कोरोना से दर्जनों मौत के बाद हरियाणा के टिटौली गांव के लोगों में गुस्सा

27 अप्रैल को हरियाणा के रोहतक जिले के टिटौली गांव में कम से कम 9 शवों के दाह संस्कार किए गए. कुल 13000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में दो दिनों में 28 मौतों की खबर आने के बाद, 5 मई को इसे रिस्ट्रिक्टेड एरिया घोषित कर दिया गया था. मरने वाले लोगों में अधिकतर बुखार, खांसी और जुखाम से पीड़ित थे. लेकिन जब 17 मई को मैं और मेरे साथी रिपोर्टर टिटौली पहुंचे, तो गांव में कहीं पर भी उसके रिस्ट्रिक्टेड एरिया होने की सूचना नहीं लगाई गई थी और तब तक मरने वालों की संख्या बढ़ चुकी थी. गांव के चौकीदार द्वारा बनाई गई एक सूची के अनुसार गांव में 25 अप्रैल से 25 मई के बीच 58 मौतें हुई हैं. गांव में कोविड-19 के नाम पर दी गई एकमात्र सुविधा वहां का डे-केयर सेंटर है जो खाली पड़ा था और वहां कोई चिकित्सय उपकरण भी नहीं था. ड्यूटी पर सिर्फ एक डॉक्टर मौजूद थे जिन्हें 12 मई को ही वहां भेजा गया था.

जिस समय मैं स्थानीय लोगों से बात कर रहा था तभी गांव के एक श्मशान घाट से जल रही चिता का धुआं उठ रहा था और लोगों में डर साफ तौर पर देखा जा सकता था. गांव के रहने वाले 49 वर्षीय अशोक कुमार ने मुझे बताया, “यहां बहुत अधिक मौतें हुई हैं और इतनी सारी मौतों के बाद गांव में पूरी तरह से डर का माहौल बना हुआ है.” लेकिन इस डर के साथ-साथ लोगों में जान गवांने वालों के प्रति शोक की भावना और राज्य सरकार, प्रशासन और निजी अस्पतालों के प्रति बहुत आक्रोश था. ग्राम प्रधान सहित जितने भी गांव वालों से मैंने बात की, उन्होंने कहा कि न तो राज्य सरकार और न ही स्थानीय प्रशासन ने उनकी मदद के लिए कोई भी कदम उठाया है. उन सभी ने सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, दवाओं और जरूरी साधनों की कमी के बारे में बताया. लोगों के बीच सरकारी सुविधाओं को लेकर काफी गुस्सा था. लोगों ने निजी अस्पतालों और फार्मेसी दुकानदारों द्वारा किए जा रहे शोषण और अधिक पैसे वसूलने की भी ढेरों शिकायतें कीं. गांव के ही एक परिवार  ने 3400 रुपए की एंटी-वायरल दवा रेमडेसिविर की एक शीशी 25000 रुपए में खरीदी थी.

पिछले एक महीने में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में गांव में हुई मौतों की संख्या 40 से 60 तक बताई गई है. राम निवास ने अपनी बनाई सूची में सभी मृतकों के नाम, उनके पते, मृत्यु की तारीख, कारण, मृत्यु का स्थान सहित अन्य विवरणों की जानकारी भी शामिल की है. इस सूची में 25 अप्रैल से 25 मई के बीच हुई केवल 10 मौतों को कोविड-19 से होने वाली मौत बताया गया था. बाकी के बचे 48 मामलों में मृत्यु का कारण तेज धड़कन, बीमार और अचानक हुई मौत लिखा है. कम से कम 22 लोगों को बुखार और कईं को खांसी-बुखार से मरने वालों के रूप में उल्लेखित किया गया है. वहां के स्थानीय औषधालय में काम करने वाली एक नर्स द्वारा बनाई गई एक सूची के अनुसार 1 अप्रैल से 17 मई के बीच 42 मौतें हुई थीं, जिनमें से 10 का कारण कोविड-19 बताया गया है और बाकी को गार्ड की सूची में बताए गए कारणों की तरह ही रखा गया है. नाम न बताने की शर्त पर नर्स ने मुझे सूची दिखाई. इस सूची में भी कम से कम 18 मामलों में बुखार को मौत का कारण बताया गया था.

