वेंटिलेटर की कमी को पूरा करने की जल्दबाजी में सुरक्षात्मक उपकरणों की गलती दोहरा रही सरकार

मनी शर्मा/एएफपी/गैटी इमेजिस

मार्च के अंत तक पहुंचते-पहुंचते कोविड-19 संकट से निपटने में तेजी आई. इससे पता चलता है कि सरकार आखिरकार तेजी से फैल रही महामारी को लेकर अपनी नींद से जाग रही है. पहले से ही चिकित्सा उपकरणों की भारी कमी का सामना कर रहे भारत के डॉक्टरों को इन महत्वपूर्ण वस्तुओं की राशनिंग करनी पड़ेगी. खासतौर आज के वक्त में सोने से भी महत्वपूर्ण वस्तु यांत्रिक वेंटिलेटर की. पिछले सप्ताह केंद्र ने वेंटिलेटरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचनाएं जारी की, इनकी खरीद के लिए एक राष्ट्रीय-स्तर की समिति का गठन किया और नागरिक-उड्डयन विभाग के साथ बैठक कर वेंटिलेटर की अनिवार्य रूप से होने वाली कमी के संबंध में योजना बनाई. फिर भी ऐसा लगता है कि केंद्र ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों और कच्चे माल के भंडारण में विफलता से कोई सबक नहीं सीखा है क्योंकि उसने सभी श्वसन उपकरणों और श्वास यंत्रों के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए 24 मार्च तक का समय लिया.

वेंटिलेटर उन रोगियों की मदद करता है जिन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है. वह फेफड़ों में एक ट्यूब के माध्यम से हवा पंप करता है. कोविड-19 वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है जिसके कारण सांस लेने में तकलीफ वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. इटली और चीन, जिन्हें महामारी का सबसे बुरा सामना करना पड़ा, दोनों पहले से ही इससे निपट रहे हैं और यह संभावना है कि भारत भी इसका सामना करेगा. "उद्योग पर नजर रखने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी आयसोला ने कहा, "ये फैसले एक-दो सप्ताह की देरी से लिए जा रहे हैं, मैं बस आशा ही कर सकती हूं कि इस देरी की हमें बहुत ज्यादा कीमत न चुकानी पड़े. लगता है कि अब जगह-जगह एक बहुस्तरीय ठोस प्रयास होने लगा है और यह उम्मीद जगाती है कि ये सुनिश्चित करेंगे कि जब मामले बढ़ने शुरू होंगे तो हमारे पास पर्याप्त वेंटिलेटर होंगे."

मामलों में वृद्धि के अंतर्राष्ट्रीय पैटर्न और कई देशों द्वारा देखी गई आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की कमी के बावजूद, भारत सरकार चेतावनी जारी करने और संक्रमण के फैलने से पहले कमद उठाने में बार-बार विफल रही है. सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट के दौरान वेंटिलेटर के निर्यात को प्रतिबंधित करने की अपनी पहली अधिसूचना जारी करने में केंद्र सरकार ने 19 मार्च तक का समय लगा दिया. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चिकित्सा कर्मचारियों के लिए सुरक्षात्मक उपकरणों की आपूर्ति में व्यवधान की आशंका से संबंधित दिशानिर्देश जारी करने के तीन सप्ताह बाद. इसी अधिसूचना ने कवरऑल और मास्क के लिए कच्चे माल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया. फिर भी सरकार को वेंटिलेटर के हिस्सों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी करने में और 5 दिन लगे. 24 मार्च को विदेश व्यापार महानिदेशालय ने "सभी वेंटिलेटर, किसी भी तरह के कृत्रिम श्वसन उपकरण या ऑक्सीजन थैरेपी उपकरण या किसी अन्य श्वास उपकरण/यंत्र" के निर्यात पर रोक लगा दी.

22 मार्च को एक प्रेस वार्ता में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने बताया तो था कि केंद्र ने 1200 नए वेंटिलेटर खरीदने का आदेश दिया है लेकिन यह अभी भी डॉक्टरों की आवश्यक मांग से कम हो सकता है. विशेष रूप से यह महाराष्ट्र के लिए सच है जहां राज्य सरकार ने निर्दिष्ट किया है कि भारत में बने वेंटिलेटर को संयुक्त राज्य के खाद्य और औषधि प्रशासन या यूरोपीय संघ द्वारा सीई प्रमाणित किया जाना चाहिए. सीई दर्शाता है कि उत्पाद यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र में लागू स्वास्थ्य मानकों को पूरा करता है. समय की कमी और वैश्विक स्तर पर उड़ानों के बंद होने को देखते हुए सख्त मानकों का पालन करना असंभव है. यह देखते हुए कि भारतीय राज्यों के बीच महाराष्ट्र अब तक सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ है जहां 100 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, उपरोक्त निर्णय तात्कालिकता के अभाव को भी दर्शाता है.

