19 अप्रैल को बेंगलुरु शहरी जिले के अनेकल में स्थित अथरेया अस्पताल के प्रमुख नारायणस्वामी ने सरकार, स्वास्थ्य अधिकारियों, ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं और मीडिया को चेताया कि उनके अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी हो रही है और उनके रोगी, जिनमें से कई कोविड-19 के गंभीर मरीज थे, बिना इसके जिंदा नहीं रह पाएंगे. “मेरे पास आठ मरीज हैं जिनकी हालत बहुत गंभीर है और उनके परिवार के सदस्य मेरे पैरों में गिरकर किसी भी कीमत पर उन्हें बचा लेने के लिए कह रहे हैं. लेकिन मैं असहाय हूं और कुछ नहीं कर सकता,” नारायणस्वामी, जो अनेकल में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, ने यह बात बैंगलोर मिरर के संवाददाताओं से कही थी.
जब नारायणस्वामी फोन पर ऑक्सीजन के लिए अपील कर रहे थे तो एक 69 वर्षीय कोविड-19 रोगी ने उनकी बात सुन ली और जब वह उस आदमी का ऑक्सीजन सिलेंडर बदलने के लिए आए तो रोगी खाली सिलेंडर से चिपक गया. वह सिलेंडर छोड़ने को राजी नहीं था. नारायणस्वामी ने कहा, “उसे लगा कि मैं किसी दूसरे मरीज को देने के लिए उसका ऑक्सीजन छीन रहा हूं. मुझे उसे समझाना पड़ा लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं था. हालत यह थी कि उसका ऑक्सीजन स्तर गिरकर 70 से 65 हो रहा था. बस फिर मैं टूट गया.”
नारायणस्वामी के फोन कॉल के लगभग 24 घंटे बाद 20 अप्रैल की दोपहर में जिला स्वास्थ्य और सरकारी अधिकारियों ने अथरेया अस्पताल का दौरा किया. उन्होंने नारायणस्वामी को आश्वासन दिया कि वह अनेकल के अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था कर देंगे. उन्होंने याद किया कि एक अधिकारी ने उनसे कहा, “जो कुछ भी हो रहा है उसके बावजूद हमें मरीजों के परिवारों को चिंता में नहीं डालना चाहिए. हमें घबराहट से बचना चाहिए ... भले ही हमारी जेब में कुछ न हो, हमें कहना चाहिए कि हमारी जेब भरी हुई है.”
स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ हुई बैठक के तुरंत बाद नारायणस्वामी ने अपने एक कर्मचारी को सिलेंडर रिफिल कराने के लिए सरकार द्वारा अनुशंसित आपूर्तिकर्ताओं के पास भेजा. आपूर्तिकर्ता के पास जाने वाले ट्रक में अथरेया अस्पताल सहित क्षेत्र के विभिन्न अस्पतालों के 72 खाली सिलेंडर थे. नारायणस्वामी ने पाया कि सिलिंडर रिफिल करने में आपूर्तिकर्ता आनाकानी कर रहे हैं और सरकारी अधिकारी इसका कोई जवाब नहीं दे रहे. नारायणस्वामी ने कहा, “आधी रात तक उनमें से कोई भी कॉल नहीं उठा रहा था. मैंने फिर से कॉल करना शुरू कर दिया. हर जगह संदेश भेजना शुरू कर दिया. मैंने वही हंगामा शुरू कर दिया. फिर जब हालात बेकाबू हो गए तो उनका जवाब मिला.” आखिरकार आधी रात के कुछ घंटे बाद अथरेया अस्पताल में ऑक्सीजन पहुंची लेकिन तब तक उस 69 वर्षीय रोगी के लिए बहुत देर हो चुकी थी. अल सुबह ही उसकी मृत्यु हो गई. नारायणस्वामी ने कहा, “मैं आपको ईमानदारी से बता रहा हूं कि हमारे पास निर्बाध रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं है. अगर बिना रुकावट आपूर्ति होती रहती तो शायद उसे बचाया जा सकता था.”
मैंने बेंगलुरु के छोटे और मध्यम आकार के निजी और सार्वजिनक अस्पतालों के 13 डॉक्टरों से बात की. इन डॉक्टरों में से 9 को अप्रैल से कम से कम एक बार ऑक्सीजन संकट का सामना करना पड़ा है. दो डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें सरकारी अधिकारियों से समय पर मदद मिली, जबकि अन्य ने सीधे आपूर्तिकर्ताओं से या काले बाजार से ऑक्सीजन खरीदी या मेडिकल बिरादरी से मदद ली. इनमें से अधिकांश अस्पतालों ने या तो नए रोगियों को भर्ती करना बंद कर दिया है या ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित हो जाने तक रोगियों को भर्ती नहीं कर रहे.
कर्नाटक की कोविड-19 तकनीकी सलाहकार समिति के एक सदस्य ने कहा, “बहुत बड़े अस्पतालों में ... लिक्विड ऑक्सीजन सिस्टम और ऑक्सीजनेटर हैं इसलिए ऑक्सीजन पैदा करने वाली प्रणाली लागू है. लेकिन हम देख रहे हैं कि छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम में निश्चित रूप से इसकी कमी है.”
