20 मार्च को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने एक कार्यालय ज्ञापन जारी कर कोविड-19 संबंधित टीकों और उपचारों के लिए आवेदनों की तीव्र मंजूरी के लिए समय सीमा तय की. इस बीच कई कंपनियां कोविड-19 दवा और वैक्सीन विकसित करने की दौड़ शामिल हो गई हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय दवा कंपनी सिप्ला ने हैदराबाद स्थित भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ कोविड-19 के लिए एक एंटीवायरल दवा पर काम करने का करार किया है और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कई देशों ने संभावित दवाओं और टीकों के लिए क्लीनिकल परीक्षण शुरू कर दिया है.
दवा या वैक्सीन को जल्दी से जल्दी विकसित करना सरकारों के कंपनियों को दी जाने वाली मदद पर निर्भर है. साथ ही ऐसी दवा और वैक्सीनों की सुरक्षा और प्रभावशीलता भी सरकार को सुनिश्चित करनी होती है. भारतीय दवा कानून सुरक्षित और प्रभावी उपचार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के के मामले में कमजोर है. भारत में कोविड-19 से लड़ने के लिए दवा या वैक्सीन का भारत में आविष्कार या विदेश में बनने की स्थिति में इसे आयात करना होगा. दोनों स्थितियों में भारतीय अधिकारियों द्वारा भारत में किसी दवा की बिक्री की मंजूरी देने के लिए परीक्षण एक जैसा है. इसके तहत मौजूदा दवा को “नई दवा" मान कर देखा जाएगा कि क्या इसे कोविड-19 के इलाज में लाया जा सकता है.
ड्रग्स और वैक्सीन के परीक्षण और अनुमोदन की व्यवस्था ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 या ड्रग्स एक्ट और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 या ड्रग्स रूल्स में है और डीसीजीआई द्वारा तय होती है. ड्रग्स एक्ट और ड्रग्स रूल्स फार्मास्यूटिकल दवाओं, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक दवाओं और कॉस्मेटिक उत्पादों के विनिर्माण, परीक्षण, अनुमोदन, बिक्री, स्टॉकिंग और विपणन के नियमन के लिए एक व्यापक व्यवस्था देते हैं.
दवा कानूनों की अनुसूची वाई द्वारा शासित, परीक्षण तीन प्रमुख चरणों में आयोजित किए जाते हैं. पहला चरण, "उत्पाद निरूपण" का उद्देश्य दवा की प्रकृति को स्पष्ट करना है, जिसमें सक्रिय संघटक की रासायनिक संरचना, इसके आणविक भार, भौतिक गुण, विलेयता, अम्लता, क्षारीयता, खुराक के रूप, विधि और इसी तरह की अन्य चीजे शामिल हैं. अगला चरण- "प्री-क्लिनिकल ट्रायल" - पशु-पक्षियों पर दवा का परीक्षण करना जैसे कि कुतरने वाले जानवर-चूहों और गैर-कुतरने वाले-खरगोशों से लेकर बंदरों तक, परीक्षण की प्रकृति, दवा की प्रकृति, और उस रोग की प्रकृति जिसके लिए दवा बनाई जा रही है, पर निर्भर होता है.
प्री-क्लीनिकल परीक्षण दो चरणों में किया जाता है. पहला, फार्माकोलॉजी, दवा के काम और प्रभावकारिता से संबंधित है. इस परीक्षण में रोगी के शरीर के माध्यम से दवा गति को समझने और यह थ ही यह समझने का प्रयास किया जाता है कि कैसे ये उपापचय, अवशोषण और उत्सर्जन तथा अन्य कार्य करती है. दूसरा चरण, विषविज्ञान (टाक्सकालजी) पशु पर परीक्षण का सुरक्षात्मक तरीका है और यह बताता है कि क्या दवा का उपयोग करना सुरक्षित है या उससे कोई एलर्जी हो सकती है और क्या इसमें कुछ कार्सिनोजेनिक या म्यूटाजेनिक गुण हैं और इसके दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं.
यदि पशुओं पर प्रयोग का चरण सफल रहता है और दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता के बारे में पर्याप्त यकीन हो जाता है तो डीसीजीआई "क्लिनिकल परीक्षण" या मानवों पर परीक्षण के तीसरे चरण में बढ़ता है. पर्याप्त मात्रा में ऐसा डेटा उपलब्ध नहीं है जो बताए कि पशु प्रयोग दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करता है. मनुष्यों के उपयोग के लिए बनाई गई दवा को बाजार में लाने से पहले मनुष्यों पर परीक्षण किया जाना चाहिए. दवा के आने से पहले तीन चरणों में क्लीनिकल परीक्षण किया जाता है और एक चौथा चरण बाजार में दवा आने के बाद होता है.
