"भारत पूर्ण विकसित महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं", पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव

अदनान अबीदी/रायटर्स

कानुरु सुजाता राव ने 2009 से 2010 तक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव के रूप में कार्य किया. इससे पहले राव राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की महानिदेशक थी, जो स्वास्थ्य मंत्रालय का एक प्रभाग है और भारत में एचआईवी/एड्स नियंत्रण कार्यक्रम का शीर्ष निकाय है. वह विश्व स्वास्थ्य संगठन और एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम के बोर्डों पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. राव ने भारत में स्वास्थ्य सेवा पर एक किताब लिखी है, जिसका शीर्षक है, डू वी केयर : इंडियाज हेल्थ सिस्टम. (क्या हमें भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की परवाह है?)

कारवां में रिपोर्टिंग फेलो तुषार धारा के साथ एक इंटरव्यू में, राव ने कोविड-19 महामारी के लिए भारत की प्रतिक्रिया और परीक्षण के लिए देश के वर्तमान प्रोटोकॉल के बारे में बात की. "परीक्षण नहीं करने से हम कम मामले दर्ज कर सकते हैं या मामले हमारे हाथों से निकल सकते हैं," उन्होंने कहा. "आप जितना अधिक परीक्षण करते हैं, रणनीति उतनी ही मजबूत होती है और महामारी पर नियंत्रण अधिक होता है."

तुषार धारा : भारत वर्तमान में कोविड-19 के प्रसार के संबंध में कहां खड़ा है?

सुजाता राव : अगर आप सरकार के आंकड़ों पर जाएं, तो यह बेहतर हो रहा है. अन्य देशों की तुलना में हम संक्रमण को नियंत्रण करते प्रतीत होते हैं. हमारे यहां अब 315 मामले हैं, जो हमारे जैसी आबादी के लिए बुरा नहीं है. (स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 22 मार्च को रात 8 बजे भारत में कोविड-19 के 329 सक्रिय मामले सामने आए थे.) यह देखते हुए कि दुनिया भर में लगभग तीन लाख लोग इससे संक्रमित हैं और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए है कि हम एक अत्यधिक आबादी वाले देश हैं जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बहुत बेहतर नहीं है, हम अच्छा कर रहे हैं. अगर ये आंकड़े सही हैं तो यह अच्छी स्थिति है. लेकिन इन आंकड़ों पर संदेह खड़ा होता है क्योंकि परीक्षण अपर्याप्त किया गया है. प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर लगभग 10 लोगों का परीक्षण किया गया है.

तुषार धारा : कोविड परीक्षण के लिए भारत की नीति तैयार करने वाली नोडल एजेंसी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का कहना है कि सामुदायिक संक्रमण का कोई सबूत नहीं मिला है. इस दावे में कितना दम है?

सुजाता राव : भारत केवल उन लोगों का परीक्षण करने की सीमित नीति को अपना रहा है जिन्होंने विदेश यात्राएं की हैं और जो लोग उन यात्रियों के संपर्क में आए हैं. इसे कल से बढ़ा दिया गया है जिसमें दो और श्रेणियों को शामिल किया गया है- अस्पताल में भर्ती सभी गंभीर सांस की बीमारी वाले, सांस लेने में तकलीफ वाले तथा बुखार और खांसी वाले रोगियों को. उन सभी लोगों के लिए दो तरह की परीक्षण नीति को अपनाया जा रहा है, पहला पांचवे और दूसरा चौदहवें दिन पर, जिनमें वायरस के स्प्ष्ट लक्षण तो नहीं हैं ​लेकिन जो पुष्ट संक्रमित व्यक्ति के सीधा संपर्क में रहे हैं.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने इसके अलावा रैंडम ढंग से 826 नमूनों का परीक्षण किया है और सभी मामले नकारात्मक पाए हैं. नमूना चुनने की उनकी पद्धति के बारे में कोई नहीं जानता और इसलिए कुछ भी कहना मुश्किल है. लेकिन फिर ऐसी आबादी के परीक्षण के लिए, जिसका विदेश यात्रा से लौटे व्यक्ति से कोई संपर्क न हो, को नियमित और संरचनागत ढंग से किए जाने की जरूरत है. संभवत: निगरानी केंद्रों को स्थापित करना भी उपयोगी होगा क्योंकि कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह संक्रमण महज एक बार का मामला नहीं हो सकता है बल्कि पूरे साल भर अचानक तेजी से फैल सकता है. निगरानी केंद्र वह जगह है जहां एक ही साइट या स्थान से निर्धारित अंतराल पर परीक्षणों का एक समान नमूना लिया जाता है. समय के साथ अगर कोई परिवर्तन होता है तो यह उन परिवर्तनों की जानकारी प्रदान करता है. हमें वायरस के प्रक्षेपवक्र का विश्लेषण करने और समझने में मदद करने के लिए ऐसे डेटा और जानकारी की आवश्यकता है कि कौन संक्रमित हो रहा है और कहां है? संक्षेप में वायरस की महामारी विज्ञान को समझने और विश्लेषण करने की आवश्यकता है. मैंने अभी तक इसके बारे में कोई अच्छा विश्लेषण नहीं देखा है.