मैंने 24 अप्रैल को बेंगलुरु के शिवाजीनगर इलाके के एक निजी अस्पताल के प्रमुख से बात की, जिन्होंने शहर में स्थिति की तुलना दिल्ली में चल रहे संकट से की. (गंगाराम अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 25 मरीजों की मौत एक दिन पहले ही हुई थी.) "दिल्ली जैसी हालत बस होने ही वाली है. बस ऐसा नहीं हुआ है क्योंकि हमने बहुत सारे लोगों को भर्ती करने से इनकार कर दिया है और वह लोग सड़कों पर ही जान दे चुके हैं." पूर्वी बेंगलुरु के एक अस्पताल के प्रमुख ने मुझसे कहा, “व्यवस्था ढह रही है. जंगल में आग लगी है और हम पिचकारी से आग बुझाने की कोशिश कर रहे हैं.”
भारत में मार्च और अप्रैल में कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर के आने के बाद से ही कर्नाटक सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में रहा है. 30 अप्रैल को राज्य में 48296 नए मामले दर्ज हुए. यह महामारी की शुरुआत से अब तक का सबसे बड़ा एक दिवसीय आंकड़ा है. 1 मई को राज्य में 40990 नए मामले दर्ज हुए जिसमें सक्रिय मामलों की संख्या 405068 थी. राज्य में पॉजिटिव होने की दर 23.03 प्रतिशत है. 30 अप्रैल तक अकेले बेंगलुरु शहरी जिले में 270993 सक्रिय मामले थे, जो राज्य के कुल मामलों का लगभग 66 प्रतिशत है. मार्च 2020 में महामारी की शुरुआत से 1 मई तक शहर में आधिकारिक तौर पर 6537 कोविड-19 मौतें दर्ज की गई हैं.
कर्नाटक के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष और दक्षिण पश्चिम बेंगलुरु में तेजस अस्पताल के प्रमुख एमएल गिरिधर ने मुझसे कहा, “मुझे लगता है कि मीडिया में दिखाई जा रही मौतों की संख्या कम है.” उनके अनुसार, इसमें उन मामलों को शामिल नहीं किया गया था, जिनमें मरीज गंभीर परिस्थितियों में आरटीपीसीआर की रिपोर्ट के बिना कैजुअल्टी वार्डों में आए और उनकी मृत्यु हो गई. गिरिधर ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी मरीज का परिवार अक्सर इस बात की पुष्टि करने के लिए इंतजार करने को तैयार नहीं होता कि जांच करके पता किया जाए कि मरीज कोविड-19 पॉजिटिव था या नहीं. इसका मतलब हुआ कि मौत किसी अन्य कारण से दर्ज की जाती है.
बेंगलुरु का स्वास्थ्य ढांचा चरमरा रहा है. 22 अप्रैल को कर्नाटक सरकार ने 30 से अधिक बेड वाले सभी अस्पतालों को निर्देश दिया कि वह पहले से ही अनिवार्य 50 प्रतिशत के बजाय कोरोनोवायरस से संक्रमित रोगियों के लिए अपने बेड और आईसीयू की 80 प्रतिशत सुविधाएं समर्पित करें. यह घोषणा की गई कि 200-250 बेड की क्षमता वाले आठ मॉड्यूलर आईसीयू बेंगलुरु के आठ क्षेत्रों में स्थापित किए जाएंगे. बेड की कमी को कम करने के लिए राज्य अस्पताल मरीजों को केवल तभी स्वीकार करने की बात पर विचार कर रहा है जब उनका ऑक्सीजन स्तर 90 से कम हो. 26 अप्रैल को सरकार ने राज्य भर में 14 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी.
27 अप्रैल को कर्नाटक उच्च न्यायालय की एक खंड पीठ ने पाया कि स्थिति "काफी चिंताजनक" थी. अदालत ऐसे मामलों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही थी. अदालत को बताया गया कि बेंगलुरु में केवल 74 उच्च निर्भरता इकाई (एचडीई) बेड, 20 गहन देखभाल इकाई (आईसीयू) बेड और 14 वेंटिलेटर वाले आईसीयू बेड उपलब्ध हैं. केंद्र और राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले काउंसल से अदालत ने पूछा, “राज्य में ऑक्सीजन की आवश्यकता और उपलब्धता के बीच बड़ा अंतर है. आप कैसे अंतर को पाटने जा रहे हैं?” दो दिन बाद पीठ ने एक आदेश पारित किया और कहा कि बेड की उपलब्धता में मामूली सुधार हुआ है और राज्य को तैयारी की कमी के लिए अधिक कठोर उपाय करने की आवश्यकता है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक और शोधकर्ता सिल्विया कर्पगम का कहना है, "सरकार बहुत देरी से प्रतिक्रिया कर रही है." दूसरी लहर के लिए कर्नाटक सरकार को तैयार रहना था. कोविड-19 पर राज्य की तकनीकी सलाहकार समिति, जिसमें महामारी विज्ञानी, डॉक्टर और सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ शामिल हैं, ने 30 नवंबर 2020 को सौंपी एक रिपोर्ट में सरकार को दूसरी लहर की चेतावनी दी थी.
