भारत में कोविड-19 टीकाकरण शुरू होने के पहले दिन ही दिल्ली के कुछ सरकारी अस्पतालों के स्वास्थ्य कर्मियों ने फार्मास्युटिकल कंपनी भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवाक्सिन पर संशय व्यक्त किया है. इस संशय का कारण है कि सरकार ने इस वैक्सीन की अनुमति निर्माता कंपनी द्वारा तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षण की जानकारी प्रकाशित किए बिना ही दे दी है जिसके चलते कई स्वास्थ्य कर्मी 16 जनवरी की सुबह टीकाकरण के लिए निर्धारित स्थान पर नहीं आए.
जनवरी की शुरुआत में भारत में दो टीकों को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी गई थी. जिनमें से एक थी कोविशील्ड, जिसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका के सहयोग से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किया गया है, और दूसरी है कोवाक्सिन, जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से भारत बायोटेक ने विकसित किया है. एस्ट्राजेनेका के टीके ने तीसरे चरण के परीक्षणों को पूरा किया है और कंपनी 70 प्रतिशत प्रभावकारिता का दावा करती है. कोवाक्सिन के तीसरे चरण के परीक्षण अभी भी जारी हैं और अभी तक वैक्सीन की प्रभावकारिता को लेकर कोई डेटा या आंकड़े सामने नहीं आया है. कोवाक्सिन द्वारा टीका लगवाने वालों को दिए जाने वाले सहमति फॉर्म, जिसपर लाभार्थियों को टीका लगवाने से पहले हस्ताक्षर करने होते हैं, पर यह स्वीकार किया गया है कि कोवाक्सिन की लाक्षणिक प्रभावकारिता की प्रमाणिकता अभी बाकी है और अभी भी नैदानिक परीक्षण के तीसरे चरण का अध्ययन किया जा रहा है. प्रभावकारिता के आंकड़े उपलब्ध न होने पर और स्वास्थ्य कर्मियों को दोनों टीकों के बीच चयन करने का मौका न दिए जाने के कारण कई डॉक्टरों ने खुद को इस टीकाकरण अभियान से अलग कर लिया है.
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ. पवन सिंहमार ने कहा, "यह एक गंभीर चिंता का विषय है. हां, निष्कर्ष के तौर पर यह स्वैच्छिक रूप से प्रयोग किया जा रहा है. अगर हमें कोविशील्ड दी जाती तो हम लगवाने के लिए तैयार हैं लेकिन मैं एक ऐसा टीका लगवाने में कोई फायदा नहीं देख रहा हूं जिसके परीक्षण अभी भी जारी हैं और जिसका प्रभावकारिता स्तर किसी को मालूम नहीं है." सिंहमार दिल्ली के एम्स में कोवाक्सिन परीक्षण के तीसरे चरण में एक स्वयंसेवक है फिर भी परीक्षण के पूरा होने से पहले ही इसे सामान्य उपयोग के लिए शुरू किए जाने पर अपनी अस्वीकृति जाहिर करते हैं. उन्होंने मुझे बताया कि यदि परीक्षण में स्वेच्छा से शामिल नहीं हुए होते, तो वह एम्स में आयोजित टीकाकरण अभियान में भाग नहीं लेते. उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा, "एक परीक्षण में शामिल होने में और एक बीमारी के खिलाफ लड़ाई में टीका लगवाने में अंतर होता है. एक परीक्षण के दौरान आपको पता होता हैं कि इसमें जोखिम हैं और आप यह भी जानते हैं कि इस टीके की प्रभावकारिता के बारे में सुनिश्चित नहीं हो सकते हैं. लेकिन जब टीके को मंजूरी दे दी जाती है, तब यह सुनिश्चितता होनी चाहिए क्योंकि इसने बीमारी से लड़ने के लिए प्रभावकारिता प्रमाणित की है."
दिल्ली में टीकाकरण अभियान की शुरुआत के पहले दिन 8000 से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीका लगाने की तैयारी की गई थी. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पहले दिन की शाम को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में केवल 4319 लोगों को और पूरे भारत में कुल 191181 लोगों को टीका लगाया गया.
कोवाक्सिन टीकाकरण के लिए एम्स दिल्ली में निर्दिष्ट छह अन्य केंद्र सरकार द्वारा संचालित जिला अस्पतालों में से एक है. दिल्ली सरकार द्वारा संचालित निजी अस्पतालों और सार्वजनिक अस्पतालों सहित 75 अन्य स्थानों को कोविशील्ड टीकाकरण के लिए प्रबंधित किया गया है. सभी टीकाकरण स्थलों पर 100 लाभार्थियों की एक सूची तैयार की गई थी और उसे कोविड-19 वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क या को-विन पर जारी किया गया था. स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत में बड़े पैमाने पर चल रहे टीकाकरण अभियान पर नजर रखने के लिए यह ऐप तैयार किया है.
