12 जून को मैक्स अस्पताल का कोविड-19 इलाज की भारी भरकम फीस वाला एक चार्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसका शीर्षक था, “कोविड-19 प्रबंधन के लिए रोजाना का चार्ज”. इस चार्ट में जनरल वार्ड की दर 25090 रुपए बताई गई थी जिसमें कोविड-19 की जांच, “महंगी दवाइयां” और कोमोरबिडिटी यानी कोविड के अतिरिक्त रोग के इलाज की फीस शामिल नहीं थी.
बाद में मैक्स हेल्थकेयर ने स्पष्टीकरण दिया कि वह चार्ट उसके दिल्ली के पटपड़गंज अस्पताल का है. अस्पताल ने ट्वीट किया कि चार्ट में उल्लेखित फीस में नियमित जांच और दवाइयां, डॉक्टर और नर्सों की फीस आदि शामिल हैं. अस्पताल ने कोविड-19 पैकेज के प्रति दिन के चार्ज का दूसरा चार्ट भी साझा किया जिसके मुताबिक सिंगल रूम का प्रति दिन का चार्ज 30400 रुपए, इंटेंसिव केयर यूनिट या आईसीयू का प्रति दिन का चार्ज 53000 रुपए और वेंटिलेटर वाले आईसीयू का प्रति दिन का चार्ज 72500 रुपए है. इस कीमत में उपचार देश के बहुसंख्यक लोगों के लिए बहुत महंगा है और इससे लोक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच निजी स्वास्थ्य सेवाओं को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के मरीजों की पहुंच में लाने से जुड़ी बहस छिड़ गई है. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने 4 जून को अपने एक आदेश में 56 निजी अस्पतालों की सूची जारी की थी जिन्हें अपनी कुल बेड संख्या का 10 फीसदी और ओपीडी विभाग की कुल बेड क्षमता का 25 फीसदी भाग ईडब्ल्यूएस मरीजों के लिए निशुल्क आरक्षित रखना है. दिल्ली में जिस परिवार की आय 7020 रुपए से कम है उन्हें ईडब्ल्यूएस मरीज माना जाता है. उस आदेश में उन अस्पतालों के नाम भी थे जिन्हें ईडब्ल्यूएस के कोविड-19 मरीजों के लिए बेड आरक्षित करने हैं.
कोविड-19 महामारी से पैदा हुए जन स्वास्थ्य आपातकाल से बहुत पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस मरीजों की पहुंच निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बनाने के हक में फैसला सुनाया था. जुलाई 2018 के फैसले में कोर्ट ने उन निजी अस्पतालों को, जो सरकारी रियायती दरों में हासिल जमीन पर बने हैं, आदेश दिया था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों को निशुल्क उपचार मुहैया कराएं. कोर्ट ने कहा था कि अगर अस्पताल इस आदेश का अनुपालन नहीं करेंगे तो उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी.
साल 2000 में न्यायाधीश ए. एस. कुरैशी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी थी जिसका उद्देश्य निजी अस्पतालों में गरीबों के लिए निशुल्क उपचार से संबंधित दिशानिर्देश तय करना था. इस कमेटी ने सिफारिश की कि रियायती दरों में जमीन हासिल करने वाले निजी अस्पतालों में इन-पेशेंट विभाग में 10 फीसदी और आउट पेशेंट विभाग में 25 फीसदी बेड गरीबों के लिए आरक्षित रखने होंगे.
सोशल जूरिस्ट नाम के एनजीओ के संचालक अशोक अग्रवाल ने मुझसे कहा, “सरकारी जमीन पर बने दिल्ली के निजी अस्पतालों की पहचान की जा चुकी है और उनमें आज कम से कम 550 बेड ईडब्ल्यूएस मरीजों के लिए आरक्षित हैं.” अग्रवाल नियमित रूप से जनहित याचिका दायर कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के स्वास्थ और शैक्षिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रयास करते रहते हैं. 2002 में सोशल जूरिस्ट ने 20 निजी अस्पतालों के खिलाफ दिल्ली उच्च अदालत में याचिका दायर की थी क्योंकि इन अस्पतालों ने गरीबों का निशुल्क इलाज नहीं किया था. मार्च 2007 के फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीश कुरैशी समिति ने जो अनुशंसा की थी उनका पालन सिर्फ याचिका में उल्लेखित प्रतिवादी अस्पतालों को नहीं करना है बल्कि उनके जैसी स्थिति वाले सभी अस्पतालों को करना है.
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