15 अप्रैल की देर शाम तक गुजरात के सूरत शहर के सबसे बड़े श्मशान अश्विनी कुमार श्मशान घाट में कोविड-19 रोगियों के 140 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. उसी दिन गुजरात सरकार ने बताया कि राज्य में केवल 41 कोविड-19 रोगियों की मौत हुई है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक 25 मौतें सूरत में हुईं. श्मशान की रजिस्ट्री का प्रबंध करने वाले कर्मचारी ने मुझे बताया, ''हर दिन औसतन करीब 150 लाशें आ रही हैं.”
भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर में शवदाह गृहों और श्मशानों में जिस तरह की लाइनें हैं वह राज्य सरकारों द्वारा जारी मौत के आधिकारिक आंकड़ों पर संदेह पैदा करती हैं. गुजरात से इस संकट पर रिपोर्टिंग करते हुए कारवां ने, उन शहरों में जहां हालात सबसे खराब हैं, श्मशान घाटों पर कोविड-19 प्रोटोकॉल के अनुसार शवों की संख्या की तुलना जब राज्य सरकार द्वारा जारी संख्या से की तो कोविड-19 मौतों में भारी विसंगतियां पाईं. मौत के आंकड़ों में इन विसंगतियों के पीछे तीन कारक हैं- केवल अस्पतालों से संख्या दर्ज करना, श्मशान घाटों से नहीं, केवल उन लोगों की गिनती करना जिनकी मौत कोविड-19 जांच पॉजिटिव आने के बाद हुई और उनकी गिनती जिनकी मौत डॉक्टर कोमोरबिडिटी से हुई बता रहे हैं.
सूरत के श्मशान घाट के कर्मचारी ने आधिकारिक तौर पर मौतों की संख्या घटाकर दर्ज करने के एक पैटर्न की ओर इशारा किया. "11 अप्रैल को हमारे पास 190 शव आए थे और वे काविड-19 से हुई मौतें थीं," उन्होंने कहा. आधिकारिक तौर पर गुजरात सरकार ने दर्ज किया कि उस दिन सूरत और राज्य भर में कोविड-19 से 54 मौतें हुईं. इसी तरह 14 अप्रैल को अश्विनी कुमार श्मशान के रजिस्टर में दर्ज है कि कोविड-19 के 160 शवों का अंतिम संस्कार किया गया, जबकि कोविड-19 प्रोटोकॉल के चलते पूरे शहर में दाह संस्कार की संख्या 275 थी. इसके विपरीत आधिकारिक तौर पर पूरे गुजरात में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या केवल 74 दिखाई गई.
सूरत में हमने अश्विनी कुमार श्मशान के अलावा दो प्रमुख श्मशान स्थलों पर अंतिम संस्कार किए गए कोविड-19 शवों की संख्या की गिनती की. उमरा में रामनाथ घीला श्मशान में संस्कारों का रिकॉर्ड रखने वाले जयेश भाई उमरीगर ने मुझे बताया कि उनके यहां हर दिन कोविड-19 मामलों के 40-50 शव आ रहे हैं. उमरीगर ने 15 अप्रैल की दोपहर को हमसे कहा, "हमने 14 अप्रैल को 42 और आज अब तक लगभग 28 अंतिम संस्कार किए हैं."
जहांगीर पुरा क्षेत्र के कुरुक्षेत्र श्मशान घाट में 1 अप्रैल से 15 अप्रैल तक हर दिन कोविड-19 के औसतन 70 से 80 शवदाह दर्ज किए गए. कुरुक्षेत्र श्मशान के न्यासी कमलेश नाविक ने मुझे बताया, "पिछले सप्ताह से हर दिन कम से कम 70 कोविड-19 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है." नाविक ने कहा कि 14 अप्रैल को कोविड-19 प्रोटोकॉल के अनुसार 73 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. 15 अप्रैल को कारवां की टीम श्मशान के बाहर मौजूद थी जहां कम से कम आठ एम्बुलेंसें खड़ी थीं और उनमें से प्रत्येक में दो या तीन शव थे. श्मशान के बाहर कतार में खड़ी पहली एम्बुलेंस छह शवों को लाई थी. एक घंटे के भीतर हमने श्मशान में लाए गए कोविड-19 रोगियों के कम से कम 20 शव देखे.
