12 मई की दोपहर को मुंबई के चेंबूर इलाके के 80 वर्षीय पूर्व बैंकर विनायक जाधव को बुखार और बेचैनी महसूस होने लगी. शुरुआत में तो उनके परिवार को ऐसा संदेह नहीं हुआ कि वह नोवेल कोरोनवायरस से ग्रस्त हो सकते हैं. वह लॉकडाउन के बाद बमुश्किल अपने घर से बाहर निकले थे. बस दस दिन पहले एक एटीएम तक गए थे.
उनके बेटे वीरेन उन्हें पास में ही मधुमेह रोग विशेषज्ञ विशाल चोपड़ा के क्लिनिक ले गए. चोपड़ा, जो पवई के डॉ. एलएच हीरानंदानी अस्पताल से भी जुड़े हुए हैं, ने वीरेन को सीधे अस्पताल ले जाने के लिए कहा. वीरेन के मुताबिक, अस्पताल के एक डॉक्टर ने विनायक का इलाज करने से पहले उन्हें कोविड-19 परीक्षण कराने के लिए कहा.
"उस वक्त मेरी चिंता बस यही थी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया जाए ताकि जल्दी से इलाज शुरू हो सके," वीरेन ने मुझे बताया. "वह 80 साल के हैं इसलिए मैं कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था."
लेकिन अस्पताल ने वीरेन को कहा कि वह अपने पिता को घर ले जाएं और जांच रिपोर्ट आने के बाद उन्हें लेकर आएं. "उन्होंने मुझे बताया कि इसमें 48 घंटे लगेंगे," वीरेन ने कहा.
यह महाराष्ट्र सरकार के आदेशों का उल्लंघन था. जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है, कई सरकारी अधिसूचनाएं जारी कर अस्पतालों के लिए अनिवार्य किया गया है कि वे मरीजों का इलाज करेेंगे भले ही कोविड-19 जांच की रिपोर्ट अभी ना आई हो. सरकार ने अस्पतालों से संदिग्ध कोविड-19 रोगियों के लिए एक प्रतीक्षा क्षेत्र बनाने और वहां उनका इलाज करने के लिए कहा. इसका पालन नहीं किए जाने पर महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत कार्रवाई की चेतावनी भी दी. 30 अप्रैल की एक सरकारी अधिसूचना में कहा गया है, "किसी भी मरीज को बिना जांच किए और किसी भी परिस्थिति में आपेक्षित हस्तक्षेप किए बिना नहीं लौटाया जाना चाहिए."
विनायक की जांच रिपोर्ट 14 मई को आई. वह वायरस से संक्रमित थे. हालांकि तब तक हीरानंदानी अस्पताल में बिस्तर खाली नहीं बचे थे. “हम घबरा गए और हमने दोस्तों और जान-पहचान के लोगों के जरिए आसपास के सभी अस्पतालों में खोजबीन शुरू कर दी. लगभग हर अस्पताल फोर्टिस, नानावती और ब्रीच कैंडी भरा हुआ था. 8.30 बजे हमें सेवनहिल्स और नानावटी में बिस्तर खाली हो सकने के बारे में पता चला. सेवनहिल्स नजदीक ही था तो हमने वहीं जाना बेहतर समझा.”
नवंबर 2019 में बृहन्मुंबई नगर निगम या बीएमसी ने सेवनहिल्स अस्पताल का संचालन संभाला. आज यह मुंबई का सबसे बड़ा क्वारंटीन सुविधा का केंद्र है. अस्पताल के दो अलग-अलग प्रवेश द्वार हैं- एक निजी समूह के लिए, जिसका प्रबंधन रिलायंस समूह और जुपीटर अस्पताल करते हैं और दूसरा एक बड़े समूह के लिए, जिसका संचालन नगर निगम करता है.
जब वीरेन अपने पिता को गेट नंबर तीन के माध्यम से निजी केंद्र में ले गए तो उन्हें बताया गया कि आईसीयू बेड खाली नहीं हैं. वीरेन ने बताया, "एक डॉक्टर ने मुझे गेट नंबर चार से उन्हें अगले दरवाजे पर ले जाने के लिए कहा." विनायक को आखिरकार लगभग 11.30 बजे अस्पताल के कोविड वार्ड में भर्ती कराया गया, उनकी जांच रिपोर्ट आने के सात घंटे बाद. तब तक, वे बेदम महसूस कर रहे थे और उनका ऑक्सीजन स्तर गिर रहा था.
15 मई की शाम को, उनकी ऑक्सीजन के स्तर में और गिरावट के साथ उनकी हालत बिगड़ती गई. वीरेन ने कहा, "जब मुझे पता चला कि मेरे पास अपने पिता को ऑक्सीजन देने की सुविधा नहीं है तो मेरा दिल उखड़ गया. आईसीयू बेड सभी भरे हुए थे. हमें बताया गया था कि सैकड़ों मरीज पहले से ही आईसीयू बेड के लिए लाइन में लगे हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि मेरे पिता को प्राथमिकता दी जाएगी. आखिरकार शाम 7.30 बजे उन्हें आईसीयू बेड मिल गया. दो घंटे के भीतर, लगभग 9.30 बजे, उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया जिससे उनकी मौत हो गई. ”
वीरेन ने कहा कि इलाज के लिए जो सबसे जरूरी शुरुआती घंटे होते हैं, मेरे पिता को वे नहीं मिले. हीरानंदानी अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुजीत चटर्जी ने इस बारे में किए गए ईमेल का जवाब नहीं दिया. मैंने पूछा था कि अस्पताल ने भर्ती करने की शर्त कोविड-19 परीक्षा परिणाम क्यों रखी थी.
