राष्ट्रीय हेल्थ आईडी पंजीकरण के लिए किया जा रहा मजबूर, चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने लगाया आरोप

17 अगस्त 2017 को चंडीगढ़ में सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का एक दृश्य. अजय वर्मा / रॉयटर्स
14 September, 2020

सितंबर की शुरुआत में चंडीगढ़ के सेक्टर 32 में सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के एक जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर को डिजी डॉक्टर पर पंजीकरण करने में तीन दिन लग गए. डिजी डॉक्टर डॉक्टरों की एक रजिस्ट्री है जो हाल में घोषित राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन 2020 का हिस्सा है. मिशन के अनुसार इसका उद्देश्य देश के लिए एक एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य ढांचे का निर्माण करना है. "आखिर में मैं इतना निराश हो गया कि मैंने एनडीएचएम वेबसाइट पर उपलब्ध हेल्पलाइन नंबर को कॉल किया और पूछा कि क्या मेरे लिए पंजीकरण करना अनिवार्य है," रेजिडेंट डॉक्टर ने कहा. “मुझे बताया गया था कि अगर मैं पेशेवर चिकित्सक हूं तो पंजीकरण करना उपयोगी होगा लेकिन यह अनिवार्य नहीं है. फिर पंजीकरण के लिए मुझ पर इतना जोर क्यों डाला जा रहा था जबकि मैं अभी छात्र ही हूंं?” चंडीगढ़ के कम से कम पांच स्वास्थ्य कर्मचारियों ने मुझे बताया कि वे इस रजिस्ट्री में खुद को नामांकित करने और मिशन के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण करने के लिए मजबूर किए गए हैं जबकि इसे स्वैच्छिक बताया गया है. सभी पांचों ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे बात की.

28 अगस्त को केंद्र शासित प्रदेश में पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के निदेशक जगत राम ने एक परिपत्र जारी किया है जिसमें कहा गया कि "हेल्थ आईडी बनाने के लिए पंजीकरण देश के सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य है." चंडीगढ़ देश के उन सात केंद्र शासित प्रदेशों में से एक है जिनका राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण- केंद्रीय स्वास्थ और परिवार कल्याण मंत्रालय से जुड़ी स्वायत्त संस्था- ने राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन 2020 के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट के लिए चयन किया है. पीजीआईएमईआर के आदेश में आगे कहा गया है कि चंडीगढ़ प्रशासन ने संस्थान को अपने सभी डॉक्टरों और उनके परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण कराने का निर्देश दिया है. जीएमएसएच 32 की तरह चंडीगढ़ के अन्य सरकारी अस्पतालों और चिकित्सा शिक्षा संस्थानों ने भी इस तरह के निर्देश जारी किए हैं. हालांकि, एनएचएएम की घोषणा के बाद से एनएचए के सीईओ इंदु भूषण ने बार-बार कहा था कि यह "मूल रूप से नागरिकों के अधिकारों के तहत विशुद्ध स्वैच्छिक योजना है."

4 सितंबर को मुझे ईमेल की गई एक प्रतिक्रिया में एनएचए ने पीजीआईएमईआर के 28 अगस्त के सर्कुलर से खुद को दूर रखा है. एनएचएएम के कार्यान्वयन के प्रभारी एनएचए के अतिरिक्त सीईओ डॉ. प्रवीण गेदाम ने लिखा है कि पायलट प्रोजेक्ट के लिए, "हेल्थ आईडी बनाना पूरी तरह से स्वैच्छिक कार्य है यानी यह एक सहमति आधारित व्यवस्था है." गेदाम ने कहा कि अधिकारियों को सलाह दी गई थी कि "इस तरह के किसी भी आदेश को जारी न करें और यदि पहले ही जारी किए गए हैं तो ऐसे किसी भी आदेश को वापस लें/संशोधित करें."

पीजीआईएमईआर ने अपनी बात से पीछे हटते हुए कहा कि "अनिवार्य" शब्द एक त्रुटि थी जिसे सुधार लिया गया था. संस्थान ने 4 सितंबर को एक परिपत्र जारी किया जिसमें कहा गया कि स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण पूरी तरह से स्वैच्छिक कार्य है. राम ने कहा, "यह अनिवार्य नहीं है लेकिन यह एक अच्छा प्रयास है जो अधिक से अधिक लोगों के पंजीकरण में सफल होगा और इसलिए हमने केवल अपने कर्मचारियों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया है." गेदाम ने अपने ईमेल में इस परिपत्र का भी उल्लेख किया और कहा कि अब "यह स्पष्ट कर दिया गया है कि स्वास्थ्य आईडी बनाने के लिए पंजीकरण विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है."

