अगस्त की शुरुआत में गुजरात के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में कार्यरत लगभग दो हजार रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर चले गए. हड़ताल कर रहे डॉक्टर राज्य सरकार के उस आदेश का विरोध कर रहे थे जिसमें कोविड-19 वार्डों में नियुक्त डॉक्टरों को अनिवार्य सेवा अवधि से कम काम करने की अनुमति को वापस ले लिया गया था. विरोध के केंद्र में भले ही इस नीति को रद्द करने का मुद्दा था लेकिन डॉक्टरों ने अन्य मुद्दों को भी उठाया जैसे कि महामारी के दौरान डॉक्टरों बलिदान पर ध्यान देना, 7वें वेतन आयोग अनुसार वेतन तथा अन्य. डॉक्टरों ने 10 दिनों के बाद हड़ताल वापस ले ली लेकिन राज्य सरकार ने केवल उनकी एक मांग पर मामूली रियायत दी.
गुजरात में सरकारी संस्थानों में मेडिकल छात्रों को अपने तीन साल का पोस्ट-ग्रेजुएशन कोर्स पूरा करने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में एक साल की अनुबंध सेवा देनी होती है. छात्र 40 लाख रुपए का भुगतान करके इस बॉन्ड से मुक्त हो सकते हैं. कई डॉक्टर अपनी एक साल की अनुबंध सेवा के बाद एक साल के सीनियर रेजिडेंसी के लिए कॉलेज में लौटते हैं. यह उन्हें अपने संबंधित संस्थानों में शिक्षण भूमिका निभाने के योग्य बनाता है.
अप्रैल और मई 2021 में कोरोनावायरस की दूसरी लहर के चरम में गुजरात सरकार ने स्नातकोत्तर छात्रों को परिसर में रहने और कोविड-19 रोगियों को देखने में मदद करने के लिए प्रोत्साहन योजना तैयार की. गुजरात के स्वास्थ्य आयुक्त जय प्रकाश शिवहरे ने 12 अप्रैल को एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा कोविड-19 ड्यूटी के प्रत्येक दिन को उनकी अनिवार्य अनुबंध सेवा के दो दिनों के रूप में गिना जाएगा.
जैसे ही दूसरी लहर थमी गुजरात सरकार ने अपना 12 अप्रैल का आदेश वापस ले लिया और एक साल के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा कार्य का एक नया निर्देश जारी कर दिया. इस नए आदेश में 12 अप्रैल के अनुबंध सेवा अवधि को 1:2 के अनुपात में गिने जाने के निर्देश का जिक्र नहीं है. इसमें केवल इतना कहा गया है कि प्रत्येक डॉक्टर को पूरे एक साल की अनुबंध अवधि पूरी करनी होगी. इसे लेकर 4 अगस्त को गुजरात के मेडिकल कॉलेजों के रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर चले गए.
12 अगस्त को गुजरात सरकार ने एक लिखित आदेश जारी कर कहा कि 2018 बैच के छात्रों के सीनियर रेजिडेंसी का साल उनकी अनुबंध सेवा के हिस्से के रूप में गिना जाएगा. इसका मतलब यह हुआ कि जिन छात्रों ने 2021 में सरकारी मेडिकल कॉलेज में अपना सीनियर रेजिडेंसी पूरा किया है उन्हें पिछले बैचों की तरह अनुबंध सेवा में एक और वर्ष नहीं देना होगा. मतलब कि डॉक्टरों को अनिवार्य रूप से अपने कॉलेजों में सीनियर रेजिडेंट के बतौर एक वर्ष बिताना होगा या अपनी अनुबंध सेवा से बाहर निकलने के लिए भुगतान करना होगा. भावनगर के एक रेजिडेंट डॉक्टर के अनुसार, "इससे हमें कुछ राहत मिली है लेकिन निश्चित रूप से हम सरकार से भी निराश हैं क्योंकि उन्होंने हमारी सबसे जरूरी मांग नहीं मानी है. यानी 1: 2 अनुपात की अुनबंध सेवा." मेडिकल कॉलेज के 2018 बैच सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने कहा, "लेकिन हम पर सरकार का दबाव था और हम में से कुछ को डर था कि हमारी नौकरी चली जाएगी या हमें तनख्वाह नहीं मिलेगी इसलिए अभी के लिए यही ठीक है."
हड़ताल शुरू करने से एक दिन पहले राजकोट, वडोदरा, सूरत, अहमदाबाद, भावनगर और जामनगर के छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों के जूनियर डॉक्टरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुजरात के स्वास्थ्य आयुक्त जय प्रकाश शिवहरे से गांधीनगर में उनके कार्यालय में मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने दावा किया कि उनके साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया गया और उन्हें कार्यालय से भगा दिया गया.