सूरत में आम आदमी पार्टी के एक पार्षद विपुल सुहागिया ने कहा, "हर दिन कम से कम 150 से 200 मौतें हो रही हैं और वह हमें बता रहे हैं कि प्रतिदिन केवल दस से 15 मौतें हो रही हैं. मैं जिनकी बात कर रहा हूं वह कोविड-19 के पुष्ट मामले हैं. ऐसे कई और लोग हैं जिनकी जांच होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो जाती है, या अन्य जिन्हें कोविड-19 होने का संदेह है लेकिन उनकी जांच रिपोर्ट नेगेटिव आती है.” उन्होंने कहा, "यह एक मजाक है. सरकारी आंकड़े भरोसे के लायक नहीं हैं.”
मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज के गुजरात चैप्टर के एक कार्यकर्ता कृष्णकांत चौहान ने कहा कि पिछले साल से ही कोविड-19 के आंकड़ों को छिपाया गया है. उन्होंने मार्च और मई 2020 के बीच सूरत नगर निगम द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों का विश्लेषण किया था. "हमने पाया कि इस अवधि के दौरान उनके डेटा में लगभग 1100 कोविड-19 रोगियों का हिसाब नहीं था."
चौहान ने बताया कि पहली लहर के दौरान सूरत नगर निगम ने एक विस्तृत डेटाबेस जारी किया था जिसमें परीक्षणों की संख्या, पॉजिटिव लोगों की संख्या, छुट्टी पाने वाले लोगों की संख्या और मरने वालों की संख्या शामिल थीं. उन्होंने बताया कि इन तीन श्रेणियों में स्पष्ट विसंगतियां थीं. "हमने पाया कि कुछ नाम गायब थे. कुछ लोग ऐसे थे जिनका नाम पॉजिटिव रोगियों की सूची में था लेकिन उन लोगों की सूची में नहीं था जिन्हें छुट्टी दी गई थी या जिनका निधन हो गया था. ऐसे लोगों के नाम भी थे जिन्हें छुट्टी दे दी गई थी लेकिन पॉजिटिव परीक्षण करने वालों की सूची में शामिल नहीं किया गया था.” उन्होंने यह भी कहा कि एसएमसी ने कम से कम 100 कोविड-19 मौतों की गिनती ही नहीं की थी.
चौहान ने जून 2020 के अंत में इन विसंगतियों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की. उन्होंने मुझसे कहा, "मुख्यमंत्री ने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद ही शहर का दौरा किया था. स्थानीय मीडिया ने उनसे सवाल किया कि मृत्यु दर के आंकड़ों में विसंगति क्यों है लेकिन उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उन्हें स्थानीय नौकरशाही से इन सवालों को पूछना चाहिए."
चौहान ने मुझे बताया कि अब, "उसी तरह की गिनती में गड़बड़ी और भी बड़े पैमाने पर हो रही है लेकिन निश्चित रूप से कोई इसे स्वीकार नहीं करेगा." उन्होंने कहा कि एसएमसी के अब जारी हो रहे डेटा की क्वालिटी जून 2020 की तुलना में बहुत खराब है. उदाहरण के लिए 2020 के शुरुआती महीनों में जब भारत महामारी की पहली लहर भोग रहा था एसएमसी ने ब्योरेवार डेटा उपलब्ध कराया था. अप्रैल 2021 में यह केवल दैनिक पॉजिटिव मामलों और क्वारंटीन हुए लोगों की संख्या का डेटा प्रदान करता था. सूरत की मृत्यु दर अब गुजरात के स्वास्थ्य विभाग द्वारा साझा किए गए दैनिक बुलेटिन में केवल राज्य की कुल मृत्यु दर के हिस्से के रूप में बताई जाती है.
