल्द ही, हमें स्थानांतरित करने की योजना के बारे में शहर में डॉक्टरों के व्हाट्सएप समूहों पर बातें शुरू हो गई थीं. सितंबर के अंत में होटल के एक कर्मचारी ने मुझे बताया कि सरकार बिलों का भुगतान नहीं कर रही है और होटल मालिक डॉक्टरों पर कमरे खाली करने के लिए दबाव बना रहे हैं. कर्मचारियों ने इस पूरे कठिन समय के दौरान हमारे प्रति दयालुता का भाव रखा, लेकिन समय के साथ उनसे इन सूचनाओं की तात्कालिकता बढ़ती गई. जबकि इनके बढ़ने से हमारी सामूहिक चिंता भी बढ़ी. यह सब आसानी से सुना जा सकता है. इसकी सूचना देने के लिए कोई आधिकारिक अधिसूचना या बयान जारी नहीं किया गया था. हमने सोचा कि हमें किसी तरह का सरकारी दस्तावेज दिया जाएगा, जिसमें हमें होटल छोड़ने के लिए कहा जाएगा. लेकिन हमें केवल अधिकारियों से गुस्से से भरे अस्पष्ट जवाब मिले. महामारी के दौरान एक कोविड डॉक्टर के रूप में खुद इसके शिकार होने की आशंकाओं के बावजूद एक छोटे शहर में आवास प्राप्त करना मुश्किल है. वित्तीय बाधाओं का सामना करने वाले लोगों के लिए इस महामारी में स्थानांतरण और भी बुरा होगा.
अक्टूबर के अगले कुछ हफ्तों में हम इस मामले को लेकर कुछ उच्च-स्तरीय प्रशासनिक अधिकारियों से मिलने गए. अधिकारियों से बात करने वाले मेरे सहयोगियों के अनुसार उन सभी ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दीं, जिनमें "मुझे नहीं पता कि यह हो रहा है, मैं इसे देखूंगा" से "सरकार के पास डॉक्टरों के आवास के लिए भुगतान करने के लिए कोई धन नहीं है" शामिल थीं. किसी अधिकारी को हमारी शिकायत को किसी अन्य अधिकारी तक पहुंचाने में भी कई दिन लगते. इस बीच, होटल के प्रबंधन ने इन्हीं नौकरशाही अधिकारियों की मौखिक मंजूरी का हवाला देते हुए हमें कमरे खाली करने के लिए दबाव डालना जारी रखा.
संभवतः इस मामले को लेकर हमारी लगातार खराब स्थिति के कारण 9 अक्टूबर को मेरे अस्पताल के एक डॉक्टर ने हमें सूचना दी, कि जिला चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी या डीएमएचओ कामेश्वर प्रसाद के कार्यालय ने उन्हें फोन करके कहा कि हमें कमरे खाली करने होंगे. लेकिन प्रशासन हमें एक अलग स्थान पर आवास प्रदान कर सकता है.
हमने सुना है कि हमें अस्पताल से लगभग दस किलोमीटर दूर एक इमारत में रहने के लिए दी जाएगी. वहां से यात्रा करना मुश्किल होगा, खासकर तब जब हम सभी को रात की शिफ्ट में काम करना होता है. आखिरकार, प्रशासन ने हमें कोई वैकल्पिक आवास उपलब्ध नहीं कराया. ऐसा लगा कि वे चाहते हैं कि हम स्वयं किराए पर जगह लेकर रह लें.
10 अक्टूबर को मेरे कुछ सहकर्मी संयुक्त कलेक्टर ए सिरी से मिलने गए, ताकि यह मुद्दा उनके संज्ञान में ला सकें. "हमने सुबह संयुक्त कलेक्टर से मिलने के लिए दो घंटे इंतजार किया," सिरी से मिले डॉक्टरों में से एक ने मुझे नाम न छापने की शर्त पर बताया. "उनके पास जाने पर, उन्होंने डॉक्टरों से बात किए बिना ही कहा, "मैं आपको आवास नहीं दे रही हूं. आप बीडीएस लोगों को आपकी सैलरी दी जाती है. आपकी समस्या क्या है?" बीडीएस डॉक्टरों के अनुसार, सिरी ने दंत चिकित्सा सर्जरी की डिग्री लिए उन डॉक्टरों के बारे में कहा जिन्होंने अपनी इच्छानुसार कोविड-19 अस्पतालों में काम करने का विकल्प चुना था. डॉक्टर ने मुझसे कहा, “हमने कभी इस नौकरी के लिए भीख नहीं मांगी. उन्होंने एक अधिसूचना जारी की थी इसलिए हम इसमें शामिल हुए."
इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि 9 नवंबर तक सरकार ने मुझे या तीन कोविड अस्पतालों के किसी भी डॉक्टर को तन्ख्वाह नहीं दी थी. 23 अक्टूबर को एक डॉक्टर ने डॉक्टरों और जिला प्रशासन के अधिकारियों के एक व्हाट्सएप ग्रुप, जिसका में भी हिस्सा हूं, में लंबित वेतन के बारे में एक टिप्पणी की थी. इसको लेकर प्रशासन के एक अधिकारी ने जवाब दिया कि बजट राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाना है, जो अब तक किसी भी जिले के लिए नहीं किया गया था. अधिकारी ने आगे कहा कि "अनुमति" मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी द्वारा दी जानी है. फिर भी इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि हमें अपना वेतन कब मिलेगा.
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में डीएमएचओ कार्यालय ने मेरे एक सहयोगी को बुलाया और हम सभी को 20 अक्टूबर तक अपने कमरे खाली करने का निर्देश दिया. इसमें से किसी के बारे में कोई आधिकारिक सूचना या दस्तावेज नहीं जारी की गई थी. मुझे कुछ ही दिनों में रहने के लिए जगह मिल गई थी लेकिन कुछ डॉक्टर जो अनंतपुर से नहीं थे, वे शहर की अनजान सड़कों के जाल में फंस गए. अस्पताल में अपना कर्तव्य निभाते हुए हम सभी को यह सहना पड़ा. मैं ऐसे कई डॉक्टरों को जानता हूं जो घर से बाहर निकाले जाने के डर से अपने नए मकान मालिकों से कोविड अस्पताल में काम करने की बात छिपा रहे हैं. अगर हमें समय पर तनख्वाह मिल जाती तो किराया दे पाना आसान होता.
एक कोविड डॉक्टर के रूप में, मैं खुद को ऐसी जगह पाता हूं जो खुलेआम फूलों की बौछार करने की निंदा करता है. जब भी मैं कोई फोन करता हूं और स्वचालित आवाज को सुनना पड़ता है, जो कहती है, "डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों का इन समयों में अत्यधिक महत्व है," यह मुझे अधिकारियों के क्रूर विश्वासघात की याद दिलाता है.