एक वेंटिलेटर निर्माता ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे कहा कि उन्होंने अव्यवहारिक मानकों पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए राज्य सरकार से संपर्क किया था. उन्होंने सरकार को लिखा, "संकट के इस समय में, यह बहुत भयावह है कि सीई अनुमोदन और यूएस एफडीए को अनिवार्य बनाया गया है." उन्होंने राज्य से उन विशिष्टताओं को विकसित करने का अनुरोध किया जो भारतीय निर्माताओं के लिए "व्यावहारिक, प्राप्त करने योग्य और संभव हो", उन्होंने साथ में यह भी कहा कि "केवल न्यूनतम मोड या विनिर्देशों के बारे में ही पूछा जाना चाहिए."

इस बीच, लॉकडाउन ने पूरे देश में वेंटिलेटर के निर्माण को प्रभावित किया है. इकोनॉमिक टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में, एगवा हेल्थकेयर के सह-संस्थापक दिवाकर वैश, जो आयातित वेंटिलेटर की लागत से पांच गुना कम पर वेंटिलेटर बनाते हैं, ने कहा कि उड़ान प्रतिबंध के चलते बड़ी संख्या में वेंटिलेटर के निर्माण के लिए चीन से सेंसर, चिप्स और माइक्रो नियंत्रकों की आपूर्ति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है. बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, कंपनी 20000 वेंटिलेटरों तक उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है जो वर्तमान में आवश्यक संसाधनों की कमी के कारण मुश्किल है. वैश ने कहा, "शेन्झेन में इलेक्ट्रॉनिक हिस्से तैयार हैं. उड़ान प्रतिबंध के कारण वे इन्हें हमारे पास भेजने में असमर्थ हैं."

मार्च के अंत में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रत्यक्ष भागीदारी के साथ वेंटिलेटर खरीद की सुविधा के लिए एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया. 9 भारतीय वेंटिलेटर निर्माताओं ने समिति को बताया कि भारत में वाणिज्यिक एयरलाइनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने से वेंटिलेटर बनाने के लिए आवश्यक घटकों की कमी हो जाएगी. एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संस्थापक राजीव नाथ के अनुसार, निर्माताओं के अनुरोध पर पीएमओ वेंटिलेटर निर्माण के लिए आवश्यक सेंसर, चिप्स और नियंत्रकों के लिए चीन के लिए कार्गो उड़ानें भेजने की संभावना पर विचार कर रहा है. (चीन ने निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है क्योंकि वह कोविड-19 की पहली लहर से उभरने लगा है.)

भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में वेंटिलेटर की सही संख्या सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं की गई है लेकिन महामारी की प्रकृति को देखते हुए वेंटिलेटर की बढ़ती मांग जल्द ही देश में सीमित आपूर्ति से काफी ज्यादा बढ़ जाएगी. गैर-लाभकारी सार्वजनिक-नीति संगठन, ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के एक अनुमान के अनुसार, भारत के पांच-दस प्रतिशत रोगियों को महत्वपूर्ण देखभाल के दौरान वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी. जानकारों और डेटा वैज्ञानिकों के एक अंतःविषय समूह कोव-इंड-19 स्टडी ग्रुप द्वारा प्रकाशित एक अनुमान में कहा गया है कि भारत में बिना किसी हस्तक्षेप के 15 मई तक 2.2 मिलियन मामले सामने आ सकते हैं. कोव-इंड-19 स्टडी ग्रुप के अनुमान का उल्लेख करते हुए, ब्रूकिंग्स ने बताया है कि भारत को 110000 से 220000 वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी. ब्रूकिंग्स की रिपोर्ट आगे कहती है:

हमारे पास सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध वेंटिलेटर की संख्या पर कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं, हालांकि, हम अस्पतालों में उपलब्ध बेड की संख्या का उपयोग करते हुए एक अनुमानित आंकड़े पर पहुंच सकते हैं जो 713986 कुल सरकारी बेड, जिसमें से 5 से 8 प्रतिशत आईसीयू बेड हैं (35699 से 57119 आईसीयू बेड). यह मानते हुए कि इन आईसीयू बेड के 50 प्रतिशत में वेंटिलेटर हैं, हम देश में 17850 से 25556 वेंटिलेटर के अनुमान पर पहुंचते हैं. यहां तक कि सबसे अच्छी स्थिति में जब सभी आईसीयू बेड वेंटिलेटर से लैस हों, हमारे पास कोविड-19 रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर अधिकतम 57 हजार वेंटिलेटर हैं.

