कोरोना मरीज को भर्ती करने से मना करते रहे दिल्ली के अस्पताल

सुशील कुमार/ हिंदुस्तान टाइम्स/ गैटी इमेजिस

24 अप्रैल को लगभग 3 बजे उत्तर-पश्चिम दिल्ली के भलस्वा गांव की फरजाना शेख ने हताशा से भरा एक वीडियो जारी किया. "यह मेरे पति रज्जाक हैं," उन्होंने अपने अपने बगल में बैठे आदमी की ओर इशारा करते हुए बताया. “कोरोना की जांच कराने के बाद पता चला कि इन्हें संक्रमण है. हमें 2-3 अस्पतालों में रेफर किया गया लेकिन सभी ने भर्ती करने से मना कर दिया.” 23 अप्रैल की दोपहर को रज्जाक की नोवेल कोरोनवायरस जांच पॉजिटिव आई थी.  इसके बाद जो हुआ वह खौफनाक था. फरजाना, रज्जाक और उनके पिता सत्तार अहमद ने अगले 16 घंटे रज्जाक को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया. उस दिन शाम 6 बजे से अगले दिन सुबह 10 बजे तक, परिवार ने दो सरकारी केंद्रों और दो क्वारंटीन केंद्रों सहित कम से कम तीन अस्पतालों का दौरा किया, जहां से उन्हें विभिन्न कारणों से लौट आना पड़ा. 23 और 24 अप्रैल की दरमियानी रात में गहरी हताशा में डूबी और एकदम घबराई हुई फरजाना ने एक वकील के सुझाव पर एक वीडियो रिकॉर्ड किया ताकि अधिकारियों का उन पर ध्यान जा सके और उन्हें मदद मिल सके.

29 अप्रैल तक दिल्ली में कोविड-19 के कुल 3314 मामले सामने आए हैं. संक्रमण के मामले पर दिल्ली तीसरा बड़ा राज्य है. यहां अब तक 54 मौतें हो चुकी हैं और 99 रेड जोन बनाए गए हैं. तीन दिन पहले एक मीडिया ब्रीफिंग में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संवाददाताओं से कहा था कि 3 मई से पहले दिल्ली में लॉकडाउन में ढील नहीं दी जाएगी क्योंकि उनकी सरकार का ध्यान“दिल्ली में कोविड-19 संक्रमणों की संख्या को कम करने” पर है.

लेकिन फरजाना और रज्जाक को जो झेलना पड़ा वह कुछ और ही तस्वीर पेश करता है. रज्जाक को कनॉट प्लेस के राम मनोहर लोहिया अस्पताल और दिल्ली गेट में स्थित लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल अस्पताल ने भर्ती करने से मना कर दिया. रज्जाक उस रात चार बार एलएनजेपी गए. इस बीच आरएमएल ने अस्पताल के बाहर किए गए परीक्षण के परिणामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. बुरारी के एक अस्पताल में जिन क्वारंटीन केंद्रों में उन्हें भेजा गया वह चालू नहीं था जबकि वजीराबाद में उन्हें "लिखित रूप में कुछ दिए" बिना या जब तक कि परिवार "किसी बड़े से बात न करवाए" उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया. परिवार ने कहा कि पुलिस ने कई कॉल के बावजूद उनकी मदद करने से इनकार कर दिया. फरजाना ने मुझे बताया कि रज्जाक को आखिरकार आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडे के हस्तक्षेप के बाद एलएनजेपी में भर्ती कराया गया.

19 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने “जनता कर्फ्यू” की घोषणा की तो फरजाना और रज्जाक, जो नोएडा में रहते हैं, भलस्वा में अपने परिवारिक घर में वापस आ गए. 8 अप्रैल के आसपास रज्जाक बीमार पड़ गए और परामर्श के लिए भलस्वा के बुधिराज नर्सिंग होम गए. उन्हें 18 अप्रैल को टाइफाइड का पता चला था. फरजाना ने मुझे बताया कि नर्सिंग होम के डॉक्टरों ने खांसी और सांस लेने में कठिनाई जैसे बार—बार दिखने वाले लक्षणों की अनदेखी कर कोरोनोवायरस की संभावना पर गंभीरता से विचार नहीं किया. आखिरकार 21 अप्रैल को डॉक्टरों ने उन्हें कोविड-19 की जांच कराने को कहा.

