पानी में जहर

पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहरीला पानी पीने से जान गंवाते लोग

23 जुलाई 2023
बलिया के रहने वाले अशोक सिंह को त्वचा का कैंसर है. उनके पिता दीनानाथ की मृत्यु आर्सेनिकोसिस के कारण हुई थी. दीनानाथ का मामला 2004 में सामने आया और इसने बलिया में आर्सेनिक संदूषण के मुद्दे को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया. परिवार के सदस्य भी आर्सेनिक जनित बीमारियों से पीड़ित हैं.
बलिया के रहने वाले अशोक सिंह को त्वचा का कैंसर है. उनके पिता दीनानाथ की मृत्यु आर्सेनिकोसिस के कारण हुई थी. दीनानाथ का मामला 2004 में सामने आया और इसने बलिया में आर्सेनिक संदूषण के मुद्दे को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया. परिवार के सदस्य भी आर्सेनिक जनित बीमारियों से पीड़ित हैं.

कपिल मुनि पांडे ने अपनी हथेलियां आगे फैला दीं. उसके हाथों की त्वचा खुरदरी थी और उसके नाखून टूटे हुए थे. उसकी भुजाओं पर झाइयों के निशान थे. उसकी आंखें सूखी थीं और चेहरा सूजा हुआ था. लगभग तीस वर्ष का कपिल, कमज़ोर था और उसे चलने में कठिनाई होती थी. उसने मुझे बताया कि वह आर्सेनिक विषाक्तता से पीड़ित था. उसने सोचा कि मैं डॉक्टर हूं.

मार्च 2019 की एक सुबह, मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के पांच सौ से भी कम आबादी वाले गांव तिवारीटोला में कपिल से मिला. उस दिन क्षेत्र के भूजल में आर्सेनिक संदूषण पर एक स्थानीय कार्यकर्ता द्वारा बुलाई गई बैठक में भाग लेने के लिए लगभग तीस लोग एकत्र हुए थे. कुछ के पास अपनी बीमारी के सबूत के तौर पर डॉक्टर का पर्चा था. अन्य, जो डॉक्टर के पास जाने में सक्षम नहीं थे, उनके पास केवल दिखाने के लिए केवल लक्षण थे. उनके शरीर पर घाव, बारिश की बूंदें जैसी झाइयां और केराटोसिस के लक्षण - त्वचा का कठोर और पपड़ीदार होना- दिखाई दे रहे थे. जब वे अपनी-अपनी स्थितियों के बारे में बात कर रहे थे, तो वे सभी कपिल के बारे में चिंतित थे कि वह लंबे समय तक जीवित नहीं रहेगा.

यह बैठक सत्तारूढ़ बीजेपी के स्थानीय संयोजक तारकेश्वर तिवारी के घर के बाहर एक लॉन में आयोजित की गई थी. तिवारी स्वस्थ लग रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा कि वह इस क्षेत्र में आम आर्सेनिक जोखिम की समस्या का समाधान  करना चाहते हैं. बैठक के बाद एकत्रित हुए लगभग बीस लोगों ने समूह में पोज़ देकर फोटो खिंचाया. कुछ ने अपनी त्वचा की स्थिति दिखाने के लिए अपने हाथ ऊपर उठाए.

आर्सेनिक एक अत्यधिक विषैला तत्व है - एक गंधहीन, रंगहीन और स्वादहीन उपधातु, जो पृथ्वी की सतह में व्यापक रूप से पाया जाता है - जो भूजल के प्रदूषण का कारण बन सकता है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा परिभाषित खतरनाक पदार्थों और रोग पंजीयन की 2001 की प्राथमिकता सूची में नंबर एक पर है. डब्ल्यूएचओ ने कहा है, "आर्सेनिक से सार्वजनिक स्वास्थ्य को सबसे बड़ा खतरा दूषित भूजल से होता है." पीने के पानी में आर्सेनिक संदूषण से आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी भी हो सकती है, जिसके लक्षण मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार के त्वचा विकारों, जैसे घाव, केराटोसिस और मेलानोसिस के रूप में दिखाई देते हैं. डब्ल्यूएचओ आर्सेनिकोसिस को "कम से कम छह महीने तक आर्सेनिक की सुरक्षित खुराक से अधिक सेवन करने से उत्पन्न होने वाली एक दीर्घकालिक स्वास्थ्य स्थिति के रूप में परिभाषित करता है, जो आंतरिक अंगों की भागीदारी के साथ या उसके बिना हो सकती है. डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि, चरम मामलों में, तीव्र आर्सेनिक विषाक्तता से मृत्यु हो सकती है.

राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर विभिन्न दलों की सरकारें आर्सेनिक संकट को संतोषजनक ढंग से हल करने में विफल रहीं. मामला केवल असंगतता, उदासीनता और लापरवाही का है. पीने के पानी या भोजन में अकार्बनिक आर्सेनिक एक "पुष्टिकृत कैंसरजन" है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, "लंबे समय तक आर्सेनिक के उच्च स्तर पर सेवन करने से पहले लक्षण आमतौर पर त्वचा में देखे जाते हैं और इसमें त्वचा पर झाइयां, घाव और हथेलियों और पैरों के तलवों पर कठोर धब्बे शामिल होते हैं" - जिसे हाइपरकेराटोसिस के रूप में जाना जाता है. "ये लगभग पांच वर्षों के बाद दिखाई देते हैं और त्वचा कैंसर का कारण हो सकते हैं." इसके अलावा, डब्ल्यूएचओ का कहना है कि लंबे समय तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने से "मूत्राशय और फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है."

