पश्चिम बंगाल में कोविड-19 संकट के लिए तृणमूल सरकार जिम्मेदार

कई डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि बनर्जी सरकार कोविड-19 की दूसरी लहर की तैयारी करने में विफल रही है. आर्को दत्तो / ब्लूमबर्ग / गेट्टी छवियां

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

पश्चिम बंगाल में एसोसिएशन ऑफ हेल्थ सर्विस डॉक्टर्स (एएचएसडी) सचिव मानस गुमटा का कहना था, “हम जानते थे कि दूसरी लहर आएगी और यह पहली से ज्यादा विनाशकारी होगी लेकिन डॉक्टरों की चेतावनी के बावजूद राज्य सरकार अपनी तैयारी नहीं कर पाई.” एएचएसडी राज्य के सरकारी डॉक्टरों का संगठन है और गुमटा उन स्वास्थ्य कर्मियों में से एक है जो मानते हैं कि कोविड-19 महामारी के प्रति टीएमसी सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते दूसरी लहर को खतरनात स्तर तक फैल सकने का मौका मिला. खराब टीकाकरण नीति और आठ चरणों वाले राज्य चुनावों के लिए केंद्र सरकार को सभी जिम्मेदार मानते हैं लेकिन कई चिकित्सा और नीति विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बनर्जी सरकार दूसरी लहर की पूर्व तैयारी में विफल रही है.

पश्चिम बंगाल में 1 मार्च को कुल 3293 सक्रिय मामलों के साथ 198 नए कोरोनोवायरस के मामले सामने आए थे. चुनाव 27 मार्च से 2 मई तक आठ चरणों में हुए जिसमें मार्च और अप्रैल में व्यापक प्रचार के साथ देश और राज्य में फैली घातक महामारी पर पूरी तरह से आंखें मूंद ली गईं. 1 अप्रैल तक सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 6513 हो गई और उस दिन राज्य में 1274 नए मामले सामने आए. 2 मई को मतगणना वाले दिन राज्य में 118495 सक्रिय मामलों के साथ 17515 नए मामले देखे गए. दूसरी लहर भले ही धीमी होती दिख रही है लेकिन 1 जून को 9424 नए मामले और 78000 से अधिक सक्रिय मामलों के साथ यह अभी भी समाप्त होने से बहुत दूर है. इस तीन महीने की अवधि में पश्चिम बंगाल में कोविड-19 के कारण 5000 से अधिक मौतें हुई हैं.

पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स फोरम के संयोजक डॉ. पुण्यब्रत गुन का कहना है, “चुनाव से पहले की अवधि में जब मामले कम हो गए थे तो डॉक्टरों के निकायों ने लगातार सरकार से अनुरोध किया और राजनीतिक दलों से भी अपील की कि वे इन भारी जमावड़ों की इजाजत न दें." उन्होंने आगे कहा, “हमने सरकार को लगभग सात-आठ पत्र लिखे लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला.” मार्च और अप्रैल के दौरान मामलों में वृद्धि के बावजूद राज्य ने 16 मई को जाकर लॉकडाउन की घोषणा की. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के एक वरिष्ठ नेता और पार्टी की पश्चिम बंगाल राज्य समिति के सदस्य शमिक लाहिड़ी के मुताबिक, “राज्य सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा के सिवा कोई खास पहल नहीं की.”

मई खत्म होते होते पश्चिम बंगाल के डॉक्टर और अस्पताल कोविड बेड की कमी, अपर्याप्त परीक्षण सुविधाओं और टीकों, ऑक्सीजन सिलेंडर और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी की शिकायत कर रहे थे. कई डॉक्टरों ने मुझे बताया कि राज्य में पर्याप्त परीक्षण नहीं किए जा रहे हैं. देहात में महामारी बढ़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए गुमटा ने कहा कि राज्य सरकार को तुरंत जिला स्तर पर परीक्षण बढ़ाने की जरूरत है. “अब तक पश्चिम बंगाल में 60000 से 70000 के बीच जांचे हो रही हैं और उनमें से अधिकांश रैपिड एंटीजन परीक्षण हैं,” उन्होंने बताया. “ज्यादातर मामलों में, रिपोर्ट पांच-सात दिनों में आ रही है और जांच कराने के लिए भी उन्हें दो-तीन दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में कई लोगों को सही इलाज मिलना मुश्किल हो रहा है. जिन लोगों में लक्षण हैं और जो पॉजिटिव हैं उनकी जांच करना जरूरी है. उनके संपर्क में आए लोगों की भी जांच की जानी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.” दूसरी लहर के दौरान पश्चिम बंगाल ने 14 मई को नए संक्रमणों की संख्या एक दिन की सबसे अधिक 20846 थी जो पिछले साल के उच्चतम उछाल से पांच गुना अधिक है. उस दिन राज्य ने 70051 परीक्षण किए.

