भोपाल के कई निवासियों के अनुसार पीपुल्स कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर ने उन्हें बिना आवश्यक जानकारी दिए कोविड-19 वैक्सीन के एक नैदानिक परीक्षण में शामिल किया. हैदराबाद में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन कोवाक्सिन का तीसरा चरण, मानव परीक्षण भारत भर में चल रहा है. कारवां ने भोपाल में परीक्षण में शामिल कई प्रतिभागियों से बात की. उन्होंने कहा कि केंद्र के प्रतिनिधियों ने वालंटियर्स की तलाश में उनके इलाके का दौरा किया था. इनमें से कुछ निवासियों ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि उन्हें अपना समय देने और भागीदारी देने के लिए 750 रुपए मिलेंगे. कुछ ने कहा कि उन्हें यह नहीं बताया गया था कि यह एक नैदानिक परीक्षण है और न ही इसके संभावित दुष्प्रभावों की जानकारी दी थी. सात लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने परीक्षण में भाग लेने के बाद गंभीर प्रतिकूल असर हुआ. उनमें से ज्यादातर उन परिवारों से हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और यूनियन कार्बाइड संयंत्र के करीब रहते हैं, जहां 1984 में एक घातक गैस रिसाव हुआ था. परीक्षण में शामिल कई प्रतिभागी इस औद्योगिक दुर्घटना में जीवित बचे लोग भी हैं.
भाग लेने वालों में शंकर नगर इलाके के निवासी 36 वर्षीय जितेंद्र भी थे. जितेंद्र ने कहा कि वह 10 दिसंबर 2020 को पीपुल्स कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर गए थे. उन्होंने कहा कि उसी दिन की शुरुआत में कॉलेज के लोग उनके पड़ोस में आए थे और घोषणा की थी कि लोगों को एक टीका लगाया जाएगा और कुछ पैसे दिए जाएंगे. उन्होंने कहा, "उस समय, मुझे पता था कि वे कोविड-19 से बचाव के लिए लोगों का टीकाकरण कर रहे हैं और प्रत्येक प्रतिभागी को 750 रुपए का भुगतान करेंगे, इसलिए मैंने सोचा कि जाने में क्या नुकसान है? उन्होंने अस्पताल से आने-जाने के लिए वाहन की भी व्यवस्था की थी.
जब वह अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि दिया जा रहा टीका परीक्षण के लिए है. जितेंद्र कोवाक्सिन के तीसरे चरण के परीक्षण के लिए नामांकित थे. 3 जनवरी को भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल, वीजी सोमानी ने कोवाक्सिन को आपातकालीन स्थिति में सीमित उपयोग के लिए मंजूरी दे दी. कई सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और कार्यकर्ताओं ने इस अनुमोदन पर सवाल उठाया क्योंकि इसका तीसरे चरण का परीक्षण पूरा नहीं हुआ था और न ही इसके तीसरे चरण का कोई अंतरिम डेटा प्रकाशित किया गया था.
जितेंद्र ने बताया कि अपना नामांकन कराते वक्त उन्होंने परीक्षण जांचकर्ताओं को यह जानकारी दी थी कि वह हाल ही में टाइफाइड से उभरे थे और पिछले साल उन्हें लगातार सर्दी और खांसी हुई थी. जांचकर्ताओं ने उन्हें आश्वासन दिया कि टीका लेने से कोई नुकसान नहीं होगा. उनके अनुसार, जांचकर्ताओं ने कहा, "इससे खून साफ होगा और बीमारी नहीं होगी. अस्पताल ने जितेंद्र को एक इंजेक्शन दिया जो या तो वैक्सीन का था या एक प्लेसिबो था. कोवाक्सिन का तीसरा परीक्षण एक डबल ब्लाइंड और प्लेसिबो नियंत्रित है, जिसका अर्थ है कि न तो प्रतिभागियों और न ही जांचकर्ताओं को पता होता है कि किसे टीका दिया जा रहा है और किसे प्लेसिबो. तीसरे चरण के परीक्षण के बाद वैक्सीन का विश्लेषण होता है. भारत के क्लिनिकल परीक्षण रजिस्ट्री पर बताए गए परीक्षण प्रोटोकॉल के अनुसार, कोवाक्सिन के तीसरे चरण के परीक्षण का उद्देश्य 25800 लोगों को प्लेसिबो दिए जाने वाले और वैक्सीन दिए जाने वाले समूहों में विभाजित करना है.
12 दिसंबर को जितेंद्र जब उठे तो उन्हें बुखार और सिरदर्द था. वह दो दिन बाद जांच के लिए वापस अस्पताल गए. परीक्षण से जुड़े डॉक्टरों ने कुछ परीक्षणों के साथ-साथ दवा भी लिखी, हालांकि अस्पताल ने इन परीक्षणों और दवा के लिए भुगतान नहीं किया. जितेंद्र ने कुछ जांचों के लिए खुद भुगतान किया. उन्हें भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर से दवाइयां मिलीं, जहां 1984 के गैस रिसाव में बचे लोगों को मुफ्त इलाज दिया जाता है.
कमेंट