“अधिकारियों ने समस्या के पैमाने का अनुमान लगाया था,” तकनीकी सलाहकार समिति (टीएसी) के उस सदस्य ने मुझे बताया. 23 अप्रैल को टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक अनाम वरिष्ठ मंत्री के हवाले से लिखा था, “हमने मूल रूप से राजनीति और उपचुनावों के कारण तीन महीने का महत्वपूर्ण समय बर्बाद कर दिया है." कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के. सुधाकर ने 25 अप्रैल को न्यू इंडियन एक्सप्रेस में स्वीकार किया कि, “टीएसी ने हमें दूसरी लहर के बारे में सलाह दी थी और सख्त उपाय भी सुझाए थे. मैं इस बात से सहमत हूं कि जो उपाय हम अब कर रहे हैं अगर हमने लगभग तीन हफ्ते पहले कर लिए होते, तो हम बेहतर स्थिति में होते.”
23 अप्रैल की शाम विक्टोरिया अस्पताल के परिसर में खड़े होकर, यह देखना कठिन था कि सुधाकर ने जिस “बेहतर स्थिति” की तरफ इशारा किया था, वह कैसी रही होगी. विक्टोरिया अस्पताल बेंगलुरु का सबसे बड़ा सार्वजनिक अस्पताल है जो शहर के बीचों बीच स्थित है. अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक इसे एक समर्पित कोविड-19 अस्पताल में बदल दिया गया था. अस्पताल उस समय कोविड-19 रोगियों के लिए अपने सभी भवनों को वार्ड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया में था. आईसीयू की सुविधाओं को बढ़ाया गया था.
उस शाम चार एम्बुलेंसें अस्पताल के ट्रॉमा केयर सेंटर के छोटे परिसर में जमा थीं. एम्बुलेंसों में मरीज और उनके साथ आए लोग भीतर बुलाए जाने का इंतजार कर रहे थे. ऐसी ही एक एम्बुलेंस में एक छरहरी महिला ने अपना ऑक्सीजन मास्क गिरा दिया और अचेत हो गईं. अंदर पीपीई किट में डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ पागलपन की हद से काम कर रहे थे. अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ के एक सदस्य ने कहा, "मुख्य बात यह है कि रोगियों की संख्या बहुत ज्यादा है. हमारे पास बिस्तरों की भारी कमी है. हमें कुछ लोगों को वापस भेजना पड़ा है.”
एक जूनियर रेसिडेंस डॉक्टर ने पहचान का उल्लेख न करने की शर्त पर एक 45 साल के मरीज के बारे में बताया जिसकी उस दिन मौत हो गई थी. उसने बताया, “उसे पहले से कोई और बीमारी नहीं थी लेकिन उसका ऑक्सीजन लगातार गिर रहा था.” हमने आपातकालीन वार्ड में उसे हर संभव मदद दी : ऑक्सीजन मास्क, उच्च प्रवाह ऑक्सीजन आदि.” इंटुबेशन ही मरीज की एकमात्र उम्मीद थी लेकिन डॉक्टरों के पास वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं था. “मैं असहाय था और मैं उसे बचा नहीं सका. उसे बचाने के लिए जो कुछ मेरे हाथ में था मैंने किया. यह दर्दनाक है.”
दूसरी लहर में संक्रमण की उच्च दर भी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जोखिम में और व्यवस्था को बढ़ते तनाव में डाल रही है. विक्टोरिया अस्पताल के जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया, “निकट भविष्य में हमें वर्कफोर्स की कमी पड़ सकती है. अधिकांश डॉक्टर पॉजिटिव हो रहे हैं, अधिकांश नर्सिंग कर्मचारी पॉजिटिव हो रहे हैं.”
ऑक्सीजन संकटों के चलते डॉक्टर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर मंडराते संकट को देख रहे हैं. पूर्वी बेंगलुरु के अस्पताल के प्रमुख ने कहा, “हम कल ऑक्सीजन का उत्पादन तो कर सकते हैं लेकिन नर्स पैदा नहीं कर सकते. हम डॉक्टर पैदा नहीं कर सकते ... आप रातों रात उन्हें कहां से तैयार करेंगे.”
23 अप्रैल की शाम को जब मैं विक्टोरिया अस्पताल परिसर से निकल रही थी, एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बाहर बैठा था और चुपचाप अपने फोन में झांक रहा था. हफ्ते भर पहले ही उनके 31 वर्षीय भतीजे की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और कोरमंगला के सेंट जॉन्स अस्पताल में भर्ती कराया था. एक दिन पहले वहां के डॉक्टरों ने कहा कि उसके ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम हो गया है. वह वेंटिलेटर के बिना नहीं बचेगा लेकिन उनके पास वेंटिलेटर नहीं था. तब से वह व्यक्ति हर किसी को फोन कर रहा था और शहर के कई अस्पतालों का चक्कर लगा चुका था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उसने बताया, "मैं नहीं जानता कि क्या करना है. मैं जो कुछ कर सकता हूं, कर रहा हूं.”