4 सितंबर को पीजीआईएमईआर ने अपना स्पष्ट आदेश जारी करने से पहले, चंडीगढ़ में स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक गजिंदर दीवान द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, चंडीगढ़ में कम से कम 57000 स्वास्थ्य आईडी पंजीकृत किए गए हैं. संघ क्षेत्र में एनडीएचएम को लागू करने की जिम्मेदारी दीवान की है. गेदाम के अनुसार, 4 सितंबर तक सात केंद्र शासित प्रदेशों में 92000 हेल्थ आईडी बनाए गए थे. हालांकि पीजीआईएमईआर ने स्पष्ट किया कि एनडीएचएम डेटाबेस में पंजीकरण स्वैच्छिक था, कई डॉक्टरों ने कहा कि उनसे पंजीकरण करने की उम्मीद की गई थी. कुछ ने आरोप लगाया कि प्रबंधन ने उन्हें पंजीकरण न करने के बुरे नतीजे झेलने की धमकी भी दी.

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को 74वें स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए मिशन की घोषणा की थी और दावा किया था कि यह भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में पूरी तरह से क्रांति लाएगा. एनएचए ने उसी दिन एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की और दावा किया कि मिशन "सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी की शक्ति का लाभ उठाएगा." एनएचए के अनुसार, एनडीएचएम का लक्ष्य एक "डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र" बनाना है जिसमें डिजिटल स्वास्थ्य-सूचना को छह अलग-अलग प्रमुख शीर्षकों के तहत रखा जाएगा, जो हैं- मरीजों की विशिष्ट स्वास्थ्य आईडी, डॉक्टरों की रजिस्ट्री जिसे डिजी डॉक्टर कहा जाता है, एक स्वास्थ्य-सुविधा रजिस्ट्री, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, ई-फार्मेसियों और टेलीमेडिसिन.

एनएचए ने अगस्त के प्रारंभ में सात केंद्र शासित प्रदेशों- चंडीगढ़, दमन और दीव, पुदुचेरी, दादर और नगर हवेली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और लद्दाख में एनडीएचएम के तहत एक पायलट परियोजना शुरू की. एक प्रेस विज्ञप्ति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है कि सभी राज्यों में एनडीएचएम शुरू करने से पहले पायलट से सीखने को शामिल किया जाएगा. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने दो संस्थानों को जून के अंत तक पायलट शुरू करने के लिए कहा था. मोदी के मिशन की घोषणा करने से डेढ़ महीने पहले 30 जून को एक ईमेल में, मंत्रालय ने चंडीगढ़ में पीजीआईएमईआर के निदेशकों और पुडुचेरी में जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट एजुकेशन एंड रिसर्च को डॉक्टरों की रजिस्ट्रियां, स्वास्थ्य-बुनियादी ढांचे की रजिस्ट्रियां, हेल्थ आईडी और व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड बनाने के लिए एनडीएचएम लागू करने के लिए कहा. पीजीआईएमईआर के निदेशक राम ने संस्थान में एनडीएचएम को लागू करने के लिए एक नोडल अधिकारी नामित किया.

पीजीआईएमईआर ने आधिकारिक रूप से कहा कि उसके कर्मचारी स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण नहीं करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन जमीन पर स्थिति बिल्कुल अलग है. पीजीआईएमईआर के सामान्य सर्जरी विभाग के एक वरिष्ठ निवासी डॉक्टर ने मुझे बताया कि अस्पताल ने शुरुआत में अपने कर्मचारियों को एनडीएचएम वेबसाइट पर स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण करने और डिजी डॉक्टरों के रूप में पंजीकरण करने के लिए अपनी सत्यापन प्रक्रिया शुरू करने के लिए 48 घंटे का समय दिया था. "सितंबर की शुरुआत में 48 घंटे की समय सीमा हटा दी गई थी लेकिन सभी डॉक्टरों के लिए स्वास्थ्य आईडी और डिजी डॉक्टरों के लिए खुद को पंजीकृत करना अनिवार्य है," वरिष्ठ निवासी डॉक्टर ने कहा. "भले ही वे इसे कागज पर नहीं कहते हैं लेकिन उनकी अनकही अपेक्षा है कि सभी को अंततः पंजीकृत होना होगा."

