कोविड-19 : बिहार के क्वारंटीन सेंटरों में क्यों नहीं रहना चाहते प्रवासी मजदूर

आपदा प्रबंधन विभाग से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, 17 मई तक राज्य में क्वारंटीन सेंटरों की संख्या 7042 है जिनमें 455562 प्रवासी मजदूर ठहरे हुए हैं. फोटो साभार : उमेश कुमार राय

“यहां प्रवासी मजदूरों को किसी तरह तीन वक्त का खाना मिल जाता है. सोने के लिए बिस्तर नहीं दिया गया है. लोग गमछा बिछाकर सोते हैं. 5-6 फीट की दूरी तो दूर की बात है, यहां एक फीट की फिजिकल डिस्टेंसिंग भी मेंटेन नहीं की जा रही है. कई बार प्रवासी मजदूर प्रदर्शन कर चुके हैं. यहां की अव्यवस्था से उकता कर कई लोग भाग भी जाते हैं, तो हमलोग पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी सूचना देते हैं. मंगलवार (12 मई) को तो यहां दो गुटों में मारपीट भी हो गई. दोनों ओर से पथराव किया गया.” ये बातें मुझे पूर्णिया जिले के धमदाहा ब्लॉक के मीरगंज में एक स्कूल में बने क्वारंटीन सेंटर में ड्यूटी करने वाले एक कर्मचारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताईं.

इस क्वारंटीन सेंटर में 100 से ज्यादा प्रवासी ठहरे हैं. ये लोग दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व दूसरे राज्यों से आए हैं. पूर्णिया के पोहाराघाट के एक युवक में मंगलवार (12 मई) को कोरोनावायरस का संक्रमण मिला था. यह युवक दिल्ली के रेड-जोन आजादपुर मंडी से लौटा है. उसी दिन आजादपुर मंडी से लौटे तीन प्रवासी मजदूरों को इस क्वारंटीन सेंटर में लाया गया है. इससे दूसरे प्रवासी मजदूर डरे हुए हैं. क्वारंटीन सेंटर के उक्त कर्मचारी ने कहा, “वे लोग डरे हुए हैं, लेकिन साथ ही रह रहे हैं. फिजिकल डिस्टेंस मेंटेन नहीं हो रहा है, जिससे दूसरे मजदूरों में कोरोनावायरस के फैलने की आशंका है.”

कटिहार जिले के कटिहार टाउन में स्थित ऋषि भवन को क्वारंटीन सेंटर बनाया गया है. 4 मई को बारिश का फायदा उठाकर इस सेंटर से 10 लोग फरार हो गए. वे सभी छत्तीसगढ़ से आए थे. इस मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में क्वारंटीन सेंटर में तैनात पुलिस पदाधिकारी व एक मजिस्ट्रेट पर कार्रवाई की गई. पुलिस ने जांच टीम बना कर फरार लोगों की तलाश शुरू की और उन्हें आजमनगर थाना क्षेत्र के खोरियाल गांव से बरामद कर लिया गया.

कटिहार के डीएम तनुज कंवल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “प्रवासी कामगार वहां रहना नहीं चाहते थे. वहां उनका मन नहीं लग रहा था और वहां थोड़ी अव्यवस्था भी बन रही थी. उसी क्रम में दोपहर में जब तेज बारिश हुई और आंधी आई, तो उसका फायदा उठाकर वे वहां से भागने में सफल हो गए. इसको लेकर कटिहार टाउन थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई. सेंटर में प्रतिनियुक्त पुलिस पदाधिकारी को निलंबित किया गया और मजिस्ट्रेट को कारण बताओ नोटिस दिया गया. इसके अलावा दो अन्य मजिस्ट्रेट को भी शोकॉज किया गया.” डीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात का जिक्र नहीं किया कि उन्हें वक्त पर खाना नहीं मिल रहा था, लेकिन स्थानीय लोगों ने बताया कि क्वारंटीन सेंटर में भोजन पानी नहीं मिलने से वे लोग परेशान थे और शोर-शराबा कर रहे थे, तो उन लोगों ने उनके लिए चाय-बिस्कुट का इंतजाम किया था.

