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इतिहास याद रखेगा कि कोविड-19 महामारी के समय 19 मार्च को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में भारतीयों को इटली के लॉकडाउन की नकल करने की सलाह देते हुए रविवार को अपनी-अपनी बालकनियों पर खड़े होकर डॉक्टरों, नर्सों और जारी जन स्वास्थ्य संकट से लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों का शुक्रिया अदा करने को कहा था. मोदी ने महामारी की तुलना विश्व युद्धों से की और दुनिया भर में कोविड के विस्फोट के बारे में बात तो की लेकिन उनके भाषण से जो जरूरी चीज गायब थी वह यह कि सरकार इस संकट को कम करने की कैसी रणनीति बना रही है.
मोदी सरकार ने जमीन पर काम कर रहे मेडिकल स्टाफ, जो मास्क, गाउन और अन्य प्रकार के सुरक्षा उपकरणों की समस्या झेल रहे हैं, के लिए किसी तरह के आर्थिक पैकेज या अन्य ढांचागत उपायों की पेशकश नहीं की. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले गैर सरकारी संगठन “जन स्वास्थ्य सहयोग” के डॉ. योगेश जैन ने कहा, “मोदी का भाषण भावनात्मक था, वह लोगों से सहयोग मांग रहे थे जबकि उन्हें इस संकट को कम करने की सरकार की रणनीति के बारे में बताना चाहिए था.” जैन ने आगे कहा, “मुझे नहीं लगता कि उनका भाषण नागरिकों या मेडिकल स्टाफ की चिंताओं को दूर करने वाला था. उन्होंने बस इतना किया कि महामारी की तुलना विश्व युद्धों से कर दी और लोगों को बालकनियों में खड़े होकर ताली बजाने, संयम रखने और संकल्प करने की अपील की. उन्होंने यह नहीं बताया कि युद्ध जैसी हालत में उनकी सरकार की तैयारी कैसी है.”
मोदी की नाटकीय प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का आह्वान करना था. जन स्वास्थ्य जानकारों के बीच इस एक दिन के बंद का कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं है लेकिन इसे आने वाले दिनों में संभावित लंबे लॉकडाउन की तैयारी की तरह देखा जा रहा है. उन्होंने उस विवाद की चर्चा नहीं की जिसमें भारत को दुनिया के सबसे कम कोविड-19 की जांच करने वाले देशों में गिना जा रहा है. उन्होंने जांच किटों की संख्या से संबंधित चिंताओं पर बात नहीं की और यह भी नहीं बताया कि जनता को कितनी कीमत पर कोविड-19 का इलाज उपलब्ध होगा जबकि विशेषज्ञ आने वाले दिनों में मामलों की सुनामी की चेतावनी दे रहे हैं.
मोदी का संबोधन न नागरिकों को शांत कर पाया और न ही गिरते हुए शेयर मार्केट को ऊपर उठा सका. इसने बस इतना साफ कर दिया कि भारत सरकार संकट कम करने की रणनीति को गुप्त रखने वाली है और वह मेडिकल सेवा देने वाले समुदायों की जरूरतों को प्राथमिकता नहीं देने जा रही है.
संकट से लड़ रहे मेडिकल स्टाफ ने मोदी के भाषण से मिली निराशा को ट्वीटर पर साफ कर दिया. तामिल नाडु की डॉ. शलीका मालवीय ने ट्वीट कर लिखा, “कृपा रविवार 5 बजे घर से निकल कर हमारा हौसला न बढ़ाएं बल्कि आप जहां हैं वहीं से प्रधानमंत्री ने अनुरोध करें कि वह आपको कोविड-19 की जांच करवाने दें. उनसे अस्पतालों में बिस्तरों, वैंटीलेटरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए मास्क जैसे पीपीई को बढ़ाने और सबसे हाशिए के लोगों के लिए आर्थिक सहयोग की मांग करें.” इसी प्रकार कोविड रोगियों का उपचार कर रहे एक डॉक्टर की पत्नी डॉक्टर आफरीन उस्मान ने ट्वीट पर लिखा, “एक डॉक्टर और कोविड मरीजों का उपचार करने वाले डॉक्टर की पत्नी होने के नाते मैं आप से कहना चाहती हूं कि हम नहीं चाहते कि आप हमारे लिए ताली बजाएं. वास्तम में हमें और अधिक टेस्टिंग किटों, बेहतर क्वारंटीन सुविधाओं, हजमत पोशाकों और ज्यादा जागरुकता यानी सही तरह की जागरुकता की जरूरत है.”