पहले चरण में फार्माकोलॉजी का अध्ययन शामिल होता है जो जानवरों पर किए गए परीक्षण के समान ही होता है. क्लीनिकल परीक्षणों का दूसरा चरण दवा की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने और इसके जोखिम और दुष्प्रभावों को निर्धारित करने के लिए खोजपूर्ण अध्ययन का है - उदाहरण के लिए, रोगी को दी जाने वाली दवा की खुराक भी इस चरण में निर्धारित की जाती है. तीसरे चरण में पुष्टिकरण अध्ययन शामिल है और इसका उद्देश्य अब तक के सभी अध्ययनों द्वारा एकत्र किए गए डेटा की पुष्टि करना है. चौथे चरण यानी पोस्ट-मार्केटिंग अध्ययन, लॉन्च के बाद आयोजित किया जाता है, जिसमें दवा के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए बहुत बड़े नमूना आकार (सैंपल साइज) तक पहुंच होती है. इसमें यह समझने के लिए कि अन्य उपचारों-खुराकों के साथ मिलाकर देने पर दवा किस तरह असर करती है दवाओं, दवाओं के मिश्रण का अध्ययन, प्रतिक्रिया का अध्ययन और महामारी विज्ञान का अध्ययन आदि शामिल है.
यदि मानव परीक्षणों के सभी चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया जाता है, तो दवा को कई सरकारी समितियों, जैसे तकनीकी समिति, सर्वोच्च समिति और विषय विशेषज्ञ समिति, के सामने अनुमोदन के लिए रखा जाता है, साथ ही डीसीजीआई के साथ पंजीकृत कई स्वतंत्र नैतिक समितियों के सामने भी प्रस्तुत किया जाता है. जो क्लीनिकल परीक्षण तंत्र और प्रोटोकॉल की देखरेख करते हैं. एक बार अनुमोदित होने के बाद, दवा निर्माण, विपणन और बिक्री के लिए उपलब्ध हो जाती है.
इस पूरी प्रक्रिया में वक्त लगता है और यह कुछ महीनों से लेकर कुछ वर्षों तक कुछ भी हो सकता है, क्योंकि प्रत्येक चरण के लिए नियामक की अनुमति की आवश्यकता होती है, और प्रत्येक चरण के परिणाम स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत भारतीय फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों के लिए राष्ट्रीय नियामक संस्था, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के सामने रखे समीक्षा और अनुमोदन के लिए रखे जाते हैं. सरकार ने कोविड-19 के लिए टीकों और दवाओं के विकास के समय को कम करने के लिए कार्यालय ज्ञापन में संबोधित करने के मुद्दों में से एक के रूप में इसकी सही ढंग से पहचान की है.
जैव प्रौद्योगिकी विभाग या डीओबीटी द्वारा जारी ज्ञापन ने अब समीक्षा और अनुमोदन के प्रत्येक चरण के लिए समयसीमा को घटाकर सात से दस दिन कर दिया है. मार्च में, डीजीसीआई ने कोविड-19 की दवाओं के लिए फास्ट ट्रैक अनुमोदन की घोषणा करते हुए प्रमुख दवा कंपनियों को इसकी जानकारी भेज दी है.
दवा अधिनियम और दवा कानून भारत में एक पूरी तरह से नई दवा के विकास के लिए कोई फास्ट ट्रैक प्रक्रिया प्रदान नहीं करते हैं. दवा कानूनों के 122 बी (2) और 122बी (3) नियमों के तहत, सार्वजनिक हित में उन दवाओं के लिए कुछ परीक्षणों की छूट उपलब्ध है, जिन्हें विदेश में उपयोग के लिए मंजूरी दी गई है और उनका भारत में आयात करने का इरादा है. यह फर्मों को विदेशों से संपूर्णता में मानव परीक्षण चरण से एकत्र किए गए डेटा और पशु परीक्षण चरण से एकत्र किए गए विषविज्ञान संबंधी डेटा को पेश करने की अनुमति देकर किया गया है. इसका मतलब यह है कि भारत में अभी भी किसी आयातित कोविड-19 दवा के उत्पाद निरूपण और पशु औषध विज्ञान के अध्ययन आयोजित करने की आवश्यकता होगी. दवा कानूनों की अनुसूची वाई में नियम 1 (1) (3) में यह भी कहा गया है कि पशु विषाक्तता और क्लीनिकल परीक्षण डेटा आवश्यकताओं को संक्षिप्त, आस्थगित या छोड़ा जा सकता है, जैसा कि जीवन के लिए खतरनाक, गंभीर बीमारियों से निपटने वाली दवाओं और भारतीय स्वास्थ्य परिदृश्य के लिए विशेष प्रासंगिकता के रोगों के संबंध में डीसीजीआई द्वारा उचित समझा गया है. .
