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पंजाब के तरनतारन जिले के गोइंदवाल में डेरा साहिब पुलिस चौकी की एक महिला सब-इंस्पेक्टर सोनी 28 मार्च को अपने इलाके में जरूरतमंद लोगों को भोजन बांट रही थीं. उनके साथ कुछ अन्य पुलिस कर्मी और स्थानीय गुरुद्वारा के स्वयंसेवक थे. उन्होंने फोन पर कहा कि लोगों ने इस रवैये की काफी सराहना की लेकिन लोहार गांव में, "कुछ बेईमान और कुख्यात तत्वों ने पुलिस वाहनों पर पत्थर फेंकना और उनका पीछा करना शुरू कर दिया. उन्होंने गुरुद्वारा के स्वयंसेवकों पर भी हमला किया.” तरनतारन के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ध्रुव दहिया ने संपर्क करने पर घटना की पुष्टि की. स्वयंसेवकों में से एक कुलवंत सिंह ने मुझे बताया कि लोग अपनी हताशा दूर करने के लिए पुलिस को निशाना बना रहे हैं क्योंकि कोरोनोवायरस के चलते हुए लॉकडाउन से मची अफरा-तफरी ने सरकार द्वारा योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन की असफलता को उजागर किया है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर इसी तरह के हमलों के वीडियो चल रहे हैं, और ये जनता को प्रोत्साहित कर रहे हैं.
चंडीगढ़ के एक मोटर वाहन डीलरशिप के सेल्स मैनेजर हरज्योत सिंह को 26 मार्च को पता चला कि उनके सबसे करीबी दोस्तों की उस सुबह एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. चूंकि उसके दोस्त का परिवार दूर रहता था इसलिए वह खुद एक स्कूटर पर निकला और चंडीगढ़ से सटे मोहाली के नागरिक अस्पताल से शव लेने के लिए चला गया. उसे रास्ते में पुलिस ने रोक लिया. उन्होंने कहा, "मैंने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की, जब एक कॉन्स्टेबल आया और मुझे मारने लगा," उन्होंने कहा. उन्होंने याद किया कि उनके साथ मारपीट करने वाले पुलिस कर्मी ने कहा था, "जब तक स्कूटर घुमा के दौड़ा नहीं देता, डंडे बजते रहेंगे." हरजोत ने एक फेसबुक पोस्ट में इस घटना का जिक्र किया और मीडिया घरानों, मोहाली पुलिस, स्थानीय डिप्टी कमिश्नर कार्यालय और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को पोस्ट में टैग किया था. जब मोहाली के एसएसपी कुलदीप सिंह चहल से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं है. "मैंने अपने कर्मियों को मनमानी करने से बचने के सख्त निर्देश दिए हैं," उन्होंने कहा.
हरजोत पुलिस के "अनैतिक और बेवकूफाने" तरीकों से नाराज थे. "हम व्हाट्सएप पर आए ऐसे संदेशों को पढ़कर हंसते और आनंद लेते हैं," उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, "लेकिन यकीन मानिए कि हम कभी नहीं जानते हैं कि हम में से ही किसी को भी बाहर जाने की जरूरत पड़ जाए और यह आप लोगों के साथ भी हो सकता है. जहां अन्य राज्यों की पुलिस लोगों से हाथ जोड़ कर बाहर न आने का अनुरोध कर रही है वहीं बहुत बदनाम, असंवेदनशील और अक्षम पंजाब पुलिस अक्सर भूल जाती है कि वह सार्वजनिक सेवक हैं कोई वर्दीधारी गुंडा नहीं है."
