केरल के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी डेली स्टेटस अपडेट या स्थिति का दैनिक लेखाजोखा के अनुसार, 28 मार्च तक राज्य में कोविड-19 के 182 चिन्हित मामले सामने आए थे. उसी दिन राज्य ने नोवेल कोरोनवायरस से राज्य में पहली मृत्यु की सूचना दी थी. महामारी के बाद देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनजर, केरल के अधिकांश अप्रवासी, जो राज्य की आबादी का लगभग पांच प्रतिशत हैं, संक्रमण में वृद्धि की वजह से राज्य लौट आए थे. मंत्रालय के अनुसार, पिछले दो दिनों में राज्य में कुल 45 नए मामले सामने आए हैं. राज्य ने अब तक 6067 नमूनों का परीक्षण किया है जो देश के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक है और कुल 134370 लोगों पर नजर रखी जा रही है. इनमें से 133750 को उनके घरों में अलग-थलग कर रखा जा रहा है और 620 को सरकारी क्वारंटीन केंद्रों में भर्ती कराया गया है. महामारी फैलने के बाद से राज्य में जितने संक्रमित रोगियों का उपचार किया गया उनमें से 16 की हालत में सुधार आया है. 28 मार्च की शाम एक प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने घोषणा की कि 16 में 4 की हालत में उस दिन सुधार हुआ है. सुधार हुए रोगियों में एक विदेशी नागरिक है. 30 जनवरी से, जब केरल में पहला मामला सामने आया था, राज्य सरकार महामारी पर रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही है.
केरल के पहले तीन मामले भारत के पहले दर्ज मामले भी थे. महामारी के केंद्र चीन के वुहान प्रांत में अध्ययनरत तीन मलयाली छात्र राज्य लौटे और 30 जनवरी से 3 फरवरी के बीच की गई उनकी जांच के परिणाम सकारात्मक आए. महामारी के खिलाफ राज्य की तैयारियों के कदम के रूप में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने 26 जनवरी के पहले ही एक मसौदा नीति तैयार कर ली थी. द हिंदू में 23 मार्च को प्रकाशित एक लेख में, केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने बताया था कि कैसे उनके मंत्रालय ने "जनवरी के मध्य तक" महामारी के प्रकोप के बारे में चर्चा कर ली थी. उन्होंने कहा, "जब विभिन्न देशों ने मामलों की पुष्टि करनी शुरू की, तो केरल पहला राज्य था जिसने रोकथाम के उपायों का अपना मसौदा तैयार कर लिया. जब राज्य ने 30 जनवरी को अपना पहला मामला दर्ज किया तो उपाय और अधिक कड़े हो गए.”
जब 3 फरवरी को तीसरा मामला सामने आया, तो राज्य सरकार ने कोविड-19 को राज्य आपदा घोषित कर दिया. शैलजा की अध्यक्षता में 24-सदस्यीय राज्य प्रतिक्रिया दल या एसआरटी का गठन करने का आदेश जारी किया गया था. टीम में महामारी विज्ञान, सामुदायिक चिकित्सा, संक्रामक रोग, बाल रोग, औषधि नियंत्रण और खाद्य सुरक्षा जैसे अलग-अलग विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे. निगरानी, कॉल सेंटर, मानव-संसाधन प्रबंधन, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे में वृद्धि जैसे विभिन्न कार्यों के समन्वय के लिए राज्य-स्तरीय 18 टीमों का गठन किया गया. ये राज्य स्तरीय टीमें राज्य नियंत्रण कक्ष को सूचनाएं देती हैं और प्राप्त सूचनाओं को फ्लोर मैनेजरों द्वारा समन्वित किया जाता है. कंट्रोल रूम चौबीसों घंटे काम करता है.
नाम उजागर न करने के अनुरोध पर एक स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि अंतर-विभागीय समन्वय, जो वर्तमान में मुख्यमंत्री द्वारा किया जा रहा है, स्थिति को कुशलतापूर्वक संभालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है. स्वास्थ्य मंत्रालय की नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पुलिस, राजस्व, बिजली, पानी और सार्वजनिक कार्यों के विभागों से महत्वपूर्ण योगदान की आवश्यकता होती है. “आपदा अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद, राजस्व विभाग को प्रमुखता मिलती है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग अग्रणी है तो भी अन्य सभी विभाग मिलकर काम कर रहे हैं,” उस स्वास्थ्य अधिकारी ने मुझे बताया. अधिकारी ने कहा कि "अगर कोई जरूरत आन पड़ती है तो संबंधित विभाग इसे कुछ ही समय में पूरा करने के लिए तैयार रहेगा."
केरल सरकार ने राज्य की कोविड-19 कार्य योजना में हर कदम के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं. ये दिशानिर्देश अपने संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ परामर्श के बाद तैयार किए गए और फिर सरकारी आदेश के रूप में जारी किए गए. यह प्रक्रिया आगे चल रही है और विकसित हो रही है. उदाहरण के लिए, संदिग्ध मामलों से निपटने और पुष्टि किए गए मामलों के उपचार के लिए राज्य के नैदानिक दिशानिर्देश "जीवित दस्तावेज" के रूप में जारी किए गए हैं, जिन्हें "नई खोज और वर्तमान शोध के आधार पर नियमित रूप से" अपडेट किया जाता है. इन नैदानिक दिशानिर्देशों के अनुसार, कोविड-19 रोगियों को प्रदान किए गए उपचार को लक्षणों के आधार पर तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है. एहतियाती उपायों से लेकर मरीजों के दाह संस्कार तक, इन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाता है.
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