अप्रैल के पहले सप्ताह से बेंगलुरु में डॉक्टर ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी की चेतावनी दे रहे थे. 17 अप्रैल को मराठाहल्ली में स्वास्तिक अस्पतालों के प्रमुख विजय राघव रेड्डी ने फेसबुक पर ऑक्सीजन के लिए एक वीडियो अपील अपलोड की जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके मरीज गंभीर खतरे में हैं और उन्हें स्थानांतरित नहीं किया जा सकता क्योंकि कोई अन्य अस्पताल नहीं है जो उन्हें ऑक्सीजन देने को तैयार है. उस दिन, कर्नाटक के निजी अस्पताल और नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (पीएचएएनए) ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सुधाकर को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा. एसोसिएशन ने कहा, "अगर ऑक्सीजन की कमी की मौजूदा स्थिति जारी रहती है, तो ऑक्सीजन के सहारे जिंदा कई लोगों की जान चले जाने का गंभीर चिकित्सा संकट पैदा हो सकता है. समय खत्म होता जा रहा है और हम आपसे इसे प्राथमिकता देने और स्थिति को संबोधित करने का आग्रह करते हैं."
19 अप्रैल को कोविड-19 से संबंधित मुद्दों पर काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों के एक गठबंधन मर्सी मिशन की ओर से कर्पगम और तौसीफ मसूद ने राज्य सरकार को एक पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने लिखा, "जो लोग गंभीर रूप से बीमार हैं उन्हें भर्ती के लिए दर बदर की ठोकर खाने के लिए मजबूर किया जाता है." उन्होंने आगे कहा है, "इसके अलावा, भर्ती हुए लोगों को 3 से 5 लाख रुपए से अधिक के बिल थमाए जा रहे हैं. इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि खर्च क्या है और तर्कसंगत उपचार का पालन किया जा रहा है या नहीं.” पत्र में "ऑक्सीजन आपूर्ति की गंभीर कमी'' के बारे में जोर देकर कहा गया है कि जिससे ऐसे रोगी भी, जिनकी नैदानिक टेली सहायता, दवाओं और ऑक्सीजन की आपूर्ति करके घर पर ही देखभाल की जा सकती है, बीमारी से मर रहे हैं." कर्पगम और मसूद ने सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि "सारी तरल ऑक्सीजन को औद्योगिक उपयोग के बजाय अस्पतालों में भेजा जाए," और "निजी अस्पताल कोविड पॉजिटिव रोगियों को वापस न लौटाएं. वह कम से कम रोगियों को जीवन रक्षक उपचार से वंचित न करें.”
राज्य सरकार ने 22 अप्रैल को अस्पतालों में ऑक्सीजन और एंटी-वायरल दवा रेमेडिसविर की आपूर्ति के समन्वय के लिए 26 अधिकारियों के वॉप रूम का संचालन शुरू किया. इसके बाद राज्य सरकार ने केंद्र से अपने दैनिक ऑक्सीजन आवंटन को 300 मीट्रिक टन से बढ़ाकर लगभग 1500 मीट्रिक टन करने का अनुरोध किया. केंद्र ने 24 अप्रैल को 800 मीट्रिक टन की मंजूरी दी. हालांकि यह आपूर्ति कब और कैसे पूरी की जाएगी इसका विवरण स्पष्ट नहीं है.
कई डॉक्टरों ने कहा कि वॉर रूम के संचालन से थोड़ा बदलाव आया है. 26 अप्रैल को मैंने शिवाजीनगर में अस्पताल के प्रमुख से पूछा कि क्या सरकारी सहायता में सुधार हुआ है, तो उनका कहना था, “हर ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता के गेट पर चौबीसों घंटे एक अधिकारी बैठा है. बेचारे! उनका इरादा नेक है लेकिन ऑक्सीजन है कहां? दो डॉक्टरों ने मुझे बताया कि जब वह मदद के लिए वॉर रूम में पहुंचे, तो नोडल अधिकारियों ने उनसे कहा, “आप इतने सारे रोगियों को क्यों स्वीकार कर रहे हैं? बस उतनों को ही भर्ती कीजिए जितना आपका स्टॉक आपको इजाजत दे.”
19 अप्रैल को जब पीएचएएनए के कोषाध्यक्ष गिरिधर ने महसूस किया कि कुछ ही घंटों में उनके अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म होने वाली है तो उन्होंने सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया. अधिकारियों ने उन्हें बेंगलुरु के बाहरी इलाके में एक औद्योगिक क्षेत्र पीन्या में एक आपूर्तिकर्ता के पास भेज दिया. गिरधर ने मुझे बताया, "खुद मैं और मेरा ड्राइवर एक ट्रक ले कर गए. वहां कोई नहीं था. मैं पागलों की तरह कोशिश कर रहा था. मैंने तीन घंटे तक इंतजार किया लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे रहा था, कोई ऑक्सीजन नहीं थी." इस बीच गिरिधर के अस्पताल से डॉक्टर उन्हें फोन कर अपडेट देते रहे. "वह कह रहे थे कि जरूरी है कि 45 मिनट में सिलेंडर पहुंचे. उस समय मेरे हाथों में कुछ भी नहीं था." हताश होकर वह अपने पड़ोसी अस्पतालों के सहकर्मियों के पास पहुंचे और तीन अस्पतालों से दो-दो सिलेंडर उन्होंने लिए. "अगर मैं अपने सहयोगियों से वह छह सिलेंडर लेने में सक्षम नहीं होता तो कम से कम आठ लोगों की मौत हो जाती," उन्होंने कहा. “मैं पीएचएनए का कोषाध्यक्ष हूं, मेरे बहुत सारे संपर्क हैं, मैं इस क्षेत्र में 30 सालों से काम कर रहा हूं. इस सब के बावजूद मैं अभी भी इन समस्याओं का सामना कर रहा हूं तो आप सोच सकते हैं कि छोटे डॉक्टरों की हालत कैसी है."
