उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल में 52 वर्षीय वार्ड परिचारक महिपाल सिंह का 17 जनवरी को निधन हो गया. भारत के टीकाकरण अभियान के पहले दिन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन कोविशील्ड का इंजेक्शन लगाने के एक दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई. इंजेक्शन लगने के कुछ समय बाद महिपाल ने अपने बेटे विशाल को अस्पताल से घर ले चलने को कहा था. विशाल ने मुझे कहा, "पिता जी ने मुझे बताया कि वह अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं. उन्हें घबराहट सी हो रही थी और सांस लेन में दिक्कत हो रही थी." विशाल दोपहर करीब 2 बजे महिपाल को घर ले गए. घर पर महिपाल को तकलीफ होती रही. अगली सुबह उन्हें 101 डिग्री बुखार आ गया. उन्हें सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई और धड़कन बढ़ रही थी. दोपहर में विशाल उन्हें जिला अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में ले गए. वहां पहुंचने पर महिपाल को मृत घोषित कर दिया गया.
महिपाल भारत में कोविड-19 टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव के चलते मरने वाले पहले व्यक्ति थे. मुरादाबाद के स्वास्थ्य अधिकारियों ने महिपाल की मृत्यु और वैक्सीन के बीच किसी प्रकार का संबंध होने की बात को खारिज किया है. अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधिकारी और इसकी एईएफआई समिति के सदस्य डॉ. मिलिंद चंद्र गर्ग ने कहा, “उन्हें कार्डियोपल्मोनरी रोग और संक्रमण था." उन्होंने कहा, "उन्हें इस संबंध में टीकाकरणकर्ताओं को सूचित करना चाहिए था." विशाल ने कहा कि उनके पिता को कभी दिल की कोई बीमारी नहीं रही थी “और अगर उन्हें ऐसी कोई समस्या थी या वह किसी संक्रमण से पीड़ित थे, तो क्या डॉक्टरों का काम यह नहीं है कि वे टीका लगाने से पहले व्यक्ति के स्वास्थ्य की जांच करें? उन्होंने पहले टीका क्यों लगाया गया?”
गर्ग का कहना है कि महिपाल को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करना चाहिए था. लेकिन अगर ऐसा है, तो स्वास्थ्य अधिकारियों को वैक्सीन और महिपाल की मौत के बीच संबंध खारिज करने की इतनी जल्दी क्यों थी? तीसरा प्रश्न यह है कि क्या विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोग वास्तव में कोविड-19 वैक्सीन लेने के लिए अयोग्य हैं और क्या टीकाकरण कार्यक्रम को बहुत जल्दबाजी में चलाया जा रहा है? चौथा सवाल यह है कि कार्यक्रम के अगले चरण के लिए इसका क्या मतलब है, जब टीके बुजुर्गों और पहले से किसी बीमारी से ग्रसित लोगों को लगाए जाएंगे?
महिपाल की मृत्यु के बाद से टीकाकरण से कम से कम 40 से अधिक अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मृत्यु हुई है. ये मौतें उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, ओडिशा, केरल, आंध्र प्रदेश और गुजरात में हुई हैं. इनमें से अधिकांश मौतों के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों ने दिल के उत्तकों में संक्रमण या दिल का दौरा पड़ने को जिम्मेदार ठहराया है. आंध्र प्रदेश की 42 वर्षीय आशा कार्यकर्ता की मौत के लिए "थ्रोम्बोजेनिक इस्केमिक निस्तारण," या मस्तिष्क आघात को जिम्मेदार ठहराया गया है. इन सभी मामलों में स्थानीय अधिकारियों ने तत्काल ही वैक्सीन के साथ इनके किसी भी संबंध को खारिज कर दिया, यहां तक कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट और एईएफआई समिति की सिफारिशों के जारी होने तक का इंतजार नहीं किया गया. एईएफआई पर निर्णय लेने वाला अंतिम प्राधिकरण राष्ट्रीय एईएफआई समिति है. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि समिति ने पहली बार 5 फरवरी को बैठक की थी जिसने यह फैसला किया था कि एईएफआई की दो मौतों का टीके से संबंध नहीं था.