तुषार धारा : इस समय संक्रमण और मौतों की कम संख्या क्या इशारा करती है?

सुजाता राव : भारत में कोविड-19 की जानलेवा दर बहुत कम है. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हो सकता कि वर्तमान तनाव हल्का वाला हो. कम संख्या उच्च तापमान के कारण हो सकती है, हालांकि ऐसा कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो दिखाता को कि गर्म जलवायु का वायरस पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर की जलवायु उसी तरह की है जैसी हमारे यहां दक्षिण भारत में है और फिर भी वहां मामले बढ़ रहे हैं. उनके यहां दक्षिण भारतीय शहरों की तुलना में अधिक मामले सामने आए हैं. हमें इन सभी सहज ज्ञान युक्त और सहज ज्ञान विमुक्त कारकों और चरों को किनारे रखकर मात्रात्मक रुझानों का बहुत अधिक विश्लेषण करना चाहिए. मुझे लगता है कि सरकार को सतर्क होना चाहिए लेकिन वे पर्याप्त परीक्षण नहीं कर रहे हैं और इससे मुझे चिंता होती है.

तुषार धारा : क्या पर्याप्त रूप से परीक्षण नहीं किए जाने के चलते यहां संख्या इतनी कम है?

सुजाता राव : यह एक संभावना है. हमें परीक्षण करना होगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी को परीक्षण करना होगा. सभी के परीक्षण किए जाने की जरूरत नहीं है और 1.3 अरब लोगों का परीक्षण कर भी नहीं सकते हैं. हालांकि, उन लोगों के प्रकारों के बारे में कुछ जानकारी है जो संक्रमित हो गए हैं और इसके आधार पर हम एक अच्छा रैंडम नमूना चुन सकते हैं. दूसरा कारण जिससे मैं थोड़ी चिंतित हूं क्योंकि प्रेस रिपोर्टों में कहा गया है कि चेन्नई में, ऐसे लोगों जिन्होंने विदेश यात्रा की और जिनमें वायरस के लक्षण पाए गए हैं, उनका परीक्षण करने से इनकार किया जा रहा है. अगर यह सच है तो मामले हमारे हाथों से निकलते जा रहे हैं. चेन्नई के अधिकारियों से कहा गया है कि वे लक्षण खराब होने पर ही मरीजों को वापस आने को कहें. मुद्दा यह है कि भले ही किसी में हल्के लक्षण हों और वह घातक न भी हो फिर भी संक्रमण फैल सकता है. महामारी विज्ञान के तहत उनका परीक्षण किया जाना चाहिए था. इसी तरह, केरल में भी हल्के लक्षणों वाले रोगियों को जांच करवाने में हतोत्साहित किया जा रहा है और इसके बजाय वे उन्हें स्वयं क्वारंटीन में रहने के लिए कहते हैं. परीक्षण नहीं करने से ऐसे मामलों की संख्या कम दर्ज हो सकती है या मामले हमसे छूट सकते हैं. यहां तक ​​कि किसी हल्के मामले का भी परीक्षण करने की आवश्यकता होती है क्योंकि वह पूरे घर को संक्रमित कर सकता है और अगर उस घर में बुजुर्ग व्यक्ति हों तो संक्रमण घातक हो सकता है.

तुषार धारा : भारत में कोविड-19 के उपचार और परीक्षण के लिए वर्तमान प्रोटोकॉल क्या है?