फरजाना ने बताया, "हम इस प्रक्रिया में और देरी नहीं करना चाहते थे और चाहते थे कि जांच बहुत जल्दी हो. हमें कुछ सरकारी हेल्पलाइन नंबर मिले, लेकिन उनसे कोई मदद नहीं मिली. क्योंकि घर पर एक बच्चा है और मैं छह महीने की गर्भवती हूं, हमने बहुत जल्दी जांच करवा ली. 22 अप्रैल को रज्जाक ने हडसन लेन में लाल पैथ लैब्स में जांच कराई और उन्हें 23 अप्रैल को लगभग 3 बजे रिपोर्ट मिल गई. फरजाना ने कहा कि शुरू में जांच की रिपोर्ट से उन्हें भ्रम हुआ. "हम काफी हैरान थे," उसने कहा. “रिपोर्ट में नेगेटिव पोजिटिव दोनों था. हमें नहीं पता था कि इसका क्या करना है. हमने इसे बुरारी में अपने डॉक्टर को दिखाया और उन्होंने कहा कि यह पॉजिटिव है. ” डॉक्टर ने सलाह दी कि रज्जाक को अस्पताल में भर्ती कराया जाए.

 फरजाना ने मुझे बताया, "हम उसके बाद बहुत डर गए और तुरंत अस्पताल जाने का फैसला किया." उन्होंने बताया कि लगभग 6 बजे वह, रज्जाक और सत्तार ने बुरारी से ऑटोरिक्शा लिया और लगभग बीस किलोमीटर दूर आरएमएल अस्पताल चले गए. लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक परिवहन अनुपलब्ध था इसलिए परिवार ने एक परिचित से बात की और पूरे दिन के लिए ऑटोरिक्शा किराए पर ले लिया. "हमें नहीं पता था कि रात हमारे लिए कितनी दर्दनाक होने वाली थी," उन्होंने कहा. "हमने सोचा था कि लोग जानते होंगे कि यह कितना गंभीर मामला है और रज्जाक को दाखिल कर लेंगे." परिवार शाम करीब 7 बजे आरएमएल पहुंचा. फरजाना ने मुझसे कहा कि अस्पताल में "वह हमें कभी यहां भेजते कभी वहां भेजते." उन्होंने कहा कि वे पहले परीक्षण क्षेत्र में गए. बाद में, हमें पता चला कि यह डायग्नोस्टिक डेस्क था.”फरज़ाना ने कहा कि डायग्नोस्टिक डेस्क के कर्मचारी ने "हमें दूसरे डॉक्टर से मिलने के लिए कहा और फिर डॉक्टर ने हमें फिर से जांच कराने को कहा." फरजाना ने कहा कि लाल पैथ लैब्स की "जांच रिपोर्ट पर डॉक्टर ने यकीन नहीं किया." जबकि डायग्नोस्टिक डेस्क ने रज्जाक का फिर से परीक्षण करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसका पहले ही सकारात्मक परीक्षण आ चुका था.

फरजाना ने कहा कि वे डेस्क और डॉक्टरों के बीच आधे घंटे से ज्यादा समय तक घूमते रहे. आखिरकार आरएमएल के डॉक्टर ने रज्जाक को भर्ती करने से मना कर दिया और "हमें एलएनजेपी चले जाने के लिए कहा." एलएमजेपी अस्पताल आरएमएल से लगभग पांच किलोमीटर दूर है. फरजाना ने मुझे बताया कि डॉक्टर ने उन्हें रज्जाक को एलएनजेपी में इलाज कराने के लिए कहा "क्योंकि यह उनके अधीन नहीं है." फरजाना ने कहा, "मुझे नहीं पता, न ही मैं समझ सकती हूं कि उनका क्या मतलब है, 'क्या किसके अधीन आता है.''

