जम्मू संभाग के प्रमुख अस्पतालों में से एक गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की पिछले कुछ महीनों से हालत खस्ता है. जम्मू शहर में स्थित अस्पताल में बुनियादी ढांचे और अमले की भारी कमी है और यह हाल तब है जब सितंबर में संभाग में कोविड-19 मामलों में इजाफा हुआ है. जम्मू संभाग में दस जिले हैं. मेडिकल कॉलेज की यह हालत नोवेल कोरोनावायरस महामारी के खिलाफ केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की तैयारियों की कमी को दर्शाता है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 18 अक्टूबर तक जम्मू संभाग में कोविड-19 से 35246 लोग संक्रमित हुए थे और 457 लोग मारे गए थे. इनमें से 26710 मामले और 394 मौतें सितंबर की शुरुआत से हुई थीं. अगस्त में केंद्र शासित प्रदेश से लॉकडाउन हटाए जाने के बाद इस क्षेत्र में संक्रमण में तेजी आई और पहले से ही खस्ता हाल और अमले की कमी के शिकार सरकारी अस्पतालों में रोगियों की भीड़ लग गई. उदाहरण के लिए, कई छोटे अस्पतालों में वेंटिलेटर ही नहीं थे. खुद जीएमसी को खुद बीमारी से संक्रमित कर्मचारियों का इलाज करने में हताश डॉक्टरों, नौकरशाही के हस्तक्षेप, ऑक्सीजन की कमी और उसकी आपूर्ति में व्यवधान से जूझना पड़ा.
23 सितंबर को तड़के पच्चीस साल की बिंदी भट्ट की जीएमसी में मौत हो गई. उनके बहनोई रमेश भट्ट के अनुसार, अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सप्लाई खराब हो गई थी. उन्होंने बताया कि उन्होंने बिंदी की मौत के तुरंत बाद कई लोगों को मरते देखा. उनके परिवार वाले मदद के लिए डॉक्टरों को खोज रहे थे. रमेश ने बताया, “हमें एक नर्सिंग स्टाफ को जगाने में ही दस मिनट लग गए. आसपास कोई और मेडिकल स्टाफ नहीं था.” उन्होंने कहा कि बिंदी की मौत जब हुई तब वह ऑक्सीमीटर पर अपने ऑक्सीजन के गिरते स्तर को देख रही थी और बचा लेने की मिन्नतें लगा रहा थी.
भट्ट परिवार अस्पताल से लगभग बीस किलोमीटर दूर जगती बस्ती में रहता है. उन्हें बिंदी के लिए अस्पताल में बेड तलाशने में काफी मुश्किलें आईं. "हमने नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल से संपर्क किया, जो श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा चलाया जाता है, लेकिन उन्होंने बेड उपलब्ध न होने का हवाला दिया. दूसरे निजी अस्पतालों ने हमें यह भरोसा नहीं दिया कि वहां पहुंचते ही वह ऑक्सीजन देंगे क्योंकि उनके पास ऑक्सीजन बहुत कम बची थी. हम उसे 22 सितंबर की शाम जीएमसी ले आए.” उन्होंने कहा कि हालांकि उस समय उनका ऑक्सीजन स्तर बहुत कम था (35 से 40 मिलीमीटर के बीच) जीएमसी में उन्हें देर रात तक बिस्तर या ऑक्सीजन नहीं दिया गया. सामान्यत: रक्त-ऑक्सीजन का स्तर 75 और 100 मिलीमीटर के बीच होता है.
जम्मू संभाग के अस्पतालों में उस रात सोलह लोगों की मौत हो गई. भट्ट परिवार के अलावा, अन्य परिवारों ने भी आरोप लगाया कि जीएमसी में ऑक्सीजन की गड़बड़ी के कारण उन्होंने अपनों को खो दिया. जीएमसी ने एक जांच समिति गठित की और "रोगी की मौत" के लिए "जिम्मेदार कारण" की रिपोर्ट में पाया गया कि अस्पताल प्रशासन और मैकेनिकल-इंजीनियरिंग विंग के बीच तालमेल न होने के कारण यह व्यवधान आया था. समिति की रिपोर्ट कहती है, “अस्पताल प्रशासन और अफसरों की लापरवाही के चलते ये गड़बड़ी हुई है, जो बहुत ही सामान्य और गैर-पेशेवर ढंग से हालात से निपट रहे हैं, जिससे चीजों को अव्यवस्था में डाल दिया गया है और उपलब्ध संसाधनों का इष्टतम उपयोग नहीं किया गया है.” यूटी के लेफ्टिनेंट गवर्नर के सलाहकार राजीव राय भटनागर ने उप-चिकित्सा अधीक्षक और मैकेनिकल विभाग के प्रभारी कार्यकारी अभियंता को इस आधार पर निलंबित कर दिया कि वे ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के लिए जवाबदेह थे.
