कोविड-19 के सामुदायिक संक्रमण न होने का आईसीएमआर का दावा आधारहीन

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने दावा किया है कि देश में कोविड-19 के सामुदायिक संक्रमण का कोई सबूत नहीं मिला है. इस तर्क को सुनकर एक पुरानी कहावत याद आती है: किसी बात का सबूत न होना उस बात के न होने का का सबूत नहीं है. ​दीपतेंदु दत्ता/ एफएपी/ गैटी इमेजिस

मैं दो दशकों से छत्तीसगढ़ में सामुदायिक चिकित्सक के रूप में काम कर रहा हूं. मैं ग्रामीण छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले गैर-सरकारी संगठन जन स्वास्थ्य सहयोग के संस्थापकों में से एक हूं और मैं राज्य की ढांचागत समस्याओं को समझता हूं. राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में मात्र 150 वेंटिलेटर हैं और बहुत कम ऐसे डॉक्टर हैं जो इन वेंटिलेटरों को चलाना जानते हैं. भारत में कोविड​​-19 के 100 से भी ज्यादा मामलों की पुष्टि हो जाने पर स्वास्थ्य प्रणाली की इस स्थिति को देखते हुए मैं इस बीमारी के सामुदायिक संक्रमण के बारे में चिंति​त हूं और भयभीत हो जाता हूं कि कहीं यह संक्रमण हमारी लचर सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य प्रणालियों को डुबो न दे. अगर भारत में वायरस के मामलों में इटली जैसी तीव्र वृद्धि हुई तो मुझे राज्य की 22 करोड़ जनता की देखभाल कर पाने की हमारी क्षमता को लेकर भी चिंता होगी.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का वर्तमान परीक्षण मानदंड अंतरराष्ट्रीय यात्रियों और उनके प्रत्यक्ष संपर्कों तक ही सीमित है और केवल तभी जब उनमें बुखार, खांसी और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण दिखते हैं. ऐसे लोगों के लिए परीक्षण उपलब्ध नहीं हैं जिन्हें गंभीर श्वसन संबंधी बीमारियां तो हैं लेकिन पिछले 14 दिनों में विदेश यात्रा नहीं की है और उनकी कोविड-19 से संक्रमित होने की पुष्टि नहीं हुई है. नतीजतन, मेरे अस्पताल में कोई भी मरीज आज की स्थिति में परीक्षण के लिए पात्र नहीं है. कोविड परीक्षण के लिए भारत की नीतिनिर्माता एजेंसी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने जो स्पष्टीकरण दिया है, वह यह है कि देश में वायरस के सामुदायिक संक्रमण का कोई सबूत नहीं है. यह तर्क या कहें कि कुतर्क मुझे एक पुरानी कहावात की याद दिलाता है कि किसी बात का सबूत न होना उस बात के न होने का सबूत नहीं है.

तकनीकी नितिनिर्माताओं ने दावा किया है कि वायरस के सामुदायिक संक्रमण का कोई सबूत नहीं है. लेकिन इस सबूत का स्रोत बहुत ही झीना और डांवाडोल है. 15 से 29 फरवरी के बीच, आईसीएमआर ने श्वसन संबंधी बीमारियों वाले 20 नमूनों का रैंडम परीक्षण किया ताकि पता लगाया जा सके कि भारत में कोविड-19 का सामुदायिक संक्रमण हुआ है या नहीं. नमूनों को देश भर के विभिन्न वायरल अनुसंधान और नैदानिक ​​प्रयोगशालाओं में आरटी-पीसीआर परीक्षण के जरिए यह जांचने के लिए भेजा था कि क्या वे कोविड-19 से संक्रमित हैं. आरटी-पीसीआर एक आणविक जीवविज्ञान तकनीक है जो वायरस के न्यूक्लिक एसिड कोर की जांच करती है.

आईसीएमआर ने कहा कि उसे उन नमूनों में कोविड-19 का कोई सबूत नहीं मिला और इस आधार पर उसने निष्कर्ष निकाला कि भारत में सामुदायिक संक्रमण नहीं है. अगर हम इन नमूनों की औसत तिथि 22 फरवरी मानते हैं, तो तीन सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है. लेकिन इस निष्कर्ष में एक मूलभूत दोष है. कोविड-19 के लिए तीन सप्ताह का अर्थ है महामारी के विकास का जीवनकाल. उदाहरण के लिए इटली में अल्प अवधि में घातक वृद्धि दिखाई दी है.