पीजीआईएमईआर के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के एक डॉक्टर ने मुझे बार-बार मिलने वाले उन संदेशों के बारे में बताया जो विभागीय प्रशासन कर्मचारियों के व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजता है. इन संदेशों में पूछा जाता कि क्या कर्मचारियों ने स्वास्थ्य आईडी के लिए अपना और अपने परिवार का पंजीकरण कराया है. 4 सितंबर को - उसी दिन जब पीजीआईएमईआर ने अपना स्पष्ट परिपत्र जारी किया जिसमें कहा गया था कि पंजीकरण स्वैच्छिक है - विभाग प्रशासन ने एक संदेश भेजा जिसमें डॉक्टरों को धमकी दी गई थी कि यदि वे पंजीकरण करने में असफल रहे तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे. संदेश में कहा गया है कि यह "एचओडी के ध्यान में लाया गया है कि आपने आज तक हेल्थ आईडी जमा नहीं की है." ट्रांसफ्यूजन-मेडिसिन डॉक्टर ने कहा, "हमें आज भी एक संदेश मिला है कि अगर हम जल्द ही पंजीकृत नहीं होते हैं, तो एक गैर-अनुपालन रिपोर्ट निदेशक को भेज दी जाएगी."

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एक एसोसिएट वकील देवदुत मुखोपाध्याय ने कहा, ''यह एक आम तरीका है. इसे हमने आधार और आरोग्य सेतु के साथ भी देखा है. आप यह सुनिश्चित करते हैं कि कागज पर तो सब कुछ स्वैच्छिक है लेकिन फिर आप अधिकारियों को अलग-अलग निर्देश जारी करते हैं.'' आईएफएफ एक डिजिटल-लिबर्टीज संगठन है जो पायलट प्रोजेक्ट, साथ ही ड्राफ्ट हेल्थ डाटा मैनेजमेंट पॉलिसी की प्रगति पर बारीकी से नजर रखे हुए है. स्वास्थ्य डेटा सुरक्षा नीति का मसौदा, जो एनडीएचएम की नींव रखता है और वर्तमान में सार्वजनिक परामर्श के अधीन है, सहमति प्रबंधन की एक विस्तृत प्रणाली भी प्रस्तुत करता है, जहां व्यक्ति का डेटा एकत्र किया जाता है जिसे उसके स्वास्थ्य आईडी से जोड़ा जाता है, उसके पास किसी भी समय "एनडीएचएम पारिस्थितिक तंत्र" के अंदर या बाहर निकलने का अधिकार होता है. मुखोपाध्याय ने आईएफएफ के अन्य सदस्यों और विकलांगों के अधिकारों के लिए कार्यरत डॉ. सतेंद्र सिंह के साथ 2 सितंबर को दिल्ली के उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की जिसमें नीति के मसौदे पर प्रतिक्रिया देने के लिए हितधारकों को एक सप्ताह की शुरुआती मसविरा अवधि को चुनौती दी गई थी.

चंडीगढ़ में पीजीआईएमईआर ही एकमात्र ऐसा चिकित्सा संस्थान नहीं है जो एनएचए के स्वैच्छिक पंजीकरण के आश्वासन को खुले तौर पर झुठलाते है. जीएमसीएच 32 ने 18 अगस्त को अस्पताल के संयुक्त निदेशक द्वारा हस्ताक्षरित एक परिपत्र जारी किया था जिसमें कहा गया था कि देश के सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य आईडी पंजीकरण अनिवार्य है. परिपत्र ने सभी विभागों के प्रमुखों से कहा गया कि वे 48 घंटों के भीतर खुद के और अपने कर्मचारियों तथा उनके परिवार के सदस्यों के पंजीकृत होने को सुनिश्चित करें. हालांकि, निदेशक-प्रमुख डॉ. बीर सिंह चव्हाण ने मुझे बताया कि जीएमसीएच द्वारा अनिवार्य रूप से पंजीकरण का कोई आदेश नहीं दिया गया था और "डीएचएस से पत्र यह परिचालित किया गया था. "

चिकित्सा अधीक्षक और सेक्टर 16 में, जिसे जीएमएसएच 16 भी कहा जाता है, सरकारी मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी ने 19 अगस्त को एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया कि पंजीकरण अनिवार्य है. आदेश में चंडीगढ़ के सभी अस्पतालों और अन्य नागरिक अस्पतालों और संबद्ध औषधालयों के कर्मचारियों से कहा गया कि वे अपने संबंधित चिकित्सा सुविधाओं को डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की रजिस्ट्रियों में पंजीकरण करवाएं.

चंडीगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत अनुबंध पर पैरामेडिकल कर्मचारियों को अपने और अपने परिवार के लिए स्वास्थ्य आईडी बनाने के लिए भी कहा गया था. एनएचएम भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का मुख्य आधार है जिसके अंतर्गत मातृ एवं शिशु देखभाल, संचारी और गैर-संचारी रोग नियंत्रण और अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए जाते हैं. एक पैरामेडिकल कर्मचारी ने मुझे एक वॉयस नोट भेजा, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह चंडीगढ़ में एनएचएम की नोडल ऑफिसर डॉ. संगीता अजय ने भेजा है. वॉयस नोट में महिला को अनुबंधित कर्मचारियों को फटकारते हुए सुना जा सकता है. उन्होंने कहा, "आप सभी को अपनी और अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के पंजीकरण के निर्देश दिए गए थे, लेकिन मैं अभी स्वास्थ्य पोर्टल देख रही हूं और अभी तक हमारी केवल एक ही सुविधा पंजीकृत है. मुझे सिर्फ सर ने डांटा, इसलिए मुझे परवाह नहीं, लेकिन शाम तक आप सभी को पोर्टल में खुद को, अपनी सुविधाओं और सभी कर्मचारियों को पंजीकृत करना होगा और फिर मुझे रिपोर्ट करनी होगी." मैं अजय के पास इस बात की पुष्टि करने के लिए पहुंचा कि क्या उन्होंने वॉयस नोट भेजा था, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक के रूप में, दीवान जीएमएसएच 16, सिविल अस्पतालों और औषधालयों के कामकाज की देखरेख करते हैं. वह चंडीगढ़ में एनएचएम के निदेशक भी हैं. मैंने उन्हें एक संदेश भेजा जिसमें पूछा गया था कि एनडीएचएम डेटाबेस में खुद को और अपने परिवार को पंजीकृत करने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को निर्देश क्यों दिए गए हैं. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

गेदाम को अपने ईमेल में, मैंने उन तरीकों को विस्तार से बताया जिनसे चंडीगढ़ स्वास्थ्य विभाग एनडीएचएम वेबसाइट पर खुद को पंजीकृत करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मजबूर कर रहा था. अपने जवाब में, गेदाम ने कहा कि सभी केंद्र शासित प्रदेशों से कहा गया है कि वे ''यह सुनिश्चित करें कि राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन में भागीदारी को अनिवार्य करने वाले कोई आदेश जारी नहीं किए जाएं, क्योंकि मिशन को प्रकृति में विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक होने के लिए डिज़ाइन किया गया है.'' गेदाम ने यह भी कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर पीजीआईएमईआर के निदेशक से व्यक्तिगत रूप से बात की थी और "तथाकथित गैर-अनुपालन रिपोर्ट का यह डर निराधार प्रतीत होता है."

जीएमसीएच 32 में आर्थोपेडिक्स विभाग के एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने कहा, "यह वास्तव में बांह मरोड़ने जैसा लगता है. एक पदानुक्रम है और अगर आपका एचओडी आपसे पंजीकरण करने के लिए कहता है तो हमें आदेशों का पालन करना होगा, भले ही वे इसे लिखित रूप में न दें." अस्पताल के ऑर्थोपेडिक्स हेल्थकेयर कार्यकर्ता और दो अन्य डॉक्टरों ने कहा कि अगर उनके वरिष्ठों द्वारा इसे अनिवार्य नहीं किया गया होता, तो उन्होंने स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण नहीं किया होता. "वे कहते हैं कि हमारे विभाग के कितने सदस्यों ने स्वास्थ्य आईडी पर पंजीकरण किया है और इस बात को लेकर निरंतर अपडेट देते रहते हैं कि सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्होंने पंजीकृत किया है, नहीं एचओडी को पता चल जाएगा और कौन जानता है कि इसके क्या नतीजे होंगे," जूनियर निवासी डॉक्टर ने कहा, जिन्होंने तीन दिनों तक पंजीकरण करने की कोशिश की.

