पैंतीस वर्षीय रेहान राजा हरियाणा के मेवात जिले में निगरानी और मूल्यांकन अधिकारी के रूप में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत काम करते हैं. उनका काम जिले में चल रहे केंद्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में जानकारी और डेटा एकत्र करना है. इस साल वह भारत में इस मिशन से जुड़े उन सभी कर्मचारियों के विवरण रख रहे हैं जिनकी कोविड-19 से मृत्यु हो गई है.
राजा मिशन के अखिल भारतीय संघ के अध्यक्ष हैं और देश भर से संघ के सदस्यों से ये डेटा एकत्र कर रहे हैं. उन्होंने बताया, “जब भी हमारा कोई कार्यकर्ता संक्रमित होता है, मुझे तुरंत सूचना दी जाती है. हम देखते हैं कि क्या उसे चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं. इसलिए अगर उसका निधन हो जाता है, तो निश्चित रूप से हम उस पर ध्यान देते हैं.” उनके रिकॉर्ड के अनुसार, कोविड-19 की ड्यूटी कर लगे कम से कम साठ एनएचएम कर्मचारी क्रिसमस तक अपनी जान गंवा चुके थे.
राजा को यह हिसाब इसलिए रखना पड़ रहा है क्योंकि सरकार ने मृतकों की कोई गिनती नहीं की है. 2020 के अंत तक महामारी से कई डॉक्टरों, नर्सों, वार्ड बॉय, एम्बुलेंस चालकों, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सहित लाखों लोगों ने अपनी जान गंवा दी. सरकार ने कोविड से संक्रमित या मरने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या को लेकर कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है. स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्य सभा में आंकड़ों के बारे में एक लिखित जवाब में कहा था कि चूंकि स्वास्थ्य राज्य (सरकार) का विषय है इसलिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय स्तर पर इस तरह के आंकड़े नहीं रखे हैं. सरकार ने महामारी से संबंधित सभी आंकड़ों से अपना पल्लू झाड़ लिया है. सितंबर में यह कहा गया कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान नौकरी गंवाने वाले और घर की ओर पलायन करते समय मारे गए प्रवासी मजदूरों की संख्या का भी कोई डेटा नहीं है. श्रम और रोजगार मंत्रालय ने कहा कि उसके पास प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन के वितरण के बारे में राज्य-स्तरीय डेटा नहीं है.
आंकड़े इस बारे में अधिक स्पष्टता लाते कि स्वास्थ्य प्रणाली ने महामारी के लिए क्या किया. वह इस बात पर प्रकाश डालते कि मजदूरों की सुरक्षा में व्यवस्था कहां कम हो रही है और इसको लेकर क्या किया जाना चाहिए. इसका एक रिकॉर्ड होता कि किसकी क्षतिपूर्ति होनी चाहिए. राजा ने पूछा, "इन रिकॉर्ड्स को बनाए रखना कितना मुश्किल हो सकता है? गिनती न रखने से पता चलता है कि सरकार ने हमारे कल्याण और हमारे परिवारों ने जो बलिदान दिया है उसकी परवाह नहीं की.”
मार्च में प्रधानमंत्री ने इटली और स्पेन जैसे देशों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए लोगों का हर शाम अपनी बालकनी पर खड़े होना और डॉक्टरों और नर्सों का धन्यवाद व्यक्त करने की बात की. टेलीविजन पर दिए अपने संबोधन में उन्होंने सभी भारतीयों से अपनी बालकनियों में आकर थाली बजाने और मोमबत्तियां जलाने के लिए कहा और कई शहरों में कई भारतीयों ने इस अनुरोध को माना. उसी दिन स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों ने ट्विटर पर मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरण और चिकित्सा बुनियादी ढांचे की मांग की थी. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अच्छी गुणवत्ता वाले सुरक्षात्मक उपकरण, नौकरी की सुरक्षा, बेहतर आवास और बेहतर मेहनताने की मांग की. जिन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से मैंने बात कि उन्होंने कहा कि दिसंबर तक स्थिति में बहुत कम बदलाव आया है, काम पर चीजें खराब ही हैं और घर पर बदतर.
महामारी की शुरुआत में कई डॉक्टरों को कोविड-19 रोगियों का इलाज करने की बदनामी झेलनी पड़ी और कइयों को अपने घरों से निकाले जाने तक की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कुछ को शारीरिक हिंसा का भी सामना करना पड़ा.