सुजाता राव : अभी तक कोई मानकीकृत उपचार प्रोटोकॉल नहीं है. हालांकि कुछ डॉक्टरों ने दावा किया है कि एचआईवी रोगियों को दिया जाने वाला एंटी-रेट्रोवायरल उपचार कोविड रोगियों के मामले में भी काम कर रहा है. इन दावों का परीक्षण और उपचार प्रोटोकॉल विकसित किए जाने की आवश्यकता है.

परीक्षण के लिहाज से, जैसा कि पहले ही कहा गया है, भारत बहुत रूढ़िवादी है और परीक्षण के लिए इसकी नीति अत्यधिक सीमित है - केवल ऐसे लोगों का परीक्षण जिन्होंने विदेश यात्रा की है. इसे अब बदला जा रहा है. परीक्षण के लिए गले से लार का नमूना लिया जाता है और पॉलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट के लिए भेजा जाता है. अगर वह परीक्षण सकारात्मक आता है, तो नमूना पुष्टिकरण परीक्षण के लिए पुणे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को भेजा जाता है. लेकिन अब आईसीएमआर राज्य स्तर की प्रयोगशालाओं को भी पुष्टिकरण परीक्षण करने की अनुमति दे रहा है. जब उनके परीक्षण स्थल बहुत कम हैं तो इससे दो समस्याएं पैदा होती हैं- पहली, जिन्हें सक्रिय रूप से परीक्षण की जरूरत है उन्हें परीक्षण से रोकना और दूसरा उसमें देरी होना. उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में तीन या चार परीक्षण केंद्र हैं, लेकिन समान रूप से नहीं फैले हैं. जिलों के बड़े आकार को देखते हुए उन तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो जाता है. हमारे देश की विशालता को देखते हुए उन्हें परीक्षण का विकेंद्रीकरण करना होगा. अब वे कुछ और केंद्र खोल रहे हैं, मुझे विश्वास है. आईसीएमआर कुछ और सार्वजनिक और निजी प्रयोगशालाओं को सूचित कर रहा है, जो अच्छा कदम है. जितना अधिक आप परीक्षण तक पहुंच बढ़ाते हैं, रणनीति उतनी ही मजबूत होती है और महामारी पर नियंत्रण अधिक होता है.

तुषार धारा : विकेंद्रीकरण में निजी प्रयोगशालाएं भी शामिल होंगी?

सुजाता राव : निजी क्षेत्र के संबंध में, प्रयोगशाला की गुणवत्ता को प्रमाणित करना होगा. आज आपके पास सभी प्रकार की प्रयोगशालाएं हैं और उनमें से सब में यह क्षमता नहीं है. कोविड-19 के लिए परीक्षण परिष्कृत और महंगा है. खराब परीक्षण से गलत परिणाम मिलेगा जो और अधिक भ्रम पैदा करेगा. उन्हें अधिकृ​त किए जाने की जरूरत है, मानकों को बनाए रखना है और अच्छी तरह से प्रशिक्षित तकनीशियनों की आवश्यकता है. मानक संचालन प्रक्रिया को निर्धारित करने और सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है.

तुषार धारा  : क्या भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र एक पूर्ण विकसित महामारी से निपटने के लिए तैयार है?

सुजाता राव : चीन या इटली की तरह पूर्ण विकसित महामारी से? बिल्कुल नहीं. संभवत: केरल और तमिल नाडु शायद इससे निपट सकें लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार ढह जाएंगे. उत्तरी राज्यों में स्वास्थ्य प्रणाली - सार्वजनिक और निजी दोनों - कमजोर है और अगर संक्रमित रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ती है तो वह भरभरा जाएगी. और इसलिए संक्रमण को रोकने और खत्म करने की रणनीति अपनाई जा रही है ताकि मामलों का भार स्वास्थ्य व्यवस्था के सह करने लायक हो जाए. मुद्दा यह भी है कि सामाजिक रूप से दूरी बनाने जैसी चीजें पूरे देश में एक समान नहीं हैं. यह राज्यवार अलग-अलग है. आंध्र प्रदेश में सामाजिक रूप से दूरी नहीं है, लेकिन तेलंगाना में है. उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति ईरान से आता है और आंध्रा जाने के लिए हैदराबाद से होकर गुजरता है, तो क्या होता है? हमें निवारक रणनीतियों के कार्यान्वयन में एकरूपता और समन्वय की आवश्यकता है क्योंकि अगले दो सप्ताह हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं.

