दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में वैदिक मंत्रों से मरीजों का इलाज

यह अध्ययन अक्टूबर 2016 से अप्रैल 2019 तक किया गया. ऋषि कोछड़/कारवां
09 September, 2019

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दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में गंभीर ब्रेन इंजरी (दिमागी चोट) के मरीजों का अनोखा इलाज किया गया. असमय मृत्यु से बचाव के लिए अस्पताल में वैदिक मंत्रों का जाप हुआ. यह बेमिसाल उपचार, सरकार द्वारा प्रायोजित एक शोध के तहत हुआ.

2014 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या एम्स के तत्कालीन रेजिडेंट न्यूरोफार्मकलॉजिस्ट डॉ. अशोक कुमार ने “गंभीर ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के बाद इन्टर्सेसरी प्रार्थना की भूमिका” के अध्ययन का प्रस्ताव दिया था. इन्टर्सेसरी प्रार्थना का मतलब ऐसी प्रार्थना से है जो मरीज के लिए की जाती है. अस्पताल में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जा रहा है जो प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद का हिस्सा है. डॉ. कुमार यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या गिरने, कार दुर्घटना या अन्य कारणों से दिमागी के गंभीर मामलों में इस मंत्र का जाप करने से मरीजों की हालत में सुधार आता है?

इस अध्ययन को करने के लिए कुमार ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद या आईसीएमआर में रिसर्च फेलोशिप के लिए आवेदन किया था. यह संस्था भारत में जैवचिकित्सा शोध प्रोत्साहन और निरूपण की सर्वोच्च संस्था है जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिनस्त है. मार्च 2016 में परिषद ने इस अध्ययन को मंजूर कर लिया और इसके लिए मासिक 28 हजार रुपए आवंटित कर दिए. यह कोष अक्टूबर 2016 में एक साल के लिए जारी किया गया था लेकिन बाद में इसे दो साल के लिए बढ़ा दिया गया.

कुमार ने एम्स में इसअध्ययन का प्रस्ताव दिया था लेकिन एम्स की आचार समिति ने उनके अध्ययन को “अवैज्ञानिक” करार देते हुए खारिज कर दिया. उसके बाद डॉ. कुमार ने यह प्रस्ताव राम मनोहर लोहिया अस्पताल को भेजा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल की आचार समिति ने प्रस्ताव पर छह राउंड की चर्चा करने के बाद इसे मंजूर कर लिया. कुमार ने बताया कि इस अध्ययन का लक्ष्य यह मूल्यांकन करना है कि क्या गंभीर दिमागी चोट के कारण अचेतन रोगियों के स्वास्थ्य लाभ के लिए इन्टर्सेसरी प्रार्थना का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रभाव पड़ता है, प्रार्थना से मानसिक तनाव और सीरम साइटोकिन्स कम होता है और इलाज से मिलने वाले परिणाम में सुधार आता है?” साइटोकिन्स प्रोटीन सेल कोशिका से निकलता है जो कोशिकाओं के बीच संपर्क को प्रभावित करता है. गंभीर ब्रेन इंजरी से सेल और साइटोकिन्स सक्रिय हो जाते हैं जिससे मस्तिष्क को अतिरिक्त क्षति पहुंचती है.

आजकल डॉ. कुमार राम मनोहर लोहिया अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग में वरिष्ठ शोध फेलो हैं. वह बताते हैं, “रामायण में लंका पहुंचने के लिए सेतु बनाने से पहले भगवान राम ने महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया था. इसी तरह प्राचीन भारत में जब सैनिक घायल हो जाते थे जो उन्हें ठीक करने के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता था. ईसाइयों में भी ऐसे बहुत से अध्ययन हैं जो बताते हैं कि गिरजाघर जाने से ब्रेस्ट कैंसर या हृदय रोगियों को लाभ होता है. हिन्दू सभ्यता ईसाई सभ्यता से अधिक पुरानी है और इसलिए इस प्रोजेक्ट का प्रायोजन हिन्दू विश्वासों के वैज्ञानिक आधारों की खोज करना है.”

