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मध्य प्रदेश में कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार 24 अप्रैल तक राज्य में इस संक्रमण से होने वाली मृत्यु की दर देश में सबसे ज्यादा 4.88 प्रतिशत है. यहां कोरोनावायरस के 1699 मामलों में 83 लोगों की मौत हुई है.
जिस वक्त देश के सभी राज्य महामारी से लड़ने की तैयारी कर रहे थे उस वक्त राज्य में राजनीतिक घमासान मचा हुआ था. देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के ठीक एक दिन पहले यहां बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार गिरा दी. इसके बाद कैबिनेट मंत्री नियुक्त करने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक महीना लग गया. 21 अप्रैल को चौहान ने पांच कैबिनेट मंत्री नियुक्त किए और एक दिन बाद नरोत्तम मिश्रा को राज्य का स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया.
इस महामारी का सबसे बुरा असर राज्य के शहर इंदौर में देखा जा रहा है. 24 अप्रैल तक यहां कुल 945 पुष्ट मामले थे और 53 लोगों की मौत कोरोना संक्रमण से हो चुकी थी.
21 अप्रैल को स्वतंत्र पत्रकार विद्या कृष्णन ने राज्य में महामारी के बढ़ते प्रकोप पर इंदौर के मेडिकल ऑफिसर आनंद राय से बात की. राय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के पैनल में हैं और राज्य की कोविड-19 प्रतिक्रिया टीम का हिस्सा हैं. साथ ही वह व्यापमं घोटाले को उजागर करने वाले ह्विसल ब्लोअर में से एक हैं.
विद्या : पहली चीज जो मैं आपसे पूछना चाहूंगी वह यह है कि पिछले सप्ताह आपने ट्वीट कर इंदौर को भारत का वुहान (चीन के शहर) कहा था. आप दोनों शहरों में क्या समानता पाते हैं और आपने ऐसी तुलना किस आधार पर की है?
आनंद राय : देखिए अगर आप प्रति 10 लाख लोगों में संक्रमण के अनुपात को देखें, तो भारत में इंदौर में यह अनुपात सबसे ज्यादा है. यहां प्रति 10 लाख में 300 से अधिक लोग संक्रमित हैं और मृत्यु दर 6 प्रतिशत से अधिक है. तो इस तरीके से आप देखेंगे कि भारत में यह कोविड से संक्रमित शीर्ष शहरों में सबसे अव्वल है. इसलिए मैंने वुहान से इसकी तुलना की थी. सबसे बड़ी बात कि मैं चाहता था कि वुहान की तुलना करने से हो सकता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या केंद्र सरकार का फोकस इस शहर पर जाएगा क्योंकि जब तक आप कोरोना पॉकेटों या एपीसेंटरों को कंट्रोल नहीं करेंगे तब तक इस देश से कोरोना जाने वाला नहीं है.
विद्या : इंदौर में लॉकडाउन की स्थिति के बारे में हमें बताइए. इस नई सामान्य स्थिति में लोग कैसे रहे हैं, किस तरह से इस लागू किया जा रहा है?
आनंद राय : देखिए, इंदौर की जनता लॉकडाउन के लिए तैयार नहीं थी. उन्होंने इससे पहले के कर्फ्यू से लॉकडाउन की तुलना की. उन्हें यह नहीं पता चल रहा था कि हमें महामारी के कारण घर के अंदर ही रहना है. तो जो झुग्गियों में हैं, वे लोग जब पुलिस आती थी तो अपने घरों के अंदर चले जाते थे और जैसे ही पुलिस जाती थी तो दुबारा गलियों और सड़कों पर निकल आते थे. यह इंदौर शहर उत्सवधर्मी शहर है. मतलब यह कि कोई बहाना नहीं छोड़ता है इनजॉय करने का या उत्सव मनाने का. आप देखिए कि होली के पांच दिन बाद यहां रंग पंचमी होता है. तो रंग पंचमी के दिन 5000 से ज्यादा लोग 14 मार्च को राजबाढ़े पर पहुंच गए. जबकि इंदौर में 5 मार्च के आसपास संदिग्ध मामले दर्ज किए गए थे. एक इटली की युवती थी और एक दुबई से आया यात्री था. इससे पहले 31 जनवरी को यहां दो छात्रों को हमने एडमिट किया था जो वुहान में एमबीबीए कर रहे थे और वहां से आए थे. ऐसा नहीं है कि यहां पर कोरोना नहीं आया था. कोरोना आ चुका था. कई सारे लोग जिनकी ट्रेवल हिस्ट्री थी, जो हो सकता है एसिम्प्टमैटिक केरियर (जिनमें लक्षण दिखाई देना शुरू नहीं हुआ हो) हों वे लोग इंदौर में आ चुके थे और उसके बाद जो रंग पंचमी में लोग जुटे, जो भीड़भाड़ मची वह कहीं न कहीं एक कारण है इंदौर में कोरोनावायरस के फैलने का.