जब मैं 23 अप्रैल को अथरेया अस्पताल के नारायणस्वामी से मिली तो उनके रखरखाव विभाग का एक कर्मचारी कुछ इसी तरह की कवायद से पीछा छुड़ाकर लौटा था. यह दोपहर 3 बजे का समय था. नारायणस्वामी ने कहा कि उनके अस्पताल के 28 रोगियों के लिए रात लगभग 8 बजे तक ऑक्सीजन था. उस सुबह स्वास्थ्य अधिकारियों ने उन्हें एक रिफिल स्टेशन जाने को कहा लेकिन वहां सभी सिलेंडर खाली थे. "कोई गतिविधि नहीं हो रही थी क्योंकि नाममात्र ऑक्सीजन भी नहीं था." जब हम बात कर रहे थे तब भी नारायणस्वामी का मूल आपूर्तिकर्ता ऑक्सीजन की तलाश में शहर भर के अस्पताल में 20 खाली सिलिंडर लिए भटक रहा था.
मैंने कर्नाटक के ऑक्सीजन वॉर रूम के एक नोडल अधिकारी को एक संदेश भेजा और कहा कि संकट में अस्पतालों की मदद के लिए सरकार की योजनाओं और मीडिया और सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए डॉक्टरों की अपील के बारे में वह क्या कर रहे हैं. उन्होंने मेरे प्रश्नों का जवाब नहीं दिया.
कई डॉक्टरों ने बताया कि क्योंकि कोविड-19 संक्रमित मरीजों की हालत पहली लहर की तुलना में तेजी से बिगड़ रही है और उनमें हैप्पी हाइपोक्सिया के लक्षण नजर आ रहे हैं (इस हालत में मरीज को कम ऑक्सीजन संतृप्ति के लक्षण तब तक महसूस नहीं होते हैं जब तक कि उनमें इसकी गंभीर कमी न हो जाए). अपोलो अस्पताल के आईसीयू विशेषज्ञ सुधींद्र केनवाहल्ली ने कहा कि "बड़े अस्पतालों में बेहतर आपूर्ति होती है इसलिए हमारे पास अभी तक ऑक्सीजन की कमी नहीं हुई है. लेकिन आने वाले वक्त में हर कोई इसकी मार झेलेगा." उन्होंने कहा कि आम तौर पर ऑक्सीजन का इस्तेमाल आईसीयू, एचडीयू के मरीजों के लिए और केवल कुछ वार्डों में होता है. “अब स्थिति यह है कि अस्पताल के हर बिस्तर में ऑक्सीजन की आवश्यकता है. जहां अस्पताल में ऑक्सीजन की जरूरत वाले 10-15 प्रतिशत रोगी थे, अब वहां 70-80 प्रतिशत हैं.”
उन्होंने उन उपायों के बारे में बताया जो उन्होंने अपनाए हैं. जैसे ऑक्सीजन निगरानी टीमों का गठन. यह टीमें हर दो से चार घंटे में वार्डों के चक्कर लगाती हैं और ऑक्सीजन पाइपलाइनों में कोई रिसाव न हो इसका निरीक्षण करती हैं. उन्होंने ऑक्सीजन पोर्ट से रिसाव की भी जांच की और इसकी भी जांच की कि कहीं ऐसे बिस्तरों में ऑक्सीजन चलती तो नहीं छोड़ दी गई है जहां उसकी जरूरत न हो. डॉक्टर ने कहा, "अगर मरीज को आराम है तो नैदानिक रूप से हमने कम ऑक्सीजन संतृप्ति सीमा को भी स्वीकार करने का फैसला किया है. पहले ऑक्सीजन संतृप्ति स्तर 94-95 होने पर जोर देते थे, अब हम यह स्तर 88-92 होने को ठीक मान रहे हैं बशर्ते रोगी आरामदायक स्थिति में हो और तेज सांस नहीं ले रहा हो."
कई निजी अस्पतालों ने कहा कि वह अपने आवंटित ऑक्सीजन कोटे के बीच असमानता को पाटने के लिए मुंह मांगी कीमत पर गैर कानूनी रूप से खरीद कर रहे हैं. शिवाजीनगर के अस्पताल के प्रमुख ने कहा, "हम 300, 400, 500 प्रतिशत का भुगतान कर रहे हैं और इसे विभिन्न स्थानों से प्राप्त कर रहे हैं. यह आंशिक रूप से अवैध है क्योंकि जो सिलिंडर हमने ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता कंपनी से किराए पर लिया है उसे किसी अन्य आपूर्तिकर्ता से भरवाना कानूनी नहीं है. आपको उन्हें उसी कंपनी से प्राप्त करना होगा जिससे आपने इसे लिया है. हम इसे किसी और से भरवा रहे हैं.” डॉक्टर ने कहा कि उन्होंने महामारी से पहले 6000 रुपए में सिलेंडर रिफिल किया था और फिर महामारी की पहली लहर के दौरान यह बढ़कर 13000 रुपए हो गया. इस साल वह प्रत्येक रिफिल के लिए लगभग 40000 रुपए का भुगतान कर रहे हैं. हालांकि, भुगतान करने पर भी पर्याप्त सिलेंडर नहीं मिलते. "ऐसा नहीं है अगर मैं भुगतान करता हूं तो वह मुझे 10 सिलेंडर ही दे देंगे."