किसी दवा के फास्ट-ट्रैक अनुमोदन के लिए एक विस्तृत कानूनी ढांचे के अभाव में, यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रावधान किस तरह के संक्षिप्तीकरण, आस्थगन या छोड़े जाने से संबंधि है और डीसीजीआई क्या कार्रवाई कर सकता है. दवा नियमों में उपयुक्तता का कोई मानक निर्धारित नहीं किया गया है और डीसीजीआई को दवा नियमों के तहत कोई मार्गदर्शन प्राप्त नहीं है. यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोविड-19 के लिए इलाज या वैक्सीन के रूप में दी जाने वाली दवा का उपयोग करना सुरक्षित है. यह सुनिश्चित करना कि कोविड-19 की दवा भारतीय अस्पतालों में जल्द से जल्द उपलब्ध हो, यह भी समय की आवश्यकता है. भारतीय कानूनी व्यवस्था इन दोनों जरूरतों को कैसे संतुलित करती है? दुर्भाग्य से, वह ऐसा नहीं करती है.
इसलिए, कानूनी और नियामक ढांचे की कमी के कारण जिम्मेदारी डीसीजीआई के कार्यकारी कंधों पर आ जाती है. यह "कोविड-19" के रूप में दर्ज सभी आवेदनों को प्रमुखता में सबसे ऊपर रखने का भी रूप ले सकती है. यह देखते हुए कि अनुमोदन प्राप्त करने के लिए कई समितियां हैं, यह संभव है कि अगर किसी कोविड-19 दवा पर चर्चा की जानी चाहिए तो ऐसी समितियों की आपातकालीन बैठकें आयोजित की जाएं. अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं. यह भी संभावना है कि डीसीजीआई यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी फाइल आवश्यक से अधिक समय तक डेस्क पर न पड़ी रहे. ये सभी बिल्कुल आवश्यक उपाय हैं, और कार्यालय ज्ञापन तथा दवा कंपनियों को डीसीजीआई द्वारा जारी किए गए एक नोट से ऐसा प्रतीत होता है कि डीसीजीआई और डीओबीटी ऐसे उपाय करने के लिए तैयार हो रहे हैं.
किन क्लीनिकल या पशु विषविज्ञान परीक्षणों को संक्षिप्त किया जा सकता है और कितना किया जा सकता है, किसे स्थगित किया जा सकता है और कब तक किया जा सकता है और किसे पूरी तरह से छोड़ा जा सकता है, यह अस्पष्ट रहता है. यह माना जा सकता है कि जीवन के खतरनाक बीमारियों से संबंधित उपचारों में सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता है, और इसलिए किसी भी परीक्षण को स्थगित या छोड़े जाने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन कौन से परीक्षणों को संक्षिप्त किया जा सकता है और कितना यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बारे में डीजीसीआई को संबोधित करने की आवश्यकता है.
वास्तव में, डीसीजीआई ने कहा है कि जिन कोविड-19 दवाओं को भारत के बाहर विकसित और अनुमोदित किया गया है, उनका, यदि उचित हो तो मानव परीक्षण और पशु विषविज्ञान अध्ययन छोड़ा जा सकता है. यह स्पष्ट नहीं है कि भारत में विकसित दवाओं के लिए डीसीजीआई के पास अपने अधिकारियों को कोविड-19 फाइलों पर हिलाहवाली करने से बचने के निर्देश देने के अलावा और क्या योजना है.
दवा कानूनों और दवा अधिनियमों का उद्देश्य सुरक्षा की आवश्यकता के साथ त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता को संतुलित करना है. यह सुनिश्चित करने के लिए किताबों में कोई कानूनी प्रावधान नहीं हैं कि कोई कंपनी और कोई सरकारी प्राधिकरण जरूरत से ज्यादा ढील नहीं दे सकता है. यहां आवश्यक धैर्य से समझौता किए बिना अनावश्यक देरी को समाप्त करने के लिए परिकल्पित कोई प्रोटोकॉल नहीं हैं. कोविड-19 दवा या टीका विकसित करने की कॉरपोरेट की दौड़ में, कानून को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी कंपनी अप्रभावी, या इससे भी बदतर, असुरक्षित दवा को मंजूरी देने के लिए घबराहट का दुरुपयोग न करे. इसी तरह, कानून को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी सरकारी प्राधिकरण अपने कर्तव्य की उपेक्षा न करे और ऐसी दवा को मंजूरी न दे जो परीक्षण मापदंडों को पूरा नहीं करती है.
महामारी ने भारतीय दवा व्यवस्था की फटेहाली को उजागर कर दिया है. इस फटेहाली को जल्द से जल्द दूर करना आवश्यक है. लोगों को जल्द इलाज की आवश्यकता है लेकिन सुरक्षा की कीमत पर नहीं. भारतीय दवा कानूनों को वैश्विक कोरोनोवायरस जैसी महामारी से उत्पन्न सभी जरूरतों को संतुलित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र प्रदान करने की आवश्यकता है.