एम्स अस्पताल में टीकाकरण ड्यूटी पर नियुक्त एक डॉक्टर ने बताया कि कई स्वास्थ्य कर्मचारी, जिनके नाम टीकाकरण के लिए पहले 100 लोगों की सूची में थे, ने आखरी समय में आने से मना कर दिया. डॉक्टर ने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि, "को-विन पर अपलोड की गई 100 लोगों की मूल सूची में से लगभग 40 लोग ही टीकाकरण के लिए आए." मैंने एम्स में टीकाकरण अभियान ड्यूटी पर नियुक्त नर्सिंग अधिकारी से बात की. उन्होंने कहा कि स्टाफ सदस्यों को सूची के नामित लोगों को फोन करना पड़ा क्योंकि को-विन काम नहीं कर रहा था और स्वचालित संदेश नहीं भेज सकता था. नर्सिंग अधिकारी ने कहा, "सूची में शामिल कई लोगों ने आने से इनकार कर दिया या फिर बहाना बनाया कि वे शहर से बाहर हैं. हमें आखिरी समय में अन्य वरिष्ठ डॉक्टरों और संकाय के सदस्यों से अपील करनी पड़ी थी." टिकाकरण अभियान के पहले दिन एम्स की सूची में शामिल जिन लोगों को टीका लगाया गया, उनमें नीति आयोग के सदस्य और वैक्सीन प्रबंधन पर बनी राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के प्रमुख विनोद के. पॉल, आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गवा और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया थे.
दोपहर के 3.30 बजे तक एम्स में लगभग 40 लोगों ने टिकाकरण कराया था. टीका लगाने वालों को यह दिखाना था कि उन्होंने सभी 100 लोगों को टीका लगा दिया है. वहां मौजूद डॉक्टर ने मुझे बताया, "हमने घबरा कर सभी को संदेश भेजे कि जो भी टीका लगवाना चाहते हैं वे आ सकते हैं. सुरक्षा गार्डों को परिसर में मौजूद स्टाफ को लाने के लिए भेजा गया और शाम 5 बजे तक हम 100 लोगों के आंकड़े तक पहुंच गए."
कोवाक्सिन टीकाकरण के लिए घोषित किए गए केंद्रीय सरकारी अस्पतालों में से एक नई दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में डॉक्टरों के संघ से जुड़े सदस्यों ने अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक, राणा अनिल कुमार सिंह को पत्र भेजकर कोवाक्सिन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है. पत्र में कहा गया है कि बहुत से डॉक्टर टिकाकरण अभियान में भाग नहीं ले सकते हैं और इस कारण टीकाकरण को पूरा नहीं किया जा सकता है. उन्होंने टिकाकरण के लिए कोविशील्ड का उपयोग करने के लिए कहा, जिसके बाजार में आने से पहले परीक्षण के सभी चरण पूरे हो चुके हैं. आरएमएल अस्पताल के एक वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर ने मुझे बताया कि टिकाकरण के लिए सूची में शामिल 100 लोगों में से 10 लोग जिन्हें टीका लगाया गया था, वे अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मी थे. बाकी सभी दिल्ली में अन्य जगहों पर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मी थे. वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, "अगर हमें कोविशील्ड और दूसरे टीकों में चयन करने का विकल्प नहीं दिया जाता, तो मुझे नहीं लगता कि आने वाले समय में अधिक लोग इसमें शामिल होंगे."
आरएमएल अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष निर्मल्य महापात्र ने 16 जनवरी को सोशल मीडिया पर अन्य साथी डॉक्टरों के साथ एक वीडियो संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने कहा, "अभी हम कोवाक्सिन नहीं लेना चाहते हैं और टिकाकरण के लिए हम कोविशील्ड को तरजीह देते हैं. हम यह नहीं कहना चाहते है कि कोवाक्सिन एक अच्छा टीका नहीं है या कोविशील्ड उससे बेहतर है. बात सिर्फ यह है कि इसका परीक्षण पूरा नहीं हुआ है और हम कोवाक्सिन को टिकाकरण के लिए चुनने से पहले तीसरे चरण के परीक्षण के आंकड़ों का इंतजार करना चाहते हैं."
इन सब के बीच, स्वास्थ्य मंत्रालय और सरकारी अधिकारियों ने कोवाक्सिन की सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर नागरिकों को आश्वस्त करने के लिए बयान देना जारी रखा है. टीकाकरण अभियान की शुरुआत करते हुए राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों को अफवाहों को दूर रहने और भारत में बने टीकों पर विश्वास रखने को कहा. यह बात कोवाक्सिन के संदर्भ में कही गई थी. नीति आयोग के सदस्य पॉल ने एम्स में संवाददाताओं से कहा, “दोनों टीकों को आपातकालीन उपयोग के लिए अधिकृत किया गया है और उनकी अहानिकारकता को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए. उसे हजारों लोगों पर परीक्षण करके देख गया है और दुष्प्रभाव न के बराबर हैं. इसको सार्थकता को लेकर कोई आशंका नहीं है." बेंगलुरु में कर्नाटक के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री के. सुधाकर ने दावा किया कि दुष्प्रभाव के मामले में सभी सावधानियां बरती गई थी. 5 जनवरी को कारवां ने भोपाल में कोवाक्सिन परीक्षण में लोगों को शामिल करने और उनके उपचार में आई अनियमितताओं को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी.
कई डॉक्टरों ने मुझे बताया कि वे टीके को लेकर नेताओं और नौकरशाहों की बातों में नहीं आए और अभी भी कोवाक्सिन की प्रभावकारिता पर वैज्ञानिक आंकड़ों की मांग कर रहे हैं. एम्स के सिंह ने कहा, “हम सभी को बीमारी से लड़ने के लिए एक टीके की जरूरत है. लेकिन हमें एक टीका चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए जिस पर हमें यकीन ही नहीं है कि वह लंबे समय तक हमें बीमारी से बचाए रखेगी. हमें इससे बेहतर प्राप्त करने का अधिकार है.”
अनुवाद : अंकिता