कोलेटरल डैमेज : कोविड-19 के दौर में बुरी तरह परेशान कैंसर, टीबी और किडनी के मरीज

04 सितंबर 2020
कोरोनावायरस के चलते लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच 1 अप्रैल 2020 को उत्तर प्रदेश के झांसी शहर के कैंसर रोगी मंजू और उनके पति तारा चंद अपनी कीमोथेरापी के लिए तारीख पाने के इंतजार में अस्पताल के बाहर एक टेंट में बैठे हुए.
यावर नाजिर / गैटी इमेजिस
कोरोनावायरस के चलते लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच 1 अप्रैल 2020 को उत्तर प्रदेश के झांसी शहर के कैंसर रोगी मंजू और उनके पति तारा चंद अपनी कीमोथेरापी के लिए तारीख पाने के इंतजार में अस्पताल के बाहर एक टेंट में बैठे हुए.
यावर नाजिर / गैटी इमेजिस

दिल्ली के रहने वाले 47 साल के प्रमोद जोशी को सितंबर 2019 में पता चला कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है. उन्होंने अगले महीने दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज शुरू किया और जल्द ही उन्हें सर्जरी की जरूरत पड़ गई. उन्होंने शहर के एक निजी अस्पताल में ट्यूमर का ऑपरेशन करवा लिया और फरवरी 2020 तक उनकी कीमोथेरेपी शुरू हो गई. अगला कदम बचे हुए ग्लियोमा को खत्म करने के लिए विकिरण या रेडिएशन इलाज शुरू करना था. ग्लियोमा मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में नसों को घेरने और सहारा देने वाली कोशिकाओं का एक ट्यूमर होता है. अप्रैल के मध्य में एम्स में प्रमोद का विकिरण उपचार शुरू करना तय हुआ था. लेकिन मार्च के अंत तक कोविड-19 के प्रकोप के चलते देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया. प्रमोद का विकिरण उपचार नहीं हो सका क्योंकि अस्पतालों ने अपने बाह्य रोगी विभागों या ओपीडी को बंद कर दिया और प्रमुख अस्पताल कोविड-19 केंद्र बन गए, जो केवल नोवेल कोरोनावायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज कर रहे थे. उनके भाई दीपक जोशी ने कहा कि परिवार ने प्रमोद की हालत को तीन महीने तक बिगड़ते और उसके शरीर के दाहिने हिस्से का काम करना बंद करते हुए देखा.

प्रमोद को जून की शुरुआत में कुछ उम्मीद जगी थी जब एक निजी अस्पताल वेंकटेश्वर अस्पताल के डॉक्टरों ने प्रमोद के विकिरण को शुरू करने पर सहमति व्यक्त की. लेकिन एक और अड़चन थी. दीपक ने बताया, "हमें कुछ ब्लड रिपोर्ट और कोविड-19 रिपोर्ट निकलवाने के लिए कहा गया. 10 जून 2020 की कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई. यह हैरानी वाली बात थी क्योंकि मेरा भाई एक पल के लिए भी बाहर नहीं गया था.” प्रमोद में कोविड-19 के कोई लक्षण नहीं थे लेकिन उनका विकिरण उपचार एक बार फिर टल गया. संक्रमण के बारे में स्पष्ट होने से पहले उन्हें एक और महीने तक इंतजार करना पड़ा और तीन और कोविड-19 परीक्षण कराने पड़े, जुलाई के अंत में उनका विकिरण शुरू किया जा सकता था.

"लेकिन तब तक उनका दाहिना पैर और दाहिना हाथ पूरी तरह से शक्तिहीन हो चुका था," दीपक ने कहा. "उनके शरीर का दाहिना हिस्सा अब लगभग लकवाग्रस्त है." उन्होंने अपने भाई की दुर्दशा के लिए "नीति निर्माताओं के ढीले-ढाले रवैये को दोषी ठहराया, जिन्होंने समय पर उपचार की आवश्यकता वाले अन्य रोग से पीड़ित रोगियों की दुर्दशा को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया."

कोविड-19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के कारण नियमित स्वास्थ्य सेवा का तबाही का अन्य तीव्र या पुरानी बीमारियों के रोगियों पर गंभीर और कई बार भयावह प्रभाव पड़ता है. मरीजों ने पाया कि उनका इलाज कर रहे अस्पतालों को अचानक बंद कर दिया गया था. दूसरों को सार्वजनिक अस्पतालों, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं और यहां तक ​​कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लौटा दिया गया था. ऐसे रोगी जिनकी बीमारी की देखभाल की जा सकती ​थी उनकी बीमारी अपरिवर्तनीय रूप से बदतर हो गई है क्योंकि कोविड-19 को अन्य सभी स्वास्थ्य सेवाओं को हटाकर प्राथमिकता दी गई है.

राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय लॉकडाउन लागू होने से कई मरीज अस्पतालों में जाने के लिए संघर्ष करते रहे. ऐसा ही एक मामला बिहार के गया जिले के अमरा गांव की निवासी फुलवा देवी का था. उन्हें एक तरह का कैंसर था जिसे क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया कहा जाता था. मई के आखिर में, उनके पति को उन्हें सौ किलोमीटर दूर पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में अपनी साइकिल पर ले जाना पड़ा, क्योंकि ट्रेन और बस बंद थीं. अस्पताल के बाहर एक रात बिताने के बाद वह अपना इलाज करा पाईं.

अखिलेश पांडे दिल्ली के पत्रकार हैं.

Keywords: COVID-19 cancer Tuberculosis coronavirus lockdown
कमेंट