बिहार की राजधानी पटना में स्थित नालंदा मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल (एनएमसीएच) को बिहार सरकार ने सूबे का कोरोना अस्पताल घोषित किया है. सरकार का दावा है कि यहां आइसोलेशन वार्ड में 600 बेड हैं. इस अस्पताल के जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ने 23 मार्च को अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट को एक पन्ने का पत्र लिखा और 83 जूनियर डॉक्टरों को होम क्वारंटीन पर भेजने की अपील की. पत्र में एक दर्जन डॉक्टरों के हस्ताक्षर हैं. पत्र में लिखा गया है कि आउट पेशेंट डिपार्टमेंट (ओपीडी), इमरजेंसी व वार्डों में काम करने वाले जूनियर डॉक्टर कोरोना से संक्रमित मरीज के संपर्क में आए हैं और उनमें भी बुखार, खांसी, गले में खराश जैसे कोरोना के लक्षण नजर आने लगे हैं. पत्र में आगे लिखा गया है, “...इसके परिणामस्वरूप सलाह दी गई है कि हमलोग 15 दिनों के होम क्वारंटीन में चले जाएं.”
होम क्वारंटीन के तहत लोग खुद को दो हफ्ते के लिए अपने कमरों में कैद कर लेते हैं ताकि उनके शरीर में फैला वायरस दूसरे लोगों तक न पहुंच पाए.
जूनियर डॉक्टरों का पत्र मिलने के बाद एनएनसीएच के सुपरिटेंडेंट ने बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को एक खत लिखकर कहा कि एनएमसीएच के 83 जूनियर डॉक्टर 15 दिनों के लिए क्वारंटीन में जाना चाहते हैं और इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग दिशानिर्देश दे.
पत्र भेजे दो दिन गुजर गए हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग की तरफ से अभी तक न कोई ठोस आदेश आया है और न ही जूनियर डॉक्टरों की जांच के लिए सैंपल लिए गए हैं. नतीजतन कोविड (कोरोनावायरस डिजीज)-19 के संक्रमण के लक्षणों के साथ जूनियर डॉक्टर अब भी मरीजों का इलाज कर रहे हैं.
जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रवि आरके रमण ने मुझे बताया, “यहां कोरोना पॉजिटिव मरीज भर्ती है और हमलोग उसका इलाज कर रहे हैं. इलाज के दौरान हमलोग मरीज के संपर्क में आ रहे हैं. बहुत सारे जूनियर डॉक्टरों में कोरोना के संक्रमण के लक्षण नजर आने लगे हैं. किसी को बुखार आ रहा है, तो कोई खांसी से जूझ रहा है. किसी को सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो कोई छाती में दर्द की शिकायत कर रहा है. हमलोगों ने इस संबंध में सीनियर डॉक्टरों से मशविरा लिया, तो उन्होंने होम क्वारंटीन पर जाने की सलाह दी. इसके बाद हमने प्रशासन से इसकी (होम क्वारंटीन) अनुमति मांगी, लेकिन अब तक हमें अनुमति नहीं मिली है. हमलोग इन तकलीफों के साथ काम कर रहे हैं. होम क्वारंटीन पर भेजना तो दूर अभी तक हमलोगों की जांच के लिए सैंपल तक नहीं लिया गया है.”
बिहार में कोरोनावायरस का पहला पॉजिटिव केस 22 मार्च को सामने आया था. 22 मार्च को दो मरीजों के टेस्ट रिजल्ट में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई थी. एक मरीज में इसकी पुष्टि उसकी मौत हो जाने के बाद हुई थी. यह मरीज पटना एम्स में भर्ती था. मृतक का नाम सैफ था और वह मूल रूप से मुंगेर का रहने वाला था. 19 मार्च को उसे पटना एम्स में भर्ती कराया गया था.
दूसरा मरीज एक महिला हैं. वह भी पटना एम्स में भर्ती हैं. महिला का पुत्र इटली से लौटा है. पुलिस ने उसे भी क्वारंटीन में रखा है.