24 मार्च से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी. उनकी घोषणा के बाद देशभर की फैक्टरियों में ताले लटक गए, सरकारी परियोजनाएं थम गईं और परिवहन व्यवस्था ठप हो गई. जब प्रवासी कामगारों के सामने खाने-पीने का संकट मुंह बाए खड़ा हो गया तो लाखों प्रवासी मजदूरों ने शहरों से गांवों की ओर पलायन, पैदल या साइकल पर, शुरू कर दिया. इस बीच कुछेक राज्यों से बसें चलाईं गई. दूसरे चरण के लॉकडाउन के बाद, 4 मई से केंद्र सरकार अलग-अलग राज्यों में फंसे मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला लिया.

बिहार में इन ट्रेनों से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर रोजाना अपने गांव लौट रहे हैं. दूसरे राज्यों से लौट रहे इन प्रवासी मजदूरों से संक्रमण का फैलाव ना हो, इसके लिए बिहार सरकार ने इन मजदूरों के लिए 21 दिनों का क्वारंटीन अनिवार्य कर दिया है. यह 21 दिन का क्वारंटीन और जांच बिहार सरकार की कोरोना से लड़ने की इकलौती रणनीति है.

एपिडेमियोलॉजिस्ट (महामारीवीद) और बिहार में कोविड-19 की नोडल अफसर डॉ. रागिनी मिश्रा ने मुझे बताया, “दूसरे राज्यों से ट्रेन से आनेवाले कामगारों को ठहराने के लिए हर ब्लॉक में क्वारंटीन सेंटर बनाया गया है. इन कामगारों को इन्हीं सेंटरों में 21 दिनों तक रखा जाएगा. ब्लॉक में क्वारंटीन सेंटरों की जिम्मेवारी आपदा प्रबंधन विभाग को दी गई है.”

आपदा प्रबंधन विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, प्रवासी कामगारों के लिए राज्यभर में ब्लॉक स्तर पर 14 मई तक 5162 क्वारंटीन सेंटर संचालित हो रहे थे, जिनमें 270294 प्रवासी मजदूर रह रहे थे. लेकिन भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों की आमद के चलते 17 मई तक क्वारंटीन सेंटरों की संख्या बढ़ाकर 7042 करनी पड़ी, जिनमें अभी 455562 प्रवासी मजदूर ठहरे हुए हैं, यानी कि महज तीन दिनों लगभग 180000 प्रवासी मजदूर अलग-अलग राज्यों से बिहार लौटे हैं. इसका मतलब है कि आनेवाले दिनों में प्रवासी मजदूरों का आना और तेज होगा.

लेकिन, इस बड़ी आबादी को समुदाय से अलग रखने में सरकारी प्रयास कितना सफल है, यह पूर्णिया के धमदाहा और कटिहार शहर के ऋषि भवन की घटनाओं से पता चलता है. पिछले 10-12 दिनों में क्वारंटीन सेंटरों में बुनियादी सुविधाओं की मांग पर हंगामा करने और सेंटर से फरारी की आधा दर्जन से ज्यादा वारदातें हो चुकी हैं. प्रवासी मजदूरों की फरारी से सामुदायिक स्तर पर कोविड-19 के फैलने की आशंका बढ़ गई है.