डॉक्टर हुसैन गुलाम कोलसावाला, जिन्होंने हाल ही में भावनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से स्नातक किया है और प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, उन्होंने कहा, “हम मांग करने की हालत में नहीं हैं. 'तुम्हारी औकात नहीं है मुझसे ऐसे बात करने की’. उन्होंने हमें भगा दिया और हमें बाहर ले जाने के लिए पुलिस अधिकारियों को बुलाया."
देश भर के रेजिडेंट डॉक्टर यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन ने विरोध कर रहे डॉक्टरों के साथ समर्थन जाहिर किया है. एफएआईएमए ने गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल को शिवहरे के दुर्व्यवहार की शिकायत करते हुए पत्र लिखा है. कोलसावाला ने मुझे बताया कि डॉक्टरों ने शिवहरे से दुर्व्यवहार के लिए औपचारिक माफी की मांग की है. शिवहरे ने माफी नहीं मांगी है और घटना के संबंध में कारवां के सवालों का जवाब नहीं दिया.
सरकार के 1:2 के वादे को पूरा करने के अलावा प्रदर्शनकारी डॉक्टरों की तीन प्रमुख मांगें भी थीं. पहला, सरकारी मेडिकल कॉलेजों से हाल में स्नातक हुए सभी को 7वें वेतन आयोग के अनुसार अनुबंध शुल्क का भुगतान किया जाए. दूसरा, अब से सभी बैचों के लिए सीनियर रेजिडेंस को अनिवार्य अनुबंध सेवा का हिस्सा माना जाए. तीसरा, हाल के स्नातकों को उन संस्थानों में वापस भेजा जाए जहां से वे स्नातक हुए हैं ताकि वे अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में काम कर सकें.
एक हफ्ते से भी ज्यादा दिन से जारी हड़ताल और रेजिडेंट डॉक्टरों के साथ बैठक के बाद सरकार ने कहा कि सीनियर रेजिडेंसी को अनुबंध सेवा के बराबर माना जाएगा. भारत भर के अधिकांश राज्यों में यही आदर्श स्थिति है. सरकारी अधिकारियों ने डॉक्टरों को कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया और इसलिए अहमदाबाद के बायरामजी जीजीभॉय मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर यूनियन ने अपनी हड़ताल जारी रखी. उन्होंने अस्पताल में कर्मचारियों को लिखित आदेश जारी होने तक किसी भी आपातकालीन या कोविड से संबंधित कर्तव्यों को निभाने से इनकार कर दिया जिसके बाद अस्पताल ने 13 अगस्त को लिखत आश्वासन दिया और डॉक्टरों ने हड़ताल खत्म कर दी.
इस बीच अन्य पांच मेडिकल कॉलेजों के रेजिडेंट और जूनियर डॉक्टरों ने 11 अगस्त तक अपनी ड्यूटी फिर से शुरू कर दी. "किसी तरह सरकार जीत गई, अब हम क्या करें?," जामनगर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष गौरांग खडिया ने 11 अगस्त को कहा. “हम आखिर कब तक अपने कामों की अनदेखी कर सकते हैं. इससे बस हमारे मरीजों का ही स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है और सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है.”
6 अगस्त को गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने 10 अगस्त तक ड्यूटी में न आने वाले डॉक्टरों पर महामारी रोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने की धमकी दी. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पटेल ने हड़ताल को "अवैध" बताया और दावा किया कि मांगें "पूरी तरह से अनुचित" हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में पटेल के हवाले से कहा गया है कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान प्रोत्साहन के रूप में 1:2 का लाभ दिया गया था लेकिन अगस्त में स्नातक करने वाले छात्रों के लिए इसे लागू नहीं किया जा सका.
चिकित्सकों के एक राष्ट्रीय संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के गुजरात इकाई और देश भर की जूनियर डॉक्टर यूनियनों ने हड़ताली डॉक्टरों को समर्थन दिया है. क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ और आईएमए जामनगर के प्रमुख दर्शन शुक्ला ने मुझे बताया कि सरकार द्वारा डॉक्टरों की मांगों को खारिज करना सरकार की उदासीनता को दर्शाता है. "आपको क्यों अपनी बात से मुकरना पड़ा? इससे पता चलता है कि सरकारी लोग जरूरत पड़ने पर वादा कर देते हैं और फिर बाद में यह सोचते हैं स्नातकों के साथ जैसा जी चाहे वैसा व्यवहार कर सकते हैं.”
जामनगर के डॉक्टर खडिया याद करते हैं कि दूसरी लहर के चरम के दौरान सरकार ने कुछ डॉक्टरों को होटलों में रखा था ताकि कोविड-19 वार्डों में ड्यूटी करते हुए क्वारंटीन रह सकें. वह कहते हैं, “और अब हमें हॉस्टल से बाहर रह कर रात गुजारनी पड़ रही है. उन्होंने हमें बता दिया है कि उनके लिए हमारे काम का कोई महत्व नहीं है.”