22 मार्च को कोरोनावायरस के पहले मरीज की शिनाख्त होने के दूसरे ही दिन 23 मार्च को एनएमसीएच में भर्ती राहुल कुमार नाम के तीसरे मरीज में भी कोरोनावायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई. वह स्कॉटलैंड से आया है. स्कॉटलैंड में 23 मार्च तक 499 मरीजों के कोरोनावायरस ग्रस्त होने की पुष्टि हुई है और अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है.
एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टर स्कॉटलैंड से आए इसी मरीज का इलाज कर रहे हैं. उनके मुताबिक, इसी मरीज का इलाज करते हुए उनमें कोरोनावायरस से संक्रमण के लक्षण नजर आने लगे हैं.
बिहार में कोरोनावायरस की जांच के लिए इकलौती लेबोरेटरी राजेंद्र मेमोरिलय रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएमआरआई) में स्थापित की गई है. दरभंगा मेडिकल कॉलेज में भी एक टेस्ट लैब खोलने की योजना है लेकिन पिछले 10 दिनों में इस पर बहुत काम नहीं हुआ है और इसे चालू होने में वक्त लगेगा.
स्टेट एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. रागिनी मिश्रा ने मुझ से कहा, “अभी टेस्ट किट भी नहीं आई है. टेस्ट किट आएगी, तो उसका कैलिब्रेशन किया जाएगा, फिर उसे हमलोग पुणे भेजेंगे. जब वहां से एप्रूवल आएगा तब जाकर शुरू होगा. पूरी प्रक्रिया में कम से कम 15 दिन लगेंगे.”
21 मार्च तक बिहार में कोरोनावायरस का एक भी पॉजिटिव केस नहीं था लेकिन अब इस वायरस से संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ रही है. एक मरीज का तो टेस्ट रिजल्ट पहले नेगेटिव आया था लेकिन उसमें कोरोनावायरस के संक्रमण के लक्षण साफ दिख रहे थे. आरएमआरआई के निदेशक डॉ. पीके दास के मुताबिक, दोबारा नमूना संग्रह कर जांच के लिए पुणे के नेशनल वायरोलॉजी लेबोरेटरी (एनवीएल) भेजा गया. एनवीएल में हुई जांच में उसका रिजल्ट पॉजिटिव आया है.
जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि एनएमसीएच को सरकार ने सूबे का इकलौता कोरोना अस्पताल घोषित कर दिया है लेकिन कोरोना मरीजों के इलाज के लिए चिकित्सकों के पास बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं. डॉक्टरों ने यह भी कहा कि इन बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण ही 83 जूनियर डॉक्टरों में कोरोना का संक्रमण फैल गया है.
रवि आरके रमण ने मुझ से कहा, “डॉक्टरों के लिए यहां पोस्ट एक्शंस किट, एन95 मास्क, हजमत किट (हजमत किट में ग्लोव्स, मास्क, शू कवर, गाउन, प्रोटेक्टिव गॉगल होते हैं), सैनिटाइजर कुछ भी नहीं है. हमलोग अपनी सुरक्षा के लिए सर्जिकल मास्क और सर्जिकल किट का इस्तेमाल कर रहे हैं. कल रात में भी यहां कुछ मरीज आए हैं. इनमें एक मरीज अमरीका का है. कई मरीजों में कोरोना के लक्षण दिखे हैं. लेकिन, अभी भी बिना किसी सुरक्षा इंतजाम के हमलोग इलाज किए जा रहे हैं.”
मैंने बिहार के कुछ सदर अस्पतालों के डॉक्टरों से भी बात की. इन डॉक्टरों ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि उनके अस्पतालों में भी चिकित्सकों के लिए बुनियादी चीजें उपलब्ध नहीं हैं.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार की आबादी लगभग 10.41 करोड़ है. आबादी के हिसाब से बिहार में 3470 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए लेकिन अभी महज 1900 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध हैं. वहीं, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 774 होनी चाहिए लेकिन महज 150 स्वास्थ्य केंद्र हैं. यानी कि एक बड़ी आबादी की पहुंच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक नहीं है. ऐसे में सदर अस्पतालों पर मरीजों का दबाव कुछ अधिक ही रहता है और खास कर अभी कोरोनावायरस के खतरे को लेकर किसी को सामान्य सर्दी-जुकाम भी हो रहा है तो वह सदर अस्पताल की तरफ भाग रहा है, लेकिन सदर अस्पताल में बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलने से डॉक्टरों को परेशानी उठानी पड़ रही है.
