पुणे में कोविड-19 ड्यूटी में खटने वाले ठेका स्वास्थ्य कर्मियों को वेतन के लिए करनी पड़ रही हड़ताल

पुणे में बैरामजी जीजीभॉय मेडिकल कॉलेज से जुड़े ससून अस्पताल के स्वास्थ्य कार्यकर्ता 23 नवंबर 2020 को डीन के साथ बात करने और बकाया राशि प्राप्त करने के लिए इकट्ठा हुए. प्रथम गोखले / हिंदुस्तान टाइम्स

1200 बिस्तरों की क्षमता वाला पुणे का एक सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल ससून, बैरामजी जीजीभॉय मेडिकल कॉलेज और एक नर्स प्रशिक्षण स्कूल से संबद्ध है. कॉलेज में 260 से अधिक डॉक्टरों का शिक्षण स्टाफ है और 200 एमबीबीएस और 144 स्नातकोत्तर छात्र हर साल कॉलेज से पास होकर निकलते हैं. अप्रैल 2020 में बढ़ते कोविड-19 मामलों के बीच अस्पताल ने एक नवनिर्मित भवन में 1000 विस्तरों का समर्पित कोविड-19 केंद्र की शुरूआत की. अस्पताल ने नए कोविड-19 केंद्र में कर्मचारियों की भर्ती का ठेका 2008 में बनी भर्ती कंपनी ठाकुर करियर जोन को दिया था. 

काम पर रखे गए सैकड़ों लैब तकनीशियनों, नर्सों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरह ही 26 वर्षीय खेकन की भी छह महीने के ठेके पर नियुक्ति हुई थी.

10 नवंबर 2020 को खेकन ने पुणे की लेबर कोर्ट में करियर जोन के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया. खेकन ने महीनों तक ससून अस्पताल के कोविड-19 वार्ड में लैब टेक्नीशियन का काम किया था लेकिन उन्हें पूरा वेतन नहीं मिला था. करियर जोन ने उन्हें तीन महीने बाद अचानक काम से निकाल दिया. खेकन का कहना कि उन्हें पूरे वेतन का भुगतान नहीं किया गया. उन्होंने मुझे बताया कि वह पहले ही करियर जोन की प्रमुख भाग्यश्री ठाकुर से गुहार लगा चुकी हैं और ससून अस्पताल के डीन से शिकायत कर चुकी हैं. जब कुछ भी काम नहीं आया, तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया.

खेकन को 25000 रुपए प्रति माह वेतन देने का वादा किया गया था लेकिन उन्हें अगस्त और सितंबर में केवल 15000 रुपए का भुगतान किया गया. 31 अक्टूबर को रात 10 बजे खेकन को करियर जोन के कार्यालय से एक फोन आया और कहा गया कि अगले दिन से काम पर न आएं. उन्होंने पूछा, “आधी रात में वे हमें इस तरह कैसे हटा सकते हैं? कोई नोटिस अवधि नहीं, कुछ भी नहीं."

अगले सोमवार को 25 लैब टेक्नीशियन, जिन सभी के अनुबंध खेकन के साथ समाप्त कर दिए गए थे, ठाकुर के ससून अस्पताल के अस्थायी कार्यालय में पहुंचे और मांग की कि उन्हें पूरी राशि का भुगतान किया जाए. अगस्त और सितंबर के महीने का आधा वेतन और अक्टूबर की पूरी तनख्वाह नहीं मिली थी. खेकन के अनुसार, ठाकुर कहती रहीं कि ससून अस्पताल ने अभी तक हमारा वर्क आर्डर दाखिल नहीं किया है और करियर जोन को भी अब तक अस्पताल से भुगतान नहीं मिला है. इसके बाद तकनीशियनों ने ससून अस्पताल के डीन मुरलीधर तांबे से बात की, जिन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि अस्पताल ने करियर जोन का भुगतान कर दिया है और उन्हें नहीं पता कि ठाकुर ने अनुबंध श्रमिकों को भुगतान क्यों नहीं किया.