देश भर की तहर दूसरी लहर में यहां भी संक्रमण शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों में फैला है. गुन ने मुझे बताया, हालांकि कोलकाता और शहरी इलाकों में मामले कम हो रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि ग्रामीण बंगाल में मामले बढ़ रहे हैं. लेकिन आप आधिकारिक आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर सकते. पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स फोरम लगभग एक महीने से टेलीमेडिसिन सेवा चला रहा है. पहले हमें सबसे ज्यादा कॉल कोलकाता से आते थे जो अब कम हो गए हैं. अब सबसे ज्यादा कॉल ग्रामीण इलाकों से आ रहे हैं.''

गुन ने एक ऐसे परिवार से आए कॉल के बारे में बताया जहां एक व्यक्ति की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव थी और अन्य सदस्यों में लक्षण दिखा रहे थे. “जब हमने उन्हें परीक्षण करने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि वे सुबह से कतार में खड़े हैं लेकिन पता चला कि परीक्षण केंद्रों में दोपहर तक परीक्षण किट खत्म हो गए. इसलिए पर्याप्त संख्या में परीक्षण नहीं किए जा रहे हैं और यही कारण है कि सरकार के पास संक्रमित लोगों की संख्या को लेकर सही आंकड़े नहीं हैं.” उन्होंने आगे कहा, “डब्ल्यूबीडीएफ ने स्वास्थ्य सचिव मुख्यमंत्री से लगातार आरएटी परीक्षणों की व्यापक रूप से अनुमति देने की अपील की है लेकिन सरकार ने अभी तक हमारी अपील का जवाब नहीं दिया है.”

लाहिड़ी के अनुसार, कम परीक्षण के पीछे के कारणों में से एक परीक्षण की अत्यधिक उच्च लागत थी. “राज्य सरकार ने परीक्षणों की कीमत को नियमित क्यों नहीं किया? परीक्षण करवाने के लिए 2000-2500 रुपए का भुगतान करना काला बाजारी है.” उन्होंने वैक्सीन की दूसरी डोज पर विशेष ध्यान देने के साथ मुफ्त टीकाकरण के काम में तेजी लाने की जरूरत पर भी जोर दिया. “ममता बनर्जी ने कहा कि 5 मई से टीकाकरण शुरू होगा. उन्होंने किस आधार पर वादा किया था? लोग वैक्सीन की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं."

लाहिड़ी ने देश भर में वैक्सीन संकट में केंद्र की भूमिका को माना मगर यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार भी उतनी ही निष्क्रिय रही है. “भले ही टीकाकरण की प्राथमिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है लेकिन राज्य सरकार के पास भी तो कोई योजना होनी चाहिए. अन्य राज्य सरकारें पहले ही टीकों के लिए टेंडर जारी कर चकी हैं जबकी ममता सरकार बस योजना बनाने में ही व्यस्त है.”

गुन ने राज्य में टीकों की मोटी कीमत की भी शिकायत की. “कोलकाता में वुडलैंड्स जैसे नर्सिंग होम सीधे निर्माताओं से टीके खरीद रहे हैं और टीके का एक डोज 1500 रुपए में लगा रहे हैं. अगर एक डोज टीका 1500 रुपए का है, तो दो डोज 3000 रुपए में लगेंगे. क्या यह कीमत दिहाड़ी करने वालों के लिए ठीक है?” हाल में कारवां में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित दस देशों में से एकमात्र ऐसा देश है जिसने मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित नहीं किया है. उस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोलकाता का बीएल पोद्दार अस्पताल वैक्सीन के लिए सबसे अधिक शुल्क वसूल रहा था. यहां प्रति टीका 2000 रुपए में लग रहा है.

