सरकारी मूल्य तय है लेकिन अस्पतालों को चुकानी पड़ रही है ऑक्सीजन की भारी कीमत

24 जून 2020 को दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल एनेक्सी में शहनाई बैंक्वेट हॉल में स्थापित एक आपातकालीन कोविड-19 केंद्र के एक बेड के बगल में रखा ऑक्सीजन सिलेंडर. टी नारायण / ब्लूमबर्ग / गैटी इमेजिस
29 October, 2020

कोविड-19 महामारी में देश भर के अस्पताल पहले की तुलना में ऑक्सीजन पर तीन गुना अधिक खर्च करने को मजबूर हो रहे हैं. रसायन और उर्वरक मंत्रालय के दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने वाले विभाग राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने सितंबर के अंत में चिकित्सा ऑक्सीजन की कीमत कम कर दी थी. यह कदम भारत में महामारी के दौरान मांग में वृद्धि को संबोधित करने के उठाया गया था. लेकिन मुझे डॉक्टरों, अस्पतालों, उत्पादकों और चिकित्सा ऑक्सीजन के डीलरों ने बताया कि परिवहन और मजदूरी में वृद्धि के कारण लागत आसमान छू रही है.

पंजाब के जालंधर शहर में 30 बेड वाले कोविड-19 केयर सेंटर पटेल अस्पताल के निदेशक स्वप्न सूद ने अक्टूबर की शुरुआत में बताया था कि उन्होंने परिवहन की लागत को छोड़कर, सात घन मीटर वाले एक जंबो ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लगभग 350 रुपए का भुगतान किया था. "महामारी से पहले हम प्रति सिलेंडर 165 रुपए का भुगतान करते थे और इसमें सारी लागत शामिल होती थी. साथ ही विक्रेता हमारे दरवाजे छोड़कर जाते थे," उन्होंने कहा था. अब सूद के अस्पताल को अपने विक्रेता से सिलेंडर लेने जाना पड़ता है और 25 जंबो सिलेंडर लाने में परिवहन में 1250 रुपए का खर्च होता है. सूद ने कहा, "एनपीपीए के आदेश के बावजूद परिवहन लागत और जीएसटी मिलाकर लागत 400 रुपए प्रति जंबो सिलेंडर से ऊपर पड़ रही है."

मार्च 2020 में एनपीपीए ने आवश्यक दवाओं के लिए निर्धारित अधिकतम कीमत में संशोधन किया था जिसमें उसने ऑक्सीजन की कीमत 17.49 रुपए प्रति घन मीटर तय कर दी थी. इस अधिकतम लागत में तरल ऑक्सीजन और ऑक्सीजन गैस के बीच अंतर नहीं रखा गया था. महामारी फैलने के बाद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ऑक्सीजन की कीमतों में और काले बाजार में उछाल की खबरों पर ध्यान दिया. 23 सितंबर को इसने ऑक्सीजन की कीमतों को विनियमित करने के लिए पत्र जारी किया. तीन दिन के बाद एनपीपीए ने तरल ऑक्सीजन का एक्स-फैक्टरी मूल्य 15.22 रुपए प्रति घन मीटर और ऑक्सीजन सिलेंडर का 25.71 रुपए प्रति घन मीटर कर दिया. एक्स-फैक्टरी मूल्य निर्माता की ओर से किसी उत्पाद का विक्रय मूल्य है. एनपीपीए की अधिसूचना में कहा गया है कि यह मूल्य छह महीनों तक लागू रहेगा. एनपीपीए ने यह भी कहा कि यह लागत सीमा जीएसटी और "राज्य स्तर पर परिवहन लागत निर्धारण के अधीन है."

कई डॉक्टरों ने कहा कि सितंबर की मूल्य सीमा अप्रभावी रही है. महाराष्ट्र के नवी मुंबई शहर में  कोविड-19 केंद्र 30-बेड वाले निरामय हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक अमित थडानी का कहना है, "इस एनपीपीए के आदेश में एकमात्र अंतर यह है कि अब मैं जिससे ऑक्सीजन की खरीद करता हूं वह बिल में ऑक्सीजन की कीमत और कुल अन्य शुल्कों को अलग-अलग करके लिखता है." थडानी ने कहा कि महामारी की शुरुआत में ऑक्सीजन की मांग बढ़ने के बाद उन्होंने 590 रुपए प्रति जंबो सिलेंडर का भुगतान किया था. 26 सितंबर को नई मूल्य सीमा लागू होने के बाद उन्होंने पहले से थोड़ा सा कम यानी 525 रुपए का भुगतान किया.