एक एनजीओ में काम करने वाले एक स्वयंसेवक ने, जो रोगियों और अस्पतालों को ऑक्सीजन की खरीद में मदद कर रहा है, नाम न प्रकाशित करने का अनुरोध करते हुए मुझे बताया कि ऑक्सीजन सिलेंडर के नियामकों की भी कमी है. उन्होंने कहा, "दो सप्ताह पहले तक इसकी कीमत 850 से 900 रुपए थी. मैंने अभी हर सिलेंडर 1800 रुपए में खरीदा और अब मैं एक सप्लायर के पास गया तो वह 1950 रुपए मांग रहा है." जब मैंने 22 अप्रैल को पीएचएएनए के अध्यक्ष एचएम प्रसन्ना से बात की, तो उन्होंने कहा, “निश्चित रूप से इसमें बढ़ोतरी हुई है. हालत यह है कि अगर आप खरीदना चाहते हैं तो खरीद लो, वरना यह भी नहीं मिलेगा. सरकार ने जो भी मूल्य निर्धारण किया है, हम उसका तीन से चार गुना भुगतान कर रहे हैं.”
बैंगलोर मिरर की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ये बढ़ी हुई लागतें निजी अस्पतालों के रोगियों द्वारा वहन की जा रही हैं. इनमें से कुछ के पास ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति के लिए 37800 रुपए का भुगतान करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. यह पहले की कीमत से पांच गुना से भी ज्यादा है.
25 अप्रैल को केंद्र सरकार ने औद्योगिक या गैर-चिकित्सा उपयोगों के लिए तरल ऑक्सीजन के उपयोग पर यह निर्देश देते हुए पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया कि इसमें कोई छूट नहीं होगी. न्यूज मिनट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि कर्नाटक के सभी सात निजी तरल ऑक्सीजन विनिर्माण संयंत्र उत्तर-पूर्वी कर्नाटक के जिले बेंगलुरु और बल्लारी के बीच स्थित हैं इसलिए अगर उत्पादित सारी ऑक्सीजन चिकित्सा उद्देश्यों में उपयोग के लिए लगा भी दी जाती है, तो ऑक्सीजन का परिवहन और भंडारण एक विशाल लॉजिस्टिक चुनौती है ... क्योंकि उत्पादित ऑक्सीजन कर्नाटक में समान रूप से वितरित नहीं की गई है." राज्य में ऑक्सीजन की कमी के बावजूद, पीएम-केयर फंड के तहत कर्नाटक के अस्पतालों के लिए स्वीकृत छह प्रेसर स्विंग एड्सोर्बसन ऑक्सीजन संयंत्रों में से कोई भी अभी तक चालू नहीं हुआ है.
कर्पगम ने कहा, "लोग सिलेंडर की जमाखोरी भी कर रहे हैं क्योंकि वह घबरा रहे हैं." उनके अनुसार, उचित ट्राइजिंग की कमी यानी रोग की गंभीरता के अनुसार किसी मरीज की उपचार योजना जिस प्रक्रिया द्वारा तय की जाती है, के चलते भी वह अनावश्यक रूप से अस्पताल में भर्ती हैं. कर्पगम ने ऐसे मामलों का सामना किया था जिनमें निजी अस्पताल मरीजों को उनके सीटी स्कैन में परिवर्तन की ओर संकेत करते हुए भर्ती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे, भले ही उनके लक्षण ऐसे हों जिनकी व्यवस्था की जा सकती है. “साक्ष्य आधारित उपचार इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. जिन लोगों को मामूली देखभाल की आवश्यकता होती है, वह भी अस्पतालों की तलाश में भाग रहे हैं," उन्होंने कहा," मैंने ऐसे लोगों की काउंसलिंग करने की कोशिश की जो इस स्थिति में हैं. वह बस दहशत में हैं. लेकिन अगर आप पॉजिटिव होते ही उनसे बात करने की कोशिश करते हैं, तो वह बात समझने की हालत में होते हैं. हम टेली विजिट और घर पर ही परामर्श देकर घर पर ही बहुत से लोगों का प्रबंधन कर रहे हैं.”
जो लोग दूरस्थ रूप से डॉक्टरों से परामर्श करने में सक्षम नहीं हैं और पर्याप्त देखभाल के बिना घर पर अलग-थलग हैं, उनकी स्थिति फिर गंभीर होने की आशंका हैं. पीएचएएनए के अध्यक्ष प्रसन्ना ने कहा कि उनकी स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए होम आइसोलेशन में रह रहे रोगियों को प्रभावी चिकित्सा परामर्श की जरूरत है. “हमें उन रोगियों की पहचान करने की जरूरत है जिनकी हालत बिगड़ती जा रही है. ऐसे अधिकांश रोगी जिनकी हालत बिगड़ रही है और आईसीयू में आ रहे हैं, उनकी संख्या 50 प्रतिशत तक घटाई जा सकता है,” उन्होंने मुझे बताया.