इस बीच, राज्य के अधिकारी लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि गांव में स्थिति नियंत्रण में है. 8 मई को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने आजतक चैनल को बताया कि टिटौली गांव में कोविड​​​​-19 से हुई मौतों की अधिक संख्या बताने वाली रिपोर्टें गलत हैं और ये मौतें कोविड से नहीं हुई हैं. बार बार संपर्क करने के बावजूद उप प्रभीगीय दंडाधिकारी राकेश सैनी ने जवाब देने से इनकार कर दिया. रोहतक के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनिल बिड़ला ने गांव में हुई मौतों से जुड़े प्रश्नों को टाल दिया. बिड़ला ने जोर देकर कहा कि राज्य प्रशासन सहायता प्रदान कर रहा है और "अब हर गांव में आइसोलेशन सेंटर स्थापित किए गए हैं.”

लेकिन टिटौली में स्थिति इससे अलग थी. गांव के एक निवासी राम किशन ने मुझे बताया, “इस श्मशान घाट से लगभग हर दिन आग उठती दिखाई देती है और जब यहां अतिंम संसकार नहीं होता तो गांव के दो अन्य श्मशान स्थलों पर हो रहा होता है.”

टिटौली गांव में एक दिन में 9 दाह संस्कार किए जाने के एक दिन बाद रोहतक के उपायुक्त मनोज कुमार ने गांव का दौरा किया और सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कोविड-19 सुविधा सहित हर संभव सहायता प्रदान करने की बात कही. लेकिन यह सुविधा सिर्फ एक डे-केयर सेंटर तक ही सीमित रह गई. निवासियों ने बताया कि गांव से निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र करीब 90 किलोमीटर दूर नरवाना गांव में है. डे-केयर सेंटर में सिर्फ एक ही व्यक्ति, डॉ. नवीन कुमार, काम करते हैं जो नरवाना पीएचसी में नियुक्त हैं और 12 मई को ही टिटोली भेजे गए हैं.

मेरे यह पूछने पर कि क्या यह उन रोगियों के लिए बनाया गया है जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता होती है, कुमार ने कहा, "यह सिर्फ एक डे-केयर सेंटर है, कोई ओपीडी नहीं है." कुमार के पास किसी भी कोविड-19 के रोगी को अस्पताल रेफर करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि वहां के एक दूसरे हॉल में सभी 21 बिस्तर खाली हैं क्योंकि वहां मरीजों के लिए कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं है. उन्होंने बताया, "यहां ऑक्सीजन ट्रांसमीटरों को संचालित करने वाला कोई नहीं है और जैसा कि आप देख सकते हैं मैं यहां दवाएं लिखने के लिए अकेला व्यक्ति हूं." इस बात के बावजूद कि हर घर में अभी भी कई बीमार लोग थे, जिस समय हमने सेंटर का दौरा किया तब वहां एक भी मरीज नहीं था.

अधिकांश निवासियों ने मुझे बताया कि वे वैसे भी राज्य द्वारा संचालित सुविधाओं पर भरोसा नहीं करते हैं और डे-केयर सेंटर सिर्फ सरकार के झूठे वादों का एक और सबूत है. 25 वर्षीय नवीन का 4 मई को रोहतक के मान अस्पताल में निधन हो गया था. उन्होंने दिल्ली विकास प्राधिकरण में जूनियर इंजीनियर के पद की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया था और जल्द ही नौकरी शुरू करने वाले थे. नवीन एक गरीब परिवार से थे. वह परिवार में कमाने वाले अकेले सदस्य थे और उन पर अपनी पत्नी, पुत्र, माता-पिता, स्कूल जाने वाली बहन और कानून की पढ़ाई कर रहे एक भाई की जिम्मेदारी थी. उनके पिता मुकेश कुमार ने मुझे बताया कि उनकी दोनों किडनियां खराब हो गई थीं इसलिए नवीन पर घर चलाने की जिम्मेदारी आ गई. हमारी बातचीत के दौरान नवीन की मां और पत्नी फूट-फूट कर रोने लगीं.

नवीन के ससुर राजेश कुमार ने बताया कि उन्हें बचाने के लिए उन्होंने करीब 9 लाख रुपए खर्च किए. राजेश ने आगे बताया, “मैं अब भारी कर्ज में हूं.” जब मैंने परिवार से पूछा कि उन्होंने सरकारी अस्पताल के बजाए एक निजी अस्पताल को क्यों चुना, तो राजेश ने कहा, "हम चाहते थे कि किसी भी कीमत पर उनकी जान बच जाए. हमने उन्हें मान अस्पताल में भर्ती कराया ताकि सरकारी अस्पतालों से अच्छा इलाज हो सके." एक और आम परेशानी जिसके बारे में लोगों ने बाताया, वह थी कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी. नवीन कुमार के घर की गली में ही एक और नवीन रहते थे जिनकी मौत भी कोविड के कारण ही हुई थी. 32 वर्षीय नवीन औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में शिक्षक थे और अपने परिवार में कमाने वाले अकेले सदस्य थे. उनकी मां, सुदेश कुंडू ने मुझे बताया, "जब निजी अस्पताल में जगह नहीं मिली, सरकार में कहां से मितली?” उन्होंने आगे बताया, “वह हमारा इकलौता बेटा था. हमने सोच लिया था कि उसे बचाने के लिए जो भी करना पड़े, हम करेंगे."