15 मार्च के इकोनॉमिक टाइम्स ने बताया है कि आईसीएमआर अगले चरण के परीक्षणों की शुरुआत कर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक आईसीएमआर प्रयोगशाला सामुदायिक संक्रमण के लिए हर हफ्ते बीस रैंडम नमूनों का परीक्षण करेगी. दो दिन बाद आईसीएमआर ने कहा कि उसने 1020 रैंडम नमूनों केपरीक्षण किए थे और उनमें से 500 के प्रारंभिक परीक्षणों में कोविड-19 वायरस का परिणाम नहीं मिला. इससे आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने निष्कर्ष निकाला कि "सामुदायिक संक्रमण के कोई संकेत नहीं मिले हैं."

फिर भी, आईसीएमआर ने अब तक इन नमूनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा नहीं किया है जिसके आभाव में आईसीएमआर के कह देने भर से उसके निष्कर्ष को स्वीकार करना मुश्किल है. उदाहरण के लिए, आईसीएमआर ने जो नमूने लिए उनकी प्रकृति पर कोई स्पष्टता नहीं है. यह स्पष्ट नहीं है कि वे उन मामलों के पर्याप्त नमूने का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें कोविड ​​रोग होने की संभावना थी. इसी तरह यह भी स्पष्ट नहीं है कि लिए गए नमूनों में नमूने का आकार पर्याप्त है या नहीं. 18 मार्च को सुबह 10 बजे तक भारत ने कोविड-19 के लिए 11461 व्यक्तियों का परीक्षण किया था और 145 सकारात्मक मामलों की पुष्टि हुई थी. वैश्विक महत्व के मुद्दों पर काम करने वाली एक सांख्यिकीय शोध संस्था आउर वर्ल्ड इन डेटा के अनुसार, भारत ने 6 मार्च तक 4058 परीक्षण किए थे यानी देश में प्रति दस लाख व्यक्तियों में मात्र तीन का परिक्षण हुआ है. प्रति दस लाख में नमूनों की संख्या के मामले में भारत सबसे पिछड़ा देश बन गया है.

बताया जाता है कि 9 मार्च तक दक्षिण कोरिया प्रति दस लाख व्यक्तियों पर 4100 का परीक्षण कर रहा था. आउर वर्ल्ड इन डेटा ने बताया कि 13 मार्च तक उस देश ने 248647 परीक्षण किए थे. इन आंकड़ों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भारत का अब तक का परीक्षण बेहद कम है और एक पखवाड़े या साप्ताहिक परीक्षण बहुत ही अपुष्ट है. प्रक्रिया को ज्यादा जल्दी या वास्तव में, दैनिक परीक्षण और मूल्यांकन की दिशा में बदलना होगा. नतीजतन, 500 परीक्षणों पर आधारित सामुदायिक संक्रमण न होने के बारे में आईसीएमआर का निष्कर्ष हमारे आत्मविश्वास तो नहीं लेकिन इस मामले में चिंताएं बढ़ाता है कि क्या नोडल निकाय देश में रोग के तेजी से बढ़ते पैमाने का सही आकलन कर रहा है.

अगर हम भारत में कोविड-19 का पता लगाने के कालक्रम को देखें तो इसमें 2 मार्च के बाद महत्वपूर्ण उछाल आया है. तब से 18 मार्च की सुबह तक पुष्ट मामलों की संख्या 5 से बढ़कर 145 हो गई है. दैनिक आधार पर सामुदायिक संक्रमण की संभावना को ट्रैक करने में भारत सरकार की विफलता, बढ़ते संकट के लिए इसकी अपर्याप्त प्रतिक्रिया को दर्शा रही है. इस बीच केंद्र और राज्य सरकारों ने रोकथाम करने और सामाजिक दूरी बनाने की रणनीतियां जैसे कि स्कूल, मॉल और अन्य सार्वजनिक स्थानों को बंद करने, के बारे में बहुत रूखा रवैया अपनाया है. लेकिन ये निर्णय देश के भीतर महामारी के वास्तविक बोझ की पहचान करने के लिए किसी भी ईमानदार प्रयास को नहीं दर्शाते हैं.