महामारी फैलने और गंभीर रूप से बीमार ऑक्सीजन की आवश्यकता वाले कोविड-19 रोगियों के मामले बढ़ जाने से भारत भर के अस्पताल भी आपूर्ति-श्रृंखला प्रभावित हुए थे. हालांकि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पुणे चैप्टर के प्रमुख संजय पाटिल ने कहा कि सरकारी के कदम ने आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर कर दिया है. पाटिल ने कहा, "अब केसलोड भी कम हो गया है इसलिए ऑक्सीजन की कमी का डर नहीं है. हमें समय पर सिलेंडर मिल रहे हैं. लेकिन हां, शुल्क अत्यधिक हैं और बड़े पैमाने पर अनियमित हैं." पाटिल ने अनुमान लगाया कि अस्पताल एक जंबो सिलेंडर के लिए 600 रुपए से 800 रुपए के बीच का भुगतान कर रहे हैं.

एनपीपीए के मूल्य सीमा में सितंबर और उससे पहले भी अन्य खर्च शामिल नहीं थे. नागपुर से बाहर स्थित एक छोटी निजी ऑक्सीजन डीलरशिप नागपुर गैस के निदेशक अमीन धामनी ने कहा कि इससे बहुत कम फायदा होता है. “ऑक्सीजन की अपने आप में कोई कीमत नहीं है? यह हवा से मिलती है! फिर अन्य शुल्कों को शामिल न करने के बाद मेडिकल ऑक्सीजन का शुल्क निर्धारित करने का क्या तुक? सारा शुल्क बुनियादी ढांचे और परिवहन लागत से प्राप्त होता है,” उन्होंने कहा. तरल ऑक्सीजन के निर्माता आमतौर पर या तो बड़े अस्पतालों में या डीलरों और आपूर्तिकर्ताओं को सीधे बेचते हैं जो छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम में ले जाने से पहले ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरते हैं. धामनी ने आरोप लगाया कि एनपीपीए के ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत 25.71 रुपए प्रति घन मीटर करने के फैसले के कारण कम तरल ऑक्सीजन सीधे उन अस्पतालों में आ गई है जहां भंडारण की सुविधा है. उन्होंने कहा कि इस कदम ने निर्माताओं को अपने स्टॉक को ऑक्सीजन सिलेंडर डीलरों और रिफिलर्स को अधिक कीमत पर बेचने के लिए प्रोत्साहित किया. यह तरल ऑक्सीजन के लिए कम कीमत पर सीधे अस्पतालों को बेचने की तुलना में अधिक आकर्षक है. उन्होंने कहा, “अब वे इसे आसानी से 25.71 प्रति घन मीटर तक बेच सकते हैं, जबकि एनपीपीए के आदेश से पहले, ओवरहेड शुल्क कभी-कभी कम होते थे,” उन्होंने मुझे बताया.

जालंधर और पड़ोसी क्षेत्रों के अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति करने वाले गुरप्रीत ट्रेडर्स के प्रोपराइटर गुरप्रीत सिंह ने कहा कि महामारी शुरू होने के बाद से ओवरहेड की लागत बढ़ गई क्योंकि निर्माता और डीलर मांग को पूरा करने के लिए लगातार काम कर रहे थे. “निर्माता और आपूर्तिकर्ता अधिक मजदूरों को काम पर रख रहे हैं. हम खुद चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं और ऑक्सीजन की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग जगह संपर्क कर रहे हैं इसलिए निश्चित रूप से हमारी लागत भी बढ़ेगी.” उनके अनुसार, कीमतों को विनियमित करने में शुल्क सीमा अप्रभावी है. "यह केवल एक्स-फैक्टरी लागत पर लागू है. यह तभी काम करेगा जब स्थानीय रूप से गैस का उत्पादन किया जाएगा नहीं तो परिवहन और श्रम की लागतें तो होंगी ही."

महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन के वितरण की निगरानी के लिए पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन के साथ अधिकारियों की मदद ली. पीईएसओ वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक नोडल एजेंसी है जो पेट्रोलियम और विस्फोटक क्षेत्रों में सुरक्षा उपायों पर ध्यान देती है. संगठन के विस्फोटक नियंत्रक एसडी मिश्रा, देश भर में ऑक्सीजन आपूर्ति-श्रृंखला के विभिन्न भागों के कार्यों के समन्वय के लिए जिम्मेदार रहे हैं. उन्होंने कहा, "कुछ अस्पताल आस-पास और कुछ दूर से ऑक्सीजन ले रहे हैं और यही कारण है कि सभी हितधारकों के बीच कई बैठकों और चर्चाओं के बाद, हमने परिवहन लागत को बाहर करने का फैसला किया," उन्होंने कहा. मिश्रा के अनुसार, इन हितधारकों में वाणिज्य मंत्रालय के नौकरशाह, तरल ऑक्सीजन के बड़े निर्माता शामिल हैं जिनमें से अधिकांश ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के सदस्य- औद्योगिक और औषधीय गैसों, क्रायोजेनिक जहाजों, गैस प्लांट और अन्य उपकरण के निर्माताओं का निजी संगठन-और ऑक्सीजन सिलेंडर के कुछ प्रमुख निर्माता हैं. मिश्रा ने कहा कि वह डॉक्टरों, अस्पताल मालिकों, स्थानीय डीलरों और आपूर्तिकर्ताओं के विचारों को ध्यान में रखे जाने के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि वह इस मुद्दे से संबंधित सभी बैठकों में शामिल नहीं थे. “अभी मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि ऑक्सीजन उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी आवश्यकता है. फिर भले ही इसे कई राज्यों में ले जाया जाए,” उन्होंने कहा.