ऑक्सीजन की कमी और अपर्याप्त तैयारी, ट्राएजिंग और टेली-परामर्श की अनुपस्थिति तथा रोगियों का तेजी से बिगड़ता स्वास्थ्य जैसे कारणों ने रोगियों को भर्ती करने की अस्पतालों की क्षमता को सीधे प्रभावित किया है. स्वास्तिक अस्पताल के रेड्डी ने कहा, "अगर मेरे पास दवा नहीं है तो मैं एक दिन इंतजार कर सकता हूं लेकिन अगर मेरे पास ऑक्सीजन नहीं है, तो मैं मरीजों के साथ आए लोगों को क्या जवाब दूं? यह मरने का कारण नहीं हो सकता, है न? मैं उनका इलाज कर सकता हूं और शायद उनकी हालत नहीं सुधरती, इससे मुझे कोई समस्या नहीं है ... लेकिन मैं उन्हें यह नहीं बता सकता कि ऑक्सीजन नहीं होने के चलते मौत हो गई." प्रसन्ना ने मुझसे कहा, "यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि मरीजों को पर्याप्त दवा और ऑक्सीजन की आपूर्ति मिले और अगर हम ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो और मरीजों को भर्ती करने का क्या तुक है."
राजाजीनगर के एक निजी अस्पताल ने इस प्रसंग में एक समझौता किया. अस्पताल में आईसीयू बेड भर गए थे. लेकिन 23 अप्रैल की दोपहर गंभीर लक्षणों वाले कोविड-19 के रोगियों को अस्पताल के तहखाने में एक लॉबी के अंत में बने एक छोटे से कमरे में फीवर क्लिनिक में ऑक्सीजन प्रदान किया जा रहा था. रोगियों में से एक नागेंद्र की मां जिनकी उम्र 59 वर्ष थी, का ऑक्सीजन स्तर 45 से 50 के बीच झूल रहा था. जब नागेंद्र को वेंटिलेटर के साथ आईसीयू नहीं मिला, तो वह उसे अस्पताल ले आए. "मैंने उनसे दो घंटे की ऑक्सीजन की भीख मांगी," उन्होंने कहा. इस बीच, उन्होंने अस्थायी उपाय के रूप में अपने घर में ऑक्सीजन सिलेंडर ले आने की कोशिश की लेकिन रिफिल करने वाले एकमात्र केंद्र ने उन्हें खुद का एक खाली सिलेंडर लाने के लिए कहा जो उनके पास नहीं था. उन्हें ऑक्सीजन की तलाश में अस्पताल में आए 24 घंटे हो चुके थे. उनकी मां ने क्लिनिक में एक खाली खाट पर रात बिताई.
नागेंद्र ने कहा कि उन्होंने सरकारी हेल्पलाइन पर "कल रात 9 बजे से आज सुबह 7.30 बजे तक, हर 15 मिनट में" कोशिश की. लेकिन बात न बनी. अंत में, दोपहर 2 बजे पांच सौ फोन कॉल करने के बाद उनकी मां को मल्लेस्वरम में सरकार द्वारा संचालित केसी जनरल अस्पताल में एक वेंटिलेटर से सुसज्जित बिस्तर आवंटित किया गया.
21 अप्रैल की दोपहर मैंने मर्सी मिशन के जयनगर कार्यालय का दौरा किया. इमारत की तीनों मंजिलों में कई सारे वॉलेंटियर थे जिनमें से कई रोजदार थे. उन्हें लगातार आ रहे फोन कॉल आ रहे थे. संगठन, जिसे 2020 में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए स्थापित किया गया था, ने अपने कार्य का विस्तार किया है. पिछले एक साल में इसने मरीजों और अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध की है, रोगियों को परामर्श दिया है, प्लाज्मा दाताओं की पहचान की, एम्बुलेंस सेवा शुरू की, अंतिम संस्कार किया और बिस्तर आवंटन करवाया. अप्रैल में मिशन के वॉलेंटियरों में से एक मुश्ताक की कोविड-19 से मृत्यु हो गई.
2021 के शुरुआती महीनों में संगठन की हेल्पलाइन पर कॉल की संख्या घटकर प्रतिदिन 30 से 40 रह गई थी. 10 अप्रैल के बाद से इसमें बढ़ोतरी शुरू हो गई और 25 अप्रैल तक मर्सी मिशन को 5600 कॉल प्राप्त हुए. "बहुत दहशत है," मसूद, जो वॉलेंटियर हैं और जिन्होंने सरकार को पत्र लिखा था, ने मुझे बताया. "ऑक्सीजन की आपूर्ति की गंभीर कमी, यह सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च प्राथमिकता है जिसके लिए हमें कुछ करना होगा." दूसरी लहर के दौरान मर्सी मिशन ने अपने पांच केंद्रों में विभाजित लगभग 500 सिलेंडरों के एक स्टॉक को बनाए रखने की कोशिश की है. जितनी बार उन्होंने स्टॉक किया, आपूर्ति घंटों के भीतर खत्म हो गई. मसूद ने बताया, ''कल मैंने खाली सिलिंडर को रिफिल करने के लिए लगभग 400-500 किलोमीटर की यात्रा की.