विद्या : आपका मानना है कि पहले अच्छे से लॉकडाउन नहीं किया था इसलिए यह शहर एक एपिसेंटर बन गया है? पिछले कुछ हफ्ते में कई ऐसे केस आए हैं जिसमें राज्य मशीनरी के लोग यानी स्वास्थ्य विभाग या पुलिस अधिकारी वायरस की चपेट में आए हैं. इस हफ्ते इंदौर में एक एसएचओ की और एक डॉक्टर की मौत हुई है. आप इस पर कोई रोशनी डाल सकते है? यही लोग फ्रंटलाइन में हैं और यही प्रभावित हो रहे हैं?
आनंद राय : देखिए दो डॉक्टरों और दो एसएचओ की मौत हो चुकी है और स्वास्थ्य विभाग के करीब 90 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव हैं. कुछ भोपाल में हैं. इंदौर में स्वास्थ्य विभाग के 10 से ज्यादा लोग कोविड पॉजिटिव हैं. यह दिखाता है कि फ्रंटलाइन में काम कर रहे लोगों को ज्यादा खतरा है. लोगों को समझना होगा कि लोग आपकी जान पर खेल कर आपके लिए लगे हुए हैं. फिर भी इससे लड़ने में 99 फीसदी भूमिका जनता की है. उनको अपने घरों में रहना है. इंदौर में करीब 167 कंटेनमेंट इलाके हैं जिन्हें सील किया गया है. 915 पॉजिटिव लोगों के साथ हम इस शहर में रह रहे हैं. 52 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. यहां हालत बहुत ही गंभीर है. केंद्र सरकार को लगातार नजर रखनी होगी इस शहर पर. उतनी अच्छी सुविधाएं भी हमारे पास नहीं है. वेंटिलेटर भी उतने नहीं हैं. मुझे लगता है मुश्किल से 50 वेंटिलेटर पूरे शहर में होंगे. फिर भी हमलोगों ने अस्पतालों को तीन श्रेणियों में बांटा है : लाल (जहां को पॉजिटिव मरीज जाते हैं), पीला (जहां हम संदिग्धों को रखते हैं) और हरा (जहां आम मरीज जाते हैं). लेकिन देखा यह गया है कि जो हरी श्रेणी के प्राइवेट हॉस्पिटल हैं, नर्सिंग होम हैं, मेटरनिटी हाउस हैं वे लोग अच्छे से काम नहीं कर रहे हैं. वहां पर डॉक्टर नहीं पहुंच रहे हैं, वहां का पैरामैडिकल स्टाफ नहीं पहुंच रहा है. तो कई मरीज दहशत में मर गए. खासकर ऐसे इलाकों में जहां कोरोना के मामले ज्यादा थे. जिनको दूसरी बीमरियां थीं यानी किसी को अटैक आया या ब्लड प्रैशर बढ़ गया, तो जब उन्होंने हॉस्पिटल के चक्कर काटे तो दहशत से मौत हो गई. पिछले महीने से इस महीने पांच गुना ज्यादा मौतें हुई हैं लेकिन उनका रिकॉर्ड नहीं हैं क्योंकि टेस्टिंग ही नहीं की जा रही है. यदि आप टेस्टिंग नहीं करेंगे तो आप कैसे कह सकते हैं कि कोई कोविड पॉजिटिव है और कई बार तो ऐसा देखने में आया है कि 8 से 10 दिन टेस्ट रिपोर्ट आने में लग जाता है और तब तक उस आदमी की मौत हो चुकी होती है. उसके परिजन को हमें क्वारंटीन करना है. यदि रिपोर्ट देर से आएंगी, तो हम एसिम्प्टमैटिक केरियर को