खेकन व तीन अन्य तकनीशियनों ने करियर जोन के खिलाफ लेबर कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया. जनवरी 2021 में अदालत ने दोनों पक्षों को समझौता करने को कहा और ठाकुर खेकन का बकाया चुकाने पर सहमत हो गईं. जनवरी में निपटारे के तुरंत बाद खेकन को अगस्त और सितंबर 2020 का वेतन और अप्रैल में अक्टूबर 2020 का वेतन मिल गया.

करियर जोन के लिए काम करने वाले अधिकांश श्रमिकों की तुलना में खेकन भाग्यशाली थीं. 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान विभिन्न अवधियों के लिए ससून अस्पताल में काम करने वाले तकनीशियनों, नर्सों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा है. कुछ ने मुझे बताया कि उनका वेतन अभी भी बकाया है. अन्य को ठेका कार्य स्वीकार करते समय जमा की गई जमानत राशि वापस नहीं की गई है. कुछ ने ठाकुर को अपने मूल दस्तावेज और शिक्षा प्रमाण पत्र दिए, जो वापस नहीं किए गए. श्रमिकों के अनुबंध के अनुसार, उनके वेतन का एक हिस्सा हर महीने भविष्य निधि में जमा किया जाना था. मैंने जिन लोगों से बात की, जिन्हें निकाल दिया गया है, लगभग सभी ने शिकायत की कि कंपनी ने उनके भविष्य निधि खातों में वेतन का 12 प्रतिशत से कम जमा किया है. मैंने जिन मजदूरों से बात की, उनके अनुमान के अनुसार, करियर जोन के साथ बातचीत के दौरान कम से कम 150 नर्सों, 20 लैब तकनीशियनों और 10 सामाजिक कार्यकर्ताओं को समस्याओं का सामना करना पड़ा है. एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रतीक देशमुख ने कहा, "उन्होंने हमें मानसिक रूप से बहुत परेशान किया है. मैं आपको क्या बताऊं कितना परेशान किया है." करियर जोन की भाग्यश्री ठाकुर ने 1 अक्टूबर को देशमुख को ससून अस्पताल में काम पर रखा था. उन्हें 31 अक्टूबर को नौकरी से निकाल दिया गया था.

महामारी के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में ठेका श्रमिकों के दुर्व्यवहार का सामना करने संबंधी कई रिपोर्टें सामने आई हैं. 11 जुलाई 2020 को नई दिल्ली के हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च और उससे जुड़े हकीम अब्दुल हमीद सेंटेनरी हॉस्पिटल ने अचानक 84 नर्सों को नौकरी से निकाल दिया. उसी दिन संस्थान ने कम वेतनमान पर 12 महीने की अवधि के लिए नर्सों की भर्ती के लिए वॉक-इन इंटरव्यू आयोजित किया. 24 जुलाई को पटना में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से 11 संविदा नर्सिंग स्टाफ सदस्यों को नियमित कर्मचारियों के समान कार्य नियमितीकरण, वेतन समानता और स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग को लेकर हड़ताल पर जाने के चलते नौकरी से निकाल दिया गया था. 4 दिसंबर को भोपाल में नौकरियों से निकालने जाने का विरोध कर रहे 600 संविदा स्वास्थ्य कर्मियों पर लाठीचार्ज किया गया और उन्हें उनके विरोध स्थल से भगा दिया गया.

ससून अस्पताल महात्मा फुले जन आरोग्य योजना के तहत करियर जोन के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ताओं को नियुक्त करता है. प्रतीक देशमुख जैसे सामाजिक कार्यकर्ता योजना के लाभार्थियों की सभी जरूरतों का प्रबंधन करते हैं, उन्हें पंजीकृत करने से लेकर परिवारों को परामर्श प्रदान करने तक. कई अन्य लोगों की तरह देशमुख को भी करियर जोन में शामिल होने पर 10000 रुपए की सुरक्षा जमा राशि का भुगतान करना पड़ा. करियर जोन के साथ उनके अनुबंध में यह निर्दिष्ट किया गया था कि चूंकि उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं "आवश्यक सेवाएं हैं इसलिए आप उक्त सेवाओं को प्रदान करने से पीछे नहीं हट पाएंगे. इस उद्देश्य के लिए आपको हमें एक अंडरटेकिंग/क्षतिपूर्ति बांड जमा करना होगा." दूसरी ओर करियर जोन "आपको किसी भी समय काम से हटाने का अधिकार अपने पास रखेगा, यहां तक कि पहले 6 महीनों के दौरान भी."