तुषार धारा : क्या विभिन्न सरकारों द्वारा घोषित कदम पर्याप्त हैं?

सुजाता राव : वास्तव में नहीं. जैसा कि मैंने कहा कि सीमा, गहराई या समय के मामले में एकरूपता नहीं है. स्कूलों और अन्य ऐसे स्थानों जहां काफी तादात में लोग इकट्ठा होते हैं, को बंद करके सामाजिक दूरी बनाना पहला अच्छा कदम है. लेकिन पूरी तरह से लॉकडाउन को लागू करना आसान नहीं है. (22 मार्च को, केंद्र और राज्य सरकारों ने देश भर के उन 75 जिलों को पूरी तरह से लॉकडाउन करने का फैसला किया, जहां कोविड-19 के मामले दर्ज किए गए हैं.)

इसलिए सूचना का प्रसार होना भी एक महत्वपूर्ण है : कोविड-19 के संदर्भ में क्या करें, क्या न करें के बारे में सरकारों को सख्ती से प्रचार करना चाहिए. हर एक घंटे में सभी बड़े मीडिया चैनलों पर इसको लेकर विज्ञापन होने चाहिए क्योंकि आखिरकार हर व्यक्ति को ही जागरूकता और सही ज्ञान के माध्यम से जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता है.

तुषार धारा  : स्वास्थ्य राज्य का विषय है लेकिन पैसा केंद्र से आता है. क्या आप भारत में स्वास्थ्य सेवा के वित्तपोषण के बारे में बता सकती हैं?

सुजाता राव : अस्पताल राज्य का विषय हैं लेकिन संक्रामक रोग संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में है. इसी वजह से एचआईवी/एड्स, तपेदिक, खसरा और पोलियो को रोकने के कार्यक्रमों में भारत सरकार की प्रमुख भूमिका रही है. केंद्र और राज्यों दोनों की इसमें भूमिका है. केंद्र को मानकों और दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए राज्यों को वित्त पोषण सहायता प्रदान करनी चाहिए जिसे वह नहीं कर रहा है. उन्हें साथ मिलकर काम करने की जरूरत है. उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने केंद्र सरकार से परीक्षण को बढ़ाने का अनुरोध किया है. सोच और काम का तालमेल होना चाहिए और केंद्र को राज्यों की समस्याओं के बारे में पता होना चाहिए. दूसरी ओर केंद्र के पास संयोजक शक्ति है और वह विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से जानकारी प्राप्त कर सकता है. लेकिन कार्यान्वयन एजेंसियां ​​राज्य हैं, इसलिए इसमें दोनों की ही भूमिका है. एक ठोस दृष्टिकोण होना चाहिए.

भले ही प्रधानमंत्री ने दूसरे दिन मुख्यमंत्रियों के साथ एक वीडियो सम्मेलन किया लेकिन यह अपर्याप्त है. जल्दी या बाद में, मामले की गंभीरता को समझते हुए आमने-सामने बैठकर आधे दिन की एक बैठक की जानी चाहिए ताकि संकट से निपटने में मदद मिल सके. मुख्यमंत्रियों को स्थिति की गंभीरता और संभावित सामाजिक और आर्थिक परिणामों को समझने की तत्काल आवश्यकता है और इसके लिए तैयारी करने की जरूरत है. इसी तरह स्वास्थ्य मंत्री को सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक बुलाने की जरूरत है ताकि प्रस्तावित रणनीतियों के पीछे की सोच को समझा जा सके. उन्हें संक्रमण के विस्फोट की स्थिति में उपायों के साथ भी तैयार रहने की आवश्यकता है. मुझे यह समझ में नहीं आता है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर राज्य सरकारों का राजनीतिक ध्यान क्यों नहीं बढ़ा रही है. बोर्ड पर राज्यों का होना आवश्यक है. केंद्र को भी एक निर्धारित लक्ष्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है. हमारे यहां बहुत से लोग हैं जो नीतिगत निर्णय ले रहे हैं और ऐसी रणनीति तैयार कर रहे हैं जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है और जिनमें स्पष्टता का अभाव है.


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.