बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष एवं समता पार्टी के प्रवक्ता रहे शिवकुमार सिंह कहते हैं, “किसी बनारसी ने सोचा भी नहीं रहा होगा कि इतना खौफनाक मंजर एक दिन उसकी आंखों के सामने आएगा कि श्मशान घाटों पर शवों को जलाने के लिए लाइन लगेगी, दफनाने के लिए जमीन कम पड़ जाएगी. आखिर कोरोना की लहर क्यों बेलगाम हो गई है? शमशान घाट और क्रबिस्तान में भारी संख्या में शवों को लाने का सिलसिला जारी है. यह हाल उस शहर का है जिसके सांसद नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं.”
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में इस शहर में दवाओं, ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड एवं इलाज करने वाले डाक्टरों की भारी कमी है. कोविड रोगियों का हाल यह है कि पहले उन्हें जांच के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है, फिर अस्पतालों में बेड ढूंढने के लिए आपाधापी और आखिर में श्मशानों और कब्रिस्तानों में जगह के लिए ठेलाठेली. बनारस के श्मशान घाटों पर चौबीसों घंटे चिताएं जल रही हैं जिनकी परेशान करने वाली तस्वीरों ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनाई हैं.
बनारस के व्यापारी नेता बदरुद्दीन अहमद कहते हैं, “कब्रिस्तानों की बात की जाए तो यहां दो गज जमीन के लिए अब प्रशासन की मदद लेने की जरूरत पड़ रही है. लाशों को दफनाने के लिए खुदाई करते-करते मजदूरों के हाथों में छाले पड़ गए हैं. कुछ इलाकों में अब जेसीबी तक की मदद लेनी पड़ रही है.”
बनारस शहर का हाल यह है कि कई रिहायशी इलाकों में अघोषित श्मशान घाट बनाए जा रहे हैं. यहां पहले मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर लाशें जलाई जाती थीं. हालात बिगड़े तो घाट के समीप रिहायशी इलाके में एक और नया श्मशान घाट खोल दिया गया. बनारस के जाने-माने पत्रकार विश्वनाथ गोकर्ण बताते हैं, “श्मशान घाटों पर जगह न होने के कारण लोगों को वरुणा नदी के संगम स्थित सराय मोहाना में भी कोविड के मृतकों के शवों को जलाना पड़ रहा है. कुछ लोग रामनगर में लाशें जलाने के लिए विवश हो गए हैं. कितना भयावह और दर्दनाक मंजर है यह.”
गोकर्ण कहते हैं, “हरिश्चंद्र घाट का हाल ही मत पूछिए. मजबूरी में घाट के ऊपरी चबूतरों पर भी लाशें जलाने के लिए लोगों को विवश होना पड़ रहा है. हरिश्चंद्र घाट से लगे बंगालीटोला, अस्सी और लंका तक के लोग दहशत में हैं. यही नहीं, लाशों को जलाने के लिए लकड़ियों की भारी किल्लत है. अंतिम संस्कार के लिए लोगों को घाटों पर घंटों इंतजार करना पड़ रहा है.”
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