19 सितंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के दो सदस्यीय दल ने जम्मू शहर के विभिन्न कोविड-19 अस्पतालों का दौरा किया. इस दल में इसके निदेशक एसके सिंह भी शामिल थे. जीएमसी के प्रमुख और डीन नसीब चंद डिंगरा से मिलने के बाद, सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि उनकी टीम केंद्र सरकार के साथ जम्मू के विभिन्न अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपलब्धता, गहन देखभाल बेड और अन्य सुविधाओं के मुद्दों को उठाएगी. लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज कुमार सिन्हा ने 6 अक्टूबर को सुविधाओं का निरीक्षण करने के लिए जीएमएी का भी दौरा किया.
संभाग के अन्य जिलों के छोटे अस्पतालों में भी उन कोविड-19 रोगियों के लिए ऑक्सीजन की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है जिन्हें इसकी जरूरत होती है. मैंने कई अस्पतालों के प्रशासकों से बात की. उन्होंने बताया कि उनके पास अतिरिक्त वेंटिलेटर लगाने की जगह नहीं है या उन्हें चलाने के लिए तकनीशियन नहीं हैं. आरटीआई कार्यकर्ता बलविंदर सिंह के मुताबिक, अगस्त में सरकारी अस्पतालों को उपलब्ध कराए नए वेंटिलेटरों में से अधिकतर की पैकिंग भी नहीं खुली है. राजौरी जिले के सुंदरबनी में उप-जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी मंजूर हुसैन ने मुझे बताया कि अस्पताल को अगस्त में पांच वेंटिलेटर मिले थे लेकिन अस्पताल में ऑक्सीजन संयंत्र की कमी के कारण उन्हें चालू नहीं किया गया.
डीन डिंगरा ने अफसोस जताया कि राजौरी, कठुआ और डोडा और अन्य जिला अस्पतालों के मेडिकल कॉलेज कई मरीजों को जीएमसी में रेफर कर रहे थे. "जीएमसी में इन दिनों आने वाले ज्यादातर रोगियों को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. अस्पताल में पुराने ऑक्सीजन संयंत्र हमारी दैनिक आवश्यकता को पूरा नहीं कर पा रहे हैं जबकि सिलेंडर प्रणाली में बहुत अधिक श्रमशक्ति की जरूरत होती है." उन्होंने कहा कि अस्पताल ने कोविड-19 देखभाल के लिए 200 बिस्तर दिए थे, जिनमें से 80 को उच्च-प्रवाह ऑक्सीजन की आपूर्ति की आवश्यकता है. जम्मू में ऑक्सीजन प्लांट वाले अन्य अस्पतालों में श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल और गांधी नगर अस्पताल हैं, जो डिंगरा के अनुसार, कुल दैनिक ऑक्सीजन की मांग का 50 प्रतिशत भी पूरा नहीं कर सकते हैं. इसके अलावा, डिंगरा ने कहा कि ऑक्सीजन-संतृप्ति स्तर (ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल) जो पुराने संयंत्र प्रदान कर सकता था, वह नए वेंटिलेटरों के लिए आवश्यक ऑक्सीजन संतृप्ति से कम था.
सितंबर माह में जम्मू संभाग में ऑक्सीजन की कमी के कारण, स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग ने क्षेत्र के 11 अस्पतालों के लिए 13 ऑक्सीजन संयंत्रों को मंजूरी देने लंबे समय से टलता आ रहा निर्णय लिया गया. प्रशासन ने 7 सितंबर को जीएमसी में एक मेडिकल ऑक्सीजन जनरेटर प्लांट को मंजूरी दे दी और 26 सितंबर को किराए के आधार पर तरल ऑक्सीजन का परिवहन करने के लिए एक तरल मेडिकल ऑक्सीजन स्टोरेज टैंक और वैक्यूम इंसुलेटेड इवेपरेटर को मंजूरी दी गई.
