23 मई को दिल्ली के खिजराबाद इलाके में रहने वाले श्रमिक बहुत खुश थे. दो महीनों से बड़ी मुश्किलों से जिंदगी गुजर करने के बाद आखिरकार केंद्र सरकार की विशेष रेल सेवा, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से वे छपरा (बिहार) लौट रहे थे. बगैर किसी सोच-विचार के लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण परेशानी में फंसे श्रमिकों के लिए अब केंद्र सरकार ने ये ट्रेनें चलाई हैं. लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार इन विशेष श्रमिक रेलों को चलाने में वैसी ही असक्षम है जैसी वह कोरोनावायरस महामारी से निपटने में है. परिणाम स्वरूप, इन ट्रेनों में यात्रा करने वाले श्रमिकों को लंबे इंतजार, भूख, गंदगी और अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है. खिजराबाद के श्रमिकों ने मुझे बताया कि स्पेशल रेलों में भ्रम और अफरा-तफरी का माहौल है.
खिजराबाद के श्रमिकों का जो अनुभव रहा है वैसा ही भारत भर के श्रमिकों का भी है. स्थिति इतनी खराब है कि भूख से यात्रियों के मरने की खबरें आ रही हैं. हालांकि भारतीय रेलवे ने दावा किया है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह भूख नहीं है. श्रमिक रेलों के कुप्रबंधन, खराब नियोजन और बेकार कार्यान्वयन के कारण कई बार “जाना था जापान, पहुंच गए चीन” जैसी स्थिति बनी और रास्ते में ही रेलों का मार्ग परिवर्तन हो गया जिससे हुई लंबी देरी से यात्री परेशान हुए. ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने मुझे बताया कि रेलों के देरी से चलने से पानी और साफ-सफाई का संकट खड़ा हो गया है.
कई रेलवे अधिकारियों ने कहा कि लाइनों में भीड़भाड़ होने के कारण देरी हो रही है. इसके अलावा वे यह भी कहते हैं कि केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी के कारण भी देरी हो रही है. एक स्टेशन डायरेक्टर ने नाम ना छापने की शर्त पर मुझे बताया, “बेहतर समन्वय से इसे आसानी से संभाला जा सकता था लेकिन महामारी के खिलाफ जैसा काम नरेन्द्र मोदी प्रशासन कर रहा है उससे साफ है कि सुनियोजित नीतियां और समन्वय सरकार की प्राथमिकता में नहीं है.” वहीं मिश्रा ने कहा, “कोविड-19 का अनुभव दिखाता है कि सरकार की प्रतिक्रिया उस पर पड़ने वाले मीडिया के दबाव को हल्का करने के लिए ही होती है. उसकी अपनी कोई समझदारी नहीं है.”
23 मई की सुबह ये 40 मजदूर खिजराबाद से श्रमिक स्पेशल ट्रेन पकड़ने के दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पहुंचे. ट्रेन लेने से पहले उन्हें मेडिकल स्क्रीनिंग के लिए दिल्ली सरकार के एक चेकप्वाइंट में जाना पड़ा. उसके बाद इन लोगों को बस में बैठा कर रेलवे स्टेशन भेजा गया. मेडिकल चेकअप की वजह से इस समूह को स्टेशन पहुंचने में देरी हो गई और उन्हें दूसरी ट्रेन में यात्रा करने के लिए कहा गया. लेकिन वह ट्रेन छपरा ना जाकर पूर्णिया जाने वाली थी. पूर्णीया छपरा से करीब 400 किलोमीटर दूर है.
उन श्रमिकों में से एक, दिनेश राय ने मुझे बताया, “जब हम लोग स्टेशन पहुंचे तो हमें टिकट देकर आनंद विहार से पूर्णिया जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए कहा गया.” राय ने मुझे बताया कि अधिकारियों ने उनसे कहा कि वह ट्रेन छपरा से होकर जाएगी और लगभग दोपहर 2 बजे वे लोग ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन के चलने का इंतजार करने लगे. “हम लोग खुश थे कि ज्यादा से ज्यादा 24 घंटे में तो हम लोग छपरा पहुंच ही जाएंगे.” लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उस ट्रेन को वाराणसी और मुगलसराय की तरफ मोड़ दिया गया. फिर वहां से सासाराम और गया की तरफ ट्रेन मुड़ गई और अंततः लगभग 38 घंटे की यात्रा के बाद 25 मई की सुबह 4 बजे वह पटना पहुंची. लेकिन छपरा नहीं पहुंची.
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