19 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोनावायरस या कोविड-19 महामारी पर देश को संबोधित करते हुए जनता से अपील की कि वह संकट से लड़ रहे डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मचारियों का शुक्रिया अदा करने के लिए रविवार की शाम 5 बजे अपने घरों में बर्तन और ताली बजाएं. लेकिन देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तर प्रदेश की जमीनी हकीकत यह है कि कोविड-19 के जारी संकट से लड़ रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के पास खुद के लिए जरूरी सुरक्षा किट (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण या पीपीई) पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं है.
जनसंख्या के मामले में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अस्पतालों में डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों के लिए पीपीई की कमी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में रोजाना सैंकड़ों मरीजों के संपर्क में आने वाले इन लोगों के खुद संक्रमित हो जाने का खतरा है. सुरक्षा किट मुहैया नहीं होने की वजह से लखनऊ के अस्पतालों के प्रशासन और डॉक्टरों एवं पैरामेडिकल कर्मचारियों के बीच तनाव पैदा होने लगा है.
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से लेकर वहां के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (आरएमएल) तक में किटों की मांग है लेकिन अस्पतालों का प्रशासन पर्याप्त मात्रा में किट उपलब्ध कराने में असमर्थ है. हालत यह है कि किसी-किसी अस्पताल में तो वहां के डॉक्टरों के पास तक किट नहीं है. पैरामेडिकल कर्मचारी तो लगभग सभी अस्पतालों में किट की कमी की समस्या का सामना कर रहे हैं. केजीएमयू के डॉक्टरों ने यूनिवर्सिटी के उपकुलपति को पत्र लिख कर और आरएमएल के पैरामेडिकल स्टाफ ने मीडिया में बयान जारी अपनी समस्याओं से अवगत कराया है. हालात इस कदर खराब हैं कि रोगियों से न डरने की बात करने वाले डॉक्टर खुद डरे हुए हैं.
23 मार्च को केजीएमयू के रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने विश्वविद्यालय के उपकुलपति को पत्र लिख कर अपने डर से अवगत कराया है. एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल भरत और महासचिव मोहम्मद तारिक अब्बास के हस्ताक्षरों वाले उस पत्र में लिखा है, “हम रेसिडेंट डॉक्टर काम की ऐसी परिस्थिति से डरे हुए हैं जिससे हमारे भीतर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक तनाव पैदा हो रहा है.”
केजीएमयू के पैरामेडिकल स्टाफ में करीब-करीब 10 हजार कर्मचारी हैं. इनमें से करीब 2244 स्थायी और 6500 अस्थायी कर्मचारी हैं और लगभग 1000 प्रशासनिक स्टाफ है. वहां काम करने वाले लोगों ने मुझे बताया कि बहुत से अस्थायी कर्मचारियों ने काम पर आना छोड़ दिया है. हालांकि केजीएमयू प्रशासन अभी इस पर कुछ भी बोलने से बच रहा है.
केजीएमयू कर्मचारी परिषद ने यूनिवर्सिटी प्रशासन पर कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर संवेदनहीन होने का आरोप लगाया है. परिषद के अध्यक्ष प्रदीप गंगवार ने मुझ बताया, “थ्री लेयर मास्क जो केवल 6 घंटों के लिए उपयोगी होता है, उसे पैरामेडिकल स्टाफ 8 से 10 घंटों तक उपयोग में लाने के लिए मजबूर है.” उन्होंने आगे कहा, “हम केजीएमयू में काम करते हुए अपना पूरा सहयोग देने को तैयार हैं लेकिन हमारे लिए बिना सुरक्षा किट के काम करना संभव नहीं होगा.”
प्रदीप गंगवार ने बताया कि उन्होंने केजीएमयू प्रशासन के साथ स्वयंसेवी संस्थाओं से भी सुरक्षा किट मुहैया करने के लिए अपील की है. उनके अनुसार, “अगर मरीजों की संख्या बढ़ती है तो स्टाफ के लिए भी खतरा बढ़ेगा क्योंकि स्टोर में ज्यादा किट नहीं हैं और न अभी तक खरीद के आदेश दिए गए हैं. ऐसे में अगर पैरामेडिकल स्टाफ को मास्क, सैनिटाइजर और दस्ताने नहीं मिले तो काम का बहिष्कर भी किया जा सकता है.”
सुरक्षा किट की कमी सिर्फ केजीएमयू में ही नहीं बल्कि आरएमएल में भी है. उत्तर प्रदेश नर्स एसोसिएशन की महासचिव शशि सिंह ने आरोप लगाया है कि कोरोना के संदिग्ध मरीजों को बिना एन95 मास्क के देखना खतरे से खाली नहीं है “लेकिन आरएमएल प्रशासन कहता है जब तक मरीज की कोरोना की जांच की रिपोर्ट के पोजिटिव होने की पुष्टि नहीं हो जाती तब तक इलाज करने वाले स्टाफ को किट नहीं दीं जाएगी.”