विनायक कोविड-19 जांच रिपोर्ट की कमी के लिए समय पर उपचार से वंचित मुंबई में कई रोगियों में से एक थे. कई डॉक्टरों ने मुझे बताया कि मुंबई के कई अस्पताल इसके लिए दिशानिर्देशों के बावजूद भर्ती करने से पहले बतौर शर्त कोविड-19 जांच रिपोर्ट की मांग कर रहे हैं. विनायक का मामला एक प्रभावी प्रणाली की आवश्यकता को भी इंगित करता है जो वास्तविक समय में आसपास के अस्पतालों में बेड की तत्काल उपलब्धता को चिन्हित करता हो, जबकि मुंबई भारत में कोविड-19 के प्रकोप का केंद्र भी बन हुआ है.
31 मई तक महाराष्ट्र में 65168 कोविड-19 मामले थे और इससे 2197 मौतें हो चुकी थीं. महाराष्ट्र मेडिकल एजुकेशन एंड ड्रग्स डिपार्टमेंट (वैद्यकीय शिक्षण व औषधी द्रव्ये विभाग) की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिसमें 47021 मामलों का विश्लेषण किया गया है, इनमें 13 प्रतिशत से अधिक वरिष्ठ नागरिक हैं और 42 प्रतिशत मामले 20 से 40 आयु वर्ग के हैं. 1588 मौतों के विश्लेषण में पाया गया कि 71 प्रतिशत लोगों में दो से ज्यादा घातक बीमारियां थीं.
चोपड़ा ने विनायक के मामले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि उनके पास अन्य मरीज थे जिनकी इन्हीं हालातों में मौत हो गई. चोपड़ा ने कहा, "मुझे उनके बेटे के साथ देर रात को बात करना याद है जब वह अस्पताल के बिस्तर के लिए काफी चिल्ला रहे थे. वास्तव में अस्पताल दर अस्पताल जाने के बाद मेरे चार उम्रदराज मरीजों ने अपनी जान गंवा दी. मेरे 81 वर्षीय पड़ोसी, जिन्होंने शनिवार को रात 8 बजे दिल का दौरा पड़ने का लक्षण दिखाई दिया था, को बिस्तर पाने के लिए सोमवार शाम तक इंतजार करना पड़ा. मैं ऐसी स्थितियों में खुद को असहाय महसूस करता हूं.”
हालांकि उन्होंने कहा कि जमीनी हकीकत बहुत जटिल हैं, "हम बहुत बड़ी महामारी का सामना कर रहे हैं." उन्होंने कहा, “मुंबई जैसे भारी आबादी वाले शहर में, आबादी के लिए उपलब्ध अस्पताल के बेड का अनुपात पहले से ही कम था, लेकिन महामारी के साथ, यह हालत बदतर हो गई है. इन दिनों, लोग कम से कम 8 से 10 दिनों के लिए अस्पताल में रहते हैं. जब जरूरतमंद मरीज आते हैं तो अस्पतालों में बिस्तरों के लिए जोर दिया जाता है.” उन्होंने कहा, "दूसरा मुद्दा यह है कि अगर मैं कोविड वार्ड में रोगियों के साथ हल्के लक्षण वाले रोगी को भर्ती करता हूं और अगर बाद में उसकी रिपोर्ट नकारात्मक आती है तो हमें परिवार जवाबदेह ठहराएगा. इसी वजह से अस्पताल ऐसे मरीजों को जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं दिखाई देते या जिनमें संक्रमण के हल्के लक्षण हैं उन्हें जांच कराने और रिपोर्ट का इंतजार करने का अनुरोध कर रहे हैं."
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में संकाय सदस्य ब्रिनेल डिसूजा ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोविड-19 के प्रसार को धीमा करने के लिए लॉकडाउन में अस्पताल में प्रवेश प्रक्रियाओं और परीक्षण प्रोटोकॉल पर भ्रम की स्थिति बनी हुई है. डिसूजा मुंबई में जन स्वास्थ्य अभियान की सह-संयोजक भी हैं. जेएसए एक जन स्वास्थ्य आंदोलन है जो पूरे भारत में स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित मुद्दों पर गतिविधियों और कार्यों का समन्वय करता है. "मुझे नहीं पता कि अधिकांश अस्पताल प्रवेश के लिए कोविड जांच रिपोर्ट क्यों मांग रहे हैं जबकि इस संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश हैं. कोविड-19 परीक्षण के लिए किसी भी आपातकालीन सर्जरी से इनकार नहीं किया जा सकता है,” उन्होंने कहा. “अस्पतालों को नमूने लेने और उन्हें परीक्षण के लिए भेजने की आवश्यकता है. इस बीच, उन्हें लोगों को स्वीकार करना चाहिए और उनका इलाज करना शुरू करना चाहिए. वे अपनी जिम्मेदारी से हाथ पीछे नहीं खींच सकते.
मैंने ग्रेटर मुंबई नगर निगम में अतिरिक्त नगर आयुक्त सुरेश काकानी से बात की. उन्होंने कहा कि जिन अस्पतालों में कोविड जांच केंद्र हैं, उन सभी को कहा गया है कि वे ऐसे रोगियों को स्वीकार करें जो आपातकालीन मामलों और गैर-वैकल्पिक सर्जरी की श्रेणी में आते हैं. उन्होंने कहा, "सभी सरकारी अस्पतालों में एक ट्राइएज क्षेत्र है जहां वे कोविड रिपोर्ट आने तक मरीजों का इलाज कर सकते हैं." एक सरकारी हेल्पलाइन नंबर का उल्लेख करते हुए, काकानी ने कहा, “हमने 1916 के साथ एक हेल्पलाइन सुविधा भी बनाई है. हमें एक दिन में 4000 से अधिक कॉल आते हैं. हेल्पलाइन आपके मामले की पुष्टि करने के बाद आपको एक टोकन नंबर देती है और आपको एक अस्पताल में ले जाती है जहां खाली बिस्तर उपलब्ध हों. हमने वास्तविक समय के आधार पर खाली बिस्तरों को ट्रैक करने के लिए एक प्रणाली विकसित की है, लेकिन यह दुरुपयोग के डर से जनता के लिए खुला नहीं है.”
हेल्पलाइन के अलावा 27 मई को बीएमसी ने घोषणा की कि उसने रियल टाइम में सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में कोविड-19 रोगियों के लिए खाली बेड मैप करने वाला डैशबोर्ड लॉन्च किया है. बीएमसी ने कहा कि डैशबोर्ड को हर आधे घंटे में रियल-टाइम डेटा के साथ अपडेट किया जाएगा.
हालांकि, डिसूजा ने कहा कि ये उपाय व्यवहार में प्रभावी नहीं हैं. "भले ही एमसीजीएम ने उपलब्ध अस्पताल के बेड की मैपिंग की, लेकिन वास्तविक समय में अपडेशन नहीं हो रहा है," उन्होंने कहा. "विभिन्न मंचों पर इस मुद्दे को उठाने के बावजूद, यह व्यवस्थित नहीं हुआ है." उन्होंने कहा, ''हेल्पलाइन 1916 से मदद हो पाना बहुत मुश्किल है. जानकारी प्राप्त करने वाले संकटग्रस्त मरीजों और रिश्तेदारों ने शिकायत की है कि 1916 उनकी कोई मदद नहीं की गई है. जब मैंने कोविड सकारात्मक रोगियों के लिए डायलिसिस की सुविधा तलाशने की कोशिश की, तो मेरा अनुभव बहुत बुरा था. या तो कॉल नहीं मिल रहा था, और जिसने कॉल का जवाब दिया वह भी अस्पतालों के नाम बताकर मेरी मदद करने की स्थिति में नहीं था. "
बीएमसी डैशबोर्ड का उल्लेख करते हुए, डिसूजा ने कहा, "नए डैशबोर्ड का कार्य अभी भी कुछ अस्पतालों में जारी है जिनका उचित विवरण और दूसरों को अपडेशन देने के साथ उचित तालमेल नहीं है. निजी अस्पतालों का जिक्र तो किया गया है लेकिन बेड की संख्या और उनकी उपलब्धता के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है.” उन्होंने कहा कि मुंबई को अस्पतालों के खिलाफ शिकायतों के रूप में एक शिकायत निवारण प्रणाली की आवश्यकता है.
बेड की कमी या कोविड जांच रिपोर्ट की कमी के कारण वरिष्ठ नागरिकों को अस्पताल में ना लेने के के अन्य मामले भी सामने आए हैं. 15 मई को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई के एक ऑटोरिक्शा में एक 67 वर्षीय सेवानिवृत्त नगरपालिका कर्मचारी की मौत हो गई क्योंकि उन्हें पांचवीं बार अंधेरी के होली फेमिली अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया गया था. अस्पताल ने दावा किया कि उसके पास कोई बिस्तर नहीं था. दो अन्य अस्पतालों ने बिना कोविड-19 जांच रिपोर्ट के उनका इलाज करने से इनकार कर दिया.
वीरेन ने अपने पिता की मृत्यु के लिए अस्पतालों को जिम्मेदार ठहराया. "मैंने अपने पिता को अस्पतालों की चरम बेरहमी के कारण खो दिया," उन्होंने कहा. उनकी मां, जो कोविड-19 से संक्रमित हैं, का इलाज ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में किया जा रहा है. "उनके मामले में हमें बहुत जल्दी बिस्तर मिल गया. उनकी हालत अब स्थिर है," वीरेन ने बताया कि उनको शुरुआत में ही इलाज मिल गया इसी वजह से वह ठीक हैं.