देशमुख के साथ 31 अक्टूबर को निकाल दिए गए एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता अमर जलिंदर धयागुड़े ने कहा, “हमें नौकरी से निकाल दिया. कोई बात नहीं. ऐसा अनुबंध में है. लेकिन हमें हमारे लंबित वेतन का भुगतान तो करें. हमें हमारी जमानत राशि वापस दें.” धयागुड़े के अनुबंध में यह उल्लेख नहीं था कि उन्हें कितना भुगतान किया जाएगा. उन्होंने कहा कि ठाकुर ने मौखिक रूप से उनसे 20000 रुपए प्रति माह का वादा किया था. कई संविदा कर्मियों ने अपने प्रस्ताव पत्रों में वेतन का उल्लेख न होने की शिकायत की है.

ठाकुर के कार्यालय में बार-बार चक्कर लगाने के बाद भी धयागुड़े को अक्टूबर 2020 का वेतन नहीं मिला. वह पांच अन्य श्रमिकों के साथ लेबर कोर्ट में करियर जोन के खिलाफ खेकन वाले मामले में पक्षकार बने. उनकी पहली सुनवाई 14 दिसंबर को निर्धारित की गई थी लेकिन ठाकुर निर्धारित तिथि पर अदालत में पेश नहीं हुईं. उन्हें दूसरी तारीख 14 जनवरी की मिली. इस बार, ठाकुर ने अदालत की उपस्थिति में श्रमिकों के साथ समझौता किया और जो भी बकाया था उसका भुगतान करने का वादा किया.

सेटलमेंट के बाद करियर जोन ने धयागुड़े को 17400 रुपए दिए. उन्हें अभी भी शेष 2600 रुपए नहीं मिले हैं, जो कि करियर जोन द्वारा उनके भविष्य निधि में जमा किए जाने थे. उन्हें पांच हजार रुपए की जमानत राशि भी वापस नहीं मिली है. उनके अनुबंध में यह निर्धारित किया गया था कि छह महीने का काम पूरा करने के बाद ही उन्हें उनकी सुरक्षा जमा राशि वापस मिलेगी और यदि उस अवधि से पहले उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है तो प्रतिपूर्ति का कोई उल्लेख नहीं है.

जब मैंने 10 मई को ठाकुर से फोन पर बात की, तो उन्होंने मुझे बताया कि देरी से भुगतान का दोष ससून अस्पताल का है. उन्होंने कहा कि सरकारी भुगतानों में तो चार महीने तक की देरी होती है. उन्होंने दावा किया कि उनकी कंपनी दो महीने के कर्मचारियों के वेतन का खर्च अपने दम पर वहन कर सकती है लेकिन अगर इससे आगे की देरी होती है तो ऐसा करना मुश्किल हो सकता है. "अब भी फरवरी का वेतन लंबित है," उन्होंने कहा. "ससून ने अभी तक भुगतान नहीं किया है."

तांबे ने इस दावे का खंडन किया कि ससून अस्पताल ने भुगतान नहीं किया है. उन्होंने मुझे बताया कि अस्पताल ने सभी भुगतानों को मंजूरी दे दी थी और समस्या करियर जोन की ओर से थी. “हमने अपनी ओर से भुगतान कर दिया है. अब यह उन पर है." तांबे ने कहा.