जैसा की मोदी हमेशा ही करते हैं उन्होंने नागरिकों को अपने कर्तव्यों का पालन करने को कहा लेकिन यह नहीं बताया कि राष्ट्र की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए उनकी सरकार क्या कर रही है. अपने संबोधन में वह यह भी बताने में विफल रहे कि कोविड से भारत को किस तरह का खतरा है. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि देश इस संकट से किस तरह लड़ रहा है. यह एक चिंता की बात है कि स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद अब तक सामुदायिक संक्रमण के खतरे को कम करके आंक रहे हैं. परिषद ने बताया है कि उसने 1020 रैंडम सैंपल संकलित किए हैं और उनमें से 826 में कोविड-19 नहीं पाया गया है. और इस आधार पर परिषद ने निष्कर्ष निकाल लिया कि कि भारत में सामुदायिक संक्रमण नहीं हो रहा है.
भारत अपनी बात पर अड़ा हुआ है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को स्थानीय संक्रमण वाला देश बताया है. इसके साथ ही अब भारत इटली, कोरिया और चीन सरीखे देशों में शामिल हो गया है. एक जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है, “यदि सामुदायिक संक्रमण न होने की बात सही है तो फिर सरकार ने महामारी रोग कानून, 1897 को लागू ही क्यों किया है और हम लॉकडाउन का अभ्यास भला क्यों कर रहे हैं? सरकार दोनों ही तरह की भाषा बोल रही है लेकिन राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य के हितों के संबंध में कोई निर्णय नहीं ले रही है.”
मोदी ने लोगों से अपील की कि वे सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करें. उन्होंने कहा, “आज 130 करोड़ देशवासियों को अपना संकल्प और दृढ़ करना होगा कि हम इस वैश्विक महामारी को रोकने के लिए एक नागरिक के नाते अपने कर्तव्य का पालन करेंगे. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के दिशानिर्देशों का पूरी तरह से पालन करेंगे.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से एकदम उलटा था.
जिस दिन मोदी भारतीयों को बर्तन बजाने का नुस्खा बता रहे थे, उसी दिन विजयन ने केरल में इस संकट से निबटने के लिए, जहां 25 मामले अब तक सामने आए हैं, 20000 करोड़ रुपए के वित्तीय पैकेज का ऐलान किया. केरल सरकार ने 500 करोड़ रुपए समर्पित स्वास्थ्य सेवाओं के लिए, 2000 करोड़ रुपए कर्ज और मुफ्त राशन के लिए, 1000 करोड़ रुपए मनरेगा के लिए और 1320 करोड़ रुपए सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लिए आवंटित किए. राज्य सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे के प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए 1000 रुपए आवंटित किए हैं जिन्हें सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल रही है. इसके लिए राज्य सरकार ने 100 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए हैं. साथ ही इस पैकेज के अंतर्गत राज्य सरकार ने घोषणा की है कि वह कम कीमत वाले 1000 आहारगृह लगाएगी जहां 20 रुपए में खाना उपलब्ध होगा. सरकार ने यह भी कहा है कि उपभोक्ताओं को अपने बिजली और पानी के बिलों का भुगतान करने के लिए एक महीने का वक्त दिया जाएगा और सिनेमा हॉलों को मनोरंजन कर में छूट दी जाएगी.
यह बहुत साफ है कि केरल भारत के उन राज्यों में से एक है जिन्होंने संकट से निबटने की बेहतर तैयारियां की हैं और यह भी बिल्कुल साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी जन स्वास्थ्य संकट का सामना करने की रणनीति तैयार करने में फेल हो गए हैं. और तो और न सिर्फ केंद्र सरकार संकट को कम करने की रणनीति तैयार करने में नाकामयाब रही है बल्कि ऐसा लग रहा है कि वह अन्य राज्यों को भी ऐसा करने से सक्रिय रूप से रोक रही है. 20 मार्च को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संकट की घड़ी में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और आयकर जैसे राजस्व की उगाही रोकने के इलाहबाद हाई कोर्ट और केरल हाई कोर्ट के फैसलों के खिलाफ याचिका दायर की. उसी दिन एम खानविलकर, विनीत सरन और कृष्ण मुरारी वाली तीन जजों की खंडपीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.
इस बीच नोवेल कोरोनावायरस के पुष्ट मामले दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 168 देशों में 209839 मामलों के होने और इस वायरस से 8778 लोगों की मौत की खबर दी है. भारत में अब तक 206 मामले सामने आए हैं और पांच लोगों की मौत हो चुकी है.