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26 अप्रैल को तीन निजी कंपनियों के बीच के विवाद से हमें पता चला कि केंद्र सरकार ने कोविड एंटीबॉडी जांच किट की खरीद 145 प्रतिशत महंगी दर में होने दी है. कोर्ट के फैसले से भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. अदालत के फैसले से खुलासा हुआ कि आईसीएमआर ने पांच लाख किटों के लिए 30 करोड़ रुपए का भुगतान मंजूर किया था. इस भुगतान में बिचौलिया कंपनियों का मुनाफा 18.75 करोड रुपए होता. अगले दिन जब यह समाचार प्रकाशित हुआ तो केंद्र सरकार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर खरीद को रद्द करने की घोषणा कर दी.
उपरोक्त एंटीबॉडी किट की निर्माता कंपनी चीन की वॉन्डफो है और हाई कोर्ट का फैसला आने के एक दिन बाद आईसीएमआर ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी की कि वे इस निर्माता कंपनी से किट ना खरीदें क्योंकि इससे गलत परिणाम निकले हैं. इस बीच केंद्र सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया, “यह बताना जरूरी है कि आईसीएमआर ने इन कंपनियों को किसी तरह का भुगतान नहीं किया है और भारत सरकार को एक रुपए का भी घाटा नहीं हुआ है.” इसके बावजूद ना केंद्र सरकार की विज्ञप्ति से और ना ही आईसीएमआर की एडवाइजरी से यह पता चलता है कि केंद्र सरकार ने इतनी महंगी दरों में इतना बड़ा ऑर्डर क्यों दिया था और वह भी गैर-भरोसेमंद कीटों के लिए.
तीन कंपनियों का विवाद तब चालू हुआ जब रेयर मेटाबॉलिक्स लाइफ साइनसेस और आर्क फार्मास्युटिकल्स ने दिल्ली हाई कोर्ट में मेट्रिक्स लैब के खिलाफ एंटीबॉडी आपूर्ति के अनुबंध का पालन न करने की याचिका डाली. 28 मार्च को आईसीएमआर ने आर्क को 5 लाख एंटीबॉडी सप्लाई करने का ऑर्डर दिया था.
हुआ यह कि तीनों कंपनियों ने आपस में एक समझौता किया कि मेट्रिक्स लैब टेस्ट किट का आयात करेगी और रेयर मेटावॉलिक्स को देगी जो आर्क के जरिए इसे आईसीएमआर को पहुंचाएगी. 17 अप्रैल को मेट्रिक्स ने 2.76 लाख किट सप्लाई की और फिर धमकी दी कि यदि रेयर उसे पूरा पैसा एडवांस में नहीं देगी तो वह बाकी किटों की आपूर्ति नहीं करेगी. इसके बाद यह मामला कोर्ट में चला गया.
इन तीन कंपनियों के विवाद ने एंटीबॉडी खरीद की शर्तों को सार्वजनिक कर दिया जिससे पता चलता है कि खरीद में भयानक स्तर की मुनाफाखोरी हो रही थी. कोर्ट की सुनवाई में पता चला कि मेट्रिक्स एक किट 225 रुपए में खरीद कर आर्क को 420 में बेच रही थी और आर्क आईसीएमआर को इसे 600 रुपए में थमा रही थी.
न्यायाधीश नजमी वजीरी ने अपने फैसले में इन कंपनियों को इन किटों को 400 रुपए प्रति किट की दर से आईसीएमआर को देने के लिए कहा है. वजीरी ने कहा है कि एक किट का आयात मूल्य 245 रुपए था जिसमें एक किट की कीमत 225 रुपए है और माल भाड़ा 20 रुपए प्रति किट शामिल है. इस प्रकार 5 लाख किट की कुल कीमत 11.25 करोड़ रुपए होती है. मेट्रिक्स 7.75 करोड़ रुपए या 45 प्रतिशत मुनाफे में आर्क को 20 करोड़ रुपए में ये किट बेच रही है और इसमें अतिरिक्त एक करोड़ रुपए जीएसटी लगा है. फिर आईसीएमआर इन किटों के लिए आर्क को कुल 30 करोड़ रुपए का भुगतान कर रही है. आयातित मेडिकल वस्तु में किसी प्रकार के मूल्य संवर्धन के बिना ही 9 करोड़ रुपए का मुनाफा आर्क ले रही है.” यानी आईसीएमआर 11.25 करोड़ रुपए के किटों के लिए 30 करोड़ रुपए दे रही थी.
वजीरी ने कोविड-19 टेस्ट के लिए बड़ा मुनाफा कमाने की आलोचना की. उन्होंने फैसले में लिखा, “देश अभूतपूर्व मेडिकल संकट से गुजर रहा है जिसका असर सार्वजनिक व्यवस्था पर पड़ रहा है. पिछले एक महीने से अर्थतंत्र पूरी तरह से ठप्प है.” उन्होंने आगे लिखा, ऐसे में, “लोक हित निजी लाभ से ज्यादा बड़ा होता है.”