ठाकुर ने ससून अस्पताल में काम करने के लिए जिन नर्सों को काम पर रखा था, उनकी हालत अन्य ठेका कर्मियों से भी बदतर थी. ज्यादातर नर्सें शहर के बाहर से पुणे आई थीं. उनके अनुबंधों में करियर जोन ने उनसे वादा किया था कि वह उनके वेतन के अलावा भोजन और आवास उपल्बध कराएगा. पहले दो महीनों के लिए कंपनी ने शहर भर के होटलों में करीब 150 नर्सों को रखा. लेकिन उसके बाद ठाकुर ने उन्हें बताया कि इस व्यवस्था को बनाए रखना बहुत महंगा पड़ रहा है. इसके बाद करियर जोन ने नर्सों को नेशनल केमिकल लेबोरेटरी एंड कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे के छात्रावासों में स्थानांतरित कर दिया जहां सरकार नर्सों के कमरे और बोर्ड का खर्च वहन करेगी. कई नर्सों ने मुझे बताया कि छात्रावासों में रहने की व्यवस्था बेहद खराब थी. प्रत्येक कमरे में चार लोगों को रखा जाता था और शारीरिक दूरी की कोई गुंजाइश नहीं थी. शौचालय बेहद गंदे थे और उन्हें साफ करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी और भोजन की भी व्यवस्था नहीं थी. नाम न छापने की शर्त पर एक 26 वर्षीय नर्स ने कहा, "कभी-कभी हमें खाना मिलता था, कभी-कभी नहीं मिलता था. कोई व्यवस्था नहीं थी."

नर्स ने बताया कि सितंबर की शुरुआत में ठाकुर ने नर्सों से कहा था कि करियर जोन उन्हें खाना नहीं देगा. नर्स के अनुसार, ठाकुर ने यह भी कहा कि शैक्षणिक सेमेस्टर जल्द ही शुरू होने वाला है और छात्रों के छात्रावासों में आने से नर्सों को परिसर खाली करना होगा. 26 वर्षीय नर्स ने कहा, "तभी हमने हड़ताल पर जाने का फैसला किया." 5 अक्टूबर को 150 नर्सों ने उचित भोजन और आवास की मांग को लेकर ससून अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. धरना दो दिन तक चला. तीसरे दिन ठाकुर ने उनसे मुलाकात की और कहा कि उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा. दो दिन बाद, 10 अक्टूबर को, 26 वर्षीय नर्स को करियर जोन "मानहानि और अनुबंध के उल्लंघन" के लिए कानूनी नोटिस भेज दिया. नोटिस में कहा गया है कि "आपके उकसावे पर कुछ कर्मचारियों ने अपने कर्तव्यों से बचना शुरू कर दिया है और उनका व्यवहार अनुचित है और उनके पेशे के अनुरूप नहीं है." नोटिस में नर्स पर "रोगियों की देखरेख में लापरवाही और हमारी फर्म या एजेंसी के माध्यम से काम करने वाली नर्सों के साथ यूनीयनबाजी करने और सभी कर्मचारियों को ड्यूटी से अनुपस्थित रखने और उन्हें काम पर जाने से मना करने का प्रयास" करने का आरोप लगाया.

नोटिस में कहा गया है कि नर्स ने "दुर्भावनापूर्ण इरादे से 6 अक्टूबर 2020 को न्यूज पेपर पुणे मिरर में एक लेख लिखा है जिससे मेरे मुवक्किल के लिए अपमानजनक है और मुवक्किल पर अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि उन्होंने आपको छोटे कमरे दिए, फर्श पर सोना पड़ा, कोई भविष्य निधि नहीं, कोई वेतन स्लिप नहीं, कोई उचित भोजन की व्यवस्था नहीं आदि, जो पूरी तरह से झूठ और निराधार है. नोटिस में उल्लिखित उक्त लेख को तब से हटा दिया गया है. नोटिस के साथ नर्स को "मेरे मुवक्किल की प्रतिष्ठा और वित्तीय नुकसान के लिए 15000000 (15 लाख) रुपए का भुगतान करने को" कहा गया है. विरोध में सबसे आगे रहने वाली अन्य नर्सों को भी इसी तरह के नोटिस जारी किए गए हैं. नोटिस का जवाब नहीं देने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.

सांगली की 26 वर्षीय नर्स और एक अन्य नर्स ने कहा कि करियर जोन ने उन्हें सितंबर का पूरा और अक्टूबर के दस दिनों का वेतन नहीं दिया है. कंपनी ने सांगली की नर्स को उसकी 10000 रुपए की जमानत राशि वापस नहीं दी है. दोनों नर्सों को उनके नाम से जमा की गई भविष्य निधि में नहीं मिली. दोनों को ससून अस्पताल में किए गए काम का अनुभव प्रमाण पत्र नहीं मिला है. 26 वर्षीय नर्स ने कहा, "कानूनी नोटिस के बाद, कोई भी नर्स इस बारे में बात करने को तैयार नहीं थी कि उन्होंने क्यों छोड़ा. मैं बहुत निराश थी. अंत में, सिर्फ मैं और एक अन्य नर्स (सांगली की नर्स) रह गए ठाकुर के खिलाफ लड़ने वाले. कोई एकता नहीं है.”