रात करीब 8.30 बजे परिवार एलएनजेपी अस्पताल पहुंचा. अस्पताल के रिसेप्शन स्टाफ ने परिवार को बताया कि यह अस्पताल केवल गंभीर बीमारी वाले लोगों को भर्ती कर रहा है और वे रज्जाक को बुरारी के कौशिक एंक्लेव में स्थिति अस्पताल ले जाएं. उस अस्पताल को क्वारंटीन केंद्र बनाया गया है. अहमद ने बताया कि स्टाफ ने रज्जाक की रिपोर्ट देखकर कहा कि वह बहुत बीमार नहीं लग रहा है. इस वक्त तक रात के 9 बज चुके थे और परिवार को घर से निकले तीन घंटे हो चुके थे. फरजाना ने मुझे बताया कि फिर वह एलएनजेपी से 18 किलोमीटर दूर बुरारी के क्वारंटीन केंद्र के लिए निकल गए. लेकिन जब 9.45 बजे के आसपास ये लोग उस केंद्र में पहुंचे तो यह देख कर सकते में आ गए कि वह चालू नहीं है. फरजाना ने कहा, “वहां कुछ नहीं है, अभी चालू नहीं हुआ है.” फरजाना ने बताया कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. “काश कि हम लोग थोड़े मजबूत होते. हम किसी को नहीं जानते और हमको वही करना पड़ा जो बोला गया.”

फरजाना जब मुझसे बात कर रही थीं तो वह दुख और गुस्से के भाव के बीच मानो तेजी से झूल रही थीं. “टीवी में क्या-क्या दिखा रहे हैं. कह रहे हैं यह करो, वह करो लेकिन हमारी मदद किसी ने नहीं की.” उन्होंने बताया कि परिवार फिर वापस एलएनजेपी आ गया. तब रात के 10.30 बज रहे थे. फरजाना ने बताया कि फिर स्टाफ ने उनसे कहा कि वे लोग 12 किलोमीटर दूर मॉडल टाउन के महादुर्गा चैरिटेबल ट्रस्ट अस्पताल चले जाएं.

अहमद ने बताया कि ये लोग महादुर्गा रात 12.30 और 1 बजे के बीच पहुंचे थे लेकिन अस्पताल ने फिर से भर्ती करने से इनकार कर दिया. “उन लोगों ने कहा कि यहां इलाज नहीं होगा,” फरजाना ने बताया कि “हमलोग वहां खड़े होकर पूछते रहे कि क्या हो रहा है और वे लोग कहते रहे कि उनके पास इलाज की सुविधा नहीं है.” फरजाना के कहा, “जब वहां सुविधा नहीं थी तो एलएनजेपी ने हमें वहां जाने के लिए कहा ही क्यों?” अहमद ने बताया कि तब तक वे लोग चक्कर लगाते-लगाते थक गए थे लेकिन उनके पास और कोई चारा भी नहीं था सिवा एलएनजेपी वापस जाने के. “उन लोगों ने हमसे इतने चक्कर लगाए कि मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं करूं तो क्या करूं.”

रात करीब 3 बजे परिवार तीसरी बार एलएनजेपी पहुंचा. फरजाना ने बताया, “हमने तय कर लिया था अबकि बिना इलाज वहां से हिलेंगे नहीं. रज्जाक बहुत थक चुके थे.” इस बीच फरजाना ने अपने दोस्त अग्रवाल, जो हाई कोर्ट में वकील हैं, से संपर्क किया. अग्रवाल ने उन्हें कहा कि वह मदद की अपील का वीडियो बना लें जिसे रात 3.15 पर ट्वीट कर दिया गया. अग्रवाल बताते हैं, “कागजों में बहुत कुछ हो रहा है लेकिन हकीकत बिल्कुल अलग है. इस मामले से साफ समझ आता है कि हकीकत अलग है. महामारी के बीच कोई आदमी आप तक आता है और आप अपनी मर्जी से उसे वापस कर देते हो? ऐसा कैसे कर सकते हो? यह सरकार सिर्फ कागजों में चिंता दिखाती है.” उन्होंने आगे कहा, “यह व्यवस्था वायरस से पहले ही काम नहीं कर रही थी तो वायरस में कैसे करने लगेगी?” अग्रवाल का मानना है कि इसी के चलते वे लोग भी जो कोरोनावायरस टेस्ट का भार नहीं सह सकते, आपस में पैसे इकट्ठा कर प्राइवेट जगहों में टेस्ट करा रहे हैं.