समस्तीपुर सदर अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर मुझे बताया, “यहां रोजाना 50 से ज्यादा लोग आ रहे हैं लेकिन हमारे पास न तो मास्क है और न ही सैनिटाइजर. हमलोग एक-एक डॉक्टर तीन सर्जिकल मास्क को पहन कर मरीज देख रहे हैं ताकि संक्रमण न फैले. सर्जिकल स्प्रिट और सैलाइन के पानी को बराबर मात्रा में मिलाकर हमलोगों ने सैनिटाइजर बनाया है. हर मरीज को देखने के बाद डॉक्टर और नर्स इसी से हाथ साफ करते हैं. मुझे नहीं मालूम की सर्जिकल मास्क और स्प्रिट वायरस से बचाने में कितना कारगर होगा लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है.”
डॉक्टर ने मुझ से कहा, “अस्पताल से जब घर लौटता हूं तो कोशिश रहती है कि बच्चों और परिवार के सदस्यों के करीब न जाऊं लेकिन बच्चे नहीं मानते. वे मेरे साथ खेलना चाहते हैं.”
कोरोना की जांच के लिए बिहार के 9 मेडिकल कॉलेजों को सैंपल लेने के लिए अधिकृत किया गया है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अगर कोई ऐसा व्यक्ति पहुंचता है, जो दूसरे देश से लौटा है और उसमें कोरोनावायरस के संक्रमण का लक्षण दिखता है तो वहां से उसे सदर अस्पताल भेजा जाता है. सदर अस्पताल के डॉक्टर संदेह की सूरत में मरीज को मेडिकल कॉलेज में रेफर कर देते हैं.
सदर अस्पताल के उक्त डॉक्टर ने मुझे बताया, “अभी लोगों में इतना खौफ है कोरोना को लेकर कि कोई सामान्य व्यक्ति भी अस्पताल पहुंच जा रहा है और इन्फ्रारेड थर्मामीटर सेंसर लगाकर कोरोना की जांच करने की अपील कर रहा है. उन्हें लगता है कि सेंसर कोरोना जांचने की ही मशीन है.”
भारत में कोरोनावायरस के पसरते पांवों को देखते हुए 10 दिन पहले ही बिहार सरकार ने एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा) को भी सक्रिय किया है. उन्हें आदेश दिया गया है कि वे अपने-अपने गांवों में बाहर से आए लोगों की जानकारी लेकर उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या अनुमंडल अस्पताल में जांच कराने को कहें या इसकी सूचना अस्पताल को दें.
बिहार में आशा वर्करों की संख्या लगभग 4 हजार है. लेकिन ग्रासरूट स्तर पर काम करने वाली इन वर्करों को भी न तो मास्क मुहैया कराया गया है और न ही सैनिटाइजर.
जहानाबाद जिले के कराई गांव की एक आशा वर्कर मंजू कुमार ने मुझे फोन पर बताया, “बाहर से आने वाले लोगों की शिनाख्त करने का आदेश जब हमें मिला था तो हमने अस्पताल से मास्क और सैनिटाइजर देने की मांग की थी लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि उन्हें ही मास्क और सैनिटाइजर नहीं मिला, तो वे उन्हें कहां से देंगे. तब मैंने अपनी जेब से 250 रुपए खर्च कर मास्क और सैनिटाइजर खरीदा. मैं गांव में घूमने जाती हूं तो इन्हें साथ लेकर जाती हूं.”