इसमें नौकरशाही से जुड़ी दूसरी बाधाएं भी थीं. जीएमसी ने एक तरल ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने के लिए बोलियां आमंत्रित की लेकिन केवल एक बोली प्राप्त हुई. डिंगरा ने कहा, "नियम पुस्तिका के अनुसार, किसी पार्टी को अनुबंध सौंपने से पहले कम से कम तीन बोलीदाता होने चाहिए. हमने खरीद समिति को सूचित कर दिया है जिसे अंतिम निर्णय लेना है." अस्पताल के एक व्यवस्थापक, जिन्होंने नाम न जाहिर करने की गुजारिश की, ने मुझे बताया कि खरीद समिति ने 28 सितंबर को भंडारण संयंत्र के लिए एक अनुबंध किया और अस्पताल को नवंबर के पहले सप्ताह तक निर्माण पूरा करने की उम्मीद है.
चिकित्सा कर्मचारियों और स्वच्छता कर्मचारियों की कमी ने परेशानियों को और बढ़ा दिया है. डिंगरा ने कहा, "फिलहाल अस्पताल के 100 से अधिक मेडिकल स्टाफ कोरोना पॉजिटिव हैं जिसमें चिकित्सा अधीक्षक, डॉक्टर, पीजी छात्र और नर्सिंग कर्मचारी शामिल हैं." अस्पताल में कई पद रिक्त है जिन्हें भरा नहीं गया है. डिंगरा ने मुझे बताया कि सरकार ने इन रिक्तियों को दूर करने के लिए तदर्थ आधार पर डॉक्टरों की भर्ती शुरू कर दी है. डिंगरा ने कहा, "पिछले हफ्ते कुछ तकनीशियनों के अलावा कम से कम दो सौ नर्सिंग कर्मचारी भर्ती किए गए थे. अन्य आवश्यक कर्मचारियों को भी संकट से निपटने के लिए शीघ्र ही भर्ती किया जाएगा." कर्मचारियों की कमी भी इस क्षेत्र में लंबे समय से एक मुद्दा रहा है. आरटीआई कार्यकर्ता बलविंदर सिंह ने कहा, "इस क्षेत्र में जीएमसी जम्मू एकमात्र पहले स्तर का अस्पताल है लेकिन इसकी स्वीकृत कर्मचारी क्षमता वही बनी हुई है जो सरकार ने 1990 में अनुमोदित की थी." सिंह ने 2018 में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में जीएमसी में स्टाफ की कमी के बारे में एक जनहित याचिका दायर की थी. "अफसोस की बात है कि पिछले कुछ सालों में आबादी तेजी से बढ़ी है लेकिन स्वीकृत पद तक दशकों से खाली पड़े हैं."
कुछ स्वास्थ्य कर्मियों ने जिस तरह से मरीजों की देखभाल की है उसमें वायरस के डर ने भी एक बड़ी भूमिका निभाई है. 2 अगस्त को एक गर्भवती महिला, जो कोविड-19 से संक्रमित थी, ने राजौरी अस्पताल परिसर में एक एम्बुलेंस में अपना बच्चा जना. मौजूद मेडिकल स्टाफ ने संक्रमण के डर से उसकी मदद करने से इनकार कर दिया था. 6 सितंबर को सांबा के एक सरकारी जिला अस्पताल ने एक गर्भवती महिला को बिना कोविड-19 नकारात्मक रिपोर्ट के अस्पताल में भर्ती होने से मना कर दिया रिपोर्टों के अनुसार उसने सड़क के किनारे बच्चा जना. जिला प्रशासन ने इन मामलों में जांच के आदेश दिए हैं.
जम्मू के जीएमसी में मरीजों के परिजनों ने सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट कर आरोप लगाया है कि मेडिकल स्टाफ ने मरीजों की ठीक से देखभाल नहीं की है. इसके बाद सितंबर की शुरुआत में अस्पताल प्रशासन ने अपने कर्मचारियों पर निगरानी रखने के लिए उन सभी वार्डों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला लिया, जहां वर्तमान में कोरोना के रोगियों का उपचार चल रहा है.
