कोरोनावायरस : लॉकडाउन ने रक्त की जरूरत वाले मरीजों की बढ़ाई मुश्किलें

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के ई-आरटीटी कोष डेटाबेस के अनुसार, शिविरों की संख्या जनवरी की 606 से घटकर मार्च में 369 हो गई और अप्रैल में यह केवल 81 रह गई है. फरवरी में रक्तदान करने वालों की संख्या 38207 थी जो अप्रैल में घटकर 7981 हो गई. नूह सीलम/एएफपी/गैटी इमेजिस

प्रतिमा मुखर्जी को एबी-पॉजिटिव खून की चार बोतलों की सख्त जरूरत है. पश्चिम बंगाल के खड़गपुर के पास स्थित एक गांव के 31 वर्षीय व्यक्ति को कैंसर है और उसे नियमित रूप से रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है लेकिन केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के चलते किए गए लॉकडाउन ने इसे मुश्किल बना दिया है. उन्होंने मुझे बताया, उनके भाई बिस्वजीत पंडित खड़गपुर और कोलकाता में कई ब्लड बैंकों का दौरा कर चुके हैं लेकिन उन्हें रक्त नहीं मिला. "मई की शुरुआत तक लॉकडाउन का बढ़ना इसे और भी कठिन बना देगा."

बिहार के दरभंगा के रहने वाले अशोक सिंह का 12 अप्रैल को डायलिसिस कराया जाना था और उन्हें ए-पॉजिटिव ब्लड की दो यूनिट की आवश्यकता थी. उनके दामाद प्रभाकर कुमार ने मुझे बताया, "दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल का ब्लड बैंक बंद है क्योंकि पूरे अस्पताल को कोविड​​-19 के लिए लगा दिया गया है. जिन अन्य लोगों से मैंने कोशिश की उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके रिश्तेदारों से ही ताजा रक्त प्राप्त किया जाए." सिंह के बेटे और एक अन्य रिश्तेदार ने एक-एक यूनिट रक्त दान किया था. उन्हें 21 मार्च को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में डायलिसिस कराने का समय मिला था लेकिन अगले दिन जनता कर्फ्यू की घोषणा होने के बाद इसे टालना पड़ा. परिवार को दरभंगा के एक निजी अस्पताल में इलाज कराना पड़ा.

आंध्र प्रदेश के ओंगोल में रहने वाली किरण कुमार को अपनी भतीजी के लिए एक यूनिट रक्त की जरूरत है. वह गर्भवती हैं. उन्होंने कहा, "उसे ए-नेगेटिव की जरूरत है, जो रक्त का एक दुर्लभ समूह है और लॉकडाउन के चलते इसे प्राप्त करना और भी कठिन हो गया है. हम तीन ब्लड बैंक गए लेकिन हमें नहीं मिला." उन्होंने इस उम्मीद से सोशल मीडिया पर एक मैसेज पोस्ट किया है कि वहां से कोई मदद कर दे.

थैलेसीमिया और कैंसर जैसी बीमारियों के साथ-साथ किडनी प्रत्यारोपण और कुछ प्रकार के प्रसव जैसी प्रक्रियाओं के लिए खून की आवश्यकता होती हैं. शुरू में 21 दिनों के लिए और फिर 19 दिनों के लिए बढ़ाए गए लॉकडाउन के चलते सड़क दुर्घटनाओं जैसे गंभीर चोटों में आई एक बड़ी कमी के कारण रक्त की मांग में आई है. उन लोगों के लिए रक्त खरीदना अधिक कठिन हो गया है जिन्हें इसकी जरूरत है.