डॉ. कुमार के अध्ययन की हाइपोथीसिस है कि इन्टर्सेसरी प्रार्थना से आध्यात्मिक स्पंदन पैदा होती है जो सकारात्मकता पैदा करती हैं और मानसिक तनाव कम करती हैं जिससे साइटोकिन्स कम हो सकता है और गंभीर दिमागी चोट वाले रोगियों को अच्छा परिणाम प्राप्त हो सकता है. डॉ. कुमार ने अक्टूबर 2016 से अप्रैल 2019 तक यह अध्ययन किया. इस अध्ययन में 40 मरीजों की दो श्रेणियां बनाई गई थीं. एक समूह के लिए इन्टर्सेसरी प्रार्थना की गई जबकि दूसरे को प्राप्त उपचार जारी रखा गया. इस तरह इन दोनों समूहों के नतीजों का अध्ययन किया गया. जिन मरीजों के लिए इन्टर्सेसरी प्रार्थना वाला उपचार किया गया उनके परिजनों से लिखित अनुमति ली गई थी.

इस प्रोजेक्ट में महामृत्युंजय मंत्र का जाप सात दिन के भीतर एक लाख 25 हजार बार करना था. चूंकि आरएमएल के डॉक्टरों को मंत्रों का ज्ञान नहीं था इसलिए डॉ. कुमार ने दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के शिक्षकों को लामबंद किया.

डॉ. कुमार ने बताया, “चिकित्सा ज्योतिषशास्त्र विभाग के हेड की इस शोध में बहुत रुचि थी इसलिए उन्होंने हमारे प्रोजेक्ट के लिए महामृत्युंजय को परिमार्जित किया.” मंत्र को मरीज के नाम, उम्र, जन्मस्थान और गोत्र के हिसाब से तैयार किया गया था. विद्यापीठ के एक प्रोफेसर द्वारा गंगाजल से मरीजों की शुद्धी के बाद उनके लिए प्रार्थना की गई. डॉ. कुमार ने प्राथर्ना से पहले और बाद में लिए गए मरीजों के रक्त नमूनों का अध्ययन किया.

फिलहाल अध्ययन के परिणामों को संकलित किया जा रहा है लेकिन डॉ. कुमार का दावा है कि जिन मरीजों के लिए प्राथर्ना की गई थी उनमें नाटकीय सुधार देखा गया है.” हालांकि न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अजय चौधरी ने इस विषय पर सतर्क टिप्पणी की. उनका कहना था, “आरंभिक नतीजों से यह दावा नहीं किया जा सकता कि प्रार्थना से मदद मिली है लेकिन अभी अंतिम परिणाम नहीं आए हैं और कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.”

2014 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से ही छद्म वैज्ञानिक दावों की बाढ़-सी आ गई है. पिछले साल मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने निर्णय किया था कि वह इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में वैदिक काल में बैटरी और बिजली के अस्तित्व और आइजक न्यूटन से पहले ग्रुत्वाकर्षण की जानकारी भारतीयों को होने से संबंधित विषयों को शामिल करेगी.

2019 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति जी. नागेश्वर राव ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का उल्लेख करते हुए दावा किया था कि भारतीयों ने स्टेम सेल (मूल कोशिका) शोध हजारों साल पहले कर लिया था. हाल में बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने दावा किया कि गौमूत्र और गाय से उत्पन्न अन्य सामग्री से उनका ब्रेस्ट कैंसर ठीक हो गया. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दावा किया कि अनुवंशिक विज्ञान और प्लास्टिक सर्जरी का अस्तित्व प्राचीन भारत में था.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने मुझे बाताया, “जब सत्ता में बैठे लोग भ्रामक दावे करते हैं तो आम आदमी इसे सही मान लेता है क्योंकि वह सत्ता पर विश्वास करता है फिर वह सत्ता धर्म की हो या राजनीति की.” वह आगे कहते हैं, “कैथोलिक चर्च ने गैलीलियो को खारिज कर दिया था क्योंकि उनकी खोज चर्च की मान्यताओं के खिलाफ जा रही थी. लेकिन 500 साल बाद चर्च ने अपनी गलती मानी. विज्ञान का हवाला देकर आस्था को प्रमाणित करना हिन्दुत्ववादियों के भीतर की कुंठा को दर्शाता है और यह छद्म विज्ञान को बढ़ावा देता है.”

डॉ. कुमार ने माना कि सटीक परिणामों के लिए अध्ययन के लिए प्रयोग में लाए गए नमूने कम हैं. लेकिन उन्हें विश्वास है कि वह अधिक नमूनों के साथ इस अध्ययन को फिर से करना चाहेंगे. मैंने इस संबंध में आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव को ईमेल भेजा था लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला.

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