पूजा जाधव, हर्षदा पाटिल और रमन दत्तात्रेय उन 28 नर्सों में हैं जिन्हें पिछले साल अगस्त में करियर जोन ने काम पर रखा था. उन्हें बताया गया था कि वे ससून अस्पताल में काम करेंगे लेकिन ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करने पर उन्हें पता चला कि उन्हें पुणे के बानेर में ससून से लगभग 12 किलोमीटर दूर पुणे नगर निगम द्वारा स्थापित कोविड-19 केंद्र को सौंपा गया है. चूंकि अस्पताल और देखभाल केंद्र दोनों ही पीएमसी के अंतर्गत आते हैं इसलिए जरूरत पड़ने पर एक सुविधा से दूसरी सुविधा में स्थानांतरित किया जाना आम बात है. नर्सों के अनुबंधों में 35000 रुपए के वेतन के साथ-साथ उनके रोजगार की अवधि भर भोजन और आवास दिए जाने का उल्लेख है. करियर जोन ने सभी 28 नर्सों को बानेर के सनशाइन होटल में रखा. हालांकि, केवल एक दिन के काम के बाद नर्सों की नौकरी चली गई क्योंकि करियर जोन का निगम के साथ अनुबंध खत्म हो गया. जाधव ने कहा, "जब हमने ठाकुर से फोन पर बात की, तो उन्होंने हमसे कहा, चिंता मत करो. हम आपको एक या दो सप्ताह में फिर से नियुक्त कर देंगे. बस धैर्य रखो.”

एक महीने तक 28 नर्सें सनशाइन होटल में फिर से ड्यूटी पर आने का इंतजार करती रहीं. पाटिल ने कहा, “जब हम ठाकुर से पूछते थे कि हमें और कितना इंतजार करना होगा, तो वह कहती थीं, “अगर आपको मुझ पर भरोसा नहीं है, तो अभी चले जाओ और आपसे होटल का पूरा बिल खुद देने के लिए कहा जाएगा.” किसी भी नर्स को उस महीने का भुगतान नहीं किया गया, जिस महीने उन्हें इंतजार करने के लिए छोड़ दिया गया था. पाटिल और दत्तात्रेय को एक दिन काम करने के लिए 1100 रुपए का भुगतान किया गया. जाधव को वह भी भुगतान नहीं किया गया. करियर जोन ने जाधव से कहा कि उनके भुगतान की प्रक्रिया चल रही है और उन्हें जल्द ही मुआवजा दिया जाएगा लेकिन उन्हें कभी पैसा नहीं मिला. दत्तात्रेय ने कहा, "आखिरकार हमें 30 दिनों तक उस होटल में रखने के बाद, ठाकुर आईं और हमसे कहा, ''हमें ठेका नहीं मिलेगा इसलिए तुम लोग कहीं और देख लो."

जब मैंने ठाकुर से इन शिकायतों के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने अपने बकाया पैसे के बारे में संपर्क किया था, उन्हें तुरंत भुगतान किया गया था. उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें हर महीने कर्मचारियों के वेतन का 12 प्रतिशत उनके भविष्य निधि में जमा करना होता, ऐसा नहीं करने पर सरकार अगले महीने का भुगतान जारी नहीं करेती. उन्होंने तर्क दिया कि जिन लोगों को अपना भविष्य निधि नहीं मिला, वे अपना केवाईसी अपडेट नहीं करा पाए होंगे.

