मोदी के डॉक्टर

भारत में कोविड के लचर प्रबंधन के चार सूत्रधार

08 अप्रैल 2022
इलस्ट्रैशन : ग्रपाजे
इलस्ट्रैशन : ग्रपाजे

25 दिसंबर 2020 को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सार्स-कोव-2 (SARS-CoV-2) की जीनोमिक विविधताओं की जांच के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोगशालाओं के एक नेटवर्क इंसाकॉग (INSACOG) की स्थापना की. सरकार ने जीनोम अनुक्रमण (सिक्वेंसिंग) के लिए दस उन्नत प्रयोगशालाओं को “क्षेत्रीय केंद्र” के रूप में स्थापित किया ताकि भारत में फैल रहे कोरोना वायरस के स्ट्रेंस पर नजर रखी जा सके. भारत के अग्रणी वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील को प्रयोगशालाओं के इस संघ के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया. 

इंसाकॉग प्रयोगशालाओं से जुड़े एक वैज्ञानिक ने मुझे बताया, “उस समय तक हमें इस बात का ज्यादा अंदाजा नहीं था कि भारत में क्या चल रहा है और कैसे रूप बदल रहा है.” 

संचार तंत्र का एक सरल खाका तैयार किया गया : नमूनों को राज्य के स्वास्थ्य विभागों से दिल्ली के राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) में भेजा जाएगा. एनसीडीसी द्वारा नमूनों को क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में भेजा जाएगा. प्रत्येक प्रयोगशाला को कुछ राज्य सौंपे गए थे. नमूनों को अनुक्रमित किया जाएगा और सभी इंसाकॉग प्रयोगशालाओं को एक पोर्टल के माध्यम से एकत्रित जानकारी मुहैया कराई जाएगी. इस पोर्टल को साप्ताहिक रूप से अपडेट करने का प्रावधान भी बनाया गया. रिपोर्टों को वापस एनसीडीसी और वहां से राज्य के स्वास्थ्य विभागों को भेजना तय हुआ जिससे उन्हें यह पता चल सके कि उनके द्वारा भेजे गए नमूनों में क्या पाया गया. 

“मूल रूप से यही सूचना का पूरा ढांचा था,” एक इंसाकॉग वैज्ञानिक ने मुझे बताया. “ऐसा पहले कभी नहीं किया गया था. और यह अच्छी तरह काम भी कर रहा था.” इस ढांचे को तैयार करने में वैज्ञानिकों ने चार से छह हफ्तों का समय लगाया. “लेकिन सरकार ने जोर देकर कहा कि सूचना का आदान-प्रदान, खासकर सूचना का प्रदान, स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से किया जाएगा.” वैज्ञानिकों को यह बात अजीबोगारीब लगी, क्योंकि वे जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के लिए काम कर रहे थे जो स्वास्थ्य मंत्रालय के नहीं बल्कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है. 

जिस समय इंसाकॉग की प्रयोगशालाएं स्थापित की जा रही थी तभी पुणे के बी.जे. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने कोरोना वायरस के एक नए वेरिएंट का नमूना भेजा : B.1.617, जिसे पहली बार कैलिफोर्निया में पहचाना गया था. यह डेल्टा वेरिएंट से पहले का वेरिएंट था. जल्द ही पूरे भारत में इंसाकॉग की प्रयोगशालाओं ने B.1.617 और साथ ही इस वेरिएंट के तीन अलग-अलग उप-वेरिएंट के बारे में रिपोर्ट करना शुरू कर दिया. जीनोम सिक्वेंसिंग करने में प्रयोगशालाओं को कुछ सप्ताह का समय भी लगा. इंसाकॉग के उस वैज्ञानिक ने मुझे बताया, “फरवरी में हमने एनसीडीसी को एक रिपोर्ट भेजी, जिसे सरकार को भेजा जाना था. उस रिपोर्ट में हमने बताया कि वेरिएंट का इस तरह नए रूप लेना गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए.” 

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