इंसानों की तरह राष्ट्र का चरित्र भी संकट में ही खुलता है. पिछले दो महीनों में भारत ने खुद को अपनी सारी कुरूपता के साथ जाहिर किया है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भीषण संकट के इस क्षण में खुद की नाकाबिलियत साबित कर दी है. महामारी को कवर करने वाले एक पत्रकार के तौर पर मैंने बहुत करीब से देखा है कि कैसे सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया को भारतीय मुसलमानों के उत्पीड़न के रूप में व्यक्त किया. केंद्र की कोविड-19 प्रतिक्रिया ने बस वही साबित किया जो भारतीय अल्पसंख्यकों को पहले से पता था यानी कि इस सरकार को अपने सबसे गरीब, सबसे बीमार और सबसे कमजोर नागरिकों के जीवन और आजीविका को कुर्बान कर देने में कोई गुरेज नहीं है.
30 जनवरी से ही जब भारत में कोविड-19 का पहला मामला सामने आया था, मोदी प्रशासन की अयोग्यता साबित हुई है और बिना तैयारी और वह तंग नजरिए से लिए गए फैसलों से पैदा हुए गलत परिणामों को सुधारने में ही लगा हुआ है. चार-घंटे का नोटिस देकर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई. इसी के साथ मोदी ने विभाजन के बाद अब तक का सबसे बड़ा आव्रजन संकट पैदा कर दिया. अचानक हुई इस तालाबंदी ने लोगों को भूखों मरने के कगार पर पहुंचा दिया. लोगों के पास कोई काम नहीं था, पैसा नहीं था यहां तक कि अपने घरों में लौटने तक का रास्ता नहीं बचा था. सरकार ने उन्हें उसी हालत में छोड़ दिया.
भारत सरकार के कई अपराधों में उसके मुस्लिम अल्पसंख्यकों को बलि का बकरा बनाने के अपराध को कभी नहीं भूला जा सकेगा. सरकार के कृत ने लोगों को बदनामी के डर से छिपने और बीमार होने की बात को स्वीकार ना करने को प्रेरित किया.
यह कोई अभूतपूर्व घटना नहीं थी- पिछली महामारियों में भी अप्रत्याशित सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए लगातार अपने अल्पसंख्यकों को दोषी ठहराया जाता रहा है. आज भारत में मुसलमानों को उसी तरह दोषी ठहराया जाता है जैसे एचआईवी महामारी के शुरुआती वर्षों में, वायरस फैलाने के लिए दुनिया भर में समलैंगिकों को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था. एचआईवी तब इसलिए पूरी दुनिया में फैल पाया और लोगों की जान इसलिए गई क्योंकि बेशकीमती वक्त अल्पसंख्यकों को गुनाहगार साबित करने में खर्च कर दिया गया. मुस्लिम अल्पसंख्यक पर केंद्रित इसी तरह की कार्रवाई के साथ, मोदी प्रशासन ने कोविड-19 महामारी को भारत में फैलने दिया है.
मार्च के मध्य में इस्लामिक संगठन तबलीगी जमात ने दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित अपने मुख्यालय मरकज में वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया. उस महीने के अंत में खबर सामने आई कि सम्मेलन में नोवेल कोरोनवायरस का प्रकोप फैला था. इसके बाद से मोदी प्रशासन ने भारत में महामारी फैलने के मुख्य कारणों में से एक के रूप में बार-बार इस सम्मेलन को चिन्हित किया है. इस झूठे नैरेटिव को मुख्यधारा के मीडिया ने खूब उछाला. “मुसलमान जानबूझकर वायरस फैल रहे हैं” जैसी गलत और झूठी खबरें व्यापक रूप से फैलने लगीं. केंद्र सरकार की दैनिक प्रेस ब्रीफिंग में तबलीगी जमात के बारे में चर्चा करने पर अच्छा खासा वक्त दिया जाने लगा, स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय द्वारा बार-बार जोर देकर मरकज से संबंधी संक्रमण के मामलों के आंकड़े दिए जाने लगे. इस बीच सरकार स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की कमी और महामारी से लड़ने के लिए सरकार की रणनीति पर उठे सवालों को टालती रही.
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