मुरादाबाद की तरह एईएफआई के अन्य मामलों को देख रहे स्वास्थ्य अधिकारियों ने मृतक स्वास्थ्य कर्मियों को टीका लगाने वालों को मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों का खुलासा नहीं करने के लिए दोषी ठहराया. कर्नाटक के बेलारी जिले के एईएफआई समिति के सदस्य डॉ. एचएल जनार्दन, जहां नागाराजू नामक एक 43 वर्षीय अस्पताल परिचारक की 18 जनवरी को कोविशील्ड के टीकाकरण के दो दिन बाद मृत्यु हो गई, ने कहा कि नागराजू को “ग्यारह साल से मधुमेह था और वह उच्च रक्तचाप का रोगी था. वह इलाज करवा रहा था लेकिन यह नियंत्रण से बाहर था.” अन्य लोगों को उनके कोविड-19 टीका मिलने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "यह बेहतर होगा यदि वे टीकाकरण से पहले अपनी बीमारियों के बारे में बता दें."
विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि ऐसी कोई भी अनचाही चिकित्सा घटना जो टीकाकरण के चलते हुई है और जरूरी नहीं कि जिसका वैक्सीन के उपयोग से कोई सीधा संबंध हो, वह एईएफआई है. उदाहरण के लिए, टीका लगने के एक दिन बाद सड़क दुर्घटना में कोई व्यक्ति घायल हो सकता है. एईएफआई को हल्के, गंभीर और प्राणघातक के रूप में वर्गीकृत किया गया है. टीकाकरण से संबंधित हल्की घटनाएं हमारे लिए कोविड-19 टीकों सहित कई टीकों के लिए काफी आम हैं और टीका लगने की जगह पर खुजली भी हो सकती है, हल्का बुखार और थकान भी इसमें शामिल है. गंभीर स्थिति में एलर्जी और दौरे या अक्षमता जैसी घटनाएं हो सकती हैं लेकिन यह लंबे समय तक नहीं रहती हैं. प्राणघातक स्थिति जीवन के लिए खतरा हो सकती हैं या दीर्घकालिक अक्षमता का कारण बनती हैं.
फरवरी के तीसरे सप्ताह तक 46 स्वास्थ्य कर्मियों को टीकाकरण के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जो कि भारत में कोविड-19 का टीका दिए गए लोगों की कुल संख्या का 0.004 प्रतिशत है. टीकाकरण के बाद चालीस लोगों की मौत हो गई है, जो स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, टीका लाभार्थियों की कुल संख्या का 0.0004 प्रतिशत है. हालांकि कोविड-19 टीकों के लिए अपनी सुरक्षा निगरानी पुस्तिका में, डब्ल्यूएचओ ने दर्ज किया कि "दुर्लभ की पहचान (0.01% से 0.1% से कम प्रतिरक्षित व्यक्तियों में होने वाली) और बहुत दुर्लभ (<0.01% व्यक्तियों में होने वाली) प्रतिकूल घटनाएं कोविड-19 वैक्सीन लाइसेंस के समय अपर्याप्त है और इसके लिए अधिक जानकारी की आवश्यकता होगी जिसके लिए एईएफआई निगरानी को मजबूत करना होगा.” चूंकि टीका नया है इसलिए हमारे पास पर्याप्त डेटा नहीं है जिससे एईएफआई घटनाओं की दर के आधार पर टीका सुरक्षा के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकें.
पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में प्रतिरक्षाविज्ञानी और संकाय सदस्य विनीता बल ने मुझे बताया कि टीकाकरण मौजूदा बीमारी या स्थितियों को बढ़ा सकता है और जिनका टीकाकरण हुआ है उनमें गंभीर एईएफआई खुद टीकाकरण की प्रक्रिया के कारण होने वाले तनाव से हो सकता है. "वयस्कों को टीका लगाने की आदत नहीं होती है," उन्होंने कहा. “हमें अधिकांश टीके बचपन में ही लग जाते हैं और अब कोविड-19 के रूप में एक पूरी तरह से नई बीमारी और उसके टीके की अतिरिक्त चिंता होती है और सुरक्षा के संबंध में सभी बात करते हैं, यह शरीर में तनाव पैदा करता है, केवल मानसिक रूप से ही नहीं, बल्कि शारीरिक रूप से भी.” उनके अनुसार, शरीर में इस तरह का तनाव संभवतः किसी की हृदय गति या रक्तचाप को अनियंत्रित कर सकता है "और अगर आप पहले से ही हृदय रोग से पीड़ित हैं, तो यह आगे के मामलों को जटिल कर देगा, संरचनात्मक या कार्यात्मक परिवर्तनों को उभारेगा जो हृदय के रुकने का कारण बन सकता है."