13 मार्च को प्रेस वार्ता के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक माइकल रयान ने परीक्षण कराने और इंतजार न करने का सर्वोपरि महत्व चिह्नित किया था. जब उनसे पूछा गया कि इबोला के प्रकोप से निपटने के अपने अनुभव से रयान ने क्या सबक सीखा है तो उन्होंने जवाब दिया, ''सबसे पहले तो आपको कदम उठाने वाला चाहिए. अगर आप जल्दी से कदम नहीं बढ़ाते तो वायरस आपको जकड़ लेगा." रयान ने कहा, "अगर आप कदम बढ़ाने से पहले यह चाहते हो कि आपका कदम एकदम सही जहग पड़े तो आप इससे कभी नहीं जीत सकेंगे. आपातकालीन प्रबंधन में परफेक्शन की बात करना अच्छे प्रयास का दुश्मन है. परफेक्शन से बेहतर तेजी है. इस समय समाज में जो समस्या है, वह यह है कि हर कोई गलती करने से डरता है, हर कोई त्रुटि के परिणाम से डरता है. लेकिन सबसे बड़ी गलती है कोई कदम न उठाना.'' भारत सरकार चल रहे सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट को कम करने के लिए आगे की सोच के उपायों को लागू करने की अपनी जिम्मेदारी में विफल रही है और इसके बजाय प्रतिक्रियाशील नीतियों को जारी रखे हुए है.

इस दौरान नौकरशाहों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच "स्थानीय" और "समुदाय" संक्रमण के अंतर को लेकर शास्त्रीय बहस चल रही है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने "स्थानीय" को ज्ञात, स्थानीय सामुदायिक संपर्कों के चलते संक्रमण के रूप में परिभाषित किया. यह बड़े समुदाय से इस तरह से भिन्न है कि जहां संक्रमित व्यक्ति से सीधे संबंध न स्थापित किया जा सके. स्थानीय और सामुदायिक प्रसारण के बीच यह भेद भ्रामक है, यह देखते हुए कि स्थानीय लोग जिनके संपर्क में हैं, वे अपने स्वयं के संपर्कों के साथ एक बड़े समुदाय का हिस्सा हैं. इसके अलावा यह देखते हुए इस बहस की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है कि डब्ल्यूएचओ के पास देश में वायरस फैलने के दो मापदंड हैं, एक विदेश से आए व्यक्ति के द्वारा और दूसरा स्थानीय प्रसारण के ​जरिए. डब्ल्यूएचओ ने भारत को स्थानीय प्रसारण वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया है.

वक्त की मांग है कि कोविड-19 के लिए व्यापक स्तर पर परीक्षण किए जाएं न कि केवल उन लोगों तक सीमित रहा जाए जिन्होंने विदेश यात्रा की है या जो उनके सीधे संपर्क में है. इसे निर्धारित करना महत्वपूर्ण होगा कि क्या भारत में सामुदायिक संक्रमण का वास्तविक भार है और इसी से हमें यह पता भी चलेगा कि तब हमें सूचित नियंत्रण रणनीतियों को लागू कर ​लेना चाहिए. इसके अलावा, पहले से ​ही संक्रमित व्यक्ति की ओर उन्मुख रणनीति से हटकर कोविड-19 को नियंत्रित कर उसका शमन करने की रणनीति को अपनाना भी आवश्यक है. शमन की रणनीति की ओर बढ़ने का अर्थ यह नहीं है कि संक्रमित व्यक्ति की जांच वाली रणनीति असफल हो गई है बल्कि इसका अर्थ यह है कि एक यथार्थवादी और संतुलित दीर्घकालिक दृष्टिकोण की ओर बढ़ा जाए जो बड़े पैमाने पर लोगों के स्वास्थ्य, अस्तित्व, सामाजिक जीवन और आर्थिक कल्याण पर पड़ने वाले असर को कम करता है.

उदाहरण के लिए, यह विस्तारित परीक्षण उन लोगों का परीक्षण करेगा, जो सार्वजनिक मेडिकल कॉलेजों और अन्य जिला अस्पतालों में निमोनिया के कारण सांस लेने की समस्या से पीड़ित हैं. वायरस के सामुदायिक संचरण का तेज और ज्यादा जल्दी-जल्दी माप सरकार को हमारी प्रतिक्रिया के बारे में सही निर्णय लेने में सक्षम बनाता है. एक बार राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने के बाद राज्यों को आदेश का पालन करने की सलाह दी जा सकती है ताकि छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में रोगियों का परीक्षण किया जा सके. ऐसा करने से प्रभावित होने की संभावना वाले क्षेत्र कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए बेहतर रूप से तैयार हो जाएंगे.


योगेश जैन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक-स्वास्थ्य पर काम करने वाले एक एनजीओ, जन स्वास्थ्य सहयोग के सामुदायिक चिकित्सक और संस्थापक हैं.