"पिछले साल लोग हमसे यह सलाह मांगने के लिए कॉल कर रहे थे कि क्या करना है अगर वह कोविड पॉजिटिव होते हैं तो," नबीला, एक युवा महिला जो लगभग एक साल से मर्सी मिशन के साथ काम कर रही है, ने कहा. "अब तो बस संकट में फंसे लोग ही कॉल कर रहे हैं. वह कहते हैं, 'मेरी मां सांस नहीं ले पा रही है, मेरे पिता सांस नहीं ले पा रहे हैं, मेरे भाई को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और संतृप्ति स्तर चालीस-पचास के बीच है. यह हमेशा सत्तर से नीचे रहता है.’” मर्सी मिशन बनाने वाले एनजीओ में से एक प्रोजेक्ट स्माइल के मैनेजिंग ट्रस्टी शरीफ ने कहा, "कभी-कभी एक शिफ्ट के बाद ही वॉलेंटियर टूट जाते हैं."
नबीला ने मुझे एक पचपन साल की महिला के बारे में बताया, जिससे वह संपर्क में थीं. महिला का परीक्षण नहीं किया गया था लेकिन उसके लक्षण गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण के अनुरूप थे. बीबीएमपी के नियमों के अनुसार, वह बेंगलुरु अर्बन या बीयू नंबर के बिना कोविड-19 रोगी के रूप में भर्ती नहीं हो सकीं. "तीन दिन लग गए, उसने एक सामान्य बिस्तर पर ऑक्सीजन के साथ इंतजार किया," नबीला ने कहा, "उसने परीक्षण किया, उसका बीयू नंबर आया, उसे आईसीयू मिला. एम्बुलेंस में रास्ते में वह मर गई.” बीयू नंबर के बिना, खासकर जांच की बाढ़ और इसके चलते परिणामों में हो रही देरी, कई रोगियों के लिए बहुत निर्मम साबित हुई है.
मर्सी मिशन कार्यालय के बाहर लोगों की भीड़ लगी थी जो अपने कोविड-19 से पीड़ित मित्रों और रिश्तेदारों के लिए सिलेंडर एकत्र कर रहे थे. मर्सी मिशन ने यह सुनिश्चित करने के लिए 8000 रुपए का रिफंडेबल डिपॉजिट लगाया है कि खाली सिलिंडर बिना नुकसान के लौटा दिया जाए और इसकी कीमत 500 रुपए तय की है. सैयद अब्दुल्ला की चाची, जिनका ऑक्सीजन स्तर सत्तर तक गिर रहा था, उन्हें अस्पताल का बिस्तर नहीं मिल पाया क्योंकि उनकी आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई थी. जब तक रिपोर्ट आएगी तब तक अब्दुल्ला को इसी सिलेंडर से उम्मीद थी. कोरमांगला की एक महिला अपनी मां के लिए एक सिलेंडर लेने के लिए आई थी, जिसका ऑक्सीजन स्तर 35 पर था. "यह बहुत मुश्किल घड़ी है. हम सुबह 9 बजे से कोशिश कर रहे हैं और एक सामान्य बिस्तर का प्रबंधन भी नहीं कर पाए हैं." अपनी कार में सिलेंडर भरते हुए उनके चेहरे पर बड़ी राहत थी.
अगली शाम, मैं फिर से मर्सी मिशन के कार्यालय गई. वहां का मिजाज भयावह था. शिवाजीनगर के एचबीएस अस्पताल में 45 से अधिक मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे और अस्पताल में उस दिन पहले ही ऑक्सीजन की कमी हो गई थी. टीम बेंगलुरु के बाहरी इलाके होसुर से ऑक्सीजन की खरीद में उनकी मदद करने में सक्षम थी लेकिन शहर में ट्रैफिक को देखते हुए, समय पर रिफिल किए सिलेंडरों को पहुंचा पाने की कोई गारंटी नहीं थी. स्वयंसेवकों ने बेंगलुरु के पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया, जिन्होंने ट्रक के लिए एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया और मार्ग पर वाहनों के आवागमन को रोक दिया. "आखिरी वक्त पर काम बना!" मसूद उद्वेलित थे. एम्बुलेंस चालक खलीद, जो सिलिंडरों लेकर आए थे, ने पानी और एक वड़ा से अपना रोजा खोला और किस तरह उन्होंने गाड़ी चलाई इसके बारे में विस्तार से बताया.
जब हम बात कर रहे थे कोरमंगला की महिला एक दिन पहले अपने द्वारा लिए गए सिलेंडर को वापस करने के लिए कार्यालय में दाखिल हुई. वह पिछली दोपहर की तुलना में बहुत शांत लग रही थी. "अब तुम्हारी मां कैसी है?" मैंने उससे पूछा. जब उसने बोलने के लिए अपना मास्क ठीक किया, तो मुझे एहसास हुआ कि वह रो रही थी. "वह मर गई, वह मर गई इससे पहले कि हम उसे ऑक्सीजन सिलेंडर दे पाते, बहुत देर हो चुकी थी," उसने कहा.