जब मैंने उनसे नर्सों के विरोध और बाद में उन्हें मिले कानूनी नोटिसों के बारे में पूछा, तो ठाकुर नाराज हो गईं. “अगर वह सभी इतनी बड़ी संख्या में आते हैं और एक व्यक्ति को घेर लेते हैं और उन्हें ब्लैकमेल करते हैं, तो निश्चित रूप से मैं नोटिस भेजूंगी," उन्होंने कहा. “व​​ह मेरी कंपनी का नाम खराब कर रहे हैं. वह रहे हैं कि उन्हें ये नहीं मिला, वह नहीं मिला. मेरे पास लिखित में है कि मैंने सभी को भुगतान कर दिया है. ये लोग आपको अपनी गलतियां नहीं बताते.”

मैंने ठाकुर के खिलाफ कर्मचारियों की शिकायतों के बारे में तांबे से बात की. उन्होंने कहा कि वह हैरान नहीं हैं. उन्होंने कहा, “हमने इस बारे में करियर जोन को नोटिस दिया है.” तांबे ने इस नोटिस में क्या है इसके बारे में विस्तार से नहीं बताया. उन्होंने करियर जोन के खिलाफ ससून अस्पताल द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में मेरे द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण का जवाब नहीं दिया. जिन कर्मचरियों से मैंने बात की उन्होंने कहा कि जून 2021 की शुरुआत तक, करियर जोन द्वारा ससून अस्पताल के लिए काम पर रखे गए 180 लोगों पर अभी भी किसी न किसी रूप में पारिश्रमिक बकाया है.

महाराष्ट्र में जन स्वास्थ्य अभियान के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अभय शुक्ला ने कहा कि संविदा कर्मचारियों को काम पर रखना अपने आप में अच्छा तरीका नहीं है. उन्होंने कहा, "आदर्श रूप से अस्पताल को नियमित, पूर्णकालिक कर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए और अगर कोई आपातकालीन स्थिति है, जहां अतिरिक्त कर्मचारियों को काम पर रखने की आवश्यकता है, तो नए कर्मचारियों को नियमित स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल करने के प्रयास किए जाने चाहिए.” उन्होंने निर्दिष्ट किया कि ठेका श्रम अधिनियम, 1970 के अनुसार, संविदा कर्मचारियों के समय पर भुगतान की जिम्मेदारी मुख्य नियोक्ता की होती है न कि ठेकेदार की. इस मामले में, प्रमुख नियोक्ता ससून अस्पताल और फिर महाराष्ट्र सरकार होगी. शुक्ला ने कहा कि ज्यादातर मामलों में, कर्मचारियों की संविदात्मक प्रकृति प्रमुख नियोक्ता के लिए उनकी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने और ठेकेदार को सौंपने का बहाना बन जाती है. “ठेकेदार क्या है? मुख्य नियोक्ता के आदेशों का पालन करने वाला एक बिचौलिया है. आखिरकार, जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की है."

महामारी की दूसरी लहर के दौरान ससून अस्पताल ने अनुबंध के आधार पर नर्सों को काम पर रखने के लिए करियर जोन से काम लेना जारी रखा. जाधव, पाटिल, दत्तात्रेय के साथ-साथ ससून अस्पताल में काम करने के लिए करियर जोन द्वारा काम पर रखी गई दो नर्सें, जो नाम नहीं बताना चाहती थीं, सभी को इस साल अप्रैल में कंपनी से फोन आया और उनसे पूछा गया कि क्या वे एक बार फिर करियर जोन के लिए काम करना और ससून अस्पताल में ड्यूटी ज्वाइन करना चाहेंगी. उन सभी ने मना कर दिया. "वह हमें एक बार धोखा देने से संतुष्ट नहीं थीं, वह अब हमें फिर से धोखा देना चाहती हैं?" जाधव ने कहा.

जैसे ही मार्च और अप्रैल में कोविड-19 मामले फिर से बढ़ने लगे ससून अस्पताल में संक्र​मित रोगियों की संख्या में आई वृद्धि को संभालने के लिए कर्मचारियों को तलाश रहा था. तांबे ने मुझे बताया कि वह अधिक लैब तकनीशियनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नर्सों को काम पर रखने की बहुत कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें लोग नहीं मिल रहे हैं क्योंकि "बाजार में लोगों की कमी है." यह सुनते ही सांगली की नर्स भड़क गईं. “कमी का कोई सवाल ही नहीं है. हर कोई जानता है कि वे अपने कर्मचारियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं. कोई फिर वहां क्यों जाएगा?”