हमने अहमदाबाद में भी ऐसी ही स्थिति पाई. अहमदाबाद नगर निगम के कर्मचारी नरसिम्हा, जो शहर के एलिसब्रिज श्मशान में काम करते हैं, ने मुझे बताया कि अप्रैल की शुरुआत से हर दिन एलिसब्रिज में लगभग 40 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था. अहमदाबाद में पांच अन्य प्रमुख श्मशान हैं जहां कोविड-19 हताहतों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक शहर में सबसे ज्यादा कोविड-19 मौतें 25 अप्रैल को 25 लोगों की हुई.
गुजरात के आधिकारिक आंकड़े उन संदिग्ध और संभावित मामलों को नजरअंदाज करते हैं जिनकी मृत्यु के समय परीक्षण द्वारा पुष्टि नहीं हो सकी थी. सूरत और अहमदाबाद में श्मशान घाटों पर शव सफेद प्लास्टिक बॉडी-बैग में थे और उन पर "कोविड संदिग्ध" या "कोविड पॉजिटिव" अंकित था. श्मशान के अधिकारियों ने हमें बताया कि आधिकारिक रिकॉर्ड के लिए केवल कोविड-19 पॉजिटिव शवों की गिनती की गई थी. नरसिम्हा ने कहा कि "इनमें से कुछ शव कोविड-19 से संबंधित नहीं हैं क्योंकि व्यक्तियों को दूसरी बीमारियां थीं." उन्होंने हमें यह भी बताया कि निगम ने श्मशान से डेटा एकत्र नहीं किया. उन्होंने कहा, "अस्पतालों के आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो अहमदाबाद नगर निगम यहां से कोई डेटा नहीं लेता है. यहां कोविड-19 और गैर-कोविड-19 के बीच कोई अंतर नहीं है. सभी शव अब कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत जलाए जाते हैं.”
सूरत और अहमदाबाद नगर निगम के अधिकारियों ने हमें पुष्टि की कि वे केवल अस्पतालों से मृत्यु डेटा एकत्र कर रहे हैं. “हमारे डेटा को श्मशान से एकत्र नहीं किया गया है,” अहमदाबाद के नगर निगम के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करते हुए कहा. उन्होंने आगे कहा, "विशेषज्ञों की एक टीम है जो अस्पतालों से इन मृत्यु रिकॉर्डों का ऑडिट करती है और अगर उन्हें लगता है कि कोविड-19 मौत का प्राथमिक कारण है, तो इसे दर्ज किया जाता है."
अधिकारियों ने हमें यह भी बताया कि पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त मरीजों की मौत की गिनती कोविड-19 की मौतों में नहीं की गई थी. एसएमसी के डिप्टी कमिश्नर डॉ. आशीष नाइक ने कहा, "जो लोग नेगेटिव होते हैं लेकिन कोविड-19 के लक्षण होते हैं, उन्हें भी नहीं गिना जाता." इसके अलावा 15 अप्रैल को संध्या न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने कहा कि राज्य उन मामलों को आधिकारिक मौत के आंकड़े में नहीं शामिल करेंगे जहां कोविड-19 को "मौत का द्वितियक कारण" माना जाता है. रूपानी ने जोर देकर कहा कि सभी मौतें भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के दिशानिर्देशों के अनुसार पंजीकृत हैं.
आईसीएमआर के दिशानिर्देश डॉक्टरों को मृत्यु प्रमाण पत्र भरने के लिए विस्तृत निर्देश प्रदान करते हैं. एमसीसीडी फॉर्म में तीन महत्वपूर्ण विवरण होते हैं - मृत्यु का तात्कालिक कारण, मृत्यु का पूर्व-कारण और "मृत्यु के लिए जिम्मेदार अन्य महत्वपूर्ण स्थिति."