कोरोनोवायरस से निपटने के लिए पूरी चिकित्सा प्रणाली को उसी तरफ मोड़ देने के चलते गैर-जरूरी सर्जरी और प्रक्रियाओं को भी रोक दिया गया है. रक्त दान करने वाले अपने घरों में हैं और रक्तदान शिविरों की संख्या कम हो गई है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के ई-आरटीटी कोष डेटाबेस के अनुसार, शिविरों की संख्या जनवरी में 606 से घटकर मार्च में 369 हो गई और अप्रैल में यह केवल 81 रह गई. फरवरी में रक्तदान करने वालों की संख्या 38207 से घटकर अप्रैल में 7981 हो गई.

25 मार्च को लॉकडाउन के बीच रक्त एकत्र करने की कठिनाइयों को देखते हुए, राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद, जो कि रक्त संक्रमण के संबंध में नीति तैयार करने वाला शीर्ष निकाय है, की निदेशक डॉ. शोभिनी राजन ने रक्त संचार संबंधी सेवाओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हुए एक पत्र जारी किया. पत्र में उल्लेख किया गया था कि रक्त दान करने से कोरोनावायरस के फैलने का कोई मामला अब तक नहीं आया है. राजन ने लिखा, "लोगों को रक्त दान प्रक्रिया के माध्यम से या रक्त संचार के माध्यम से कोरोनावायरस होने का जोखिम नहीं है क्योंकि यह वायरस आमतौर पर रक्त दान करने से नहीं फैलता है."

फिर भी, एनबीटीसी द्वारा की गई सिफारिशों ने रक्त-दान केंद्रों से उन दाताओं को बाहर करने के लिए कहा जिन्हें या तो कोरोनोवायरस हुआ हो या जिन्होंने विदेश यात्रा की है या संक्रमित लोगों से संपर्क होने के कारण कोरोना होने की संभावना हो. उन्होंने रक्त-दान स्थलों पर व्यक्तियों के बीच कम से कम एक मीटर की शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए, हाथ की स्वच्छता, खांसने के शिष्टाचार का पालन करने के लिए और दस्ताने, मास्क, टोपी जैसे सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल करने के लिए कहा है. नियमित रूप से स्वेच्छा से रक्त दान करने वालों को सुविधाजनक स्थलों पर रक्तदान के लिए आने से बाकी लोगों को प्रेरित किया जा सकता है. राजन ने सिफारिश की कि रक्त दान करने वालों को एक-एक ग्रुप में बुलाया जाए ताकि भीड़ से बचा जा सके और सामाजिक संतुलन बनाए रखा जा सके. रंजन ने आगे कहा कि अगर कोई रक्तदान करने के 14 दिनों के भीतर वापस आता है और कहता है कि वह कोविड-19 लक्षणों का अनुभव कर रहा है या उसे संक्रमण हो गया है या भले ही उसके करीबी को कोरोनोवायरस हो गया हो तो "उसके द्वारा दिए गए रक्त को वापस मगांया जाएगा और उसे नष्ट कर दिया जाएगा."

हालांकि, इसकी आशंका नहीं है. राजस्थान के भीलवाड़ा के राम स्नेही अस्पताल में ब्लड बैंक का संचालन करने वाले दीपक लड्ढा का कहना है, ''आमतौर पर युवा वर्ग के लोग अधिक रक्तदान करते हैं लेकिन जब वे अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं तो रक्त की आपूर्ति कम हो गई है. ब्लड बैंकों के कर्मचारियों तक में यह डर फैला हुआ है. फेडरेशन ऑफ बॉम्बे ब्लड बैंक्स के चेयरपर्सन डॉ. जरीन बरूचा ने मुझे बताया कि महासंघ से जुड़े 48 ब्लड बैंक एक-दूसरे की कमी को पूरा करने में मदद कर रहे हैं. हालांकि इस महामारी ने रक्त-बैंक के कर्मचारी इस तरह के आदान-प्रदान को मुश्किल बना दिया है. बरुचा ने कहा, "ब्लड बैंक द्वारा वाहन उपलब्ध कराने के बावजूद भी कुछ लोग घर से बाहर निकलने से डरते हैं. इसके बारे में क्या किया जा सकता है?"

