ब्रिटेन को कोरोना से बचा रहीं केरल की नर्सें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मु​ताबिक केरल में प्रशिक्षित 30 प्रतिशत नर्सें यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका में कार्यरत हैं. स्टेफनी मैक्गी/रॉयटर
30 March, 2020

दुनिया भर में जारी कोविड-19 महामारी के खिलाफ स्वास्थ्य कर्मियों की लड़ाई में केरल की नर्सें अग्रिम मोर्चे पर हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार "भारत विदेशों में नर्सों की आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत है." केरल से आने वाली नर्सें विदेशी कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा हैं.

डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “विदेशों में काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षित नर्सों का एक बड़ा हिस्सा भारत में प्रशिक्षित नर्सों का है और दूसरा नंबर फिलीपींस में प्रशिक्षित नर्सों का है. यह अनुमान लगाया जाता है कि केरल में पढ़ाई करने वाली 30 प्रतिशत से अधिक नर्सें ब्रिटेन या अमेरिका में काम करती हैं इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में 15 प्रतिशत और मध्य पूर्व में 12 प्रतिशत भारतीय नर्सें कार्यरत हैं.”

हाल ही में सोशल मीडिया पर जारी ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन या बीबीसी के एक वीडियो में, पूर्व ब्रिटिश सांसद अन्ना सौबरी केरल से आई नर्सों के देश की स्वास्थ्य प्रणाली में योगदान को स्वीकार करती हुई दिखाई दे रही हैं. पिछले साल तक सौबरी ब्रिटेन के नॉटिंघमशायर काउंटी में ब्रोक्सटॉ निर्वाचन क्षेत्र की प्रतिनिधि थीं. इससे पहले वह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए राज्य के संसदीय अवर सचिव के रूप में कार्य कर चुकी हैं. बीबीसी द्वारा जारी ​वीडियो क्लिप में सौबरी कह रही हैं, "मुझे विदेशों से हमारे देश में आकर काम करने वाले लोगों से कोई समस्या नहीं है. कुछ सबसे अच्छी नर्सें, जिनसे वास्तव में हम कुछ सीखते हैं, वह दक्षिण भारत और विशेष रूप से केरल की नर्सें हैं. ”

मैंने ब्रिटेन में काम कर रही केरल की नर्सों से बात की. उस देश में 14000 से अधिक कोविड मामलों की पुष्टि हुई है और कम से कम 759 लोग वायरस से मर चुके हैं. कोविड-19 महामारी के खिलाफ जंग में अग्रिम पंक्ति में रहने के अपने अनुभव पर नर्सों ने खुल कर बात की.

एंसी एंटो एक नर्स हैं जो ऑक्सफोर्डशायर शहर के एक अस्पताल में काम करती हैं. उन्होंने बताया कि एक महीने पहले भी जब कोविड ​​के मामले आ रहे थे तो कोविड वायरस के ​​लक्षणों वाले रोगियों के लिए और उन देशों से आने वाले लोगों के लिए जहां पुष्टि किए गए कोविड ​​मामलों की संख्या अधिक थी अस्पताल से दूर एक अलग क्षेत्र स्थापित किया गया था. "मैंने एक दवा वार्ड में काम किया जहां बुजुर्ग मरीजों का इलाज किया जाता है," उन्होंने मुझे बताया. “अब अस्पताल में बेड की उपलब्धता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके साथ ही जिन रोगियों को आपातकालीन देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी जा रही है.”

एंटो ने कहा कि उनके सामने अपने परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करना इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है. “परिवार को सुरक्षित रखना समस्या है. हमें बिना यह सोचे कि कौन वायरस से संक्रमित है और कौन नहीं काम करना पड़ता है जो एक बड़े जोखिम का काम है,” उन्होंने बताया. एंटो ऑक्सफोर्डशायर में अपने बच्चे और पति के साथ रहती हैं. वह केरल के त्रिशूर जिले में पली-बढ़ी और फरवरी 2019 में ब्रिटेन चली आईं.

रम्या आर. कृष्णन पिछले साल ब्रिटेन चली आईं थीं और पूर्वी इंग्लैंड के एक अस्पताल में नर्स के रूप में काम करती हैं. उन्होंने सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी के बारे में बात की. "यह वास्तव में दुखद है कि प्राधिकरण स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम नहीं उठा रहा है," उन्होंने कहा. “हम भारतीय नर्सों के लिए मुख्य चिंता यह है कि वे सुरक्षात्मक उपकरण प्रदान नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा, केरल से उलट, वे अस्पताल के कर्मचारियों का कोविड-19 परीक्षण करने से इनकार कर रहे हैं. वास्तव में केरल की तुलना में यहां बहुत सावधानी नहीं बरती जा रही है."

मैंने अस्पताल और सामुदायिक सेवा प्रदाता, लंदन नॉर्थ वेस्ट यूनिवर्सिटी हेल्थकेयर एनएचएस ट्रस्ट में काम करने वाली केरल की एक नर्स से भी बात की. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह में ही उन्होंने दस से अधिक कोविड रोगियों का उपचार किया था. उन्होंने कहा कि यूके कोविड-19 के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं था. "वर्तमान स्थिति को देखते हुए, मुझे लगता है कि हम पूरी तरह से तैयार नहीं थे, इस वजह से हर तरफ अराजकता की स्थिति होना स्पष्ट है," उन्होंने कहा. "इससे व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की कमी भी हुई है, प्रबंधन अभी भी इस कमी को दूर करने के लिए प्रयास कर रहा है."