आशा वर्कर संघर्ष समिति से जुड़ी मीरा सिन्हा ने मुझसे कहा, “बाजार में सैनिटाइजर व मास्क खत्म होने के कारण बहुत सारी आशा वर्कर इन चीजों को नहीं खरीद पाईं. वे दुपट्टे का इस्तेमाल मास्क के रूप में कर रही हैं.”
भारत में कोरोनावायरस का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में सामने आया था. 20 मार्च तक यह संख्या बढ़कर 236 पहुंच गई थी लेकिन बिहार में तब तक भी औपचारिक घोषणाओं के अलावा कुछ कार्रवाई नहीं हुई थी. इसे दो घटनाओं से समझा सकता है.
पहली घटना कतर से लौटे मुंगेर के निवासी सैफ से जुड़ी है. 38 साल का सैफ 12 मार्च की रात घर लौटा था. लेकिन जिले के सरकारी अस्पताल या बिहार सरकार की तरफ से किसी भी अधिकारी ने उससे संपर्क कर यह नहीं पूछा कि क्या उसमें कोरोनावायरस का लक्षण है या वह सरकारी अस्पताल गया है. सोशल मीडिया में आए एक वीडियो क्लिप में सैफ के रिश्तेदार यह कहते हुए दिख रहे हैं कि सैफ ने तीन-चार दिनों तक अलग-अलग लोगों से मुलाकात की थी. सैफ के परिजन भी घर से लेकर अस्पताल तक उनके साथ रहे.
दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक, सैफ को किडनी की तकलीफ हुई तो 16 मार्च को उसके परिजन उसे मुंगेर के एक निजी अस्पताल ले गए. वहां डॉक्टरों ने उसे पटना ले जाने को कहा. 17 मार्च को सैफ को पटना के निजी अस्पताल में लाया गया. वहां वह दो दिन भर्ती रहा. इसके बाद उसे 19 मार्च को पटना मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (पीएमसीएच) ले जाया गया लेकिन पीएमसीएच में उसे भर्ती नहीं किया गया. फिर परिजनों ने उसे पटना एम्स में भर्ती करा दिया. पटना एम्स में शनिवार (21 मार्च) की दोपहर उसकी मौत हो गई, लेकिन तब तक यह पता नहीं चल पाया था कि वह कोरोनावायरस से संक्रमित है. शनिवार को उसके परिजन उसका शव लेकर मुंगेर लौट गए और रविवार की दोपहर उन्हें पता चला कि सैफ को कोरोनावायरस का संक्रमण था.
यानी कि 16 से 21 मार्च के बीच सैफ चार अस्पतालों में भर्ती रहा लेकिन किसी भी अस्पताल में उसकी ट्रैवेल हिस्ट्री जानने की कोशिश नहीं की गई. पटना एम्स ने जांच के लिए नमूना लिया भी तो भर्ती होने के दिन यानी 20 मार्च को.
आरएमआरआई के एक विज्ञानी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर मुझे कहा, “शुक्रवार (20 मार्च) की रात 11 बजे के आसपास पटना एम्स से सैंपल हमारे पास जांच के लिए आया था. 21 मार्च की सुबह हमने सैंपल को जांच में डाल दिया और शाम तक हमें रिजल्ट मिला. हमने रिजल्ट इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) और राज्य के सचिवों से साझा किया.”
राज्य के एक सदर अस्पताल में नियुक्त एक अन्य डॉक्टर ने मुझे बताया “कोरोनावायरस के संक्रमण के लक्षण नजर आने पर रोगी की ट्रैवेल हिस्ट्री लेने का निर्देश हमें पहले नहीं मिला था. 20-21 मार्च को हमें बताया गया कि अगर मरीजों में खांसी, बुखार, गले में खराश व सांस लेने में तकलीफ की शिकायत मिले तो उनकी ट्रैवेल हिस्ट्री तैयार की जाए.”