देश भर के 69 आईआरसीएस ब्लड बैंकों में से एक दिल्ली के इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी ब्लड बैंक की निदेशक डॉ. वंशी सिंह ने मुझे बताया "लॉकडाउन से पहले हम हर दिन लगभग सत्तर से सौ यूनिट रक्त एकत्र करते थे. सर्जरी और ट्रांसप्लांट होने की वजह से इसकी मांग भी अधिक थी लेकिन अब सर्जरी को आगे के लिए टाल दिया गया है और केवल आपातकालीन सर्जरी हो रही है." उन्होंने कहा कि खून की मांग लगभग आधी हो गई है. "हम रोजाना चालीस से पचास यूनिट जमा कर रहे हैं जो हाल—फिलहाल के लिए पर्याप्त है." आईआरसीएस की दिल्ली ईकाई, जो एक दिन में चार रक्तदान शिविर आयोजित करती थी, ने अप्रैल में केवल पांच शिविर आयोजित किए हैं.

हरियाणा के झज्जर शहर के जनरल अस्पताल में ब्लड बैंक की प्रभारी डॉ. इंदिरा हसीजा ने मुझे बताया कि रक्त की मांग एक दिन में लगभग पंद्रह यूनिट से घटकर पांच तक रह गई है. उन्होंने कहा, "लॉकडाउन के दौरान अतिरिक्त रक्त खरीदने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह 35 दिनों में खराब हो जाता है. यदि जरूरत से ज्यादा रक्त है, तो हमें इसका जैव चिकित्सा अपशिष्ट के रूप में निपटान करना होगा. "

उन्होंने आगे कहा कि जिस ब्लड बैंक की क्षमता 400 यूनिट स्टॉक करके रखने की है वह आमतौर पर एक बार में तीन सौ यूनिट तक स्टॉक करता है लेकिन वर्तमान में केवल सौ यूनिट ही स्टॉक कर रहा है. 1 अप्रैल को एनबीटीसी के निदेशक के रूप में राजन के बाद पद संभालने वाले डॉ. संजय गुप्ता ने मुझे बताया कि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्य रक्त की कमी का सामना कर रहे हैं जबकि महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य रक्त की मांग को पूरा करने में समर्थ हैं.

फेडरेशन ऑफ इंडियन ब्लड डोनर्स ऑर्गनाइजेशंस ने अपनी वेबसाइट पर एक वीडियो संदेश जारी किया है. वीडियो में, एफआईबीडीओ के कोषाध्यक्ष जितेंद्र कुमार लोगों से रक्त दान करने की अपील करते और उनकी मदद करने का वादा करते नजर आ रहे है. वह कहते है, "हम रक्त-दान से पहले फोन पर परामर्श करेंगे और रक्त बैंक के साथ तालमेल करने का प्रयास करेंगे. ”

एफआईबीडीओ के महासचिव बिश्वरूप विश्वास ने कहा, "सभी के मन में एक डर है कि बाहर जाना उनके लिए अच्छा नहीं होगा." कोलकाता में रहने वाले बिस्वास ने कहा कि कोलकाता पुलिस ने रक्त की कमी को पूरा करने के लिए पूरे अप्रैल अपनी रैंकों में से हर दिन 50 यूनिट रक्त का योगदान करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा, "अभी पश्चिम बंगाल को प्रति दिन औसतन 1100 यूनिट रक्त की जरूरत है जबकि सामान्य मांग इससे बीस गुना अधिक है. प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि थैलेसीमिया के रोगियों, डायलिसिस वाले लोगों और गर्भवती महिलाओं को रक्त मिले. मुझे इस बात की चिंता है कि अगले महीने क्या होगा जब लॉकडाउन खुलेगा और रक्त की आपूर्ति सामान्य स्तर पर नहीं होगी."

अनुवाद : अंकिता


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.