आईसीएमआर के कोविड-19 दिशानिर्देश कहते हैं कि जिन मरीजों की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आती है और मर जाते हैं, उनके लिए कोविड-19 को मृत्यु के पूर्ववर्ती कारण के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए. मृत्यु का तात्कालिक कारण चोट या जटिलता है जिसके कारण मृत्यु हो गई, जैसे कि तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम या तीव्र हृदयाघात. दिशानिर्देशों में कहा गया है कि अगर पुष्टि हुए कोविड-19 हताहत को पहले से कोई बीमारी है, तो इन्हें मृत्यु के अंतर्निहित कारणों के रूप में दर्ज नहीं किया जाना चाहिए. तर्क यह है कि भले ही पहले से किसी बीमारी से ग्रसित होना जटिलताओं का कारण हो सकता है पर वह इन नैदानिक परिदृश्यों में मृत्यु का कारण नहीं बन सकता है. दिशानिर्देश इसकी इजाजत देते हैं कि पहले से किसी बीमारी की स्थिति को ''अन्य महत्वपूर्ण स्थिति'' में शामिल कर दिया जाए, यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि इन परिस्थितियों के चलते मौत हुई है. यदि किसी रोगी में कोविड-19 के नैदानिक लक्षण हैं लेकिन जांच रिपोर्ट नकारात्मक है, तो "नैदानिक रूप से कोविड-19 होने" को मृत्यु के पूर्ववर्ती कारण के रूप में जोड़ा जाता है. यदि परीक्षण के परिणाम लंबित होने पर रोगी की मृत्यु हो जाती है, तो प्रमाणपत्र में "संदिग्ध कोविड-19" शब्द का प्रयोग किया जाता है और यदि रोगी के परीक्षा परिणाम अनिर्णायक हैं, तो मृत्यु प्रमाणपत्र पर "संभावित कोविड-19" शब्द का उपयोग किया जाता है.
आईसीएमआर से संबद्ध संस्थान नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च के निदेशक प्रशांत माथुर ने आईसीएमआर दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार किया है. उन्होंने ईमेल द्वारा दिशानिर्देशों के बारे में कारवां के सवालों का जवाब दिया और कहा कि "आधिकारिक डेटा कोविड-19 पर आधारित है जो मृत्यु के कारण के मेडिकल प्रमाण पत्र में मृत्यु के अंतर्निहित कारण के रूप में निर्दिष्ट है. मौजूदा पूर्व बीमारी कोविड रोग को गंभीर कर सकती हैं और स्थितियों में महत्वपूर्ण योगदान कारक के रूप में दर्ज किए जाते हैं लेकिन मृत्यु के अंतर्निहित कारण के रूप में नहीं.” माथुर के अनुसार, यदि कोविड-19 को मृत्यु का अंतर्निहित या पूर्ववर्ती कारण माना जाता है, तो उसे कोविड-19 की मृत्यु के आधिकारिक रिकॉर्ड में गिना जाना चाहिए.
माथुर ने कहा कि संदिग्ध, संभावित या नैदानिक रूप से पुष्ट किए गए कोविड-19 मामलों को मृत्यु के अंतर्निहित कारणों के रूप में आधिकारिक मृत्यु गणना में शामिल किए जाने के लिए कोई स्थायी निर्देश नहीं हैं. “संदिग्ध या संभावित कोविड-19 की मृत्यु के मामले में इन प्रमाण पत्रों में एक विशिष्ट कोड का उपयोग किया जाता है, जो कि पुष्ट किए गए कोविड-19 मौतों के लिए उपयोग किए गए कोड से भिन्न होता है. यह वह कोड है जिसकी बाद में जनगणना के आंकड़ों और मृत्यु रिकॉर्ड के लिए गणना की जाएगी,” उन्होंने कहा, यह कोड भारत की जनगणना के तहत आधिकारिक आंकड़ों को संकलित करने के लिए उपयोगी हैं. “लेकिन स्थानीय और राज्य सरकारें रोजाना के आंकड़ों को किस तरह दर्ज करती हैं और कैसे यह पता चलता है कि कोविड-19 मौत है या नहीं, यह पूरी तरह उनके ऊपर है. हम केवल दिशानिर्देश दे सकते हैं, हम इसकी निगरानी नहीं कर सकते कि डेटा कैसे दर्ज किया जाता है.”
