देशव्यापी लॉकडाउन से बढ़ी कोरोना जांच किट और सुरक्षात्मक उपकरण निर्माताओं की परेशानी

25 मार्च को तीन सप्ताह के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के पहले दिन चिकित्सा आपूर्ति के निर्माताओं ने अस्पतालों में सामान लाने-ले जाने में कठिनाइयों की सूचना दी. अरुण संकर/एएफपी/ गैटी इमेजिस
27 March, 2020

25 मार्च को घातक कोविड-19 वायरस को नियंत्रित करने के लिए भारत भर में तीन सप्ताह के लॉकडाउन के पहले दिन यह स्पष्ट हो गया कि निर्णय को गैर-नियोजित और खराब तरीके से लागू किया गया है क्योंकि जांच किट और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) के निर्माताओं को  अस्पतालों को तत्काल चिकित्सा सामग्री पहुंचाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.  24 मार्च की रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक टेलीविजन संबोधन में 130 करोड़ भारतीयों को अपने घरों के अंदर रहने का निर्देश दिया. इससे हफ्तों पहले भारतीय स्वास्थ्य अधिकारी वायरस के सामुदायिक संक्रमण से इनकार कर चुके थे जिसके कारण देश ने दुनिया भर में प्रति मिलियन सबसे कम परीक्षण दर्ज किए. लेकिन लॉकडाउन के पूर्वानुमानित परिणामों की जानकारी करने में केंद्र की विफलता ने अस्पतालों में इन सामग्रियों की निरंतर आपूर्ति को बाधित करके कई रोगियों की जान को खतरे में डाल दिया है.

एक तरह से पूरा देश इस गलत कदम का बंधक-सा हो गया क्योंकि सरकार पिछले हफ्तों में महामारी की गंभीरता को लगातार कम कर करके बता रही थी जो आगे चलकर लॉकडाउन की हालत तक पहुंची. जब नागरिक सामान की आपूर्ति के लिए तरस रहे थे, चिकित्सा उपकरण उद्योग, जिससे परीक्षण किट और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों के साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की आपूर्ति करने के लिए युद्ध-स्तर पर काम करने की उम्मीद की जाती है, उसने परिवहन के बिना अस्पतालों के लिए सामग्री भेजने में खुद को अपने कार्मचारियों को असमर्थ पाया.  

दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र सहित कई राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में लॉकडाउन की घोषणा की थी, जो देश भर में लॉकडाउन लागू होने से दो दिन पहले शुरू हो गई थी. आवश्यक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का भारी बोझ वहन करने वाले दवा उद्योग ने इस प्रभाव को सबसे पहले महसूस किया. चिकित्सा-उपकरण उद्योग के प्रतिनिधियों के विभिन्न अनुरोधों के बाद, 23 मार्च को फार्मसूटिकल विभाग ने कदम उठाया. उस दिन रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मसूटिकल विभाग के सचिव पीडी वाघेला ने मुख्य सचिवों को लिखा था कि देश भर में विनिर्माण इकाइयां खोलने की अनुमति दी जांए. वाघेला ने कहा कि पिछले दिनों कैबिनेट सचिव, प्रधान सचिव, प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्य सचिवों के बीच हुई बैठक के अनुसार इन निर्माताओं को प्रतिबंधों से छूट दी जानी थी. कारवां के पास मौजूद उस पत्र में वाघेला ने लिखा है कि "दवाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं" और "महामारी की स्थिति में वे और भी अधिक महत्वपूर्ण होती हैं." उन्होंने आगे लिखा, "जैसा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जनता को दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करे, यह महत्वपूर्ण है कि दवाओं का विनिर्माण, आयात, बिक्री और वितरण बिना किसी बाधा के होता रहे ताकि दवाओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित हो सके."