हाल के महीनों में राज्य में अन्य प्रभावित देशों के अप्रवासी भारतीयों की भारी आमद से पंजाब में कोविड-19 के बड़े प्रकोप की संभावना है. यहां तथा अन्य कई राज्यों में महामारी प्रकोप को रोकने के लिए लागू किया गया लॉकडाउन योजनाबद्ध और योजना को लागू करने की गंभीर कमी को झेल रहा है. लॉकडाउन को लागू करने के काम में पंजाब पुलिस, अच्छे और बुरे दोनों तरह की पुलिस भूमिका में उभर कर सामने आई है. ऐसे उदाहरण भी हैं जहां पुलिस बाहर दिखाई दे रहे लोगों के साथ मारपीट करते या उन्हें अपमानित करते हुए दिख रही है. लोगों ने पुलिस हिंसा के मामलों और बाहर पाए गए लोगों के सार्वजनिक अपमान के कई वीडियो ऑनलाइन पोस्ट किए हैं. कुछ फुटेजों से पता चलता है पुलिस लोगों को जमीन पर लुड़कने या ऐसी तख्ती पकड़ कर खड़े होने को मजबूर कर रही है जिसमें लिखा है कि हम, "लोगों के दुश्मन हैं." खासतौर पर ऐसे राज्य में जहां अपनी ज्यादतियों के लिए पुलिस की लंबे समय से आलोचना होती रही है, जिसमें खालिस्तानी विद्रोह के खिलाफ कार्रवाई भी शामिल है, इन घटनाओं ने सार्वजनिक गुस्से को भड़का दिया है. 26 मार्च को अमरिंदर सिंह ने ट्वीट किया है कि उन्होंने पुलिस को ऐसे "कुछ पुलिसकर्मियों जिनका व्यवहार अनुचित था," के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था. उन्होंने कहा, "वे ज्यादातर द्वारा किए जा रहे अच्छे काम को फीका कर रहे हैं. मैं इन ज्यादतियों को बर्दाश्त नहीं करूंगा. ”
इस बीच, पुलिस को भी लॉकडाउन में फंसे कमजोर लोगों तक राहत पहुंचाने के लिए कार्रवाई में शामिल किया गया है ताकि वे उन अन्य सरकारी एजेंसियों के काम को संभाल सकें जिनके जिम्मे इस काम को संभालना था और जो बड़े पैमाने पर स्पष्ट रूप से अनुपस्थित हैं. इसका मतलब है कि अतिरिक्त काम के घंटे और अतिरिक्त दबाव, यह तब और बुरा हो जाता है जब बुनियादी सुरक्षा उपायों जैसे कि कर्मियों के लिए मास्क और पुलिस सुविधाओं की स्वच्छता का अभाव होता है. जमीन पर सरकार के सबसे प्रत्यक्ष एजेंट के रूप में, पुलिस प्रशासन की खराबी का प्रतीक बनती जा रही है और साथ ही इस खराबी के चलते पैदा हुए दुष्परिणामों को भी अपनी तरफ आकर्षित कर रही है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन को लागू करने के लिए 40,000 से अधिक पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, "लॉकडाउन के अनुपालन को सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है, और स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यह बहुत बड़ा कार्य है," नाम न जाहिर करने का अनुरोध करते हुए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा. लेकिन पुलिस को कानून और व्यवस्था के संरक्षण के अपने निर्धारित कार्यों से बहुत अधिक काम सौंप दिया गया है. "जिला खाद्य और आपूर्ति नियंत्रक कार्यालय दिखाई नहीं दे रहे हैं, और हमें बताया गया था कि कई लोगों ने कोविड-19 के संपर्क में आ जाने के डर से सीमा क्षेत्रों और मलिन बस्तियों में जाने से इनकार कर दिया."
25 मार्च को जारी एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पंजाब के पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने स्थिति का मुकाबला करने के लिए अधिकारियों को "आउट-ऑफ-द-बॉक्स" सोचने का आह्वान किया था. पुलिस ने राज्य भर में स्वयंसेवकों को लगाया है, जो अक्सर गुरुद्वारों के साथ काम करते हैं. आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार उन्होंने अमूल, जोमाटो, स्विगी, मंडी प्रधानों और केमिस्ट संघों के साथ गठजोड़ किया है, ताकि आवश्यक सामानों की घर-घर जाकर आपूर्ति की जा सके. पुलिस ने दावा किया है कि 26 मार्च को 150000 से अधिक सूखे भोजन के पैकेट और अगले दिन लगभग 200000 पैकेट वितरित किए गए. तरन तारन के लिए पुलिस वेबसाइट पर "जरूरतमंदों की मदद करने जाते हुए" और "मदद करने के लिए घर-घर जाते" कर्मियों की तस्वीरें भी हैं.
लेकिन भोजन और चिकित्सा आपूर्ति तक पहुंच सुनिश्चित करना एकमात्र मुद्दा नहीं है. 25 मार्च की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि कुछ क्षेत्रों में पुलिस टीमों को रसोई गैस की कमी की व्यवस्था करने, नशे के आदियों को अस्पतालों और नशामुक्ति केंद्रों में ले जाने की व्यवस्था करने, किसानों की कृषि आपूर्ति और उनकी फसलों के सुरक्षित परिवहन की मांग आदि का प्रबंध करना पड़ा.
एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि पुलिस की "112" हेल्पलाइन को "कर्फ्यू हेल्पलाइन में बदल दिया गया है, और यह अब कर्फ्यू से संबंधित सभी समस्याओं को देखती है और उनसे निपटती है." अधिकारी ने कहा कि हेल्पलाइन चौबीसों घंटे काम कर रही है और राज्य भर में 17,000 से अधिक कॉलें ले रही है तथा कॉल करने वालों को जिला-विशिष्ट हेल्पलाइन के लिए निर्देशित कर रही है. हॉटलाइन के प्रबंधन में अतिरिक्त कर्मचारियों को लाने के लिए सरकार एक निजी ठेकेदार के साथ बातचीत कर रही है.
कुछ सुरक्षाकर्मियों ने मुझसे संकट में होने की "झूठी" कॉलों की शिकायत की जो पुलिस के पहले से ही भारी बोझ को और बढ़ा रही है. सीमा सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अमृतसर के राम तीरथ क्षेत्र में बीएसएफ छावनी में फंसे 25 परिवारों के एक समूह ने आपातकालीन आपूर्ति के लिए पुलिस हेल्पलाइन को फोन किया था, जबकि पहले से ही भोजन और 15 दिनों के राशन की व्यवस्था थी. एक राहत स्वयंसेवक ने इस घटना की पुष्टि की. चंडीगढ़ में, एक टीम जो तीन दिनों से भूखे रहने का दावा करने वाले मजदूरों के एक समूह की मदद करने के लिए पहुंची तो उसने देखा कि वे खाना बना रहे हैं और उनके पास पहले से ही स्टॉक रखा है.
पुलिस कर्मियों ने अपनी कामकाजी परिस्थितियों के बारे में भी शिकायत की. एक महिला अधिकारी ने कहा कि वह चौबीसों घंटे काम कर रही हैं, केवल बीच-बीच में कभी हल्की सी झपकी ले लेती हैं. हर रैंक के कई कर्मियों ने मुझे बताया कि उन्हें उपयुक्त मास्क नहीं दिए गए और चंडीगढ़ के पुलिस स्टेशनों, चौकियों और बीट बॉक्सों को साफ नहीं किया गया था. एक पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, "मैं अपने हजारों सहयोगियों की तरह अपने जीवन को खतरे में डाल रहा हूं." उन्होंने कहा कि जब वे काम पर थे तो उन्हें अपने परिवार के साथ संपर्क से बचने के लिए इस डर से मजबूर किया गया था कि सुरक्षात्मक उपायों की कमी और कोरोनोवायरस संक्रमित लोगों के साथ उनका संभावित संपर्क वायरस को फैला सकता है. उच्च अधिकारियों के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें "अपने जूनियर्स की कोई चिंता नहीं हैं."
विभिन्न पुलिस कर्मियों ने कहा कि उन्हें पंजाब सशस्त्र पुलिस द्वारा बनाए गए ऐसे मास्क दिए जा रहे हैं जिनकी प्रभावकारिता संदिग्ध है. सशस्त्र बटालियनों के लिए विशेष डीजीपी इकबाल प्रीत सिंह सहोता से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि विभिन्न पीएपी बटालियनों के दस टेलरों को कपड़ा मास्क सिलने का आदेश दिया गया है. उन्होंने कहा कि पुलिस को कुछ मास्क भी दान किए गए थे और इन्हें भी दिया जा रहा है.
कोरोनावायरस के 6 निश्चित मामलों वाले शहर मोहाली के एसएसपी चहल ने कहा, "जो भी मास्क मिल रहे हैं, हम वही वितरित कर रहे हैं, जबकि हमारे कर्मचारी सामाजिक दूरी भी सुनिश्चित करते हैं." यह पूछे जाने पर कि कई पुलिस कर्मी अपने चेहरों पर रूमाल क्यों लपेट रहे हैं, उन्होंने जवाब दिया, "वास्तव में, पगड़ी पहने किसी पुलिस वाले के व्यक्तित्व के साथ मास्क मेल नहीं खाता है. इसलिए, उन्होंने रूमाल बांध दिया होगा.”
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