9 मई को नवादा जिले के सिरदला ब्लॉक के आदर्श विद्यालय में बने क्वारंटीन सेंटर में बुनियादी सुविधाओं की मांग पर प्रवासी कामगारों ने जमकर हंगामा मचाया और क्वारंटीन सेंटर से भाग गए. इस सेंटर में 8 मई को एक व्यक्ति में कोरोनावायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई थी. बाद में, पुलिस व जिले के प्रशासनिक अधिकारी भागे सभी प्रवासियों को वापस क्वारंटीन सेंटर ले आए. फिर इस सेंटर के कुछ लोगों के सैंपलों को जब जांच के लिए भेजा गया, तो उनमें कोरोनावायरस का संक्रमण मिला. सिरदला के चिकित्सा प्रभारी डॉ. अरुण चौधरी ने मुझे बताया, “आदर्श विद्यालय में रह रहे प्रवासियों में से 6 लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला है. मुझे नहीं पता कि शनिवार को जो लोग भागे थे, उनमें ये लोग थे कि नहीं.”.

सिरदला के बीडीओ (ब्लॉक विकास अधिकारी) अखिलेश्वर कुमार ने मीडिया के साथ बातचीत में स्वीकार किया है कि आदर्श विद्यालय में पानी की घोर किल्लत थी. उन्होंने यह भी कहा कि क्वारंटीन सेंटर में दूसरी सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं.

5 मई को पटना के ग्रामीण क्षेत्र में एक क्वारंटीन सेंटर में खाने में कीड़े मिले थे, जिसको लेकर वहां रह रहे लोगों ने जमकर हंगामा मचाया था. इस सेंटर में गुजरात के सूरत से आए लोग रह रहे हैं. 10 मई को मुजफ्फरपुर के मुसहरी ब्लॉक में बने एक क्वारंटीन सेंटर में रहने वाली प्रवासी महिला कामगारों ने भोजन व पानी की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था.

20 साल के सूरज कुमार गुजरात के अहमदाबाद से 8 मई की देर रात ट्रेन से छपरा पहुंचे हैं. वह पिछले साल दिसंबर में वहां गए थे. जिस फैक्टरी में काम करते थे, उसने मार्च की तनख्वाह नहीं दी. खाने-पीने को पैसा नहीं था, तो उन्होंने अपने पिता को फोन किया. पिता ने कर्ज लेकर 5500 रुपए भेजा. उन पैसों से सूरज ने खाने-पीने का इंतजाम किया और ट्रेन के टिकट का 690 रुपए चुका कर घर लौट आए.

वह फिलहाल छपरा के एक क्वारंटीन सेंटर में ठहरे हुए हैं. उन्होंने क्वारंटीन सेंटर में खराब खाना और मच्छरदानी नहीं होने की शिकायत की. सूरज कुमार ने मुझे फोन पर बताया, “यहां दो वक्त खाना और सुबह में नाश्ते में चना-गुड़ मिलता है. दोनों वक्त मोटा चावल दिया जाता है. खाने में कोई स्वाद नहीं मिलता है. शुरुआत में रोटी नहीं मिलती थी, तो मैं घर से रोटी मंगवाता था. अब दो रोटी मिलती है, लेकिन आधी जली हुई. सेंटर में मच्छर बहुत लगता है. हमलोगों ने मच्छरदानी की मांग की, तो उन्होंने कहा कि मच्छरदानी देने का फंड नहीं है. मुझे घर से मच्छरदानी मंगवानी पड़ी. एक दिन मां मिलने आई, तो रोने लगी कि मैं घर के पास आकर भी घर में नहीं हूं.” इस सेंटर में पांच दर्जन प्रवासी कामगार रह रहे हैं. 12 मई को नाश्ता काफी देर से मिला था, तो लोगों ने यहां हंगामा किया था.

दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक, 14 मई ( गुरुवार) को औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड के पतेया गांव में बने क्वारंटीन सेंटर से 50 प्रवासी मजदूर भाग गए थे. स्थानीय बीडी कनिष्क कुमार सिंह ने मामले की छानबीन की बात कही है. इसी दिन पटना से सटे जहानाबाद के एक क्वारंटीन सेंटर से भी लगभग तीन दर्जन प्रवासी मजदूर भाग गए थे.