सैफ की मौत के बाद उसके शरीर में कोरोनावायरस की मौजूदगी की रिपोर्ट आने पर जिला प्रशासन ने सैफ के संपर्क में आए 60 से ज्यादा लोगों की सूची बनाकर उनके सैंपल जांच के लिए भेजे थे. आरएमआरआई के निदेशक डॉ. प्रदीप दास ने मीडिया को बताया कि इनमें से दो लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला है. इसका मतलब है कि बिहार में कोरानावायरस का संक्रमण दूसरे चरण में यानी लोकल ट्रांमिशन में पहुंच चुका है. जानकारों का कहना है कि एयरपोर्ट प्रबंधन से लेकर राज्य प्रशासन की कोताही के कारण ही सैफ के कारण इतने लोगों में कोरोनावायरस फैलने का खतरा बढ़ गया है.
दूसरी घटना चीन से 13 जनवरी को लौटे एक युवक से जुड़ी है. युवक ने नाम और ठिकाना सार्वजनिक नहीं करने की अपील की है. उसने मुझे बताया, “चीन से लौटने के दो महीने 10 दिन बाद ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने मुझे और हफ्ता-10 दिन पहले चीन से लौटे कुछ अन्य लोगों को फोन कर बताया कि हमें स्थानीय थाने में रिपोर्ट करनी है. जब हमलोग थाने में गए तो थाने के अधिकारियों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जाने को कहा. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में गए तो वहां के डॉक्टरों ने हमसे पूछा कि कहीं सर्दी, बुखार वगैरह तो नहीं है. जब मैंने उनसे कहा कि ऐसी कोई तकलीफ नहीं तो उन्होंने सदर अस्पताल जाने को कहा.”
युवक ने आगे कहा, “उसी दिन मैं सदर अस्पताल गया लेकिन वहां कोई कुछ ठीक से बता नहीं रहा था. फिर मैंने सरकार की तरफ से सार्वजनिक किए गए नंबर पर कॉल किया तो मुझे सदर अस्पताल के ही इमरजेंसी वार्ड में जाने को कहा गया. इमरसेंजी वार्ड में भी यही पूछा गया कि मुझे कोरोनावायरस संक्रमण जैसी कोई तकलीफ तो नहीं है. मैंने ना में जवाब दिया तो उन्होंने घर जाकर 14 दिनों तक आइसोलेशन में रहने की सलाह दी.”
आईसीएमआर की गाइडलाइन के अनुसार, कोरोनावायरस की जांच की दो शर्तें हैं. एक शर्त है कि अगर कोई व्यक्ति कोरोनावायरस से प्रभावित देशों से लौटा है और उसमें कोरोना के संक्रमण के लक्षण दिख रहे हों. दूसरी शर्त है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे आदमी के साथ रहा हो, जिसे कोरोनावायरस का संक्रमण था. बिहार में भी यही गाइडलाइन अपनाई जा रही है.
इन्हीं दो शर्तों के आधार पर 25 मार्च तक 275 सैंपलों की जांच की गई है, जिनमें से 268 का रिजल्ट नेगेटिव और 6 का रिजल्ट पॉजिटिव आया है.
मैंने जाने-माने चिकित्सक डॉ. अरुण शाह से बात की तो उनका कहना था कि राज्य सरकार को चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा सैंपलों की जांच करे ताकि रोगियों की शिनाख्त की जा सके क्योंकि एक बार यह कम्युनिटी लेवल या सामुदायिक संक्रमण के स्तर पर पहुंच गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा.
आरएमआरआई में कोरोनावायरस की जांच के लिए जो तकनीक उपलब्ध है, उसमें विज्ञानियों के मुताबिक एक बार में 100 सैंपलों की जांच हो सकती है लेकिन स्वास्थ्य विभाग ज्यादा सैंपलों की जांच करने के मूड में नहीं दिख रहा है.
मैंने इस संबंध में डॉ. रागिनी मिश्रा से बात की, तो उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं किया जा सकता है, लेकिन पहले की शर्तों के साथ हमने अब यह भी जोड़ दिया है कि अगर किसी व्यक्ति में कोरोनावायरस के संक्रमण के मजबूत लक्षण दिख रहे हैं और उसकी कोई ट्रैवेल हिस्ट्री नहीं है, तो भी उसकी जांच की जा सकती है.”