महिपाल के मामले में, विशाल ने मुझे बताया कि उनके पिता टीका लेने के बारे में चिंतित थे. "हमने इसके असुरक्षित होने के बारे में अफवाहें सुनी थीं और हमने उनसे कहा था कि इसे न लें लेकिन उन्होंने कहा कि वह चिंतित हैं कि अगर उन्होंने टीका लेने से इनकार कर दिया तो इससे उनके नियोक्ता नाराज हो सकते हैं और संभवत: उनके रोजगार पर असर पड़े.”
बल ने कहा कि भारत में जो दो टीके प्रयोग में लाए जा रहे हैं उनमें ऐसे घटक नहीं हैं जिनसे पहले से किसी बीमारी से ग्रसित लोगों में एलर्जी या गंभीर एईएफआई का जोखिम बढ़ जाए. "हालांकि एक सामान्य नियम के रूप में टीका लगाने वालों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए. यदि आप किसी की नब्ज जांच कर पाएं कि उस समय वह उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है, तो आपको उसका टीकाकरण नहीं करना चाहिए."
तेलंगाना के निर्मल जिले में टीका लगने के एक दिन बाद 20 जनवरी को 42 वर्षीय एक एम्बुलेंस चालक की मृत्यु हो गई. उसी दिन एक प्रेस विज्ञप्ति में राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चलता है कि मृत्यु का टीके से कोई संबंध नहीं था. निर्मल के चिकित्सा अधिकारी डॉ. टीएस वेणुगोपाल ने कहा, "हमें किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कुछ और दिन चाहिए. फोरेंसिक विशेषज्ञों, पैथोलॉजिस्ट और अन्य विशेषज्ञों की एक टीम इसकी जांच कर रही है." 21 फरवरी को वेणुगोपाल ने मुझे बताया कि जांच अब राज्य एईएफआई समिति को स्थानांतरित कर दी गई है.
बल ने मुझे बताया कि एईएफआई मृत्यु और वैक्सीन के बीच किसी संबंध को फौरन खारिज कर देना बहुत निर्मम है. "इसके बजाय हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इसमें क्या गलत हुआ," उन्होंने कहा. “लोगों को टीका लगाने से पहले किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए? हमें उन लाभार्थियों की स्क्रीनिंग और प्रबंधन कैसे करना चाहिए जो पहले से बीमार हैं या मौजूदा स्थितियों से पीड़ित हैं?”
स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि मरने वाले स्वास्थ्य कर्मियों में से कितने कोविशील्ड से और कितने कोवेक्सिन लगाए जाने के बाद मरे हैं. भारत में वर्तमान में उपयोग किए जा रहे दोनों टीकों को थोड़ा अलग परिस्थितियों में अनुमोदित किया गया है. इसी तरह टीका लेने वाले संभावित लोगों में पहले से किसी बीमारी के लिए स्क्रीनिंग भी थोड़ा अलग है. टीकाकरण अभियान शुरू होने से दो दिन पहले 14 जनवरी को, स्वास्थ्य मंत्रालय ने टीका लगाने से पहले स्क्रीनिंग के निर्देश जारी किए थे. अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव डॉ. मनोहर अगनानी ने कोवेक्सिन और कोविशील्ड की तुलना करते हुए एक तथ्य पत्रक भेजा और दोनों टीकाकरण के लिए राज्य टीकाकरण अधिकारियों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशकों के लिए मतभेदों को सूचीबद्ध किया. यह ऐसी चिकित्सा स्थिति या कारक है जो किसी दवा या वैक्सीन की तरह विशेष चिकित्सा हस्तक्षेप को रोकने के लिए एक कारण के रूप में कार्य करता है.