पिछले दिनों क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली पर मीडिया में बहुत सारी खबरें सामने आईं, तो मुंगेर के डीएम राजेश मीणा ने 6 मई अनुमंडल पदाधिकारियों को लिखित आदेश देकर प्रखंडस्तरीय क्वारंटीन सेंटरों में मीडिया कर्मचारियों के प्रवेश पर रोक लगाने को कहा. डीएम ने पत्र में लिखा, “आप सभी को निर्देश दिया जाता है कि अपने स्तर से प्रखंडस्तरीय क्वारंटीन कैंप में प्रतिनियुक्त सभी दंडाधिकारी को अपने स्तर से पत्र के माध्यम से अवगत कराते हुए यह सुनिश्चित का जाए कि प्रखंडस्तरीय क्वारंटीन कैंप में किसी भी स्थिति में मीडियाजनों का प्रवेश नहीं हो सके.”

बिहार में कोरोनावायरस के संक्रमण का पहला मामला 22 मार्च को सामने आया था. इसके बाद अप्रैल के मध्य तक संक्रमण के जो भी मामले सामने आए, वे विदेशों से आने वाले लोगों से संबंधित थे. लेकिन, अब जो मामले सामने आ रहे हैं, वे दूसरे राज्यों से जुड़े हुए हैं. अभी जिन भी लोगों में संक्रमण मिल रहा है, उनमें बहुसंख्यक लोगों की ट्रैवेल हिस्ट्री महाराष्ट्र, गुजरात व अन्य राज्य हैं. कोरोनावायरस के संक्रमण का आंकड़ा देखें, तो ये राज्य ही सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. 17 मई तक अकेले महाराष्ट्र में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या 33053 दर्ज की गई है. वहीं, गुजरात में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की तादाद 11379 और दिल्ली में 10054 है.

अलग-अलग राज्यों से आए प्रवासी मजदूरों के 10385 सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे, जिनमें से 17 मई तक 560 लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला है. इन 10385 में से 2746 का रिजल्ट आना अभी बाकी है. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक,  इनमें सबसे ज्यादा कोविड-19 संक्रमित लोग दिल्ली से आए हैं, जबकि दूसरे स्थान पर गुजरात और तीसरे पायदान पर महाराष्ट्र है. दिल्ली से लौटे मजदूरों में से 172 में कोरोनावायरस का संक्रमण पाया गया है. वहीं, गुजरात से लौटे श्रमिकों में से 128 और महाराष्ट्र से लौटे श्रमिकों में से 123 लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हैं. पश्चिम बंगाल से लौटे श्रमिकों में से 26 में कोरोना वायरस का संक्रमण मिला है. 4 मई से पहले लौटे प्रवासी श्रमिकों में से 58 लोगों में ही कोरोनावायरस का संक्रमण मिला था. इसका मतलब ये है कि अभी जो प्रवासी मजदूर लौट रहे हैं, उनमें संक्रमण ज्यादा फैला हुआ है.

17 मई तक बिहार में कोरोनावायरस संक्रमण के कुल 1193 मामले सामने आ चुके हैं और 8 लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार में दर्ज कोरोनावायरस संक्रमण के कुल मामलों में प्रवासी मजदूरों की भागीदारी 46.9 प्रतिशत से ज्यादा है, जो बताता है कि दूसरे राज्यों से लौट रहे प्रवासी मजदूरों कोरोनावायरस का संक्रमण चिंताजनक हालत तक बढ़ चुका है.

ट्रेनों के अलावा बहुत सारे मजदूर बस, साइकिल, टेम्पू, ट्रकों और पैदल भी आ रहे हैं. दूसरे राज्यों में बिहार में प्रवेश 9 जिलों से किया जा सकता है. इन जिलों में आपदा प्रबंधन विभाग की टीम तैनात की गई है, लेकिन इसके बावजूद प्रवासी मजदूर चोरी-छिपे अपने घर चले जा रहे हैं, ताकि वे क्वारंटीन सेंटर जाने से बच जाएं. बिहार के कैमूर जिले के कर्मनाशा बॉर्डर से सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर आ रहे हैं. कर्मनाशा के एक स्थानीय पत्रकार अमित कुमार ने मुझे बताया, “रोज हजारों की संख्या में लोग आ रहे हैं और सीमा पर मामूली स्क्रीनिंग के बाद अपने घर चले जा रहे हैं.”