डॉ. हरजीत सिंह भट्टी ने कहा, "ऐसा लगता है कि थालियां बजाना और दीये जलाना ही है जो सरकार हमारे लिए करना चाहती है." भट्टी दिल्ली के एक संगठन प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. संगठन में डॉक्टर, मेडिकल के छात्र और वैज्ञानिक शामिल हैं जो सामाजिक सुधार के काम करते हैं. भट्टी के अनुसार, भारत के स्वास्थ्य सेवा कार्यबल को कमजोर किया गया है और उस पर अधिक बोझ लाद दिया गया है. उन्हें मेहनताना भी बेहद कम दिया जाता है. भट्टी ने कहा कि महामारी इन मुद्दों को सबके सामने लाई है. 2020 की शुरुआत में सरकार ने बताया था कि देश के हर 1404 लोगों के लिए एक डॉक्टर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रत्येक 1000 नागरिकों के लिए एक डॉक्टर को उचित मानक निर्धारित किया है. हर चिकित्सा प्रणाली को डॉक्टरों से कहीं अधिक संख्या में नर्सों की आवश्यकता होती है. भारत में यह संख्या प्रति 1000 लोगों पर 1.7 है. डब्ल्यूएचओ सिफारिश करता है कि 1000 की आबादी के लिए कम से कम तीन नर्सों की आवश्यकता होती है.
कागजों में सरकार के पास 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत इसका डेटा रखने की प्रणालियां हैं कि कोविड-19 से कितने स्वास्थ्य कर्मचारियों की जान गई. इस अधिनियम को सरकार ने महामारी से निपटने के लिए लागू किया था. यह अधिनियम अनुरोध करने पर या उचित समझे जाने पर केंद्र सरकार को राज्य सरकारों से सहयोग और सहायता प्राप्त करने की अनुमति देता है. केंद्र सरकार के पास राज्यों को स्वास्थ्य कर्मियों की संक्रमण दर और मृत्यु दर पर डेटा को केंद्र के साथ साझा करने का निर्देश देने की शक्ति है. स्वास्थ्य मंत्रालय के पास एक समर्पित स्वास्थ्य खुफिया विंग, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस, भी है. इसकी वेबसाइट के अनुसार इस ब्यूरो का उद्देश्य, "साक्ष्य आधारित नीतिगत निर्णयों, योजना और अनुसंधान गतिविधियों के लिए देश के स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित आंकड़ों को एकत्र करना, उनका विश्लेषण और प्रसार करना है."
डॉक्टरों ने मुझे बताया कि डेटा के न होने के सरकार के दावे ने पहले से ही थके और बदहाल स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों को और परेशान कर दिया है. भट्टी ने कहा, "बुनियादी ढांचे में सुधार और कर्मचारियों की कमी को दूर करना तो छोड़िए, केंद्र सरकार ने उन स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या पर भी ध्यान नहीं दिया जिनकी काम करते समय मृत्यु हो गई." चौबे के ब्यान के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, जो राष्ट्रीय स्तर की एक स्वैच्छिक संस्था और आधुनिक चिकित्सा डॉक्टरों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर केंद्र सरकार की निंदा की. एसोसिएशन ने कहा कि सरकार ने स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और “महामारी अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम का प्रबंधन करने का नैतिक अधिकार खो दिया है.”
सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ इस बुनियादी डेटा को संकलित करने या साझा करने से मना कर विशेषज्ञों को एक मूल्यवान सूचना संसाधन से वंचित किया है. डब्लूएचओ के सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाहकार और हार्वर्ड चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से स्नातक करने वालीं सोनाली वैद ने मुझे बताया, “यह सिर्फ जिम्मेदारी लेने की बात नहीं है, डेटा वायरस को समझने के लिए एक मूल्यवान संसाधन है क्योंकि वायरस फैलता है और एक व्यापक समूह पर प्रभाव पड़ता है.”
सितंबर की शुरुआत में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अनुमान लगाया कि वैश्विक स्तर पर कोविड-19 से कम से कम 7000 स्वास्थ्यकर्मी मारे गए. 29 अक्टूबर को संक्रामक रोगों की पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन ने दुनिया के 37 सबसे अधिक प्रभावित देशों का सर्वेक्षण किया और अनुमान लगाया कि अगस्त के मध्य तक लगभग तीन लाख और नर्स संक्रमित हुए और कम से कम 2700 लोगों की मृत्यु हो गई थी. अध्ययन के लेखकों ने डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम से अपील की कि वह मौजूदा त्रासदी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नवंबर 2020 से अपनी कोविड-19 वेबसाइट पर राष्ट्र दर राष्ट्र डेटा उपलब्ध कराएं ताकि इस त्रासदी पर ध्यान दिया जाए और इसे रोकने के लिए कुछ किया जाए.