एनपीपीए की मूल्य सीमा जिसने परिवहन की लागत को बाहर कर दिया, ने भी अस्पताल के स्थान के आधार पर कीमतों में असमानता पैदा की. बड़े निर्माताओं से सीधे तरल ऑक्सीजन खरीदने वाले अस्पताल या जो विनिर्माण इकाइयों के करीब स्थित हैं, उन्हें काफी कम भुगतान किया जाता है. वडोदरा में कई बड़े मेडिकल-ऑक्सीजन निर्माता और आपूर्तिकर्ता हैं. शहर के डॉक्टरों ने कहा कि उन्होंने परिवहन सहित प्रति सिलेंडर 200 रुपए से अधिक का भुगतान नहीं किया. “लागत हमारे लिए कोई समस्या नहीं है,” वडोदरा के द चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के निदेशक नितिन अग्रवाल ने कहा, जहां कोविड-19 के लिए दस बेड आरक्षित हैं. “हमने एक स्थानीय आपूर्तिकर्ता के साथ अनुबंध किया है, हम उसी से खरीद करते है. मुझे लगता है कि वडोदरा के अधिकांश अस्पतालों की स्थिति यही है क्योंकि हमारे शहर में कम से कम तीन प्रमुख आपूर्तिकर्ता और रीफिल स्टेशन हैं. ” 

वडोदरा में कोविड-19 के लिए 60 बेड वाले तिरंगा अस्पताल के सीईओ इंद्रजीत सिंह ने कहा कि उन्हें एआईएमएस इंडस्ट्रीज ऑक्सीजन नामक एक स्थानीय विनिर्माण कंपनी से सीधे ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है. "हम एक ड्यूरा सिलेंडर खरीदते हैं जिसमें हमारे निर्माताओं से सीधे 250 लीटर तरल ऑक्सीजन मिल जाती है," सिंह ने कहा. ड्यूरा सिलेंडर एक किस्म का वैक्यूम इंसुलेटेड सिलेंडर होता है जो गैसों और तरल पदार्थ दोनों को स्टोर कर सकता है. उन्होंने यह नहीं कहा कि उन्होंने इन सिलेंडरों को कितने में खरीदा था लेकिन कहा कि खरीद एनपीपीए के मानदंडों के अनुसार ही थी. मिश्रा ने कहा कि परिवहन दूरी के कारण मूल्य विसंगतियां होंगी. वहीं पीईएसओ ने सुनिश्चित किया कि ऑक्सीजन की आवश्यक लागत को विनियमित किया जाए.

चिकित्सा ऑक्सीजन की कीमत में अन्य बुनियादी ढांचे की लागत भी होती है. गैस निर्माता संघ एआईजीएमए के नोडल अधिकारी सुरिंदर सिंह, जो दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में ऑक्सीजन की आपूर्ति करते हैं, ने मुझे बताया कि ऑक्सीजन सिलेंडर भरने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कंप्रेसर ऐसी ही एक प्रमुख लागत थी. इन कंप्रेसर का इस्तेमाल तरल ऑक्सीजन को गैस में बदलने के लिए किया जाता है जो सिलेंडर में भरी जाती है. लिंडे इंडिया लिमिटेड, जो तरल ऑक्सीजन के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक है, के बिजनेस हेड सिंह ने कहा कि ऐसी लागतें भारत में ऑक्सीजन की आपूर्ति और वितरण नेटवर्क में बनाई जाती हैं. "जैसा कि ऑक्सीजन आपूर्ति श्रृंखला में आता है, तब निश्चित रूप से कुछ वैध लागत जुड़ जाती है," उन्होंने कहा. “हालांकि हमारी कंपनी एनपीपीए के आदेशों का सख्ती से पालन कर रही है और तदनुसार चार्ज कर रही है. जो लोग हमसे ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं. उन्हें कोई शिकायत नहीं है.”

सरकारी अधिकारियों और ऑक्सीजन निर्माताओं द्वारा एनपीपीए कैप के अनुरूप कीमतें रखने के बारे में आश्वस्त होने के बावजूद, डॉक्टर और अस्पताल अभी भी बहुत अधिक लागत की रिपोर्ट कर रहे हैं. नवी मुंबई के डॉक्टर थडानी ने कहा, “यह सिर्फ बहाना है क्योंकि ओवरहेड शुल्क पर कोई नियमन नहीं है. सरकार ने लागत को कम करने के लिए कुछ भी नहीं किया है.”