कोरोनावायरस संकट के दौरान जम्मू के सरकारी अस्पतालों की हालत के सामने आने का कारण नौकरशाही की कलह हो सकती है. 12 सितंबर को डिंगरा ने उप राज्यपाल को लिखे पत्र में कहा कि "अतिरिक्त-संस्थागत अधिकारी" अस्पताल के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं और पद छोड़ने की पेशकश की. उनका पत्र इस बात को बताता है कि अस्पताल में उनके कार्यालय और कोविड-19 नियंत्रण कक्ष के बीच संबंध सामान्य नहीं थे. नियंत्रण कक्ष सीधे यूटी के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग को रिपोर्ट करता है. डिंगरा ने आरोप लगाया कि उन्हें और उनके पद के अधिकार को एक आदेश रद्द कर प्रशासनिक विभाग द्वारा अपमानित गया. उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें सर्जरी विभाग के प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, भले ही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम किसी भी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देते हैं. उन्होंने कहा कि उन पर अपने पूर्ववर्तियों के लंबित फैसलों का पालन करने के लिए दबाव डाला गया था जो अस्पताल के सर्वोत्तम हित में नहीं हो सकते हैं. उन्होंने लिखा है कि "एक या दो विभागों के प्रमुख और कुछ संकाय सदस्य जो विभागीय पदानुक्रम को दरकिनार कर रहे हैं और तकनीकी, व्यावसायिक और प्रशासनिक मामलों में प्रशासनिक विभाग से संपर्क कर रहे हैं." डिंगरा ने मुझे बताया कि पत्र में उठाए गए मुद्दों को हल नहीं किया गया, लेकिन सिन्हा के कार्यालय ने उन्हें पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया. यूटी प्रशासन ने डिंगरा के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.
महामारी के सात महीने बाद भी इस क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में तैयारियों की कमी पर जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री शाम लाल शर्मा ने कहा कि जीएमसी और जिला अस्पतालों में नेतृत्व संकट था. उन्होंने जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा के नवंबर 2018 में भंग होने के बाद नौकरशाही पर व्यापक रूप से खिलवाड़ का आरोप लगाया. उन्होंने कहा,"सरकारी घाटे और जवाबदेही की कमी के कारण, सरकारी अस्पतालों के प्रति जनता का अविश्वास दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है."
जीएमसी की एथिक्स कमेटी के एक कार्यकारी सदस्य सुधीर कुमार ने कहा, “अस्पताल के नियमित कामकाज में नौकरशाहों के सीधे हस्तक्षेप के कारण दोहरा और तिहरा प्राधिकरण मरीज की देखभाल में बाधा पैदा कर रहा है. विशेषज्ञों की राय को ध्यान में रखे बिना वरिष्ठ नौकरशाह अपनी खुद की सनक और पसंद के अनुसार काम कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि पिछले कई दशकों से इस क्षेत्र में सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली आधिकारिक उपेक्षा का सामना कर रही है और कहा कि "वर्तमान संकट ने केवल एक चरमराई व्यवस्था को ही उजागर किया है."
इस बीच बलविंदर सिंह ने आरोप लगाया कि अस्पतालों ने बिना सामाजिक या राजनीतिक दबदबे वाले रोगियों के साथ भेदभाव किया है. उन्होंने नारायण अस्पताल की तरफ ध्यान दिलाया जो खासकर एक बड़ा और लोकप्रिय निजी अस्पताल है. "बीजेपी के केंद्र शासित प्रदेश के प्रमुख रविंदर रैना के जुलाई में नारायण अस्पताल में भर्ती होने बाद मैंने अस्पताल प्रशासन से फोन पर पूछताछ की, एक कोरोना रोगी के प्रवेश का अनुरोध किया. अस्पताल ने सीधे मना कर दिया. इसके बाद लोकसभा सांसद जुगल किशोर और उनकी पत्नी सहित कई अन्य बीजेपी नेताओं को नारायण अस्पताल में भर्ती कराया गया.” जम्मू की स्वास्थ्य सेवाओं की निदेशक डॉ. रेणु शर्मा का कोविड-19 का इलाज भी नारायण अस्पताल में किया गया था.
मैंने अंकित कुमार से बात की, जिनके भाई अंकुश जम्मू नगर निगम में सफाई कर्मचारी हैं. अगस्त में नारायण अस्पताल में उनका डायलिसिस चल रहा था. अंकित ने कहा कि अंकुश के कोरोनोवायरस से संक्रमित होने के बाद 28 अगस्त को स्वास्थ्य सेवा से वंचित कर दिया गया. अंकित ने कहा, "मेरे भाई और मां, जो अस्पताल में उसकी देखभाल कर रहे थे, उन्हें पीपीई किट भी नहीं दी गई थी."