कॉलॉनी में, गलियों में घूमने दे रहे हैं. यह एक प्रमुख कारण है कोरोना फैलने का. दूसरा महत्वपूर्ण कारण है कि पुलिस खुद नहीं जानती थी कि क्वारंटीन हाउस कैसे तैयार करने हैं. क्वारंटीन हाउस खुले मैदान में होने चाहिए. वहां टैंट होने चाहिए. आदमियों को अलग-अलग रखा जाना होता है. यहां मैरिज गार्डन में उनको इस तरह से रख दिया गया कि जैसे कोई खुली जेल हो. वे लोग नमाज पढ़ने और खाना खाने के लिए साथ आते. अब तो यह दूसरे समुदायों के लोगों में भी फैल रहा है. लोगों को यह समझना होगा कि क्वारंटीन में किस तरीके से रहना है. एक साथ क्वारंटीन में 10-10, 20-20 लोग पॉजिटिव निकले. तो इस कारण से यहां पर केस बहुत ज्यादा बढ़े.
विद्या : यानी आप बता रहे हैं कि नीतियां लागू न होने की वजह से केस बढ़ रहे हैं तो ऐसे में मुझे मार्च के अंत में जो मध्य प्रदेश में राजनीतिक उठापटक चल रही थी उसकी याद आ रही है. उस वक्त एक निर्वाचित सरकार को गिरा कर बीजेपी ने अपने मख्यमंत्री को शपथ दिलाई. इस बीच सरकार की जो गैर मौजूदगी रही है उसका क्या असर रहा है केसों के बढ़ने में?
आनंद राय : देखिए, सरकार की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है. मार्च के पहले हफ्ते में जब केस आने शुरू हुए तो हम लोगों ने इसको गंभीरता से लिया. हमने रिपोर्टें भेजीं. यहां लॉकडाउन तो नहीं किया लेकिन सारे मॉल बंद कर दिए थे, स्कूल बंद कर दिए. ज्यादा संख्या में एक जगह पर लोगों के जुटान को बंद कर दिया. लेकिन जब विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा को स्थगित किया तो भारतीय जनता पार्टी ने उनका यह कह कर मजाक उड़ाया कि “यह कोरोना नहीं है, डरोना है. आपको डर लग रहा है.” 22 से ज्यादा एमएलए और हमारे स्वास्थ्य मंत्री को अगुवा करके बैंगलुरु ले जाया गया. जब उनको मुख्य सचिव के साथ बैठक करनी थी और स्वास्थ्य विभाग को मॉनिटर करना था, उस समय वह रिसोर्ट में मस्ती कर रहे थे. उनको सत्ता की चाहत थी. यहां के आईएएस-आईपीएस अधिकारियों को लगा कि अब तो बीजेपी की सरकार आने वाली है तो वे अपनी पोस्टिंग बचाने के लिए बीजेपी के नेताओं से संपर्क करने लगे. जैसे ही बीजेपी सरकार आई, तुरंत उन्होंने इंदौर के कलेक्टर को बदल दिया, अधिकारी बदल दिए. भोपाल-जबलपुर के कलेक्टरों को बदल दिया जो शहर को जानते थे. नए अधिकारियों को शहर को पहचानने और जानने में समय लगा. तो कहीं न कहीं इसका चीजों पर असर पड़ता है. खासकर तब जब आपका स्वास्थ्य मंत्री ही ना हो. मैं सीधे तौर पर मानता हूं कि जो राजनीतिक उठापटक हुई वह भोपाल और इंदौर की बिगड़ती स्थिति के लिए जिम्मेदार है.