रमन जीत सिंह चीमा ने कहा, "अगर चंडीगढ़ में स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ स्वास्थ्य आईडी पर पंजीकरण करने के लिए इन तरीकों से तीन तिकड़म की जा रही है, जिससे वे स्पष्ट रूप से दबाव में हैं और इस योजना को जबरदस्ती लागू किया जा रहा है." चीमा एशिया नीति निदेशक और एक गैर-लाभकारी संगठन एक्सेस नाउ में वरिष्ठ वकील हैं, जो दुनिया भर के लोगों के डिजिटल अधिकारों का बचाव करता है. वह आईएफएफ के बोर्ड सदस्य भी हैं. "भले ही कागज़ पर वे दावा करते हैं कि कुछ अनिवार्य नहीं है, सरकारी संस्थानों में यह कहते हुए विनियामक प्रोत्साहन दिया जाता है कि आपको ये करना ही पड़ेगा वर्ना आपको सजा मिलेगी."

चीमा ने प्रधानमंत्री के नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति में राहत या पीएमईआरई फंड के साथ इस तरह के नियामक दबाव की तुलना की, जो एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट था, जिसे कोविड​​-19 महामारी से प्रभावित लोगों और व्यवसायों की मदद के लिए स्थापित किया गया था. सरकारी अधिकारियों को तकनीकी रूप से निधि में अपने वेतन का एक हिस्सा दान करने के लिए सहमति वापस लेने की अनुमति दी गई थी, लेकिन केवल एक वरिष्ठ अधिकारी से अपवादस्वरूप पूछकर. चीमा ने कहा, "और यह कैरियर को दांव पर लगाने जैसा होगा, क्योंकि तकनीकी रूप से आप एक अपवाद के लिए पूछ सकते हैं, लेकिन फिर उस फैसले के नतीजे झेलने पड़ेंगे."

चंडीगढ़ की रहने वाली प्रिया ने मुझे बताया कि उन्हें अस्पताल में अपने प्रसवपूर्व चेक-अप के लिए जाने से पहले जीएमएसएच 16 में एक स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकरण करना पड़ा. अस्पताल के कर्मचारियों ने जोर देकर कहा कि वह पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अपना आधार कार्ड विवरण प्रदान करें. "उन्होंने मुझसे कुछ नहीं पूछा, न ही उन्होंने मुझे बताया कि यह किस लिए है. वहां लोगों की एक पूरी कतार थी और वे सभी रोगियों को परामर्श से पहले पंजीकरण करने के लिए कह रहे थे." उन्हें नहीं पता था कि हेल्थ आईडी उनके अस्पताल के रिकॉर्ड से जुड़ी है या नहीं. उन्होंने कहा कि उनके पति, जिन्हें दिल की बीमारी थी और उन्होंने जीएमसीएच 32 में इलाज करवाना चाहते थे, उनको भी उनके स्वास्थ्य परामर्श के लिए जाने से पहले पंजीकरण करने के लिए कहा गया था. "मुझे लगता है कि अनुभव मेरे लिए ठीक था क्योंकि मैं निर्देशों का पालन कर सकती थी और अपने चेक-अप के लिए जाने से पहले जल्दी से पंजीकृत हो गई थी, लेकिन लाइन में बहुत सारे अन्य लोग थे जो वास्तव में परेशान दिख रहे थे," प्रिया ने कहा. "ग्रामीण पृष्ठभूमि के अनपढ़ मरीज़ हैं जो यह नहीं समझ पाते हैं कि आखिर क्या हो रहा है वह इस सारी कवायद से जूझ रहे थे."

जन स्वास्थ्य अभियान या पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट के राष्ट्रीय संयोजक अमूल्य निधि ने कहा कि जबकि स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति अभी भी परामर्श के लिए है एनडीएचएम को स्वास्थ्य आईडी के लिए लोगों का पंजीकरण नहीं करना चाहिए. वह पूछते हैं, "यदि इस डेटा की सुरक्षा के लिए नीति अभी भी टिप्पणी के लिए प्रस्तुत है, तो सरकार इस पंजीकरण प्रक्रिया को स्वैच्छिक आधार या मजबूरी के माध्यम से कैसे शुरू कर सकती है? प्रक्रिया शुरू करने से पहले कम से कम यह तो सुनिश्चित करें कि यह सार्वजनिक रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित और प्रचारित हो गई है."

नागरिक समाज के अन्य सदस्यों ने निधि की चिंता को साझा करते हुए पूछा कि एनएचए ने सार्वजनिक परामर्श पूरा होने से पहले पायलट परियोजना क्यों शुरू की थी और दस्तावेज को अंतिम रूप दिया. विकलांगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सिंह ने कहा, "मैंने कुछ दिन पहले अपने ट्विटर प्रोफाइल पर यही सवाल उठाया था. संवेदनशील स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा के लिए कोई नीतियां नहीं होने पर उन्हें आईडी दर्ज करने की अनुमति कैसे दी जाती है?" शुरूआत में परामर्श के लिए इतना कम समय देने के​ खिलाफ नागरिक समाज के हंगामें के बाद एनएचए ने परामर्श की अवधि 3 सितंबर से 21 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी थी.