पटना में महावीर कैंसर संस्थान के प्रोफेसर और बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार घोष ने मुझे बताया, “आर्सेनिक एक मूक हत्यारा है.” घोष दशकों से आर्सेनिक प्रदूषण पर शोध कर रहे हैं और उन्हें अक्सर बिहार का "आर्सेनिक मैन" कहा जाता है. उन्होंने कहा कि आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों में केराटोसिस, लीवर सिरोसिस और त्वचा कैंसर अक्सर व्यापक रूप से देखा जाता है और आर्सेनिक के अत्यधिक संपर्क से बांझपन और विकलांगता भी हो सकती है. उन्होंने कहा, "लोग गरीबी, प्रशासन की अज्ञानता और इलाज की अनुपलब्धता के कारण मर जाते हैं."

मार्च 2020 में लीवर की समस्या के कारण कपिल की मृत्यु हो गई. कपिल के भाई शशि भूषण पांडे ने मुझे बताया, "यह मेरे परिवार में इस तरह की तीसरी मौत थी." उनके पिता की मृत्यु साठ साल की उम्र में हो गई थी, उनकी मां की मृत्यु पचास साल की उम्र में हो गई थी और उनके छोटे भाई की मृत्यु तीस की उम्र में हो गई. उन्होंने कहा, "सभी के शरीर पर घाव और धब्बे थे, सभी को पाचन, सांस लेने और लीवर संबंधी समस्याएं थीं." परिवार के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच कठिन हो गई थी. शशि ने बताया, "जब दिन में दो वक्त का खाना मिलना मुश्किल है तो हम इलाज कैसे कराएंगे? लेकिन मैं कहूंगा कि तीनों मौतें आर्सेनिक के कारण हुईं, क्योंकि वे हमारे क्षेत्र में होने वाली अन्य मौतों की तरह ही हैं."

2019 में उस दिन मेरी मुलाकात एक अधेड़ उम्र की महिला उषा देवी से भी हुई थी, जो चलने, सोने, अपने हाथों से खाने या भोजन को पचाने में असमर्थ थी. वह हाइपरकेराटोसिस से पीड़ित थी. उनकी पीठ पर भी उभार था, जो आर्सेनिकोसिस का एक लक्षण था. उनके पति सुधाकर यादव उन्हें पीठ पर लादकर बैठक तक लाए. उन्हें उम्मीद थी कि वह ठीक हो सकती हैं. जब मैं 2021 में फिर से तिवारीटोला गया, तो मुझे पता चला कि उनकी मृत्यु हो गई है.

इस बीच, तारकेश्वर को लीवर सिरोसिस हो गया था. जब मैं उनसे आखिरी बार मिला था तब से उनका वजन काफी कम हो गया था. अपने बिस्तर पर बैठे हुए, उन्होंने मुझे बताया कि उनके माता-पिता की मृत्यु आर्सेनिक विषाक्तता के लक्षणों के कारण हुई थी. उन्होंने दुःख और विश्वासघात की भावना व्यक्त की कि राज्य में उनकी पार्टी के सत्ता में होने के बावजूद, कोई राहत नहीं मिली. फिर भी, वह अपनी बीमारी की गंभीरता से अनभिज्ञ लग रहे थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने जीवन के अंतिम चरण में हैं. फरवरी 2022 में उनका निधन हो गया.

मैंने लगभग चार वर्षों तक बलिया में यात्रा की और ऐसे लोगों से मिला जो स्पष्ट रूप से आर्सेनिक विषाक्तता के प्रभाव से पीड़ित थे. जो सामने आया वह राष्ट्रीय निहितार्थों वाला एक चिंताजनक और एक सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट था. विषय लोककथा जैसा था; हर किसी के पास बताने के लिए अपनी एक कहानी थी. उन्होंने घाव, त्वचा में झाइयां, त्वचा कैंसर, सांस लेने में कठिनाई, हृदय की समस्याएं, यकृत की समस्याएं, गुर्दे की समस्याएं, टूटे दांत और नाखूनों जैसी बीमारियों के बारे में बात की - ये सभी उचित स्तर से अधिक आर्सेनिक के लंबे समय तक सेवन के लक्षण हैं. गांव की सभाओं, स्थानीय चाय की दुकानों और पेड़ों की छाया के नीचे, लोग असहाय होकर अपने या अपने परिचित लोगों के मामले सुनाते थे. कई लोगों ने मौतों के बारे में भी बात की, जो कपिल की तरह लंबी बीमारियों के बाद हुई, जो लंबे समय तक आर्सेनिक के कारण हुए प्रभावों से मेल खाती थीं.

अखिलेश पांडे दिल्ली के पत्रकार हैं.

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