जाहिर है कि स्थिति विकट है. नाथ ने मुझसे कहा, "हम सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि यह देखा जा सके कि विदेशों से कच्चे माल और घटकों की कितनी जरूरत है." उन्होंने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव पीडी वाघेला ने 24 मार्च को नागरिक उड्डयन विभाग के साथ चार राष्ट्रीय कैरियरों की एक बैठक बुलाई थी, जिसमें ''चीन, यूएसए और जापान वगैरह से कार्गो विमानों द्वारा माल ढुलाई, कच्चे माल और उपकरणों की व्यवस्था पर चर्चा की गई थी." नाथ ने कहा, "हम किए जा रहे उपायों के लिए आभारी हैं और अगली चुनौती घरेलू कोरियर और लोकल टेंपो/ट्रकों को फिर से शुरू करने की है."

 26 मार्च की दोपहर तक, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुल 593 सक्रिय कोविड-19 मामलों की रिपोर्ट की. 42 ठीक होकर डिस्चार्ज कर दिए गए मामले थे और 13 मौतें हुईं थीं. चिकित्सा उपकरणों की कमी के मद्देनजर सुरक्षा गियर, बेड और डॉक्टरों की राशनिंग हैरानी की बात नहीं होगी. आने वाले महीनों में सबसे ज्यादा जरूरत यांत्रिक वेंटिलेशन यंत्रों की होगी. यूरोप में कोरोनावायरस के सबसे मजबूत केंद्र इटली में डॉक्टरों को यह हृदय-विदारक निर्णय लेने के लिए मजबूर किया गया था कि किसे वेंटिलेटर दिया जाए और किसे नहीं क्योंकि अस्पताल में कोविड-19 रोगियों की बाड़ आ गई थी.

संयुक्त राज्य अमेरिका में, फोर्ड, जनरल इलेक्ट्रिक और टेस्ला जैसे ऑटो निर्माता वेंटिलेटर की कमी को पूरा करने के लिए इसके उत्पादन में हाथ बंटा रहे हैं. यूनाइटेड किंगडम में, ब्रिटिश सरकार बड़े निर्माताओं को कार और हवाई जहाज के इंजन के बजाय वेंटिलेटर उपकरण बनाने पर जोर दे रही है. भारत में महिंद्रा समूह ने कहा है कि वह वेंटिलेटर बनाएगा. आनंद महिंद्रा ने ट्वीट किया, “हमें अच्छी खासी संख्या में अस्थायी अस्पताल बनाने की जरूरत है और हमारे पास वेंटिलेटरों की कमी है. इस अभूतपूर्व खतरे के समय सहयोग करने के लिए हम महिंद्रा समूह तुरंत काम शुरू कर देंगे कि हमारी विनिर्माण सुविधाएं वेंटिलेटरों का उत्पादन कैसे कर सकती हैं.”

लेकिन महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने विशिष्ट प्रमाणन को अनिवार्य करके एक अनावश्यक अड़चन पैदा कर दी है जिसके चलते पहले से ही एक अनमोल संसाधन की आपूर्ति में बाधा हो रही है. जिस निर्माता ने नाम न जाहिर करने का अनुरोध किया था, उसने सरकार को भेजे अपने संदेश में इस बात का विशेष उल्लेख किया है : “आईआईटी और संबद्ध विश्वविद्यालयों में ऐसे कई समूह हैं जो वेंटिलेटर डिजाइन कर रहे हैं जिन्हें बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है. इस स्थिति में उनसे सीई या यूएसएफडीए अनुमोदित होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.”

मैंने वाघेला और राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण की अध्यक्ष सुभद्रा सिंह को वेंटिलेटरों की कमी के संबंध में अपने सवाल मेल किए थे लेकिन मुझे उनका जवाब नहीं मिला.