गेदाम ने पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने का बचाव करते हुए कहा कि चूंकि अभी तक कोई संवेदनशील डेटा एकत्र नहीं किया गया इसलिए परियोजना को मसौदा नीति के मंजूर होने तक का इंतजार नहीं करना पड़ा. "एनएचए ने ऐसी किसी भी संवेदनशील जानकारी को एकत्र नहीं किया है. इस तरह की जानकारी एकत्र करने का इरादा नहीं है या नहीं करना चाहता है," उन्होंने लिखा. "केवल नाम, जन्म का वर्ष, राज्य, जिला जैसी सीमित जानकारी ही मांगी जा रही हैं." पीजीआईएमईआर में एनडीएचएम को लागू करने के लिए नोडल अधिकारी डॉ. एसएस पांडव ने गेदाम की बात को ही दोहराया. पांडव ने मुझे बताया, "अभी तक हम केवल हेल्थ आईडी रजिस्टर कर रहे हैं और कोई संवेदनशील डेटा या स्वास्थ्य रिकॉर्ड एकत्र नहीं किया गया है."

आईएफएफ के सहयोगी वकील मुखोपाध्याय ने कहा कि अगर व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड इकट्ठा करने का कोई इरादा नहीं होता, तो सरकार लोगों को विशेष स्वास्थ्य आईडी के लिए पंजीकृत ही नहीं करती. उन्होंने कहा, "उन चीजों को आजमाना और अलग करना बहुत ही अपमानजनक है, जहां आप यह ढोंग करने की कोशिश कर रहे हैं कि यह पंजीकरण चरण पूरी तरह से हटा दिया गया है जो बाद में आना है. यह सब उसी प्रक्रिया का हिस्सा है. पंजीकरण चरण में भी लोग अपने आधार नंबर साझा कर रहे हैं. ऐसे आधिकारिक पहचानकर्ताओं को सरकार के व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के तहत तो संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा के रूप में जाना जाता है लेकिन एनडीएचएम स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति के तहत नहीं. "

फिलहाल लोगों के पास एनडीएचएम वेबसाइट पर स्वास्थ्य आईडी हेतु पंजीकरण कराने के लिए फोन नंबर या अपने आधार कार्ड का विकल्प है. डॉक्टरों को डिजी डॉक्टरों के रूप में पंजीकरण करने के बाद सत्यापन प्रक्रिया के लिए अपना आधार कार्ड बनाना अनिवार्य है. चीमा ने कहा, "सरकार से यह सवाल पूछा जाना चाहिए है कि क्या जिनके हेल्थ आईडी बनाए गए है उन्हें एनडीएचएम ब्लूप्रिंट या हेल्थ डेटा मैनेजमेंट पॉलिसी की कॉपी दी गई है." उन्होंने कहा कि मिशन क्या है, इस पर विस्तृत जानकारी दिए बिना कोई व्यक्ति वास्तव में सही सहमति नहीं दे सकता है. “और यहां तक ​​कि अगर इस स्तर पर आवश्यक जानकारी संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा नहीं है तो यह व्यक्तिगत डेटा है. ये ऐसे पहचानकर्ता होते हैं जिनका इस्तेमाल व्यक्ति के अन्य डेटा सेट से जोड़ने के लिए किया जा सकता है. उनके अनुसार, चंडीगढ़ अधिकारियों को पायलट स्तर पर अपने संदेश में यह चिन्हित करना चाहिए था कि यह एक स्वैच्छिक प्रयास है, जिसके लिए उन्हें उम्मीद है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारी स्वैच्छिक रूप से प्रयास करने पर विचार कर सकते हैं और उन्हें कर्मचारी होने के नाते बाध्य नहीं किया जा सकता है.

निधि ने एनडीएचएम पायलट प्रोजेक्ट को खारिज करते हुए इसे ऐसी कवायद बताया जो भारत में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच में सुधार के लिए कुछ नहीं करती. "ऐसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बहुत गैर जिम्मेदार है और जहां लोगों को पूरी तरह से अनियमित निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर निर्भर रहना पड़ता है, वहां सरकार ने एक महामारी के बीच में इस तरह की समय खपाने वाली और निरर्थक कवायद क्यों की, यह बात समझ से परे है?"