न्यायाधीश ने निजी क्षेत्र की चिंताओं पर भी ध्यान दिया है. उन्होंने फैसले में लिखा, “245 रुपए की किट पर प्रति किट 155 रुपए का मुनाफा यानी 61 फीसदी मुनाफा ज्यादा है और यह विक्रेता के लिए पर्याप्त है खासकर विश्वव्यापी महामारी की वर्तमान परिस्थिति में.” उन्होंने कहा, “टेस्ट किट को जीएसटी सहित 400 रुपए प्रति किट से अधिक में नहीं बेचा जा सकता.”
सुनवाई के दौरान पता चला कि मेट्रिक्स को शान बायोटेक कंपनी के माध्यम से तमिल नाडु सरकार से भी ऑर्डर प्राप्त हुआ था. यह ऑर्डर 50 हजार किटों के लिए था जो “आईसीएमआर द्वारा मंजूर 600 रुपए प्रति किट की दर पर था.” अदालत ने आदेश दिया है कि इस ऑर्डर को 400 रुपए प्रति किट की दर से सीधे राज्य सरकार को भेजा जाए.
जब इस फैसले और महंगे किटों का समाचार प्रकाश में आया तो लगा जैसे केंद्र सरकार के पास कोई जवाब ही नहीं है. सरकार ने जो प्रेस रिलीज जारी की उससे संकेत मिलता है कि सरकार के पास जवाब नहीं है. प्रेस रिलीज में लिखा है, “सबसे पहले तो उस परिस्थिति को ध्यान में रखा जाना चाहिए जिनमें आईसीएमआर ने खरीद का निर्णया लिया था.” आगे लिखा है कि “टेस्टिंग कोविड-19 के खिलाफ सबसे प्रभावी अस्त्रों में से एक हैं” और इसलिए आईसीएमआर इन किटों की खरीद कर रही थी और उन्हें राज्यों को भेज रही थी. यह खरीद उस समय हो रही है जब इन किटों की वैश्विक मांग बहुत अधिक है और सभी देश इन्हें हासिल करने के लिए अपनी पूरी आर्थिक और कूटनीतिक ताकत लगा रहे हैं.”
प्रेस रिलीज के अनुसार केंद्र सरकार को वॉन्डफो की टेस्ट किट के लिए चार टेंडर मिले थे. इसमें सबसे कम बोली 600 रुपए प्रति किट की थी और सप्लाई हासिल करने के बाद आईसीएमआर ने फील्ड परिस्थितियों में इनकी गुणवत्ता की जांच की थी. वैज्ञानिक मूल्यांकन के आधार पर अन्य कम प्रदर्शन करने वाली किटों को रद्द कर दिया गया.”
उसी दिन आईसीएमआर ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की कि “कोविड-19 का पता लगाने के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट सबसे अच्छा है.” आरटी-पीसीआर टेस्ट मरीज में कोरोनावायरस की उपस्थिति का पता लगता है और इसका परिणाम आने में 12 से 24 घंटे का वक्त लगता है. सेरॉलजी या एंटीबॉडी टेस्ट रक्त में एंटीबॉडी की पहचान करता है और इसका परिणाम दो घंटे के भीतर आ जाता है इसलिए इसे रैपिड टेस्ट भी कहते हैं. एंटीबॉडी टेस्ट से पता चलता है कि क्या व्यक्ति के इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) ने संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडी का निर्माण किया है. शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण वायरस संक्रमण के एक हफ्ते में होता है इसलिए इस टेस्ट का इस्तेमाल संक्रमण की आरंभिक पहचान के लिए नहीं किया जा सकता.
अपनी एडवाइजरी में आईसीएमआर ने कहा है, “कई राज्यों ने रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट की खरीद की है और उनकी मांग पर आईसीएमआर ने ये किटें उपलब्ध कराने पर सहमति जताई है. आईसीएमआर के निर्देश स्पष्ट हैं कि इनका इस्तेमाल केवल सर्विलांस (आवेक्षण) के काम के लिए किया जाएगा.” इन किटों की पहली खेप आने के बाद आईसीएमआर ने इन्हें राज्यों को बांट दिया था और खबरों की माने तो राजस्थान और पश्चिम बंगाल की सरकार ने केंद्र को सूचित किया था कि इन किटों से सही परिणाम नहीं मिल रहे हैं. 21 अप्रैल को आईसीएमआर ने राज्य सरकारों को सलाह दी कि वे इन किटों का इस्तेमाल दो दिनों के लिए रोक दें. दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद आईसीएमआर ने राज्यों को बताया कि वे इन किटों का इस्तेमाल रोक दें और इन्हें आपूर्तिकर्ताओं को वापस कर दें.