गुमटा के अनुसार, बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा टीकाकरण के लिए पर्याप्त है. “पल्स पोलियो कार्यक्रम में हमने बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों और यहां तक ​​कि दूरदराज के इलाकों में जा-जाकर लाखों बच्चों का टीकाकरण किया. इसलिए समस्या हमारे बुनियादी ढांचे की नहीं है. हमारे यहां समस्या टीकों की उपलब्धता की है. हमारा बुनियादी ढांचा प्रति दिन 4 लाख लोगों का टीकाकरण कर सकता है लेकिन पर्याप्त टीके नहीं मिलने के कारण टीकाकरण अभियान एक आवश्यक गति से नहीं चल पा रहा है. हम अपनी क्षमता का दोहन नहीं कर पा रहे.”

गुमटा ने कहा कि राज्य में टीकों की आपूर्ति नहीं हो रही और लोगों को उनकी दूसरी डोज नहीं मिल रही है. हम नहीं जानते कि कब और कौन से टीके की आपूर्ति की जाएगी. इसको लेकर अस्पतालों में टीकाकरण केंद्रों पर आए दिन अफरा-तफरी का माहौल रहता है. लोग सुबह 3 बजे से कतारों में इंतजार कर रहे हैं और फिर भी टीके नहीं लग रहे हैं.”

गुमटा ने कहा कि टीके की कमी के अलावा राज्य सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड की भारी कमी है. डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों और सामान्य अस्पतालों में कोविड ब्लॉक खोले जाएं ताकि निजी अस्पतालों में कोविड बेड उपलब्ध हों और सरकारी बेडों की संख्या में वृद्धि हो सके.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र में संक्रामक रोगों के शोधकर्ता श्रेयन घोष का कहना है, “पहली लहर के दौरान राज्य सरकार थोड़ी अधिक सक्रिय थी, उसकी प्रतिक्रिया अच्छी थी.” उन्होंने आगे बताया का कि पहली लहर के दौरान राज्य सरकार ने राज्य की स्वास्थ्य योजनाओं का उपयोग करते हुए निजी अस्पतालों में जनता के लिए बेड आरक्षित किए थे. घोष का कहना है, "इस बार उन्होंने हार मान ली है और लोगों को निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. यह आम लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो गया है.”

मनोरोग विशेषज्ञ सामाजिक कार्यकर्ता और कोलकाता के स्वास्थ्य कार्यकर्ता मोहित रणदीप ने घोष का कहना है, “पिछले साल पश्चिम बंगाल में कोविड-19 संकट का मुकाबला करते हुए, राज्य सरकार ने स्थिति को काफी कुशलता से संभाला था भले ही उसे थोड़ी देर हो गई थी. राज्य सरकार ने राज्य में कोविड संकट से निपटने के लिए एक हाई-प्रोफाइल कमिटी का गठन किया था जिसमें सार्वजनिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञ स्वरूप सरकार, अभिजीत विनायक बनर्जी जैसे अर्थशास्त्री शामिल थे. कमिटी के सुझावों को बड़ी कुशलता से लागू किया गया. इसके अलावा सरकार ने बहुत से निजी और स्वयंसेवी अस्पतालों को नियंत्रण में लेकर काम किया लेकिन इस साल ऐसी पहल नहीं दिखाई दी.”

रणदीप ने राज्य के हुगली जिले के सेरामपुर में श्रमजीवी अस्पताल का उदाहरण दिया. रणदीप ने कहा कि अस्पताल ने "पिछले साल कोविड के दौरान उत्कृष्ट सेवा प्रदान की थी लेकिन सरकार ने इस बार उस अस्पताल की सेवा नहीं ली. इसके अलावा राज्य सरकार ने उन्हें पिछले साल से अभी तक 8 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है. इस बार उन्होंने एक निजी अस्पताल के रूप में काम किया और सभी मरीजों से इसका खर्चा वसूला जिसके चलते बहुत से लोगों के लिए इलाज करा पाना मुश्किल हो गया.”