डब्ल्यूएचओ को स्वास्थ्य कर्मचारियों की मृत्यु का राष्ट्र दर राष्ट्र डेटा इकट्ठा करना और उसे जारी करना अभी बाकी है. 17 सितंबर को विश्व रोगी सुरक्षा दिवस पर एक प्रेस विज्ञप्ति में इसने दुनिया भर की सरकारों से अपने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सुरक्षित रखने के लिए कहा ताकि वे अपने मरीजों की सुरक्षा कर सकें. जबकि स्वास्थ्य कार्यकर्ता बड़े देशों में तीन फीसदी से कम और लगभग सभी निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों में दो फीसदी से भी कम आबादी रखते हैं. डब्ल्यूएचओ को सूचित किए गए कुल कोविड-19 मामलों में से लगभग 14 फीसदी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के हैं. कुछ देशों में यह अनुपात 35 फीसदी तक हो सकता है.
भारत में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसे संगठनों ने डॉक्टरों के बीच संक्रमण और मृत्यु दर के रिकॉर्ड को बनाए रखने की जिम्मेदारी संभाली है. आईएमए के महासचिव आरवी अशोकन ने कहा, "बेशक हम एचसीडब्ल्यू द्वारा किए गए बलिदानों के प्रति सरकार की उदासीनता से निराश थे, लेकिन वास्तव में हम इसको लेकर हैरान नहीं थे. अपने युवा डॉक्टरों को यह एहसास करने के लिए कि कोई उनका प्रतिनिधित्व कर रहा है, हमें आगे आना पड़ा." एसोसिएशन के रिकॉर्ड बताते हैं कि दिसंबर के मध्य तक कोविड-19 से 2784 डॉक्टर संक्रमित हो गए थे और 728 की मौत हुई थी. संक्रमित लोगों में 1471 डॉक्टर प्रैक्टिस कर रहे थे, 930 रेजिडेंट डॉक्टर थे और 383 हाउस सर्जन थे. ट्रेंड नर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की भी गणना जारी है. अक्टूबर के मध्य तक यह अनुमान लगाया गया कि कम से कम 47 नर्सों की मृत्यु हो गई थी.
राजा जैसे लोग मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, सहायक नर्स दाइयों और पराचिकित्सा कर्मचारियों पर नजर रखते हैं, जो मरीजों के साथ सबसे अधिक निकटता से काम करते हैं और अक्सर कम स्वास्थ्य सुविधा वाले क्षेत्रों में एकमात्र स्वास्थ्य सेवा प्रदाता होते हैं. उन्होंने कहा, "जबकि अभी भी कुछ ही डॉक्टरों और नर्सों का जिक्र हुआ है, मानो हम में से बहुत अभी अदृश्य ही हैं. स्वच्छता कर्मचारियों से लेकर एम्बुलेंस चालकों और शवगृह कार्यकर्ताओं तक, एनएचएम कर्मचारियों ने मरीजों के साथ करीब से काम किया है. वह मरीज को कोरोना होने से भर्ती होने तक और अंततः उनकी लाशों को पहुंचाने तक साथ रहते हैं." उनके कड़े प्रयासों के बावजूद संघों और संगठनों द्वारा मिलाया गया डेटा केवल हताहतों की संख्या का एक मोटा अनुमान है.
दिल्ली में यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन के महासचिव जोल्डिन फ्रांसिस यह सुनिश्चित करने के लिए मशक्कत कर रहे हैं कि उनके पेशे का कोई भी सदस्य इस गिनती से बाहर न रहे. उन्होंने कहा, "मैं व्यक्तिगत रूप से कुछ नर्सों को जानता हूं जिन्हें अभी तक कोविड-19 योद्धाओं के रूप में मान्यता देना बाकी है क्योंकि उनके परिवार यह साबित करने में असमर्थ हैं कि उनके प्रियजन काम पर रहते हुए बीमारी की चपेट में आए."
