भारतीय दवा कानून और कोविड-19 के इलाज की चुनौती

29 अप्रैल 2020 को ली गई इस तस्वीर में बीजिंग में सिनोवैक बायोटेक फैसेलिटीज की सेल कल्चर रूम प्रयोगशाला में इंजीनियर कोविड-19 कोरोनवायरस के टीके के परीक्षण के लिए बंदर की किडनी की कोशिकाओं के नमूने लेते हुए.
निकोलस एस्फोरी/ एएफपी / गैटी इमेजिस
29 अप्रैल 2020 को ली गई इस तस्वीर में बीजिंग में सिनोवैक बायोटेक फैसेलिटीज की सेल कल्चर रूम प्रयोगशाला में इंजीनियर कोविड-19 कोरोनवायरस के टीके के परीक्षण के लिए बंदर की किडनी की कोशिकाओं के नमूने लेते हुए.
निकोलस एस्फोरी/ एएफपी / गैटी इमेजिस

20 मार्च को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने एक कार्यालय ज्ञापन जारी कर कोविड-19 संबंधित टीकों और उपचारों के लिए आवेदनों की तीव्र मंजूरी के लिए समय सीमा तय की. इस बीच कई कंपनियां कोविड-19 दवा और वैक्सीन विकसित करने की दौड़ शामिल हो गई हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय दवा कंपनी सिप्ला ने हैदराबाद स्थित भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ कोविड-19 के लिए एक एंटीवायरल दवा पर काम करने का करार किया है और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कई देशों ने संभावित दवाओं और टीकों के लिए क्लीनिकल ​​परीक्षण शुरू कर दिया है.

दवा या वैक्सीन को जल्दी से जल्दी विकसित करना सरकारों के कंपनियों को दी जाने वाली मदद पर निर्भर है. साथ ही ऐसी दवा और वैक्सीनों की सुरक्षा और प्रभावशीलता भी सरकार को सुनिश्चित करनी होती है. भारतीय दवा कानून सुरक्षित और प्रभावी उपचार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के के मामले में कमजोर है. भारत में कोविड-19 से लड़ने के लिए दवा या वैक्सीन का भारत में आविष्कार या विदेश में बनने की स्थिति में इसे आयात करना होगा. दोनों स्थितियों में भारतीय अधिकारियों द्वारा भारत में किसी दवा की बिक्री की मंजूरी देने के लिए परीक्षण एक जैसा है. इसके तहत मौजूदा दवा को “नई दवा" मान कर देखा जाएगा कि क्या इसे कोविड-19 के ​इलाज में लाया जा सकता है.

ड्रग्स और वैक्सीन के परीक्षण और अनुमोदन की व्यवस्था ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 या ड्रग्स एक्ट और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 या ड्रग्स रूल्स में है और डीसीजीआई द्वारा तय होती है. ड्रग्स एक्ट और ड्रग्स रूल्स फार्मास्यूटिकल दवाओं, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक दवाओं और कॉस्मेटिक उत्पादों के विनिर्माण, परीक्षण, अनुमोदन, बिक्री, स्टॉकिंग और विपणन के नियमन के लिए एक व्यापक व्यवस्था देते हैं.

दवा कानूनों की अनुसूची वाई द्वारा शासित, परीक्षण तीन प्रमुख चरणों में आयोजित किए जाते हैं. पहला चरण, "उत्पाद निरूपण" का उद्देश्य दवा की प्रकृति को स्पष्ट करना है, जिसमें सक्रिय संघटक की रासायनिक संरचना, इसके आणविक भार, भौतिक गुण, विलेयता, अम्लता, क्षा​रीयता, खुराक के रूप, विधि और इसी तरह की अन्य चीजे शामिल हैं. अगला चरण- "प्री-क्लिनिकल ट्रायल" - पशु-पक्षियों पर दवा का परीक्षण करना जैसे कि कुतरने वाले जानवर-चूहों और गैर-कुतरने वाले-खरगोशों से लेकर बंदरों तक, परीक्षण की प्रकृति, दवा की प्रकृति, और उस रोग की प्रकृति जिसके लिए दवा बनाई जा रही है, पर निर्भर होता है.

प्री-क्लीनिकल परीक्षण दो चरणों में किया जाता है. पहला, फार्माकोलॉजी, दवा के काम और प्रभावकारिता से संबंधित है. इस परीक्षण में रोगी के शरीर के माध्यम से दवा गति को समझने और यह थ ही यह समझने का प्रयास किया जाता है कि कैसे ये उपापचय, अवशोषण और उत्सर्जन तथा अन्य कार्य करती है. दूसरा चरण, विषविज्ञान (टाक्सकालजी) पशु पर परीक्षण का सुरक्षात्मक तरीका है और यह बताता है कि क्या दवा का उपयोग करना सुरक्षित है या उससे कोई एलर्जी हो सकती है और क्या इसमें कुछ कार्सिनोजेनिक या म्यूटाजेनिक गुण हैं और इसके दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं.

तन्मय सिंह दिल्ली में वकील हैं.

Keywords: COVID-19
कमेंट