अररिया जिले के फारबिसगंज ब्लॉक के भगपरवाहा गांव में चार-पांच प्रवासी मजदूर अंबाला से आए थे और घर में छिपे हुए थे, जिन्हें बाद में क्वारंटीन सेंटर भेजा गया. भगपरवाहा गांव के स्थानीय निवासी ब्रह्मदेव राम ने मुझे फोन पर बताया, “वे लोग अंबाला से साइकिल चलाकर आए थे और सीधे घर पहुंच गए थे. हमलोगों ने मुखिया को इसकी जानकारी दी, तो वह उन्हें क्वारंटीन सेंटर ले गए.

स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि अभी बिहार सरकार को सबसे ज्यादा ध्यान प्रवासी मजदूरों पर देना चाहिए, क्योंकि संक्रमण से ज्यादातर मामले प्रवासी श्रमिकों में मिल रहे हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के बिहार चैप्टर के सचिव डॉ राजीव रंजन ने मुझे बताया, “कोविड-19 पर काबू करने के लिए बिहार सरकार को सबसे ज्यादा फोकस क्वारंटीन सेंटरों पर करना होगा, क्योंकि अभी प्रवासी श्रमिक ही कोरोनावायरस के कैरियर हैं. क्वारंटीन सेंटर से वे भाग जाते हैं और चोरी-छिपे घर में रहते हैं, तो वे अपने परिवार को संक्रमित करेंगे और परिवार से संक्रमण आसपास के लोगों में फैल जाएगा. अगर ऐसा होता है, तो राज्य में भूचाल आ जाएगा.” उन्होंने आगे कहा, “कोविड-19 के खिलाफ सरकार को अगर निर्णायक लड़ाई लड़नी है, तो क्वारंटीन सेंटरों पर नजरदारी बढ़ानी होगी. सरकार को ये सुनिश्चित करना होगा कि वहां रहने वाले लोगों को किसी तरह की असुविधा न हो. अगर उन्हें सारी सुविधाएं मिलेंगी, तो वे भागने की नहीं सोचेंगे. इसके साथ ही उन्हें जागरूक भी करने की जरूरत है ताकि वे सामाजिक दूरी का पालन करें.”

संक्रमण के लिहाज से इलाकों के रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांटा गया है. रेड जोन में वे इलाके आते हैं, जहां भारी संख्या में संक्रमित लोग मिले हैं. ऑरेंज जोन वे इलाके हैं, जहां बहुत कम मामले सामने आ रहे हैं और ग्रीन जोन में उन क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जहां 21 दिनों में कोई भी मामला सामने नहीं आया है.

बिहार सरकार दूसरे राज्यों से लौटे उन्हीं प्रवासी मजदूरों का कोरोना टेस्ट इस आधार पर करा रही है कि वे कहां से लौटे हैं. रोहतास में स्वास्थ्य विभाग के एक जिलास्तरीय पदाधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर मुझे बताया, “जो लोग बाहर से आ रहे हैं, वे किन शहरों से आ रहे हैं, ये जानकारी जुटाते हैं और फिर बीडीओ व अन्य अधिकारी ये देखते हैं कि वे लोग जहां से आ रहे हैं वे जगहें रेडजोन में शामिल हैं कि नहीं. जो प्रवासी मजदूर रेड-जोन के रूप में चिन्हित जगहों से आते हैं, उनका सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा जाता है.”