माथुर ने कहा कि ऐसे मामलों में जब कोविड-19 है और कुछ अन्य स्थिति या कैंसर या मधुमेह जैसी मौजूदा पूर्व बीमारियों के कारण कुछ ऐसा घटता है जिसके कारण मौत हो जाती है तो मौत के अंतर्निहित कारण के रूप में डॉक्टर पूर्व बीमारी को दर्ज करते हैं. ऐसे मामलों में, "तब कोविड-19 को मृत्यु के अंतर्निहित कारण के रूप में नहीं गिना जा सकता है," उन्होंने कहा.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र भाई पटेल के अनुसार, स्वास्थ्य अधिकारी इस तकनीक का इस्तेमाल कोविड-19 से हुई मौत की रिपोर्टिंग को दबाने के लिए कर रहे हैं. पटेल, जो अहमदाबाद में 28-बेड का कोविड-19 अस्पताल चलाते हैं, ने मुझे बताया कि स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने अस्पतालों को निर्देश दिया था कि एमसीसीडी पर मृत्यु के पूर्ववर्ती कारणों के रूप में कोविड-19 हताहतों की संख्या के लिए गंभीर पूर्व बीमारी को दर्ज करें. "इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि मेरा तर्क यह है कि भले ही रोगी को उच्च रक्तचाप या मधुमेह हो, वह शायद अपनी दवाओं की मदद से 20 या 30 साल तक जीवित रह सकता था," पटेल ने कहा. “यह किसी भी अन्य जीवन शैली से जुडी बीमारी की तरह नियंत्रित हो जाती पर कोविड-19 के चलते मरीज की मृत्यु हो गई. कोविड-19 होने की आशंका, नैदानिक लक्षणों का होना लेकिन बिना जांच की पुष्टि के, या अनिर्णायक परीक्षण इन सभी को कोविड-19 से हुई मौत के रूप में नहीं गिना जा रहा.”
पटेल ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में कोविड-19 के कारण कौन सी मौतें हुईं और कौन सी नहीं, यह निर्धारित करने के लिए पोस्टमार्टम किए जाते “लेकिन मौजूदा स्थिति में, किसी के पास इसके लिए समय नहीं है. साथ परिवार के सदस्य आमतौर पर पोस्टमार्टम के लिए अपने रिश्तेदारों के शवों को देने की इच्छा नहीं रखते हैं. "
एक्टिविस्ट चौहान ने कहा कि गुजरात के आंकड़ों में हेरफेर का नतीजा यह हुआ कि लोग राज्य सरकार पर भरोसा खो रहे हैं. "अगर हमारे डेटा में पारदर्शिता है, तो लोगों को सरकार पर अधिक विश्वास होगा," उन्होंने कहा. “वह सरकार की बात सुनेंगे और उसके अनुसार व्यवहार करेंगे. सच इसलिए छिपाया जा रहा है ताकि सरकार की अक्षमता पर पर्दा डाला जा सके या इसके पीछे राजनीतिक कारण हैं. उन्होंने कहा, “वह चाहते हैं कि बीजेपी शासित गुजरात अच्छी स्थिति में दिखे. वास्तविक स्थिति हर दिन बद से बदतर होती जा रही है और सरकार बस सच्चाई को छिपाने का काम कर रही है.”