अगले दिन, ट्रिविट्रॉन हेल्थकेयर के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ. जीएसके वेलु, जिन्हें कोविड-19 परीक्षण किट के निर्माण के लिए चुना गया था, ने पाया कि उसके पास परीक्षण किट बनाने वाले कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है. 24 मार्च को वेलु ने एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संस्थापक राजीव नाथ को पत्र लिखा, जिसमें लॉकडाउन के दौरान कच्चे माल, आपूर्ति और चिकित्सा उपकरणों को स्थानांतरित करने के लिए उद्योग निकाय से विशेष अनुमति पास के लिए सरकार से संपर्क करने का अनुरोध किया गया था. अपने पत्र में वेलु ने अनुरोध किया कि "ट्रिविट्रॉन हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में या द्वारा जारी किए गए दस्तावेज पर सभी घरेलू कूरियर सेवाओं और परिवहन के अन्य साधनों के माध्यम से आवाजाही की अनुमति दी जानी चाहिए." उन्होंने आगे कहा कि "ट्रिवट्रॉन हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारियों को अपने पहचान पत्र दिखाने पर भारत में कंपनी के विभिन्न संयंत्रों में काम करने की अनुमति दी जाए."

फिर भी, इन समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय मोदी की घोषणा उन्हें जटिल बनाती ही दिखी. मित्रा इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक नितिन महाजन, जो रक्त की थैलियां बनाते हैं, जो कई तरह की महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक हैं, विशेष रूप से डायलिसिस में, उन्होंने मुझे बताया कि लॉकडाउन ने चीजों को बदतर बना दिया है. “हमारे कर्मचारी हमारी कंपनी की रीढ़ हैं. मैं लगभग 4000 लोगों को रोजगार देता हूं और केवल 20 प्रतिशत हमारी फरीदाबाद इकाई में काम कर सकते हैं. हमें अपने कर्मचारियों की वित्तीय, भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा को आश्वस्त करने की आवश्यकता है.'' उन्होंने समझाया कि "माल को ले जाना या मेरी कंपनी को कच्चा माल मिलना" असंभव हो गया है. मसलन, कच्चा माल मुंबई से आना था. महाजन ने कहा, "हमारे आपूर्तिकर्ताओं ने आर्डर लेने से इनकार कर दिया क्योंकि वे स्पष्ट नहीं हैं कि वे इसे राज्यों में कैसे पहुंचाएंगे."

उन्होंने कहा, "हमने जिस भी कंपनी से बात की उसने हमारा सामान लेने से मना कर दिया. ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि मरीजों को परेशानी न झेलनी पड़े. इतनी सारी प्रक्रियाओं में ब्लड बैग की आवश्यकता होती है. अनियोजित लॉकडाउन व्यापार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है.” वाघेला ने राज्य के मुख्य सचिवों को लिखे अपने पत्र में, भारत के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा आवश्यक सामग्रियों के निरंतर उत्पादन के लिए आवश्यक लोगों के आवागमन को मान्य करने के लिए प्रवेश पास जारी करने का अनुरोध किया था.  हालांकि, केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा से पहले इसे लागू किया गया था.  महावीर ने कहा, "मैं कर्फ्यू पास बनवाने के लिए दो दिन स्थानीय पुलिस स्टेशन चला गया और वह पूरी तरह अव्यवस्थित था.  उन्होंने कल मुझे फिर से बुलाया है. "

अंतर-राजकीय लॉकडाउन ने भी एक नए संकट को जन्म दिया है. उद्योग जगत से एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया, "मेरे ट्रक वाले ने मुझसे कहा कि वह सामान नहीं ले जा सकता क्योंकि उसे पहले दिन के लिए कुछ खाना पैक करवाना होगा लेकिन हाईवे के भोजनालय भी बंद हैं, तो उसे खाना कहां मिलेगा? लॉकडाउन को बेहतर नियोजित किया जाना चाहिए था." इस बीच, पुरानी बीमारियों वाले रोगी और स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी अस्पतालों तक पहुंचने के लिए कठिनाई का सामना कर रहे हैं. सार्वजनिक परिवहन की कमी ने ऐसे मरीजों के लिए बहुत मुश्किल साबित कर दी है जिनके लिए समय बहुत ही संवेदनशील होता है जैसे कि गर्भावस्था से संबंधित परामर्श और तपेदिक के रोगी जिन्हें दवाओं की अपनी दैनिक खुराक प्राप्त करने के लिए क्लिनिक पहुंचना होता है.