मुजफ्फरपुर जिले में ब्लॉक स्तर पर बने 215 क्वारंटीन सेंटरों में 16774 प्रवासी मजदूर रह रहे हैं. इनमें से 6 लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला है. मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. शैलेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा, “रेड जोन में भी हमारी पहली प्राथमिकता संक्रमण के लक्षण वाले लोग हैं. इसके बाद बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग और इसके बाद उन प्रवासियों के सैंपल लेते हैं, जिनमें कोई लक्षण नहीं है.”

बिहार में 17 मई तक 46464 सैंपलों का टेस्ट हुआ है, जो बिहार की कुल आबादी का 0.044 प्रतिशत ही है. जानकारों का कहना है कि आबादी के लिहाज से बिहार में बहुत कम टेस्ट हो रहा है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है.

लोक स्वास्थ्य पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े डॉ. शकील ने प्रवासी मजदूरों के कोरोना टेस्ट के लिए तय शर्तों पर सवाल उठाते हुए मुझे बताया, “अगर कोरोना टेस्ट के लिए जोन ही शर्त है, तो ऑरेंज जोन से आने वाले प्रवासी मजदूरों की भी जांच की जानी चाहिए क्योंकि भले ही वहां संक्रमण कम है लेकिन है तो.”

अप्रैल के शुरू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक की थी. इस बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना संक्रमण की जांच के लिए कम किट मिलने की बात कही थी. 11 मई को पीएम मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ दुबारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की, तो सीएम नीतीश कुमार ने दोबारा टेस्टिंग किट का मुद्दा उठाया. 11 मई को मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में नीतीश कुमार ने कहा, “बाहर से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी, इसे ध्यान में रखते हुए बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या और बढ़ेगी. इसके लिए पहले से जितनी टेस्टिंग कराई जा रही थी, उसकी क्षमता और बढ़ा रहे हैं. अभी एक दिन में 1800 सैंप्लिंग की जा रही है, जिसे बढ़ाकर 10 हजार करना चाह रहे हैं. इसके लिए आरटीपीसीआर मशीन, ऑटोमेटिक आरएनए एक्सट्रैक्शन व आरटीपीसीआर मशीन में प्रयोग किए जाने वाले किट्स उपलब्ध कराने की जो मांग की गई है, उसकी जल्द से जल्द आपूर्ति कराई जाए.”

स्वास्थ्य विभाग से मिल आंकड़ों के मुताबिक,  बिहार सरकार को कुल 73162 आरएनए एक्सट्रैक्शन किट मिले हैं, जिनमें से 24250 (17 मई तक) किट्स बचे हैं. वहीं, कुल 124800 वायरल ट्रांसपोर्ट किट (वीटीके) में से 49050 किट्स (14 मई तक) बचे हुए हैं.

डॉ. शकील ने मुझे बताया, “किट कम होने की वजह से ही बिहार सरकार ने रेड जोन को प्राथमिकता में रखा है, लेकिन सच तो ये है कि बिहार में जितनी जांच हो रही है, वो पर्याप्त नहीं है. बिहार सरकार को जांच में तेजी लानी चाहिए. बड़े स्तर पर सैंपलों की जांच कराई जाएगी तभी पता चल पाएगा कि सामुदायिक स्तर पर संक्रमण फैला है कि नहीं.”

आईएमए के डॉ. राजीव रंजन भी इससे इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, “सिर्फ एक जोन से आए लोगों की जांच कराई जाए और अन्य जोन के लोगों को छोड़ दिया जाए, यह जांच का वैज्ञानिक तरीका नहीं है. रेड जोन की तरह ही ग्रीन और ऑरेंज जोन से आए प्रवासी मजदूरों का भी कोरोना टेस्ट कराया जाना चाहिए क्योंकि सभी जोन के प्रवासी मजदूर एक ही ट्रांसपोर्ट मोड से आ रहे हैं और एक दूसरे से घुलते-मिलते हैं इसलिए ग्रीन या ऑरेंज जोन से लौटे प्रवासियों में भी संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.”