शशि सिंह कहती हैं, “अगर किसी स्टाफ के सदस्य को संदिग्ध मरीज से कोरोना होता है, तो अस्पताल में भर्ती दूसरे मरीज और उसका परिवार भी इसकी चपेट में आ जाएगा. तब इसका जिम्मेदार कौन होगा?” लेकिन आरएमएल प्रशासन मास्क की कमी के आरोप को नहीं मान रहा है. वहां के प्रवक्ता श्रीकेश सिंह का कहना है कि आरएमएल में मास्क की कमी नहीं है. लेकिन मास्क केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के दिशानिदेश के अनुसार, “सिर्फ उस स्टाफ को दिए जाएंगे जो कोरोना पोजिटिव मरीजों का इलाज में लगा होगा.”
पीपीई किट की कमी की समस्या का सामना केवल पैरामेडिकल स्टाफ ही नहीं बल्कि डॉक्टरों को भी करना पड़ रहा है. केजीएमयू के डॉक्टरों का कहना है कि वे केजीएमयू में बिना सुरक्षा किट मरीजों का इलाज कर रहे हैं जहां प्रतिदिन प्रदेश भर से 200-300 मरीज इलाज के लिए आते हैं. आरडीए का कहना है कि बिना एन95 मास्क के मरीजों के संपर्क में आना और उनकी जांच और स्क्रीनइंग करना न सिर्फ डॉक्टरों बल्कि पैरामेडिकल स्टाफ और अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों के लिए भी खतरनाक है क्योंकि जब कोई मरीज इलाज के लिए आता है तो उस समय किसी को नहीं मालूम होता है कि उस मरीज को कोरोना है या नहीं है. कोरोना की पुष्टि जांच के बाद ही हो पाती है लेकिन डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ पहले ही मरीज के संपर्क में आ जाते हैं और उतना वक्त कोविड-19 के मरीज से दूसरे व्यक्ति में फैलने के लिए काफी है. डॉ. भरत के अनुसार न सिर्फ कोरोना ओपीडी बल्कि फीवर (बुखार) ओपीडी में भी पीपीई किट होनी चाहिए. इसके अलवा, उन्होंने बताया, जनरल ओपीडी में भी मास्क और सैनिटाइजर का इंतजाम होना चाहिए.
डॉ. भरत ने मुझे बताया कि अभी भी अलग-अलग विभागों से किट मुहैया नहीं होने की शिकायतें मिल रही हैं. उन्होंने कहा कि इस बारे में आरडीए यूनिवर्सिटी के उपकुलपति को एक मीटिंग कर अवगत कराएगा. “अगर मीटिंग के बाद भी किट की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं होता है तो कार्य बहिष्कर पर विचार किया जाएगा,” उन्होंने बताया. हालांकि डॉ. भरत का कहना था कि पत्र लिखने के बाद थोड़ा इंतजाम हुआ है “लेकिन यह इंतजाम जरूरत से काफी कम है.”
मैंने जब केजीएमयू प्रशासन से संपर्क कर पीपीई की कमी के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि यूनिवर्सिटी में पर्याप्त मात्रा में मास्क और किट मौजूद हैं. केजीएमयू के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. सुधीर सिंह ने मुझसे कहा कि उपलब्ध किटों को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के दिशानिर्देशों के अनुरूप डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को मुहैया कराया जा रहा है.
जब मैंने उनसे पूछा कि अगर पर्याप्त संख्या में किट और मास्क मौजूद हैं तो यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों ने सुरक्षा किट की मांग करते हुए पत्र क्यों लिखा है तो डॉ. सिंह ने दावा किया कि उपकुलपति को पत्र लिखने वाले डॉक्टरों को “मालूम नहीं था कि किन डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को किट की आवश्यकता है और किन को नहीं.”
इन डॉक्टरों का डर स्वाभाविक भी है क्योंकि पिछले सप्ताह केजीएमयू में कार्यरत एक डॉक्टर का कोरोना टेस्ट पोजिटिव निकला था. इसके बाद संक्रमित डॉक्टर की तुरंत छुट्टी कर इलाज के लिए आइसोलेशन वार्ड में रखा गया है. वह डॉक्टर अब तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुए हैं और उसका इलाज चल रहा है.
केजीएमयू में प्रशासनिक विभाग के एक कर्मचारी ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर मुझे बताया कि वहां निरीक्षण पर आए प्रमुख सचिव चिकित्सा (शिक्षा) डॉ. रजनीश दुबे के समक्ष भी डॉक्टरों ने सुरक्षा किट की कमी का मुद्दा उठाया था. उस कर्मचारी के अनुसार डॉक्टरों के आक्रोश को देखते हुए शासन ने केरल से 3500 किट और 4500 एन95 मास्क मंगाए थे हालांकि डॉक्टरों के संगठन का कहना है कि यह संख्या जरूरत से काफी कम है.