इस पत्र के अनुसार, स्तनपान कराने वाली या गर्भवती महिलाओं या जिन्हें कभी किसी तरह की वैक्सीन, इंजैक्शन या खाद्य पदार्थ से एलर्जी रही हो उन्हें टीका नहीं दिया जाना चाहिए. एलर्जी संबंधी प्रतिक्रिया, जैसे एनाफिलेक्टिक शॉक, एक खतरनाक और अक्सर जानलेवा स्थिति है जो टीका लगाने के बाद विकसित हो सकती है. हालांकि, ये एलर्जी टीकाकरण के आधे घंटे के भीतर होती हैं और आमतौर पर मायोकार्डियल या दिल का दौरा पड़ने वाली नहीं मानी जाती हैं. आमतौर पर सभी टीकाकरण इकाइयां एनाफिलेक्सिस-प्रबंधन किट से सुसज्जित होती हैं और स्वास्थ्य मंत्रालय के एईएफआई प्रबंधन के कार्यकारी दिशानिर्देशों के अनुसार वैक्सीन देने वाले प्रत्येक कर्मी को ऐसी प्रतिक्रियाओं का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.
भारत बायोटेक ने 11 जनवरी को कोवेक्सीन के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे, जिनमें कहा गया था कि गर्भवती और स्तनपान करने वाली महिलाओं के साथ ही ऐसे लोगों जिन्हें एलर्जी की शिकायत है, जो प्रतिरक्षा में अक्षम हैं, जिनका खून पतला है या जिन्हें "टीका लगाने वाले/टीकाकरण प्रक्रिया की निगरानी कर रहे अधिकारी द्वारा निर्धारित कोई अन्य गंभीर बीमारी है" वह टीका लगाने के लिए पात्र नहीं हैं. मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश हालांकि दावा करते हैं कि "पुरानी बीमारियों और रुग्णताओं वाले", साथ ही साथ "रोगक्षम-अपर्याप्तता, एचआईवी, किसी भी स्थिति के कारण प्रतिरक्षादमन वाले रोगी," को कोविड-19 टीका नहीं दिया जाना चाहिए.
आईआईएसईआर पुणे में प्रतिरक्षाविज्ञानी और सहायक प्रोफेसर सत्यजीत रथ ने मुझे बताया कि भारत बायोटेक के दिशानिर्देश जल्दबाजी में बनाए गए हैं. रथ ने कहा, "ये संकेत इतने अच्छे नहीं हैं जैसे प्रतीत होते हैं. पहला, मैं यह नहीं समझ पाता कि प्रतिरक्षादमन वाले लोगों को टीका क्यों नहीं लगाया जा सकता." उन्होंने कहा कि वर्तमान में दुनिया भर में उपयोग के लिए स्वीकृत सभी कोविड-19 टीकों ने संक्रमित होने के जोखिम में प्रतिरक्षादमन व्यक्तियों को नहीं रखा है. "इसका कारण यह है कि आज कोई भी टीका लाइव वायरस का उपयोग नहीं करता है. इसलिए यहां कोई सुरक्षा मुद्दा नहीं है.”
भारत बायोटेक के दिशानिर्देश नए सवालों को खड़ा करते हैं कि क्या रक्त को पतला करने वाली दवा लेने वाले लोगों को टीका लगाया जा सकता है. दोनों वैक्सीन निर्माताओं ने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से संपर्क कर अनुमति ली है ताकि वे अपने सार्वजनिक परामर्शों को संशोधित कर सकें. हालांकि विपरीत संकेतों पर भ्रम कायम है, 10 फरवरी तक टीकाकरण अभियान के तहत 6.8 मिलियन से अधिक स्वास्थ्य और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं का टीकाकरण हुआ है. ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी ऐसोला ने कहा, "यह ध्यान में रखते हुए कि टीकाकरण अभियान में लगभग तीन सप्ताह हो चुके हैं, यह महत्वपूर्ण है कि अतिरिक्त मार्गदर्शन जल्द से जल्द साझा और कार्यान्वित किया जाए."
टीकाकरण ड्यूटी पर तैनात हेल्थकेयर कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे परस्पर विरोधी निर्देशों से जूझ रहे है और इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि कौन टीकाकरण के लायक है. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के रेसिडेंट डॉक्टर इस बात को लेकर अनिश्चिय की स्थिति में थे कि क्या अस्थमा से पीड़ित ऐसे व्यक्ति का टीकाकरण करना है जो कि स्टेरॉइड ले रहा हो. डॉक्टर ने कहा, "एक व्यक्ति कम मात्रा में स्टेरॉइड ले रहा था लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि इसे विपरीत संकेतक के रूप में माना जा सकता है. उन्हें इसे लेकर हमारे साथ स्पष्ट होने की जरूरत है या स्क्रीनिंग के लिए और अधिक वरिष्ठ सलाहकार होने चाहिए."