नारायण हेल्थ हॉस्पिटल चेन के उत्तरी क्षेत्रीय निदेशक नवनीत बाली ने कहा कि यह धारणा गलत है कि अस्पताल केवल वीआईपी मरीजों को ही भर्ती कर रहा है. उन्होंने कहा कि अस्पताल की कोविड-19 समिति मरीजों की नैदानिक स्थितियों के आधार पर तय करती है कि किसी भर्ती करना है. अंकित कुमार के मामले के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “कोरोना रोगियों को भर्ती करने और उनके इलाज के लिए प्रोटोकॉल महीने भर में बदल गए हैं. अब हम किसी भी रोगी का उपचार करने से इनकार नहीं करते हैं बशर्ते अस्पताल में बिस्तर की उपलब्धता हो. वर्तमान में, हमारे पास कोरोना रोगियों के लिए केवल 60 बेड हैं. अतीत में जो हुआ उस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. अब से हम अपने मरीजों से यह नहीं कहेंगे कि अगर उन्हें संक्रमण है तो वे चले जाएं." जब नारायण अस्पताल में राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के लिए बेड को प्राथमिकता देने के बारे में संवाददाताओं ने लेफ्टिनेंट गवर्नर के एक सलाहकार भटनागर से बात की, तो उन्होंने कहा, “हम सभी (सरकारी अस्पतालों में) स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं. आप मुझसे और क्या सुनना चाहते हैं?”
सितंबर में मरीजों की संख्या में हुई वृद्धि को देखते हुए जीएमसी की इथिकल कमेटि के सदस्य सुधीर ने कोविड-19 देखभाल क्षमता को बढ़ाने के लिए कदम उठाए. उन्होंने कहा, "प्रशासन को बिना वक्त गंवाए तुरंत ही जम्मू अशोक होटल को जो भारत सरकार की सहायक कंपनी है और फिलहाल बंद है और भगवती नगर में आसाराम बापू के आश्रम को कोविड-19 अस्पतालों में बदल देना चाहिए. प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाने चाहिए कि गैर-कोविड-19 रोगियों को इस क्षेत्र के मुख्य अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा के लिए परेशान न होना पड़े." भारत के कई शहरों ने इस साल अप्रैल में ही कोविड देखभाल के लिए होटलों का उपयोग शुरू कर दिया था.
इस बीच ऐसा देखा जा रहा है कि प्रशासन रोकथाम के उपायों को गंभीरता से नहीं ले रहा है. प्रशासन ने क्षेत्र में स्कूलों को आंशिक रूप से खोलने का निर्णय लिया है. इसके अलावा इसने 2 अक्टूबर को अपनी “बैक टू द विलेज” पहल के तीसरे संस्करण को लॉन्च किया, जिसके तहत सरकारी अधिकारी सार्वजनिक समारोहों में शिकायतों को सुनने के लिए गांवों का दौरा कर रहे हैं. एक खंड विकास अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जहां तक विकास संबंधी मुद्दों से संबंधित जनता की शिकायतें हैं, वे वही होती हैं. जून 2019 में कार्यक्रम का पहला चरण आयोजित होने के बाद से जमीन पर कुछ भी नहीं बदला है.” सरकार ने इस कार्यक्रम को पूरा कर लिया है और शहरी क्षेत्रों के लिए इसी तरह के कार्यक्रम की घोषणा की है जो 19 अक्टूबर से शुरू हुआ. इस कार्यक्रम का नाम "माई टाउन माई प्राइड" है.
संक्रामक रोग विशेषज्ञ और डॉक्टर्स एसोसिएशन कश्मीर के अध्यक्ष डॉ. निसार उल हसन ने बताया कि सर्दियों में कोविड-19 के मामलों में उछाल आने की प्रबल संभावना है. "अगर हम सामाजिक समारोहों को बढ़ावा देते हैं तो इन मामलों में और तेजी आएगी और ऐसा होना विनाशकारी होगा. हमें राजनीति करनी बंद करनी चाहिए. जीवन को बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. बैक टू विलेज पहल देर से की जा सकती है लेकिन अगर किसी की जान चली जाती है तो हम उसे वापस नहीं ला सकते हैं.”