सरकार ने कोविड-19 हताहत स्वास्थ्यकर्मियों की नहीं ली सुध तो ये खुद रखने लगे रिकॉर्ड

07 जनवरी 2021
27 अप्रैल 2020 को दिल्ली में एक कोविड-19 परीक्षण केंद्र में लंबे समय तक काम करने के चलते थकावट से बेहोश हो गए अपने एक साथी को संभालते स्वास्थ्य कार्यकर्ता.
मनीष स्वरुप / एपी फोटो
27 अप्रैल 2020 को दिल्ली में एक कोविड-19 परीक्षण केंद्र में लंबे समय तक काम करने के चलते थकावट से बेहोश हो गए अपने एक साथी को संभालते स्वास्थ्य कार्यकर्ता.
मनीष स्वरुप / एपी फोटो

पैंतीस वर्षीय रेहान राजा हरियाणा के मेवात जिले में निगरानी और मूल्यांकन अधिकारी के रूप में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत काम करते हैं. उनका काम जिले में चल रहे केंद्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में जानकारी और डेटा एकत्र करना है. इस साल वह भारत में इस मिशन से जुड़े उन सभी कर्मचारियों के विवरण रख रहे हैं जिनकी कोविड-19 से मृत्यु हो गई है.

राजा मिशन के अखिल भारतीय संघ के अध्यक्ष हैं और देश भर से संघ के सदस्यों से ये डेटा एकत्र कर रहे हैं. उन्होंने बताया, “जब भी हमारा कोई कार्यकर्ता संक्रमित होता है, मुझे तुरंत सूचना दी जाती है. हम देखते हैं कि क्या उसे चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं. इसलिए अगर उसका निधन हो जाता है, तो निश्चित रूप से हम उस पर ध्यान देते हैं.” उनके रिकॉर्ड के अनुसार, कोविड-19 की ड्यूटी कर लगे कम से कम साठ एनएचएम कर्मचारी क्रिसमस तक अपनी जान गंवा चुके थे.

राजा को यह हिसाब इसलिए रखना पड़ रहा है क्योंकि सरकार ने मृतकों की कोई गिनती नहीं की है. 2020 के अंत तक महामारी से कई डॉक्टरों, नर्सों, वार्ड बॉय, एम्बुलेंस चालकों, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सहित लाखों लोगों ने अपनी जान गंवा दी. सरकार ने कोविड से संक्रमित या मरने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या को लेकर कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है. स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्य सभा में आंकड़ों के बारे में एक लिखित जवाब में कहा था कि चूंकि स्वास्थ्य राज्य (सरकार) का विषय है इसलिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय स्तर पर इस तरह के आंकड़े नहीं रखे हैं. सरकार ने महामारी से संबंधित सभी आंकड़ों से अपना पल्लू झाड़ लिया है. सितंबर में यह कहा गया कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान नौकरी गंवाने वाले और घर की ओर पलायन करते समय मारे गए प्रवासी मजदूरों की संख्या का भी कोई डेटा नहीं है. श्रम और रोजगार मंत्रालय ने कहा कि उसके पास प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन के वितरण के बारे में राज्य-स्तरीय डेटा नहीं है.

आंकड़े इस बारे में अधिक स्पष्टता लाते कि स्वास्थ्य प्रणाली ने महामारी के लिए क्या किया. वह इस बात पर प्रकाश डालते कि मजदूरों की सुरक्षा में व्यवस्था कहां कम हो रही है और इसको लेकर क्या किया जाना चाहिए. इसका एक रिकॉर्ड होता कि किसकी क्षतिपूर्ति होनी चाहिए. राजा ने पूछा, "इन रिकॉर्ड्स को बनाए रखना कितना मुश्किल हो सकता है? गिनती न रखने से पता चलता है कि सरकार ने हमारे कल्याण और हमारे परिवारों ने जो बलिदान दिया है उसकी परवाह नहीं की.”

मार्च में प्रधानमंत्री ने इटली और स्पेन जैसे देशों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए लोगों का हर शाम अपनी बालकनी पर खड़े होना और डॉक्टरों और नर्सों का धन्यवाद व्यक्त करने की बात की. टेलीविजन पर दिए अपने संबोधन में उन्होंने सभी भारतीयों से अपनी बालकनियों में आकर थाली बजाने और मोमबत्तियां जलाने के लिए कहा और कई शहरों में कई भारतीयों ने इस अनुरोध को माना. उसी दिन स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों ने ट्विटर पर मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरण और चिकित्सा बुनियादी ढांचे की मांग की थी. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अच्छी गुणवत्ता वाले सुरक्षात्मक उपकरण, नौकरी की सुरक्षा, बेहतर आवास और बेहतर मेहनताने की मांग की. जिन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से मैंने बात कि उन्होंने कहा कि दिसंबर तक स्थिति में बहुत कम बदलाव आया है, काम पर चीजें खराब ही हैं और घर पर बदतर.

चाहत राणा कारवां में​ रिपोर्टिंग फेलो हैं.

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