जोल्डिन जिन लोगों के लिए लड़ रहे हैं, उनमें से एक 67 वर्षीय नर्स राजम्मा की जून में दिल्ली के लोक नायक जय प्रकाश अस्पताल में मृत्यु हो गई थी. राजम्मा की बेटी दिव्या मधुसूदन ने कहा कि उनकी मां ने 26 साल तक जिस दो बेड वाले प्रसूति चिकित्सालय में काम किया, उसने यह प्रमाणित करने से इनकार कर दिया कि राजम्मा को उनके ही एक मरीज से कोविड-19 हुआ था. मातृत्व क्लीनिक कोविड-19 रोगियों का इलाज नहीं करता है लेकिन बाहर के रोगी परामर्श और प्रसव के लिए महामारी और लॉकडाउन के दौरान भी आते रहे. मधुसूदन ने कहा, "भले ही यह एक समर्पित कोविड-19 अस्पताल नहीं था लेकिन मरीज नियमित रूप से आ रहे थे और निश्चित रूप से किसी को भी संक्रमण हो सकता है."
मधुसूदन अपनी मां के मरने के कुछ सप्ताह बाद उनका सामान लेने के लिए अस्पताल गई थीं. अस्पताल के उस वार्ड के बाहर गार्ड के साथ उसकी लंबी बातचीत हुई जहां उसकी मां ने अंतिम समय बिताया था. "उन्होंने कहा कि कर्मचारी दूर से ही रोगियों को फेंक कर दवाएं देते थे. जिन रोगियों में चलने-फिरने और कर्मचारियों को ऐसा करने से रोकने की शक्ति थी, वे फिर भी भाग्यशाली थे लेकिन जो लोग बिस्तर से उठ नहीं पाते थे, उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया."
खुद एक नर्स होने के नाते मधुसूदन संकट के दौरान स्वास्थ्य सेवा के दबाव को समझती हैं जो अक्सर मेडिकल स्टाफ और रोगियों दोनों के लिए अन्यायपूर्ण होता है. उन्होंने कहा, सभी के काम पर होने के बावजूद, पहरेदार बिना जांच किए हुए मरीजों के लिए स्वास्थ्यकर्मी की तलाश कर रहे हैं लेकिन हर समय सभी मरीजों के लिए स्वास्थ्य कर्मचारी उपस्थित नहीं रख सकते हैं."
क्लीनिक से कोविड-19 प्रमाण पत्र के बिना, राजम्मा का परिवार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत बीमा का दावा नहीं कर सकता है, जिसका उद्देश्य कोविड-19 के कारण जान गंवा चुके स्वास्थ्य कर्मचारियों के परिवारों को 50 लाख रुपए का मुआवजा प्रदान करना है. फ्रांसिस जैसे नर्सिंग यूनियन नेताओं की सहायता से मधुसूदन ने प्रमाण पत्र जारी करने के लिए क्लीनिक के मालिकों से अनुरोध करते हुए पत्र लिखे हैं. उन्होंने जहां क्लीनिक है, उस क्षेत्र के विधायक गिरीश सोनी को एक पत्र भी भेजा और उनसे मुलाकात भी की और उनसे आवश्यक दस्तावेजों को प्राप्त करने में मदद मांगी. उनकी मां को गुजरे छह महीने बीत चुके हैं और मधुसूदन अभी भी प्रमाण पत्र का इंतजार कर रही हैं. “मुझे स्थानीय अधिकारियों से कोई मदद नहीं मिली है. मैं उनसे भविष्य में भी कोई उम्मीद नहीं करती हूं." उन्होंने कहा कि वह मामले को अदालत में ले जाने के बारे में सोच रही हैं.
भट्टी ने कहा कि मृत्यु दर पर एक डेटाबेस तैयार करना, सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कई कदमों में सबसे जरूरी है. उन्होंने कहा, "यह एक महत्वपूर्ण पहला कदम है क्योंकि केवल इसके बाद वह स्वीकार करेंगे कि यह समस्या वास्तव में है. वे इस बारे में सोच सकते हैं कि यह समस्या क्यों है और वे कैसे अपने स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं की रक्षा करने में विफल हुए हैं." इसके बाद उन्होंने कहा, फिर स्वास्थ्य सुरक्षा कर्मचारियों की कार्यक्षमता को मजबूत करने, मानक सुरक्षा उपकरण तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करने, नौकरी की सुरक्षा, पर्याप्त आवास और उच्च मजदूरी प्रदान करने का काम आता है. राजा के लिए ऐसी सरकार से इस तरह की उम्मीद करना बहुत ज्यादा है जो मृतकों की गिनती भी नहीं कर सकती है. उन्होंने कहा, "बीते साल से मैंने सीखा है कि सरकार से कोई भी उम्मीद नहीं रखनी है. हमें अपनी देखभाल खुद करनी है."