19 जनवरी को एम्स में टीकाकरण ड्यूटी पर तैनात स्वास्थ्य कर्मियों को "मामूली एलर्जी प्रतिक्रियाओं" वाले संभावित लाभार्थियों को अस्वीकार करने के लिए फटकार लगाई गई थी. "तो हमने तय किया कि केवल एनाफिलेक्सिस की तरह ही जिन लोगों को एलर्जी की गंभीर प्रतिक्रिया हुई है, उन्हें टीकाकरण अभियान से बाहर रखा जाएगा," डॉक्टर ने कहा. कोविशील्ड टीकाकरण स्थलों पर काम करने वाले डॉक्टर भी लाभार्थियों की जांच के बारे में अनिश्चित थे. दिल्ली के डॉ. एनसी जोशी मेमोरियल अस्पताल में टीकाकरण ड्यूटी पर तैनात एक डॉक्टर ने कहा, "हमें गर्भवती महिलाओं और उन लोगों के लिए अधिक सावधान रहना चाहिए जिन्हें एलर्जी की शिकायत है. आप जानते हैं कि यह भारत में कैसा है-ज्यादातर लोगों को यह भी पता नहीं है कि उन्हें किस चीज से एलर्जी है!"
20 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के एक अधिकारी डॉ. अंशुल गर्ग ने टीकाकरण कार्यकर्ताओं के लिए एक ऑनलाइन बैठक संचालित की. दिल्ली के राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. सुरेश सेठ ने बैठक में भाग लिया. इस बैठक में कई स्वास्थ्य कर्मियों ने परस्पर विरोधी निर्देशों के बारे में अपनी चिंताओं को उठाया. एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर ने मुझे बताया, "हममें से बहुत से लोग चिंतित थे कि क्या हमें पतले रक्त वाले या कैंसर से पीड़ित लोगों को टीका लगाना चाहिए." एम्स में कोवेक्सीन केवल स्वास्थ्यकर्मियों को दिया जा रहा था. डॉक्टर ने मुझे बताया कि सेठ ने बैठक में मौजूद सभी लोगों को स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों पर चलने का निर्देश दिया. “बैठक में किसी ने पूछा कि क्या वे कैंसर से ग्रस्त किसी 80 वर्षीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता का टीकाकरण कर सकते हैं और डॉ. सेठ ने उन्हें बताया कि किस तरह के लोगों को प्राथमिकता पर टीका लगाया जाना चाहिए. हालांकि अभी भी हमारे अपने आरक्षित दायरे हैं. एम्स में हमें हमारे वरिष्ठों ने भारत बायोटेक के निर्देश दिए थे, इसलिए जब कोई प्रतिरक्षा में अक्षम व्यक्ति या पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त वृद्ध व्यक्ति आता है, तो फैसला लेना वास्तव में तनावपूर्ण हो जाता है."
रथ ने कहा कि पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त और गंभीर स्थितियों वाले लोगों को प्राथमिकता पर टीका लगाया जाना चाहिए. "ऐसा नहीं है कि एईएफआई के लिए पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त लोग अधिक जोखिम में हैं लेकिन अगर उन्हें एलर्जी की शिकायत होती है, तो यह मौजूदा बीमारी के कारण हो सकता है. लेकिन मेरा मानना है कि प्रतिक्रिया का ऐसा जोखिम लोगों को टीका लगाने के रास्ते में नहीं आना चाहिए." हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत स्क्रीनिंग और निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है कि कोई भी किसी प्राणघातक एईएफआई से ग्रस्त न हो. महिपाल सिंह मामले का उल्लेख करते हुए रथ ने कहा कि किसी सक्रिय संक्रमण का आसानी से पता लगाया जाना चाहिए था और महिपाल का टीकाकरण स्थगित कर दिया जाना चाहिए था. रथ ने कहा, "मैंने खबरों में पढ़ा है कि उसे निमोनिया हो गया था. भले ही वह अपने लक्षणों के बारे में टीकाकरण कार्यकर्ताओं को सूचित करने में सक्षम नहीं था लेकिन उस जगह में स्क्रीनिंग प्रक्रिया के तहत लाभार्थियों से इन जवाबों के सामने लाया जाना चाहिए था."
(यह रिपोर्टिंग ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के अनुदान द्वारा समर्थित है. ठाकुर फैमिली फाउंडेशन का इस रिपोर्ट पर कोई संपादकीय नियंत्रण नहीं है.)