"अगर कुछ सहज अपवाद नहीं छोड़े जाते हैं तो लॉकडाउन फायदे से अधिक नुकसान पहुंचाएगा," ग्रामीण छत्तीसगढ़ में चल रही जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था के संस्थापक सदस्य डॉ. योगेश जैन ने 25 मार्च को मुझे बताया. उन्होंने कहा, “लंबी अवधि के दौरान इलाज कराने आने वाले मरीजों का इलाज और सार्वजनिक परिवहन को बंद करने से हमें नुकसान होगा. लॉकडाउन ने लोगों के लिए नियमित देखभाल प्राप्त करना असंभव बना दिया है. हम आमतौर पर 350-400 मरीज देखते हैं. आज केवल 50 लोग आए.  हम लोगों को कोविड-19 से बचा सकते हैं लेकिन इस लॉकडाउन के कारण हम उन्हें अन्य बीमारियों जैसे टीबी और कैंसर या भूख से मर जाने दे रहे हैं." जैन ने कहा कि मानव लोक-स्वास्थ्य प्रतिक्रिया, जो अधिक लोगों का परीक्षण करती है, के बिना लॉकडाउन का संभवत: कोई अर्थ ही न हो. "इसका परिणाम अस्थायी रूप से वायरस के दमन के रूप में सामने आता है लेकिन जब भी लॉकडाउन हटा दिया जाएगा तो स्थिति खौफनाक ढंग से विस्फोट होगी. "

स्वास्थ्य क्षेत्र को पहले से तैयार करने में विफल होना ही लॉकडाउन की खराब योजना का एकमात्र परिणाम नहीं था. मोदी ने लोगों से न घबराने की अपील तो की लेकिन नागरिकों को अपने घरों को नहीं छोड़ने का निर्देश देने से पहले चार घंटे का नोटिस भी दिया. मोदी ने कहा, "हर राज्य, हर जिले, हर गली, हर गांव में तालाबंदी की जाएगी." उन्होंने उल्लेख किया कि आवश्यक सेवाओं के लिए एक योजना होगी लेकिन लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को कैसे प्रभावित करेगी इसको बता पाने में विफल रहे. राष्ट्र के लिए अपने तीस मिनट के संबोधन में उन्होंने सरल, स्पष्ट शब्दों में नहीं बताया कि आवश्यक सेवाएं, किराने की दुकानें और फार्मेसी की दुकाने खुली रहेंगी. जैसा कि पहले ही अंदाजा लगाया जा सकता था घबराहट तुरंत ही सड़कों पर फैल गई और सड़कों पर लोग उतर आए, जिसके चलते प्रधानमंत्री को अपने भाषण के मिनट भर बाद ही ट्वीट करके स्पष्टीकरण देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

मोदी ने देश को चेतावनी दी कि अगर भारत "इन 21 दिनों को अच्छी तरह से नहीं संभालता है तो हमारा देश ... 21 साल पीछे चला जाएगा." लेकिन इस लॉकडाउन के पहले दिन के अंत तक भी मोदी प्रशासन जनता के साथ वायरस से लड़ने की रणनीति या संबोधन में कितने के वित्तीय पैकेज की घोषणा करेंगे इसे तय नहीं कर पा रहा था.

25 मार्च को रात 8 बजे तक स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 के 553 सक्रिय मामलों, 42 ठीक होने या छुट्टी दे दी गई वाले मामलों और 10 मौतों की सूचना दी. आने वाले दिनों में महामारी का भविष्य भारत की प्रतिक्रिया पर नर्भर करेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक माइकल रेयान ने 23 मार्च को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "इस महामारी का भविष्य बहुत हद तक, बहुत बड़ी आबादी वाले देशों पर निर्भर है. इसलिए यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि भारत सार्वजनिक-स्वास्थ्य स्तर पर और समाज के स्तर पर इस बीमारी का शमन करने, नियंत्रित करने और दबाने तथा जीवन को बचाने के लिए आक्रामक कार्रवाई करना जारी रखे. "हालांकि लॉकडाउन जैसी आक्रामक कार्रवाइयां संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक हैं लेकिन अगर इन्हें खराब योजना के स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता दिए बिना साथ लागू किया जाता है इसके पूरी तरह से बुरे नतीजे भी आते हैं.