नर्स ने बताया कि ज्यादातर समय, मरीजों की स्क्रीनिंग कुछ दिनों तक लक्षणों के दिखाई देने के बाद ही की जाती है. इस दौरान स्वास्थ्य कर्मचारी पहले ही उनके संपर्क में आ चुके होते हैं. "सब कुछ धीरे-धीरे बदल रहा है और लॉकडाउन की घोषणा होने से कुछ सकारात्मक प्रभाव आया है लेकिन कुल मिलाकर यह एक भयानक वातावरण है," उन्होंने कहा.

उन्होंने आगे कहा कि कर्मचारियों को बीमार होने से बचाना आगे की चुनौती होगी. "हम (संक्रमण के) वाहक हो सकते हैं, जो हमारे परिवार को संक्रमित कर सकता है." अस्पताल प्रबंधन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को होटल में रहने की सुविधा उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू की गई है. दूसरी मुख्य चिंता यह होगी कि हम ऐसी स्थिति से कैसे निपटेंगे जहां कर्मचारियों की कमी है. अभी यहां बेड की भी कमी है.

जब मलयाली नर्सों को बताया गया कि सौबरी ने उनकी चर्चा की है तो नर्सें रोमांचित हो गईं. एलएनडब्ल्यूएच की नर्स ने मुझे बताया कि यह गर्व का क्षण है कि किसी ने उनके काम को पहचाना. "मुझे लगता है कि सहानुभूति और देखभाल, मलयाली नर्सों को उत्कृष्ट बनाती है," उन्होंने कहा. “अगर कोई संकट आता है तो निश्चित रूप से मलयाली नर्सें अग्रिम मोर्चे पर होंगी. इस स्थिति में, लंदन में दुर्घटना और आपातकालीन टीम में ज्यादा अनुपात केरल की नर्सों का है. जब तक कोई वाजिब कारण नहीं होता ये नर्सें पीछे नहीं हटतीं.”

एंटो ने बताया कि मलयाली नर्सों का विदेश में अच्छा काम करने का एक कारण उनकी बहु-अनुशासनात्मक शिक्षा है. "हम चार वर्षों में कई पहलुओं को करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं," उन्होंने कहा. “पहले साल में आप मूल बातें सीखेंगे, फिर हम चिकित्सा रोगियों, सर्जिकल रोगियों का अध्ययन करेंगे और फिर हम मातृत्व, बाल रोग, मानसिक स्वास्थ्य और इसी तरह के अन्य अध्ययन करेंगे. यहां हमारे पास हर पहलू को और करीब से जानने का अवसर है.” उन्होंने कहा कि विदेशों में नर्सिंग स्नातकों में इस तरह के बहु-विषयक ज्ञान की कमी है.

दिल्ली के जीसस एंड मैरी कॉलेज में इतिहास विभाग में सहायक प्रोफेसर माया जॉन ने नर्सों के काम के आसपास के श्रम संबंधी मुद्दों का अध्ययन किया है. उन्होंने कहा कि नर्सिंग ऐतिहासिक रूप से उन मलयाली महिलाओं के लिए है जो सामाजिक प्रभाव वाला पेशा अपनाना चाहती हैं. पहले यह पेशा महिलाओं का गढ़ था लेकिन हाल ही में पुरुष भी बड़ी संख्या में इसमें शामिल हुए हैं. “लैंगिक संरचना में आए इस बदलाव के महत्वपूर्ण कारकों में से एक है विदेशों में नर्सों की उच्च मांग. खाड़ी देशों या अन्य स्थानों में यह जल्दी नौकरी पाने का एक आकर्षण है, जिसने हाल के वर्षों में पुरुषों को इस पेशे में शामिल होने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया है.” उन्होंने कहा.

जॉन ने कहा कि भारत में नर्सिंग एक बहुत ही असम्मानित और कम आय वाला पेशा है. पिछले दशक में नर्सों ने खुद को बेहतर तरीके से संगठित करना शुरू कर दिया है लेकिन निजी क्षेत्र में शोषण अभी भी जारी है. उन्होंने कहा कि भारत में "निजी अस्पताल लॉबी" ने मजदूरी के मानकीकरण जैसे राहत उपायों को रोका है जिससे नर्सों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

नर्सों और नर्स शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय नियामक संस्था इंडियन नर्सिंग काउंसिल की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2.1 मिलियन पंजीकृत नर्स और दाई और 879508 सहायक नर्स तथा दाइयां हैं. भारतीय नर्सिंग परिषद के तहत पंजीकृत कम से कम 1544 संस्थान हैं जो नर्सिंग की पढ़ाई करा रहे हैं. हालांकि भारत के निजी क्षेत्र के अस्पतालों में अच्छी तरह से भुगतान नहीं होने और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय सीमित होने के चलते नर्सिंग की पढ़ाई किए हुए स्नातक विदेश में नौकरी तलाशते हैं.

केरल आधारित एक शोध केंद्र, सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज द्वारा प्रकाशित शोध “इमीग्रेशन एंड रेमिटेंस : न्यू एविडेंस फ्रॉम द केरला माइग्रेशन सर्वे 2018” के अनुसार, केरल में महिलाओं का उत्प्रवासन “मुख्यत: नर्सिंग के पेशे में व्यापक रूप से केंद्रित है.”  रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “पूरी दुनिया में मलयाली नर्सों की मांग है और केरल इस मांग की पूर्ति कर रहा है. करेल में कुल प्रवासियों में से पांच प्रतिशत नर्सें हैं.”

एलएनडब्ल्यूएच की नर्स ने कहा कि उनके कार्यस्थल में ब्रिटेन के पहले कोविड-19 मामलों को इलाज हुआ था. मैंने उनसे पूछा कि आपको एक संक्रामक वायरस से लड़ने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता होने पर कैसा लगता है तो उन्होंने जवाब दिया कि सभी चिंताओं और अनिश्चितताओं के बावजूद, "यही हमारा काम है और हम इससे लड़ेंगे."