17 अप्रैल की रात जदीबेन चुन्नीलाल ने अपने 60 वर्षीय पति चुन्नीलाल को एक ऑटो रिक्शा में अहमदाबाद के सेठ वाडीलाल साराभाई जनरल अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया. जब वह अपने बेटे के साथ चुन्नीलाल को स्ट्रेचर पर ले जाने के लिए जूझ रही थीं तो ट्रॉमा सेंटर के बाहर खड़ेे सुरक्षा गार्डों ने उन्हें भीतर जाने नहीं दिया. “यह एक कोविड-19 अस्पताल है इसलिए आपको कहीं और जाना होगा,” गार्ड ने उन्हें कहा. कमजोर और बुजुर्ग जदीबेन रोती रहीं और गार्ड से तब तक गुहार लगाती रहीं जब तक उन्हें अंदर नहीं कर लिया गया. मिनटों बाद चुन्नीलाल के शव को उसी स्ट्रेचर पर वापस लौटा दिया गया.
अस्पताल के स्टाफ ने दावा किया कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही चुन्नीलाल की मौत हो चुकी थी लेकिन जदीबेन बोलती हैं, "मैंने इलाज के लिए हर जगह तलाश की, हर जगह.” फिर उन्होंने बताया कि एक गार्ड ने उनसे कहा था, “कोविड-19 रोगियों को लेकर ढेरों एम्बुलेंसें आ रही हैं. हम आप लोगों को यहां खड़े रह कर समय बर्बाद नहीं करने दे सकते.”
अहमदाबाद में सक्रिय कोविड-19 रोगियों की संख्या 30000 से अधिक है. यह अत्यधिक संक्रमण वाले भारतीय शहरों में दसवें स्थान पर है. शहर ने 17 अप्रैल से लगातार हर दिन कोविड-19 के 3000 से अधिक नए मामले दर्ज किए गए और 21 अप्रैल की शाम को नए मामलों की यह संख्या बढ़ कर 3914 हो गई थी. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल के दूसरे सप्ताह में शहर में कोविड-19 से 20 से 25 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन शहर के कागदीवाद नगर श्मशान घाट के एक कर्मचारी ने बताया कि हर दिन कोविड-19 से मरने वाले कम से कम 30 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. शहर में कोविड-19 शवों के लिए 18 अन्य श्मशान और चार कब्रिस्तान हैं. स्थानीय समाचार पत्र संदेश के एक रिपोर्टर इम्तियाज उज्जैनवाला ने कहा कि उन्होंने 1200 बिस्तर वाले अहमदाबाद सिविल अस्पताल से एक ही दिन में 63 शवों को निकलते देखा है. उज्जैनवाला ने मुझे बताया, "ये सिर्फ वे शव हैं जिन्हें मैंने 12 अप्रैल को 12 बजे से 5 बजे के बीच अस्पताल से बाहर आते हुए देखा था."
17 अप्रैल की रात को कारवां के संवाददाताओं ने अस्पतालों के बाहर एंबुलेंसों की कतारें देखीं जहां कोविड-19 और गैर-कोविड-19 बीमारियों वाले रोगियों को भर्ती करने से इनकार कर दिया और मरीजों के साथ आए लोग शहर के अस्पतालों में परिजनों के शवों को इकट्ठा करने के लिए लाइन लगाए खड़े थे. शेठ वाडीलाल साराभाई अस्पताल के बाहर, जहां जदीबेन अपने पति को लेकर आईं थीं, एम्बुलेंस चालकों ने मुझे बताया कि वह छह घंटों से कोविड-19 रोगियों को भर्ती करवाने की कोशिश में अस्पताल दर अस्पताल घूम रहे हैं.
युवा एम्बुलेंस चालक विकास बिहान, जिनके साथ लगभग 80 वर्षीय एक मरीज था, ने मुझे बताया कि वह पहले ही अहमदाबाद सिविल अस्पताल सहित चार अस्पतालों का चक्कर लगा चुके हैं लेकिन हर किसी ने नए मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया. "हमारे पास कम से कम एम्बुलेंस में ऑक्सीजन है लेकिन अगर यह अस्पताल भी रोगी को भर्ती करने से इनकार करता है, तो मुझे नहीं पता कि उसे कहां ले जाना है," उन्होंने कहा. एक अन्य एम्बुलेंस चालक वीरेंद्र परमार ने मुझे बताया कि यह तीसरा अस्पताल है जहां वह कोविड-19 मरीज को लेकर आए हैं. उनका मरीज उस वक्त भी पार्किंग में एम्बुलेंस के अंदर ऑक्सीजन सपोर्ट पर था. "हालत बहुत खराब है इनकी, कब तक सांस चलेगी पात नहीं," परमार ने कहा.
सरदार वल्लभभाई पटेल अस्पताल एक भव्य 17 मंजिला अस्पताल है जो जीर्ण-शीर्ण हो चुके शेठ वाडीलाल साराभाई अस्पताल भवन के बगल में स्थित है. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 में किया था और यह अहमदाबाद नगर निगम द्वारा चलाया जाता है. निगम ने शहर में कोविड-19 मामलों में वृद्धि के बाद 9 अप्रैल को इसे समर्पित कोविड-19 अस्पताल घोषित कर दिया था. नतीजतन, गैर-कोविड रोगियों को यहां से हटाया जा रहा था.