कुंडू के पति बिमारी के कारण बिस्तर से उठ नहीं सकते हैं. "हमने दो दिनों में चार अस्पताल बदले और आखिरकार उसने 27 अप्रैल को दम तौड़ दिया. मुझे पैसों को लेकर पहला झटका तब लगा जब रोहतक के मानसरोवर अस्पताल में सीटी स्कैन और अन्य परीक्षणों के लिए मुझसे 16000 रुपए जमा करने के लिए कहा. वहां ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं थी इसलिए मैं उसे दूसरे अस्पताल और फिर तीसरे अस्पताल ले गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ."

बिड़ला ने मुझे बताया कि 19 मई तक रोहतक सिविल अस्पताल में 41 कोविड-19 बेड थे और रोहतक के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में 566. जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि दोनों अस्पतालों में कोई जगह खाली नहीं थी. जहां सरकारी अस्पतालों को अखिरी उपाय माना जा रहा था, वहीं कई निवासियों ने शिकायत की कि निजी अस्पताल कोविड-19 के मरीजों से भारी भरकम फीस वसूल रहे हैं. 20-30 साल का दिहाड़ी करने वाले काला 9 मई के आसपास बीमार पड़ गए और 17 मई को उनका निधन हो गया. काला पानी का टैंकर चलाते थे जो टिकरी सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में काम आता था. घर से लगभग 50 किलोमीटर दूर बहादुरगढ़ के आरजे अस्पताल में जहां उन्हें आठ दिनों तक भर्ती रखा गया, उनके परिवार को दुखद अनुभवों से गुजरना पड़ा था.

काला के चाचा जयबीन कुंडू ने मुझे बताया, “उस अस्पताल ने ऑक्सीजन के लिए हर घंटे के हिसाब से 1000 रुपए लिए और उस समय कला का ऑक्सीजन स्तर 60 पर था." कुंडू ने मुझे रेमडेसिविर की एक बोतल दिखाते हुए बताया कि अस्पताल ने उन्हें यह खरीदने के लिए कहा था. “हमने इसे 25000 रुपए में खरीदा” और फिर उन्होंने मुझे बोतल पर छपा उसका खुदरा मूल्य 3400 रूपए दिखाया. कुंडू ने मुझे बताया कि अस्पताल ने अंततः दवा का इस्तेमाल नहीं किया. 16 मई को आरजे अस्पताल ने काला को रोहतक के सिविल अस्पताल में रेफर कर दिया, जहां से उसे पीजीआई रोहतक रेफर किया गया. पीजीआई ले जाते समय उनकी मौत हो गई.

मैंने वहां देखा कि टिटौली के लोग बारी-बारी से काला के शरीर को कंधा देकर श्मशान घाट ले गए. आदमी अपने घरों से गोबर के उपले और लकड़ियां लेकर लाए और गांव की परंपरा के अनुसार चिता को जलाया और फिर उस जगह से बाहर चले गए. गांव के सरपंच सुरेश कुमार ने मुझे बताया, “सरकार कोविड-19 से हुई मौतों के आंकड़े छिपा रही है.” उन्होंने आगे बताया, "आप गांव के चौकीदार से मृतकों की सूची मांग सकते हैं और आपको पता चल जाएगा कि स्वास्थ्य विभाग आंकड़ों को छिपाने के लिए किस तरह से हेरफेर कर रहा है."

नर्स ने मुझसे बताया, “हमारा रिकॉर्ड मृतकों की जांच के कागजों के मुताबिक है. मैं तब तक मृतक की मौत का कारण कोविड-19 नहीं लिख सकती, जब तक मरीज के मेडिकल रिकॉर्ड में इसका उल्लेख नहीं किया गया हो.” बिड़ला ने कहा, "मृत्यु के हर मामले में व्यक्ति की मौत का कारण भी दर्ज किया जाता है और यदि ऐसा कोई मामला है तो यह हमारे जिला स्तर के रिकॉर्ड से पता लगाया जा सकता है.” जब मैंने उनसे और प्रश्न पूछे, तो उन्होंने बस इतना ही कहा, “इस तरह लापरवाही के मामले में हम उनको पत्र लिखकर जवाबतलब करेंगे.”