श्रमजीवी अस्पताल के संयुक्त सचिव गौतम सरकार ने अप्रैल के मध्य में स्थानीय मीडिया से इस बात की पुष्टि की थी कि अस्पताल को अभी तक राज्य सरकार द्वारा उनका बकाया पैसा नहीं मिला है. गौतम सरकार ने बंगाली दैनिक आनंदबाजार पत्रिका को बताया, "हमें पिछली बार से अभी तक सरकार से पैसा नहीं मिला है. मुझे उम्मीद है कि हमें यह मिल जाएगा.”

गुमटा ने भी अस्पताल के बिस्तरों की कमी को दूर करने में राज्य सरकार की विफलता की बात कही. “प्रबंधन की अत्यधिक कमी रही है. यही कारण है कि पिछले डेढ़ महीने में जब महामारी अपने चरम में दिख रही थी तो लोगों को काफी नुकसान हुआ. “न बेड थे, न एम्बुलेंस. एम्बुलेंसें सरकार को खरीदनी थी, निजी अस्पतालों में बिस्तरों की खरीद की जरूरत थी. निजी अस्पतालों को आम लोगों को दिवालिया होने से बचाने के लिए, सरकार को उन्हें सार्वजनिक कोविड अस्पतालों में बदलने की जरूरत है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है इसलिए लोग अभी भी बिस्तर खोजने, अस्पतालों में भर्ती होने, एम्बुलेंस, ऑक्सीजन और अन्य उपचार सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.” गुमटा ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों, कोलकाता के साथ-साथ अन्य कोविड ​​अस्पतालों के बाहर, "आप बेडों की अनुपलब्धता के कारण अस्पताल परिसर में ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ बाहर बैठे लोगों को देख सकते हैं."

इस साल मई की शुरुआत में राज्य सरकार ने घोषणा की कि कोलकाता के साल्ट लेक स्टेडियम को 250 बेडों वाले अस्पताल में बदल दिया जाएगा. लगभग उसी समय राजधानी के जादवपुर विश्वविद्यालय में एक छात्रावास को क्वारंटीन सेंटर में बदल दिया गया. गुमटा ने इन घटनाक्रमों को स्वीकार किया लेकिन कहा कि ऐसे करने में सरकार ने देरी की है.

शोधकर्ता घोष ने इस पर भी आश्चर्य जताया कि यह कदम पहले क्यों नहीं उठाए गए. उन्होंने कहा, “इतनी देर क्यों हो रही है जब चिकित्सा व्यवस्था चरमराने के कगार पर है? राज्य सरकार ने उन तीन महीनों में ऐसा क्यों नहीं किया जब मामलों की संख्या कम थी? यह राज्य सरकार की विफलता है और यह केंद्र सरकार की भी विफलता है.”

डॉक्टरों और कार्यकर्ताओं के अनुसार राज्य की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एक और प्रमुख मुद्दा प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का है. गुमटा ने कहा, "इतने सारे लोगों को इलाज मुहैया कराने के लिए हमें बड़ी संख्या में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की जरूरत है. इसलिए भले ही अस्पताल कोविड बेड लगा रहे हों लेकिन बस इतना करना पर्याप्त नहीं है. कोई नई भर्ती नहीं हो रही है. अगर हो भी रही है तो लोग शामिल नहीं हो रहे हैं क्योंकि उन्हें कोविड वार्डों में काम करना पड़ेगा.”

कोलकाता के फोर्टिस अस्पताल में क्रिटिकल केयर यूनिट के प्रमुख डॉ. यशेश पालीवाल ने इन्हीं चिंताओं को दोहराया. पालीवाल ने कहा, "हमें स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी, कुशल कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. खासकर, आईसीयू के लिए कुशल नर्स और डॉक्टर मिल पाना बेहद मुश्किल है. जब गंभीर रूप से बीमार रोगियों की बात आती है तो आपको विशेष रूप से प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता होती है. मरीजों के इलाज में हमारे सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है.”

पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स फोरम के संयोजक गुन ने बताया कि बड़ी संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों ने अनुबंध किया था और कोविड-19 से उनकी मृत्यु हो गई थी और उन्हें राज्य सरकार से बहुत कम सहायता मिली थी. "स्वास्थ्य कर्मियों के इलाज, टीकाकरण कार्यक्रमों के बारे में हमारी मांगों को भी सरकार ने पूरा नहीं किया. नरेन्द्र मोदी ने अग्रिम पंक्ति में मारे गए स्वास्थ्य कर्मियों के परिवारों के लिए 15 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की थी. हमारे राज्य में अभी तक यह किसी को नहीं मिला है. ममता बनर्जी ने मरने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के परिवारों के लिए 10 लाख रुपए के मुआवजे की भी घोषणा की है लेकिन अब तक सिर्फ चार डॉक्टरों के परिवारों को ही पैसा मिला है.”

राज्य के किसी भी स्वास्थ्य अधिकारी ने मेरे प्रश्नों या साक्षात्कार के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया. कोलकाता नगर निगम के अध्यक्ष फरहाद हाकिम, जो कोविड-19 प्रबंधन पर राज्य की कैबिनेट समिति के सदस्य भी हैं, ने कॉल और संदेश का कोई जवाब नहीं दिया. स्वास्थ्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य और स्वास्थ्य सचिव एनएस निगम को भेजे गए ईमेल भी अनुत्तरित रहे.

मैंने राज्य की महामारी प्रतिक्रिया के बारे में तृणमूल कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायक मनोज तिवारी से बात की. तिवारी ने पूरी तरह से केंद्र सरकार और चुनाव आयोग द्वारा घोषित आठ चरणों के चुनावों पर इसका दोष मढ़ दिया. उन्होंने कहा, "अगर आपको याद हो तो हमारी मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग से एक चरण में चुनाव कराने के लिए कहा था लेकिन उनके सुझाव को निर्वाचन आयोग ने नकार दिया. इसलिए आपको यह सवाल केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग से पूछना चाहिए.” तिवारी ने राज्य में वैक्सीन की कमी के लिए भी केंद्र को जिम्मेदार ठहराया. “उन्होंने पर्याप्त वैक्सीन नहीं भेजी है और बहुत सारा पैसा भी बकाया है जिसे केंद्र द्वारा मंजूरी नहीं दी गई है."

राज्य की तैयारी की कमी और दूसरी लहर के प्रति खराब प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर, तिवारी ने तृणमूल कांग्रेस सरकार के उन प्रयासों का उल्लेख किया जिनकी अन्य डॉक्टरों और कार्यकर्ताओं ने बहुत कम, बहुत देर से किए गए प्रयास बता कर आलोचना की है. तिवारी ने कहा, "हमने लॉकडाउन की घोषणा की. बहुत सारे आइसोलेशन केंद्र स्थापित किए गए हैं. हमने कोविड देखभाल इकाई के लिए कुछ स्टेडियमों को भी अपने तहत ले लिया है और बहुत सारे अस्पताल हैं जिन्हें अपने तहत लिया गया है. जमीनी स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ता और विधायक, सांसद यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं कि वे प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में हमारी मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करा सकें.”

गुन को डर है कि दूसरी लहर के कम होते ही सरकार आत्मसंतुष्ट हो जाएगी. उन्होंने कहा, “राज्य में ऑक्सीजन बेड संकट इसलिए कम नहीं हुआ है क्योंकि बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है ​बल्कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि इस समय कोविड-19 प्राकृतिक तौर पर थम गया है.” गून के अनुसार, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को विकसित करना अनिवार्य है. गुमटा ने भी यही आशंका व्यक्त की. उन्होंने कहा, “हो सकता है कि जब हर ब्लॉक अस्पताल, आईसीयू बेड में कोविड बेड की सभी व्यवस्थाएं की जाएंगी, तो मामलों की संख्या में कमी आएगी. अगर वे इन सभी को सेट कर भी लेते हैं, तो भी इस दूसरी लहर के दौरान इसका ज्यादा फायदा नहीं होगा. शायद यह भविष्य में काम आएगा." उन्होंने एक आह भरते हुए कहा, "अगर हमने पहले से तैयारी की होती तो लोगों को इतना नुकसान नहीं उठाना पड़ता और हम अधिक लोगों की जान बचा सकते थे.”

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute