कैसे उत्तर प्रदेश का पंचायत चुनाव बना सैंकड़ों शिक्षकों की कोरोना से मौत का कारण

45 साल के विजय प्रताप सिंह, जो बलिया जिले में शिक्षा मित्र थे, चुनाव ड्यूटी करने के बाद कोविड-19 से मरे. इसी तरह बलिया के एक प्राथमिक स्कूल के शिक्षक शंभू नाथ भी चुनाव ड्यूटी करने के बाद गुजर गए. वाराणसी के मटुका गांव की सहायक शिक्षिका सुनीता देवी की 22 अप्रैल को मौत हो गई. इसी प्रकार गोरखपुर की सहायक शिक्षिका अंजुम फातिमा की, जिन्होंने 15 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी की थी, चुनाव ड्यूटी के 10 दिन बाद मौत हो गई.
इन फोटों को पीड़ितों के परिजनों ने उपलब्ध कराया है.
45 साल के विजय प्रताप सिंह, जो बलिया जिले में शिक्षा मित्र थे, चुनाव ड्यूटी करने के बाद कोविड-19 से मरे. इसी तरह बलिया के एक प्राथमिक स्कूल के शिक्षक शंभू नाथ भी चुनाव ड्यूटी करने के बाद गुजर गए. वाराणसी के मटुका गांव की सहायक शिक्षिका सुनीता देवी की 22 अप्रैल को मौत हो गई. इसी प्रकार गोरखपुर की सहायक शिक्षिका अंजुम फातिमा की, जिन्होंने 15 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी की थी, चुनाव ड्यूटी के 10 दिन बाद मौत हो गई.
इन फोटों को पीड़ितों के परिजनों ने उपलब्ध कराया है.

उत्तर प्रदेश में 15 से 29 अप्रैल के बीच चार चरणों में स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न हुए. इन चुनावों के साथ ही ग्राम पंचायत, ग्राम समिति और जिला परिषद के चुनाव भी कराए गए. राज्य भर में 58194 ग्राम पंचायतों के चुनाव हुए जिनके तहत 97941 गांव आते हैं. उन दिनों कोरोना की भयंकर दूसरी लहर चल रही थी और राज्य सरकार के शिक्षक और गैर-शिक्षक स्टाफ को चुनाव ड्यूटी में लगाया गया. शिक्षकों की एक यूनियन के अनुसार, अल्प समय में प्राथमिक स्कूलों के 1600 से अधिक स्टाफ सदस्य मारे गए हैं. इसके अलावा माध्यमिक स्कूल के स्टाफ और राज्य कर्मचारी भी कोविड के शिकार बने हैं. मैंने कोविड-19 के शिकार हुए शिक्षकों के परिवार वालों से बात की. 45 साल के विजय प्रताप सिंह, जो बलिया जिले में शिक्षा मित्र थे, चुनाव ड्यूटी करने के बाद कोविड-19 से मरे. इसी तरह बलिया के एक प्राथमिक स्कूल के शिक्षक शंभू नाथ भी चुनाव ड्यूटी करने के बाद गुजर गए. वाराणसी के मटुका गांव की सहायक शिक्षिका सुनीता देवी की 22 अप्रैल को मौत हो गई. इसी प्रकार गोरखपुर की सहायक शिक्षिका अंजुम फातिमा की, जिन्होंने 15 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी की थी, चुनाव ड्यूटी के 10 दिन बाद मौत हो गई. उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने 28 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी या ड्यूटी के बाद मारे गए 706 स्कूल स्टाफ की एक सूची जारी की थी. 16 मई को संघ ने अपनी सूची में सुधार किया और मारे गए लोगों की संख्या 1621 दर्ज की. सबसे अधिक मौतें आजमगढ़ जिले में हुई है जहां मौत का आंकड़ा 68 रहा. रायबरेली में 53, गोरखपुर में 50, लखीमपुर खीरी में 45, प्रयागराज में 46 और जौनपुर में 13 लोग मारे गए. उत्तर प्रदेश में 75 जिले है जिनमें से 23 जिलों में चुनाव से संबंधित 25 से ज्यादा लोगों की जान गई है.

टीईटी प्राथमिक शिक्षा संघ के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल राय का कहना है कि उनके इलाके में अधिकांश लोग 9 और 14 अप्रैल के बीच हुई चुनाव ट्रेनिंग में संक्रमित हुए थे. उन्होंने बताया, “हमारे ट्रेनिंग सेंटर में स्थिति एकदम खराब थी. वहां सैकड़ों लोग थे और वह ऐसा वक्त था जब मामले बढ़ रहे थे. एक कमरे में 300 से 400 लोग रह रहे थे तो सामाजिक दूरी का पालन कैसे हो सकता था?” राय ने बताया कि सरकार ने आश्वासन दिया था कि शिक्षकों को सुरक्षा उपकरण दिए जाएंगे और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि चुनाव कार्य में कोविड-19 से संबंधित प्रोटोकॉल का पालन हो लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

प्रयागराज के एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे बात की और बताया कि चुनाव पूर्व तैयारी से लेकर मतगणना तक की ड्यूटी करना दुस्वप्न जैसा था. “मैं हर दिन डर-डर के जिया. यूपी में जिस कदर मामले बढ़ रहे थे मेरी बीवी को भी मेरे बारे में चिंता हो रही थी.” उन्होंने आगे बताया, “मैं अपनी नौकरी नहीं खोना चाहता था.” और इसलिए उन्होंने चुनाव ड्यूटी जारी रखी. उन्होंने बताया कि काउंटिंग के बाद वह दवा की दुकान गए और वहां से कोरोना की दवा लेने के बाद 15 दिनों के लिए अपने आप को आइसोलेट कर लिया.

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि शिक्षकों के संगठन के अनुसार 1621 शैक्षिक स्टाफ की कोविड-19 से मौत हुई है फिर भी आधिकारिक तौर पर यह आंकड़ा बहुत कम है. उत्तर प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा विभाग ने 18 मई को एक प्रेस वक्तव्य जारी कर बताया है कि चुनाव ड्यूटी में कोविड-19 से केवल तीन लोगों की मौत हुई है. 19 मई को राज्य के शिक्षा मंत्री ने भी प्रेस बयान जारी कर यही आंकड़ा पेश किया था.

शिक्षकों ने कहा है कि आंकड़ों का यह अंतर राज्य के दिशानिर्देशों में झोलझाल के कारण है. मिसाल के लिए, केवल उसे ही ड्यूटी में मृत माना जाता है जो कार्यस्थल में मरता है, अथवा कार्यस्थल आते या लौटते समय मरता है. इस दिशानिर्देश के चलते उन मौतों को ड्यूटी में नहीं माना जाता जो संक्रमण होने के एक हफ्ते बाद या एक महीने बाद होती हैं. प्राथमिक शिक्षा विभाग की ओर से उपरोक्त प्रेस रिलीज जारी किए जाने से पहले जो आधिकारिक पत्राचार हुआ था उसको देखने से पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों को भली-भांति पता था कि कोविड-19 से अधिक शिक्षकों की मौत हुई है. गाजीपुर के बुनियादी शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बुनियाद शिक्षा विभाग प्रयागराज के सचिव को पत्र लिखकर बताया था कि गाजीपुर जिले में 26 स्कूल स्टाफ की मौत कोविड-19 से हुई है. मई के पहले सप्ताह में बलिया जिला प्रशासन ने कोविड-19 से 27 मौतों की सूची जारी की थी. हालांकि दोनों ने यह नहीं कहा कि ये मौतें चुनाव ड्यूटी के दौरान हुई थीं.

अखिलेश पांडे दिल्ली के पत्रकार हैं.

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