यहां फिर एकबार परिवार को बोला गया कि वे लोग कहीं और चले जाएं. अबकि अस्पताल ने उन्हें वजीराबाद के पुलिस प्रशिक्षण केंद्र भेजा. इस केंद्र को क्वारंटीन केंद्र बनाया गया है. फरजाना ने बताया कि एलएनजेपी के डॉक्टरों ने उनसे वादा किया था कि अबकि भर्ती कर लिया जाएगा. वह केंद्र 14 किलोमीटर दूर था लेकिन जब परिवार वहां पहुंचा तो रज्जाक को भर्ती करने से मना कर दिया गया. अहमद ने मुझसे कहा, “हम सुरक्षा गेट के पास खड़े डॉक्टरों से बस 15 मीटर दूर थे. उन लोगों ने हमसे कहा कि हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है कि हमें एलएनजेपी ने भेजा है. उन लोगों को लिखित में चाहिए था.” अहमद और फरजाना ने वहां के डॉक्टरों और अधिकारियों को समझाने की कोशिश की लेकिन अहमद के अनुसार, “उन लोगों ने हमारे मूंह पर कह दिया, हम आपको अंदर आने नहीं देंगे जब तक कि आप किसी बड़े आदमी की सिफारिश नहीं लाते या अस्पताल से लिखवा कर नहीं लाते.”

उन लोगों ने हमें पुलिस को कॉल करने के लिए कहा. हमने 100 नंबर पर कई बार कॉल किया लेकिन कोई मदद नहीं मिली,” अहमद ने बताया. केंद्र के स्टाफ ने उन लोगों को एम्बुलेंस बुलाने के लिए कहा. “उन लोगों ने कहा कि एम्बुलेंस एलएनजेपी ले जाएगी और रज्जाक को भर्ती कर लिया जाएगा.”

सुबह 8 बजे के करीब क्वारंटीन केंद्र में एम्बुलेंस आई और रज्जाक को एलएनजेपी (चौथी बार) ले गई. अहमद ने बताया कि उनको रज्जाक के साथ एम्बुलेंस में जाने की अनुमति नहीं थी. फरजाना ने बताया कि वे लोग आधे रास्ते पहुंचे थे कि रज्जाक ने फोन पर बताया कि उसको भर्ती नहीं किया जाएगा. “मैं एकदम से डर गई. मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ लेकिन उसे भर्ती कर लिया गया. 24 अप्रैल को दोपहर 2.18 तिमारपुर के विधायक पांडे ने अग्रवाल के ट्वीट का जवाब देते हुए कहा कि भर्ती कर लिया गया है. मैंने एनएलजेपी के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. वहां के रिसेप्शन स्टाफ ने बताया. “नोडल अधिकारी उनका फोन नहीं उठा रहे.”

दुर्भाग्य से फरजाना की मुसीबतें अभी खत्म नहीं हुई हैं. भर्ती के बाद रज्जाक की दुबारा जांच की गई और वह कोरोना पॉजिटिव निकले. इसके बावजूद कोई भी फरजाना के पास नहीं आया है यह सुनिश्चित करने के लिए कि परिवार की जांच हुई है या नहीं और क्या वे लोग क्वारंटीन नियमों का पालन कर रहे हैं? उन्होंने मुझे बताया, “मैंने किसी से ढंग से बात नहीं की है. इंचार्ज से भी नहीं. मेरे परिवार में चार लोग और हैं. हमारी जांच कैसे होगी? मैं गर्भवती हूं और मेरी बेटी छोटी है. मुझे आशा है कि हमारी जांच निशुल्क होगी. हम प्राइवेट अस्पताल में पैसे चुकाने की स्थिति में नहीं हैं.”