गोवा में रहने वाली 32 साल की आर्किटेक्ट तन्वी चौधरी को डर है कि जल्द ही या आने वाले कुछ महीनों में वह खुद या उनके परिचित कोविड-19 से संक्रमित हो जाएंगे. उनकी 56 वर्षीय मां गुजरात में रहती हैं जहां इस प्रकोप की मृत्यु दर बहुत ज्यादा है. चौधरी को इस बात का डर है कि संक्रमित हो जाने की स्थिति में वह या उनकी मां कहां जाएंगी. लेकिन उनकी सबसे बड़ी चिंता निजी क्लिनिक में परीक्षण और इलाज कराने की है. "मैं एक फ्रीलांसर हूं और मुझे चिंता होती है क्योंकि परीक्षण की कीमत बहुत अधिक है," उन्होंने मुझे बताया. “फिर इलाज का खर्च भी है. मैं सुनती हूं कि दूसरे देश मुफ्त में ऐसा कर रहे हैं और सोच रही हूं कि भारत में ऐसा क्यों नहीं है.”
यह सवाल निराधार नहीं है. भारत में सरकारी अस्पतालों से इतर परीक्षण कराना बेहद महंगा है क्योंकि भारत सरकार ने निजी क्षेत्र को प्रति परीक्षण 4500 रुपए तक शुल्क वसूलने की अनुमति दी है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, इस राशि में "संदिग्ध मामलों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में प्रति परीक्षण 1500 रुपए और पुष्टिकरण परीक्षण के लिए अतिरिक्त 3000 रुपए शामिल हो सकता है." जारी दिशानिर्देश इन परीक्षणों की उस वास्तविक लागत का खुलासा नहीं करते जिसे निजी क्लीनिक भुगतान करेंगे. दूसरी ओर भारत के अन्य पड़ोसी देशों ने सुनिश्चित किया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान परीक्षण मुफ्त या न्यूनतम लागत पर उपलब्ध हो.
चौधरी को यह भी पता चला कि यह परीक्षण तीन बार करना पड़ता है. छत्तीसगढ़ में जन स्वास्थ्य सहयोग द्वारा संचालित ग्रामीण अस्पताल में कार्यरत डॉ. नमन शाह ने बताया, "दुनिया भर में अधिकांश परीक्षण रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पोलीमरेज चेन रिएक्शन या आरटी-पीसीआर नामक तकनीक का उपयोग करते हैं, जो बलगम के नमूनों से कोरोनोवायरस का पता लगाती है. रोगी को दूसरे परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है क्योंकि प्रारंभिक परीक्षण सटीक नहीं हो सकता क्योंकि वायरस का पता लगाने के लिए बलगम के नमूने में उपलब्ध वायरल सामग्री की मात्रा परीक्षणों के लिए बहुत कम हो सकती है. हर अगले परीक्षण में थोड़ी अधिक जानकारी मिलती है लेकिन इसमें अच्छी खासी लागतें जुड़ी होती हैं. अस्पताल से छुट्टी देने से पहले रोगी नकारात्मक है या नहीं यह जांचने के लिए कई अस्पताल तीसरी बार परीक्षण करते हैं. हालांकि, इसकी जरूरत नहीं है.”
नतीजतन, किसी मरीज को तीन परीक्षण कराने के लिए निजी अस्पताल मजबूर कर सकते हैं. चौधरी ने मुझे बताया, "उपचार लागत परीक्षण लागत से अधिक होगी. प्रति व्यक्ति 13500 रुपए में तीन चरणों की परीक्षण दरें मेरे लिए एक बड़ी चिंता का विषय है."
भारत के गरीब पड़ोसी देश बांग्लादेश में यह स्थिति एकदम उलट है. यहां परीक्षण के साथ-साथ उपचार भी मुफ्त है. ढाका में बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, डिजीज कंट्रोल एंड रिसर्च के निदेशक मीरजादी सबरीना फ्लोरा ने बताया, "हम परीक्षण और उपचार मुफ्त में करते हैं. यह सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है कि गरीब नागरिक स्वयं का परीक्षण करने में सक्षम हों. परीक्षण और उपचार दोनों को मुफ्त में उपलब्ध कराने का यही एकमात्र तरीका हो सकता है.”
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