25 अगस्त 2020 को हरजीत सिंह भट्टी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में जेरियाट्रिक (जराचिक्तसा) औषधि विभाग के सहायक प्रोफेसर के पद के लिए इंटरव्यू देने के लिए गए थे. उन्हें यह पद पाने की उम्मीद थी क्योंकि वह इस पद के लिए आवश्यक शैक्षिक योग्यता और कार्य अनुभव के सभी मानदंडों को पूरा करते हैं. भट्टी ने 2015 में एम्स से जराचिकित्सा औषधि में एमडी पूरा किया था और इसके बाद उन्होंने 2016 से 2019 तक एम्स में जेरियाट्रिक मेडिसिन विभाग में वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर के पद पर काम किया. साथ ही भट्टी अनुसूचित जाति से हैं और पद इस श्रेणी के उम्मीदवार के लिए आरक्षित था. उनके अनुसार, साक्षात्कार देने वाले वह एकमात्र उम्मीदवार थे.
लेकिन 25 अगस्त को भट्टी को पता चला कि उन्हें इस पद के लिए नहीं चुना गया है. उनका मानना है कि ऐसा उनके डॉक्टरों और चिकित्सा समुदाय के कल्याण के लिए काम करने के कारण हुआ है. उन्होंने कहा, "मैंने एम्स में इसी विभाग में छह साल तक काम किया और बोर्ड के लोग मुझे जानते थे. मैंने एम्स से अपना एमडी किया और इसलिए वे मुझे अस्वीकार नहीं कर सकते थे क्योंकि मैंने पांच में से चार सवालों का सही और पूरा जवाब दिया और पांचवें का आंशिक रूप से जवाब दे दिया था." उन्होंने आगे कहा, "बोर्ड संतुष्ट था और मुझे पूरा यकीन था कि मेरा सलेक्शन हो जाएगा क्योंकि केवल मैं ही इंटरव्यू देने पहुंचा था. साथ ही मैं इसी विभाग और संस्थान के साथ कई सालों से जुड़ा हूं. लेकिन उन्होंने मुझे नहीं लिया. " भट्टी ने कहा कि एम्स के जेरियाट्रिक औषधि विभाग के सूत्रों ने उन्हें बाद में उनके अस्वीकृत होने के संभावित कारण के बारे में बताया. "मुझे पता चला कि साक्षात्कार बोर्ड को मेरा पिछले कुछ समय से एम्स में चिकित्सा बिरादरी के कल्याण और अधिकारों के लिए आवाज उठाने का रवैया पसंद नहीं आया."
भट्टी ने अपने बारे में बताया, “एम्स में मैं रेजिडेंट डॉक्टरों के कल्याण के लिए आवाज उठाने में सक्रिय रूप से भाग लेता था. मैं एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स संघ का सक्रिय सदस्य था और मैं इसके सचिव, कोषाध्यक्ष, महासचिव और अध्यक्ष पदों में रहा.” भट्टी 2017 से 2018 तक आरडीए के अध्यक्ष थे. दिसंबर 2017 में केंद्र सरकार ने पहली बार राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक पेश किया, जिसमें तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा नियामक, भारतीय चिकित्सा परिषद के स्थान पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन का प्रस्ताव रखा गया. एम्स के डॉक्टरों ने इस बिल का विरोध यह कहते हुए कहा कि इससे चिकित्सा शिक्षा की कमान "अमीरों और शक्तिशाली लोगों के पास चली जाएगी और 60 प्रतिशत सीटों की फीस तय करने का अधिकार निगमित सेक्टर के नियंत्रण में हो जाएगा." उस समय आरडीए के अध्यक्ष होने के नाते भट्टी ने तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को एक पत्र लिख इस बिल को "जनविरोधी" बताया था. पत्र में कहा गया था कि "इस बिल में बेहद गंभीर खामियां है जो इस देश में चिकित्सा शिक्षा के भविष्य को बिगाड़ देंगी."
भट्टी ने कहा, "मैंने उस बिल का विरोध किया और राष्ट्रीय मंच और सभी बड़े स्तरों पर इसके खिलाफ आवाज उठाई. इस बिल को लेकर मेरी सक्रियताता को देखते हुए, मुझे स्वास्थ्य मंत्री और संसदीय स्थायी समिति द्वारा हमारी चिंताओं पर चर्चा करने और बिल के प्रति सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया गया. उन सुझावों के साथ बिल को संशोधित कर लागू किया गया."
भट्टी ने रेजिडेंट डॉक्टरों से जुड़े एम्स में अधिक हॉस्टल के निर्माण जैसे मुद्दों को भी उठाया. फरवरी 2019 में एम्स छोड़ने के बाद वह युवा कांग्रेस के अखिल भारतीय चिकित्सा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त हो गए. भट्टी ने बताया कि उन्होंने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान विरोध स्थलों पर कई स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किए. उन्होंने विरोध प्रदर्शनों पर अपनी बात रखी और सीएए और एनआरसी के खिलाफ फेसबुक पर भी मुखरता से विरोध किया. उन्होंने कहा, "इसके अलावा मैं ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से भारत में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की कमी और अभाव को सबके सामने लाता रहा हूं."
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