राशिद खान को ब्रेन ट्यूमर का पता चला था और 2017 में कुछ महीनों तक उनका इलाज चला था. तब से वह अस्पताल के डॉक्टरों से सलाह लेते रहे. इस साल अप्रैल की शुरुआत में, उनका स्वास्थ्य फिर से बिगड़ गया और उन्हें बहुत ज्यादा उल्टियां होने लगीं. 17 अप्रैल की रात को अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि वह उन्हें नहीं देख सकते. "डॉक्टरों ने तब तक ऑपरेशन नहीं करने को कहा जब तक कि इस महामारी की स्थिति में सुधार न हो," खान के बहनोई मोहम्मद सादिक ने कहा. “लेकिन कम से कम वह उसकी जांच तो कर सकते थे. हम रिसेप्शन पर गए लेकिन उन्होंने हमें चले जाने को कहा कि वे अब गैर-कोविड-19 रोगियों को नहीं देखेंगे. किसी अन्य जगह भी उनका इलाज नहीं होगा, अब हम कहां जाएंगे? ”
अस्पताल के दूसरी तरफ आपातकालीन वार्ड के प्रवेश द्वार पर कोविड रोगियों को लाने लेजाने के लिए एम्बुलेंस कतार में खड़ी थीं. मरीजों के परिजन अपने प्रियजनों को समय पर भर्ती कराने के लिए झगड़ रहे थे. गांधीनगर के 26 वर्षीय अपूर्व प्रजापति अपने 80 वर्षीय दादा को भर्ती कराने की कोशिश में लगभग एक घंटे तक अस्पताल के कर्मचारियों से बहस करते रहे. कुछ दिन पहले ही बुजुर्गवार की कोविड-19 की जांच रिपोर्ट सकारात्मक आई थी और वह अभी भी एम्बुलेंस के भीतर ऑक्सीजन के सहारे थे. "हम गांधीनगर से हैं," प्रजापति ने कहा. “हमने इस अस्पताल को विशेष रूप से यह जांचने के लिए फोन किया था कि क्या उनके पास बिस्तर उपलब्ध हैं और उन्होंने कहा था कि उनके पास है. जब हम यहां पहुंचे, तो उन्होंने हमें बताया कि उनके पास कोई बिस्तर नहीं है और वह अहमदाबाद जिले से बाहर के मरीजों को भर्ती नहीं कर सकते. यह किस तरह का नियम है?” जब वह बोल रहे थे तो सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें पत्रकारों के साथ बातचीत बंद करने के लिए कहा.
सिविल अस्पताल से सात किलोमीटर दूर कम से कम आठ एम्बुलेंस मृतक के शव को पास के श्मशान या कब्रिस्तान में ले जाने के लिए अस्पताल के पीछे स्थित कोविड-19 वार्ड में खड़ी थीं. गेट के प्रवेश द्वार से तीन सुरक्षा गार्ड खड़े थे. अस्पताल के कर्मचारियों ने शवों को वाहन में डाल दिया. शोकग्रस्त परिजन सड़क और फुटपाथ के बाहर छोटे-छोटे समूहों में खड़े थे.
गार्डों ने मृतकों की पहचान के लिए परिवार के सदस्यों को पांच के समूह में बुलाया. 40 वर्षीय अखलाक खान, जिनका छोटा भाई अस्पताल में कोविड से मर गया था, ने कहा, "वह हमें शव नहीं सौंपते. उन्हें सीधे एम्बुलेंस में भर दिया गया. अब हम उसे सीधे कब्रिस्तान में देखेंगे लेकिन वह उस सफेद प्लास्टिक में लिपटा रहेगा. हम फिर कभी उसका चेहरा नहीं देख पाएंगे.” खान ने मुझे बताया कि अपने भाई के शव की पहचान करने के लिए बुलाए जाने से पहले उन्हें चार घंटे तक इंतजार कर पड़ा. "और अल्लाह जानता है कि कब्रिस्तान में हालत कैसी होगी, हमें कितनी देर इंतजार करना होगा."
संक्रमण के विनाशकारी उछाल से निपटने के लिए अहमदाबाद के प्रयासों में 900 बिस्तर का एक नया समर्पित कोविड-19 देखभाल अस्पताल शामिल है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने मेमनगर के एक सम्मेलन केंद्र में आठ दिनों के रिकॉर्ड समय में यह सुविधा स्थापित की थी. अस्पताल ने 22 अप्रैल को एक पूर्वाभ्यास का आयोजन किया. फिर भी अधिकारी 23 अप्रैल की शाम तक अस्पताल में तैयारियों की समीक्षा के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की प्रतीक्षा करते रहे. Covid19india.org के अनुसार उस दिन अहमदाबाद में 22 कोविड-19 रोगियों की मृत्यु हो गई. डीआरडीओ अस्पताल 24 अप्रैल को मरीजों को लेना शुरू करने वाला था लेकिन वह बंद रहा.