इस फैसले से राज्य सरकारें असंमजस की स्थिति में आ गई हैं. उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि इन किटों का इस्तेमाल कैसे करें या इनको हासिल कहां से करें. छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने मुझसे कहा, “एंटीबॉडी किट सर्विलांस का उन्नत औजार है और हमें सही फैसला करने के लिए इसकी जरूरत है. हमें राज्य के किन इलाकों में कितना संक्रमण है यह जानने के लिए इसकी जरूरत है.” देव ने यह भी बताया कि सरकार की टेंडर की प्रक्रिया महंगी दरों के लिए जिम्मेदार है. “पारदर्शिता की समस्या है. अल्पकालिक टेंडर प्रक्रिया, जो अति आवश्यक खरीद के लिए अपनाई जाती है, के स्थान पर वस्तुओं को या तो बाजार मूल्य में या उससे भी महंगे दामों में खरीदा जा रहा है.”
देव ने बताया, “छत्तीसगढ़ में हमने दो दिनों के अल्पकालिक टेंडर जारी किए थे ताकि हमें बाजार मूल्य का पता चल सके और हमने 337 रुपए प्लस जीएसटी की दर वाले टेंडर को चुना. टेंडर की वजह से हमें कम दाम में किटें मिलीं.” छत्तीसगढ़ सरकार ने दक्षिण कोरिया की एसडी बायोसेंसर से 25000 किटों की खरीद की. इस कंपनी की एक निर्माण इकाई हरियाणा के मानेसर में है. इन किटों की जांच एम्स, रायपुर ने की थी. राज्य सरकार ने अब 50000 नई किटों का ऑर्डर दिया है.
कोविड-19 के पर रोज होने वाली केंद्र सरकार की प्रेस ब्रीफिंग में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने इस पूरे मामले को सामान्य दिखाने की भरसक कोशिश की. उन्होंने समझाया, “एंटीबॉडी किटों की भूमिका सीमित होती है.” इससे तो और बड़ सवाल खड़ा होता है कि जिस किट की भूमिका सीमित है उसका इतना बड़ा ऑर्डर दिया ही क्यों गया?
रद्द समझौते में महामारी से निपटने में भारत की कमजोरी भी दिखाई देती है. भारत खतरनाक हद तक कम टेस्ट कर रहा है. आउर वर्ल्ड इन डेटा के अनुसार भारत ने 26 अप्रैल तक 625309 टेस्ट किए हैं जो प्रति हजार 0.45 मात्र है. यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति के हिसाब से दुनिया में सबसे कम है. भारत ने कम टेस्ट करने के अपने निर्णय का लगातार बचाव किया है और यह महामारी से लड़ने के लिए लॉकडाउन और सोशल डिसटेंसिंग पर मुख्य रूप से निर्भर है. सरकार ने भारत में सामुदायिक संक्रमण की बात से इनकार किया है और बार-बार दावा किया है कि भारत में महामारी “रेखीय गति से बढ़ रही है.”
27 अप्रैल को 500 रुपए में किट का प्रस्ताव करने वाली कंपनियों के बारे में एक ट्वीट के जवाब में आईसीएमआर ने उन कीमतों के बारे में बताया था जो उसे मंजूर हैं. “आरटी-पीसीआर 740-1150, रैपिड टेस्ट 528-795. कोई भी टेस्ट 4500 रुपए में नहीं खरीदा गया है.” यह सही है कि आईसीएमआर ने कोई भी किट 4500 रुपए में नहीं खरीदा है लेकिन उसने निजी क्षेत्र को टेस्ट के लिए 4500 वसूलने की छूट दी है. एक तरह से उसने निजी क्षेत्र को चार गुणा अधिक वसूल करने दिया है.
आरटी-पीसीआर और एंटीबॉडी किट की कीमतों के निर्णय को लेकर लोक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने पारदर्शिता पर जोर दिया है. ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सहसंयोजक मालिनी ऐसोला ने मुझे कहा, “यह पूरा घटनाक्रम खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित करता है. यह बेहद दुख की बात है कि राज्य सरकारों की शिकायतों और अदलात के निर्देश के बाद आईसीएमआर को अंततः खरीद प्रक्रिया पर प्रकाश डालना पड़ा.”
ऐसोला ने बताया, “जन दबाव के परिणाम स्वरूप ही आईसीएमआर द्वारा फील्ड परिस्थिति में टेस्ट किटों की जांच का परिणाम बताए और एंटीबॉडी टेस्ट रोकने के लिए राज्यों को निर्देश दिए. हम सरकार से अपील करते हैं कि वह जनता को सूचित करने का पारदर्शी तरीका अपनाए. वह महामारी से संबंधित सभी स्वास्थ्य वस्तुओं के खरीद ऑर्डर, दर और आपूर्तिकर्ता की जानकारी सार्वजनिक करे.”