विद्या : राज्यवर अगर हम कोरोना संक्रमण देखें तो महाराष्ट्र के बाद मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. आज की तारीख में सही सरकारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ताकि इस नुकसान को नियंत्रित किया जा सके. इंदौर में आप बता रहे हैं कि 167 जोन हैं. तो इस स्टेज में क्या करना बहुत जरूरी है. आज अगर स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त हो जाते हैं तो उनको क्या करना चाहिए?
आनंद राय : सबसे पहले तो लॉकडाउन को ज्यादा प्रभावी ढंग से लागू करना पड़ेगा. बिल्कुल जीरो टॉलरेंस पर रखना होगा यानी यदि कोई बहुत ही गंभीर मरीज है तो ही उसे बाहर निकलने देना होगा. राशन में भी आपको न्यूनतम चीजें पहुंचानी होंगी, खासकर वे लोग जो इमरजेंसी सर्विस में लगे हैं, चाहे वे राशन बांटने में लगे हैं, चाहे कचरा उठाने वाले हमारे स्वास्थ्य कर्मचारी- सफाई कर्मचारी हैं, चाहे हैल्थ वर्कर हैं, पेट्रोल पंप में काम करने वाले कर्मचारी हैं, गैस सिलेंडर देने वाले लोग हैं, ये वे लोग हैं जो अभी सड़कों पर हैं. इनमें से रैंडम सलेक्ट करके आपको सैपलिंग करनी पड़ेगी. उसके लिए आप रैपिड एंटीबॉडी किट की मदद लीजिए. आप पूल टेस्टिंग करिए. जल्दी से जल्दी आपको पूरे समाज को कवर करना होगा. एसिम्प्टमैटिक केरियर पर फोकस करना होगा यानी आपको दिमाग से निकाल देना होगा कि किसी को सर्दी-खांसी है तो ही वह कोरोना पॉजिटिव हो सकता है. अभी जो 80 फीसदी केस आ रहे हैं वे एसिम्प्टमैटिक हैं. तो ऐसे लोगों कि जो पिछले 15 दिनों में 100 से ज्यादा लोगों के संपर्क में आए हों या ऐसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आए हों, जो 100 लोगों के संपर्क में रहा हो, तो उनकी जांच होनी चाहिए. हमको रैपिड एंटीबॉडी मेडीकिट से उसकी जल्दी से जल्दी जांच करनी चाहिए. जब हमें जल्द पता चलेगा कि पॉजिटिव है, तो हम उनको क्वारंटीन करेंगे या होम आइसोलेशन करेंगे तो इस तरीके से हम नियंत्रित कर सकते हैं.
विद्या : बाकी के राज्यों में किटों की कमी का भी मामला सामने आ रहा है. क्या बता सकते हैं कि इंदौर में पीसीआर किट या एंटीबॉडी किट की क्या स्थिति है.
आनंद राय : देखिए यहां शुरुआत में 21 टेस्ट प्रति दिन होते थे. हमने अपनी टेस्टिंग क्षमता बढ़ाई तो है लेकिन एक एक्टिविस्ट होने के नाते हमने और ज्यादा की मांग की और क्षमता बढ़ाने की कोशिश की है. नई पीसीआर मशीने बढ़ाने की कोशिश की गई है. भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर में टेस्ट होने चाहिए थे. कम से कम हर मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी डिपार्टमेंट में यह सुविधा होनी चाहिए थी. जीडीपी का एक हिस्सा हैल्थ रिसर्च पर खर्च करना होगा. हमें वायरोलॉजी लैब बनानी होंगी. यहां अभी रैपिड टेस्ट के लिए किटें नहीं हैं. पीसीआर की एक लिमिट होती है. आप दिन भर में 150-200 टेस्ट कर पा रहे हैं. हमारे पास अगर रैपिड एंटीबॉडी किट होतीं तो हम और ज्यादा टेस्ट कर पाते और इसे जल्द नियंत्रित कर पाते.
(इस साक्षात्कार को संपादित और संशोधित किया गया है.)
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